इतिहास को जानने के स्त्रोत कौन कौन से है? - itihaas ko jaanane ke strot kaun kaun se hai?

6. मूर्तियाँ - इसी प्रकार प्राचीन काल में कुषाणों, गुप्त शासकों और गुप्तोत्तर काल में जो मूर्तियाँ बनाई गई उनसे जनसाधारण की धार्मिक आस्थाओं और मूर्ति-कला के विकास पर बहुत प्रकाश पड़ा है। भारत की मूर्ति-कला की जड़ें भारतीय सभ्यता के इतिहास अतीत में बहुत दूर गहरी प्रतीत होती है। भारतीय मूर्तिकला आरंभ से ही यथार्थ रूप लिए हुए हैं जिसमें मानव आकृतियों में प्राय: पतली कमर, लचीले अंगों और एक तरूण और संवेदनापूर्ण रूप को चित्रित किया जाता है। भारतीय मूर्तियों में पेड़-पौधे और जीव-जन्तुओ से लेकर असंख्य देवी देवताओं को चित्रित किया गया है। कुषाण काल की मूर्ति-कला में विदेशी प्रभाव अधिक है। गुप्त काल की मूर्ति-कला में अंतरात्मा तथा मुखाकृति में जो सामंजस्य है वह अन्य किसी काल की कला में नहीं मिलता।

प्राचीन भारत के ऐतिहासिक घटनाओं, ऋग्वैदिक काल, प्रागैतिहासिक काल तथा प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति की जानकारी प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों से प्राप्त होती है. अब आपके मन में सवाल होगा कि प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोत कौन-कौन से हैं? तो आज मैं आपसे प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों के बारे में बात करेंगे.

Table of Contents

  • प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोत 
    • प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत 
      • हिन्दू धर्म ग्रन्थ 
      • बौद्ध धर्म ग्रन्थ 
      • जैन धर्म-ग्रन्थ 
      • जीवन चरित 
      • जन-साहित्य 
    • प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक स्रोत 
      • अभिलेख
      • कला-कृतियाँ
      • स्मारक
      • सिक्के
      • मिट्टी के बर्तन

प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोत 

प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने के दो मुख्य स्रोत हैं,

  • साहित्यिक स्रोत
  • पुरातात्विक स्रोत

प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत 

साहित्यिक स्रोत वे ग्रन्थ और लेख होते हैं, जिनसे भारत व विश्व के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है. हिन्दू धर्म ग्रन्थ, वैदिक रचनाएं, बौद्ध धर्म-ग्रन्थ तथा जैन धर्म-ग्रन्थ, महाकाव्य, पुराण, संगम साहित्य, कविता, नाटक और जीवन-चरित, जन-साहित्य आदि साहित्यिक स्रोत के अंतर्गत आता है.

हिन्दू धर्म ग्रन्थ 

हिन्दू धर्म ग्रंथों में कई प्रकार की ग्रंथों की रचना की गयी. इनमें में संहिताओं का प्रमुख स्थान है. संहिता में चार प्रकार के वेद, ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अर्थववेद आते हैं. इसके अलावे ब्राह्मण (ऐतरेय, शतपथ, पंचविश आदि), वेदांग या उपवेद, उपनिषद, महाभारत, पुराण, रामायण, आरण्यक, आदि इन हिन्दू धर्म-ग्रंथों से वैदिककाल और उसके बाद के काल के राजनीतिक, इतिहास और तत्कालीन सभ्यता का ज्ञान प्राप्त होता है.

  • ऋग्वेद से पूर्व वैदिक काल की सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान होता है.
  • और अन्य तीनों वेदों से उत्तर-वैदिक काल की सभ्यता के बारे में पता चलता है.
  • ब्राह्मण ग्रंथों से उत्तर-वैदिक काल में हुए आर्यों के विस्तार और उनके धार्मिक विश्वासों तथा कर्मकांडों की पद्धतियों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है.
  • वेदांग वेदों के अंग है. कुल 6 वेदांग हैं, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद व ज्योतिष. वेदांग में वेद के गूढ़ ज्ञान को सरल भाषा में लिखा गया है.
  • उपनिषदों से आर्यों के दार्शनिक विचारों जैसे, आत्मा, ईश्वर आदि का ज्ञान होता है.
  • महाभारत विश्व के सबसे बड़े महाकाव्यों में से एक है. महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की.
  • रचना के समय महाभारत में कुल 8,800 श्लोक थे. जिसके कारण इसे जयसंहिता कहा जाता था.
  • बाद में श्लोकों की संख्या बढ़कर 24,000 हो गयी, जिसके कारण इसे भारत का नाम दिया गया.
  • पुराणों की कुल संख्या 18 है. इसमें प्राचीन ऋषि मुनियों व राजाओं का वर्णन है.
  • विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, वायु पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण तथा भागवत पुराण काफी महत्वपूर्ण पुराण हैं, इन पुराणों में विभिन्न राजाओं के वंशजों वर्णन है.
  • रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी. जिसमें हिन्दू रघुवंश के राजा राम की गाथा है. रामायण में छः अध्याय है, जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं.

