सूअर के काटने से कौन सी बीमारी होती है? - sooar ke kaatane se kaun see beemaaree hotee hai?

सतर्कता अलार्म पाँच का अर्थ है कि बीमारी अब कई देशों में फैलने लगी है. उससे बचाव के क़दमों को लागू करने का समय अब आ गया है. इसके बाद अब केवल एक ही स्तर बचता है, छठां स्तर, जिसका अर्थ होगा कि बीमारी ने अब विश्वमहामारी का रूप ले लिया है.

इस बीमारी को फिलहाल स्वाइन फ़्लू अर्थात सूअर-ज्वर कहा जा रहा है, क्योंकि उसकी शुरुआत सूअर-ज्वर से हुई थी. लेकिन, अब क्योंकि उसकी छूत मनुष्यों से मनुष्यों को भी लगने लगी है, इसलिए उसे मेक्सिको-फ्लू, उत्तर अमेरिकी फ्लू या -- यूरोपीय संघ के सुझाव पर-- नॉवेल इन्फ़्लुएन्ज़ा, अर्थात नया इन्फ़्लुएन्ज़ा भी कहा जा रहा है. मेक्सिको में उसके प्रकोप का समाचार देते हुए वहां के राष्ट्रपति फ़ेलिपे काल्देरोन ने सप्ताह के आरंभ में बतायाः

"ऐसे 1384 लोगों के नाम दर्ज किये गये हैं, जिन्हें न्यूमोनिया की शिकायत है. यह इस बात का संकेत हो सकता है कि उन्हें फ्लू के नये वायरस का संक्रमण लग गया है.... इन 1384 लोगों में से 929 अपने घर लौट गये हैं. केवल 374, यानी 27 प्रतिशत ही अस्पतालों में हैं और 81 की मृत्यु हो गयी है."

इन्फ़्लुएन्ज़ा का ही नया प्रकार

मृतकों की संख्या इस बीच डेढ़ सौ से ऊपर चली गयी है. अमेरिका, कैनडा, न्यूज़ीलैंड, स्पेन,जर्मनी, इस्राएल इत्यादि कई अन्य देशों में भी इस बीच सूअर-ज्वर के लक्षण देखे गये हैं. इसीलिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन को चेतावनी स्तर बढ़ा देना पड़ा. संगठन के उपमहानिदेशक केइजी फुकूदा ने कहाः

"इस स्थिति में हमारे प्रयास वायरस के फैलाव को रोकने के बदले नुकसान को सीमित करने पर केंद्रित होने चाहिये. वायरस तो पहले ही काफ़ी दूर-दूर तक पहुँच गया है."

सूअर के काटने से कौन सी बीमारी होती है? - sooar ke kaatane se kaun see beemaaree hotee hai?
जर्मनी में तैयारीतस्वीर: AP

स्वाइन फ्लू या सूअर-ज्वर इन्फ़्लुएन्ज़ा का ही-- जिसे संक्षेप में केवल फ्लू कहते हैं-- एक नया प्रकार है. इसकी उत्पत्ति सूअरों में हुई. लेकिन अब यह अचानक मनुष्यों को भी होने लगा है. सबसे चिंताजनक बात यह है कि उसकी छूत क्योंकि मनुष्य से मनुष्य को भी लगने लगी है, इस कारण उसका प्रसार और भी तेज़ी से हो सकता है. कुछ समय पहले चर्चा में रहे बर्डफ्लू या पक्षी ज्वर के वायरस का संक्रमण केवल पक्षियों से मनुष्यों की दिशा में होता था, मनुष्यों से मनुष्यों की दिशा में नहीं, इसलिए वह विश्वव्यापी महामारी नहीं बन सका.

लक्षण

सूअर-ज्वर की एक विशेषता यह भी है कि वह बच्चों या बूढ़ों की अपेक्षा युवावर्ग के लोगों को अधिक पीड़ित करता है. इसके लक्षण लगभग वही हैं, जो मनुष्यों को होने वाले किसी मौसमी फ्लू के भी होते हैं: अचानक या कंपकंपी के साथ 38 डिग्री से अधिक बुख़ार आ जाना, सुस्ती, गले, सिर और जोड़ों में दर्द, खांसी और भूख न लगना. कुछ लोगों को उल्टी और दस्त की शिकायत भी हो सकती है. लेकिन, यह फ्लू बहुत तेज़ी से फेफड़ों में सूजन और जलन के न्यूमोनिया रोग का भी रूप ले सकता है. हृदय, गु्र्दे और फेफड़े काम करना बंद कर सकते हैं और तब मृत्यु लगभग निश्चित हो जाती है.