बौद्ध धर्म ग्रन्थ 

बौद्ध धर्म ग्रन्थ में तीन ग्रन्थ या पिटक हैं, विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्मपिटक. बौद्ध धर्म ग्रन्थ को पिटक कहा गया है.

  • विनयपिटक में बौद्ध संघ के संगठन और उससे सम्बंधित नियमों का उल्लेख है.
  • सुत्तपिटक में बौद्ध धर्म के उपदेशों का वर्णन है.
  • अभिधम्मपिटक में बौद्ध दर्शन का वर्णन है.

जैन धर्म-ग्रन्थ 

‘आगम’ के नाम से जैन धर्म ग्रंथों को पुकारा गया. उनका संकलन बाद में पूर्व के चौदह ग्रंथों में किया गया. उसके बाद उनका संकलन ‘अंग’ नामक 12 ग्रंथो में हुआ. उन बारह ग्रंथों में एक ग्रन्थ खो चूका है. 11 ‘अंग’ बचे है जो अब भी प्राप्त है. उसके बाद भी विभिन्न जैन धर्म ग्रंथों का निर्माण हुआ. जिनसे भारतीय इतिहास की जानकारी मिली. चन्द्रगुप्त मौर्य के काल की कुछ घटनाओ का ज्ञान ‘भाद्रबाहुचरित्र’ से प्राप्त होता है.

जीवन चरित 

प्राचीन भारत की इतिहास की जानकारी समकालीन ‘जीवन-चरित’ से भी होती है. वाणभट्ट का ‘हर्ष-चरित’, विल्हण का ‘विक्रमदेव-चरित’, बल्लाल का ‘भोज प्रबंध’, संध्याकर नंदी का ‘रामचरित’, हेमचंद का ‘कुमारपाल’, चंदबरदाई का ‘पृथ्वीराज विजय’, नयचंद्र का ‘हम्मीर काव्य’, सोमेश्वर का ‘कीर्तिकोमुदी’ आदि प्रमुख जीवन-चरित हैं, जिनसे प्राचीन भारतीय इतिहास का ज्ञान होता है.

जन-साहित्य 

जन-साहित्य का निर्माण विद्वानों ने साहित्य, अर्थव्यवस्था, राज्य-व्यवस्था, काव्य-संग्रह, नाटक व्याकरण और अन्य ज्ञान के विकास के लिए किया.  कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र‘, विशाखदत्त का ‘मुद्राराक्षस’, पंतजलि का ‘महाभाष्य’ आदि प्रमुख साहित्य है, जिससे इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है.

तमिल भाषा के ‘संगम साहित्य’ से दक्षिण भारत के प्राचीन इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है.

प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक स्रोत 

अभिलेख, कला-कृतियाँ, स्मारक, सिक्के और मिट्टी के बर्तन प्राचीन भारतीय इतिहास के जानने के पुरातात्विक स्रोत हैं. पुरातात्विक स्रोतों से किसी समय विशेष पर विशेष स्थानों पर मौजूद लोगों के रहन-सहन, कला, जीवन शैली एवं अर्थव्यवस्था आदि का ज्ञान होता है. जिनसे प्राचीन भारत के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है. पुरातत्व सम्बन्धी स्रोतों का अध्ययन करने वाले अन्वेषकों को पुरातत्वविद के नाम से जाना जाता है.

अभिलेख

पुरातत्व सम्बन्धी स्रोतों में अभिलेख प्रमुख स्रोत है. अभिलेख मुख्यतया शिलाखंडों, मूर्तियों, कला-कृतियों और ताम्रपत्रों पर प्राप्त हुए है. अभिलेख से देश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है. जिस समय और जिस देश के अभिलेख होते हैं, उस समय और उस देश के बारे में जानकारी प्राप्त होती है.

अभिलेखों में सम्राट अशोक के स्तंभ और शिलालेख भारत के विभिन्न स्थानों में पाए गए हैं. जो ब्राही और खरोष्टि लिपि में लिखे गए हैं. अभिलेख से न केवल महान सम्राट अशोक के विचारों और व्यक्तित्व का ज्ञान होता है, बल्कि उनके अभिलेख से उस समय की भारतीय भाषा और लिपि का भी ज्ञान होता है.

मंदिरों के निर्माण और मूर्तियों के प्रतिष्ठान के समय तथा स्थापत्य कला, मूर्तिकला आदि का ज्ञान निजी अभिलेख से होता है. जो सामान्य व्यक्तियों द्वारा मंदिरों या मूर्तियों पर लिखवाये गए हैं. प्राचीन भारत के इतिहास की जानकारी में अभिलेख मुख्य स्रोत है.

कला-कृतियाँ

विभिन्न स्थानों से प्राप्त भित्ति चित्र, मूर्तियाँ, खिलौने, आभूषण, स्तंभ, मंदिर आदि विभिन्न कला-कृतियों से प्राचीन भारतीय सभ्यता व संस्कृति का ज्ञान होता है. अजंता, सित्तानवासल, बादामी और बाघ गुफाओं के भित्ति चित्र, सिन्धु नदी घाटी से प्राप्त हुए खिलौने और आभूषण, अशोक के स्तम्भ, विभिन्न बौद्ध प्रतिमाएं, मंदिरों, ताबें अथवा कांसे की मूर्तियाँ आदि से प्राचीन भारतीय इतिहास का ज्ञान होता है.

स्मारक

स्मारकों से प्रागैतिहासिक काल के बारे में ज्ञान प्राप्त हुआ. विभिन्न स्थानों पर खुदाई की जाने से कई स्मारक के अवशेष प्राप्त हुए हैं, इन अवशेषों से ज्ञात होता है कि मानव का अस्तित्त्व भारत में पुरापाषाण काल में भी था. स्मारकों और भग्नावशेषों में बौद्ध स्तूपों एवं हिन्दू मंदिरों का प्रमुख स्थान है.

सिक्के

भारत के विभिन्न स्थानों से सोने, चांदी और तांबे के सिक्के प्राप्त हुए हैं. इन सोने, चांदी और तांबे के सिक्कों से प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी प्राप्त हुई है. सोना, चांदी और तांबे के कुछ सिक्के सम्राटों के हैं तथा कुछ सिक्के ऐसे भी है जो किसी व्यक्ति एवं व्यापारिक संघों द्वारा बनाये गए हैं.

यूनानी सिक्को से भारत के लोगों को प्रेरणा मिली और उन्होंने अपने सिक्कों पर अपनी या अपने किसी देवता की आकृति एवं समय अंकित करना शुरू किया. इन यूनानी सिक्कों से गुप्तवंश के इतिहास के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है.

मिट्टी के बर्तन

मिट्टी के बर्तन भारत के विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं, जिससे प्राचीन भारतीय इतिहास को जानने में सहायता मिली. मिट्टी के बर्तन से प्राचीन काल की कला-कृतियों का ज्ञान प्राप्त हुई. इसके अलावे मिट्टी की जाँच करने से इनकी आयु का पता लगाकर इतिहास के समय की जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिलती है.

इतिहास को जानने के कितने स्रोत हैं?

इनकी संख्या 6 है- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द तथा ज्योतिष.

प्राचीन इतिहास जानने के कौन कौन से स्रोत हैं?

अभिलेख एवं सिक्कों से प्राचीन काल के सम्बन्ध में काफी सटीक जानकारी प्राप्त होती है। लेकिन अभिलेखों और सिक्कों के अलावा अन्य महत्वपूर्ण स्त्रोत भी हैं जिनसे प्राचीन काल के सम्बन्ध में उपयोगी जानकारी प्राप्त होती है, इन स्त्रोतों में इमारतें, मंदिर, स्मारक, मूर्तियाँ, मिट्टी से बने बर्तन तथा चित्रकला प्रमुख है।

इतिहास के पांच स्रोत क्या हैं?

इसके अन्तर्गत मुख्यतः अभिलेख, सिक्के, स्मारक, भवन, मूर्तियाँ, चित्रकला आदि आते हैं

इतिहास क्या है एवं इसके स्रोत लिखिए?

अतीत को जानने के साधनों में साहित्य एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। जिसे पढ़कर हमें अतीत की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति का ज्ञान होता है। राजस्थान के इतिहास देने वाला साहित्य सभी भाषाओं में उपलब्ध है किंतु हम यहाँ केवल राजस्थानी साहित्य की चर्चा करेंगे।