इतिहास

वायरस जनित फ्लू सूअरों में पहले भी काफ़ी व्यापक रहा है. श्वसनमार्ग की उनकी यह बीमारी आम तौर पर सात से दस दिनों में ठीक हो जाती है. मौत कम ही होती है. सूअर-ज्वर वाला पहला इन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस 1930 में देखा गया था. 1950 वाले दशक से यह भी जाना जाता है कि यह वायरस सूअरों के निकट संपर्क में रहने वाले मनुष्यों को भी बीमार कर सकता है, हालांकि इसके बिरले ही मामले सामने आये हैं. यूरोप में 1958 के बाद से ऐसे केवल 17 मामले दर्ज किये गये हैं.

1976 में अमेरिका में न्यूजर्सी राज्य के एक सैनिक अड्डे पर सूअर-ज्वर वाले इन्फ़्लुएन्ज़ा को पहली बार बड़े पैमाने पर फैलते देखा गया. यह मनुष्य से मनुष्य को संक्रमण लगने का मामला था. 200 सैनिक बीमार हुए, लेकिन केवल एक की ही मृत्यु हुई.

गत 21 अप्रैल 2009 को अमेरिका के संक्रामक रोग निरोधक कार्यालय सीडीसी ने अब तक अज्ञात एक नये वायरस का पता लगने की ख़बर दी. वह सूअर वाले फ़्लू के वायरस से मिलत़ा-जुलता था, बल्कि उसी के एक उपप्रकार H1N1 का एक नया रूप था. H का अर्थ है हेमागग्लुटिनिन (Haemagglutinin) और N का अर्थ है न्यूरामिनीडेज़ (Neuraminidase). ये उन दोनों प्रोटीनों के नाम हैं, जिनसे वायरस का बाहरी आवरण बना होता है.

चार जीनों का मिश्रण

वायरस की जीन-परीक्षा से पता चला कि उसमें चार अलग अलग वायरसों के आनुवंशिक गुणों का मिश्रण हुआ है: दो तो सूअर वाले फ्लू के ही दो प्रकार थे-- एक जीन उत्तरी अमेरिकी और एक एशियाई-यूरोपीय सूअर-ज्वर के वायरस का था और एक-एक जीन पक्षीज्वर (बर्ड फ्लू) और मानवीय इन्फ़्लुएन्ज़ा के वायरस का था. यह नया वायरस कब और कैसे बना, यह पता नहीं है.

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तीन जर्मनों में भी सूअर-ज्वर के वायरस मिलेतस्वीर: AP

एक अनुमान है कि सूअर क्योंकि पक्षीज्वर और मानवीय इन्फ़्लुएन्ज़ा वाले वायरस से भी संक्रमित होते हैं, इसलिए संभव है कि किसी सूअर को चारों अलग अलग वायरसों का एक ही समय संक्रमण लग गया. इस तरह उसकी संक्रमित कोषिकाओं में चारों प्रकारों के जीनों का मेल हो गया. यह भी संभव है कि नया वायरस-प्रकार एक ही बार में नहीं, कई चरणों में बना. यह नया प्रकार मनुष्यों वाले फ्लू के H1N1 वायरस से भिन्न है.

युवजनों के लिए अधिक ख़तरनाक

बच्चों और बूढ़ों की तुलना में युवा और स्वस्थ लोग इस वायरस से जिस तरह गंभीर रूप से बीमार हो रहे हैं, उसका कारण बताते हुए जर्मनी के एक वायरस विशेषज्ञ मार्टिन विंकलहाइड बताते हैं कि फ्लू या इन्फ़्लुएन्ज़ा कितना गंभीर रूप ले सकता है, इसके कुछ कारक होते हैं.

"पहला यह कि वायरस कितना आक्रामक है, श्वसनममार्ग की कोषिकाओं में किस तेज़ी से फैलता है और उन्हें क्षति पहुँचा सकता है. दूसरा है, शरीर किस तीव्रता के साथ वायरस का प्रतिरोध करता है. यानी हमारी रोगप्रतिरक्षण प्रणाली किस तरह की प्रतिक्रिया दिखाती है. शरीर प्रदाह के रूप में अपना बचाव करने का प्रयत्न करता है. हो सकता है कि युवा आदमी की प्रतिरक्षण प्रणाली उस के लिए अब तक अज्ञात रहे वायरस के विरुद्ध बहुत प्रबल प्रतिक्रिया दिखाने लगे. तब यह प्रतिक्रिया प्राणघातक अतिरंजित रूप भी ले सकती है. इससे अंगविफलता पैदा हो सकती है, यानी गुर्दे, हृदय, फेफड़े और मस्तिष्क का काम करना बंद हो सकता है. इस ख़तरनाक स्थिति में मृत्यु भी हो सकती है."

स्पेनी फ्लू के समय क्या हुआ

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90 साल पहले स्पेनी फ्लू के समय का अमेरिकातस्वीर: picture-alliance / akg-images

समझा जाता है कि 1918 से 1920 तक चले तथाकथित स्पेनी फ्लू के समय भी शायद इसी कारण मृतकों में युवा रोगियों का अनुपात काफ़ी अधिक था. बंदरों को उस समय के वायरस की नकल से संक्रमित करने के प्रयोगों में यही देखने में आया. अनुमान है कि उस समय स्पेनी फ्लू के प्रकोप से विश्व भर में ढाई से पांच करोड लोगों की मृत्यु हुई थी. यह प्रकोप लगभग दो वर्ष चला था और उसकी तीन बड़ी लहरें आयी थीं. उसी को याद कर मार्टिन विंकलहाइड कहते हैं कि समय ही बतायेगा कि मेक्सिको में जो कुछ देखने में आया है, वह विश्वव्यापी महामारी का विकराल रूप ले पायेगा या नहीं:

"इस समय दो परस्पर विरोधी परिदृश्य सोचे जा सकते हैं. पहला यह कि वायरस अगले कुछ ही सप्ताहों में दम तोड़ बैठता है, ग़ायब हो जाता है और फिर कभी नहीं लौटता. दूसरा यह कि वायरस अड्डा जमा लेता है, खूब फैलता है और एक विश्वव्यापी महामारी का रूप धारण कर लेता है.. दोनो अतियां संभव हैं. हम नहीं जानते कि दोनो ध्रुवों के बीच इस समय हम कहां खड़े हैं."

आशा की किरण

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टामीफ्लू का कैप्सूलतस्वीर: picture-alliance/ dpa

वर्तमान सूअर-ज्वर एक तरफ तो हर दिन हवा में उड़ने वाले लाखों विमान यात्रियों के माध्यम से अपूर्व तेज़ी के साथ दुनिया भर में फैल सकता है, इस तेज़ी के साथ की छह महीनों में ही दुनिया भर में कुहराम मच जाये. दूसरी ओर, इन्फ़्लुएन्ज़ा के पिछले प्रकोपों के विपरीत इस बार आशा की एक किरण दो ऐसी दवाएँ भी हैं, जो H1N1के नये वायरस के प्रति भी प्रभावशाली बतायी जाती हैं. बाज़ार में वे टामीफ्लू (Tamiflu) और रिलेंज़ा (Relenza) के नाम से जानी जाती हैं. मार्टिन विंकलहाइड के अनुसार दोनों दवाएं वायरस को रोगी के शरीर में वंशवृद्धि द्वारा अपनी संख्या बढ़ाने से रोकती हैं:

"दोनों दवाएं वायरल एन्ज़ाइम न्यूरामिनीडेज़ को बाधित करती हैं. इन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस को यह एन्ज़ाइम हर हाल में चाहिये, ताकि वह हमारी कोषिका में अपनी संख्या बढ़ाने के बाद कोषिका से बाहर निकल सके, ताकि नयी कोषिकाओं में घुस कर वहां पुनः अपनी संख्या बढ़ा सके. कोषिका-दीवार भेदने के लिए उसे यह एन्ज़ाइम चाहिये. यदि यह एन्ज़ाइम बाधित हो जाता है, तो वायरस किसी नयी कोषिका में घुस नहीं पायेगा, अपनी संख्या और बढ़ा नहीं पायेगा."

लेकिन, सबसे ज़रूरी यह है कि टामीफ्लू या रिलेंज़ा में से किसी एक को बीमारी के प्रथम लक्षण दिखने के 24 घंटों के भीतर ही लेना शुरू कर दिया जाये, देर नहीं होनी चाहिये. जितनी ही देर होगी, दवा उतनी ही प्रभावहीन साबित होगी.

कुछ और समस्याएं भी हैं. फ्लू या इन्फ़्लुएन्ज़ा का वायरस बहुत परिवर्तनशील होता है. हर दवा को बेअसर बनाने का गुर जल्द ही सीख लेता है, ख़ास कर तब, जब किसी दवा का बहुत अधिक प्रयोग होने लगे. मेक्सिको से फैले नये वायरस का परिपक्वता काल भी बहुत कम है, केवल दो दिन. संक्रमण के दो दिन के भीतर वह रोगी को बिस्तर में लेटा देता है और उसकी छींक या खांसी के साथ दूसरों को भी बीमार करने लायक हो जाता है.

सूअर-ज्वर से बचाव का कोई टीका अभी नहीं बना है. संसार की कई प्रयोगशालाओं में इस पर काम शुरू हो गया है, लेकिन टीका बनने में कम-से-कम छह महीने का समय लगेगा. वह कितना प्रभावकारी सिद्ध होगा, यह एक अलग प्रश्न है. फ्लू के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसके हर नये या परिवर्तित प्रकार से बचाव के लिए नये टीके की ज़रूरत पड़ती है.

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बचाव के लिए नकाबतस्वीर: AP/DW-Montage

बचाव के उपाय

ऐसे में अपने और दूसरों के बचाव का यही उपाय बचता है कि छींकते और खांसते समय मुंह और नाक को किसी रूमाल से तुरंत ढक लें. हर जगह थूकें या नाक न साफ़ करें. बहती हुई नाक साफ़ करने के लिए भी रूमाल या कागज़ के टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करें. दूसरों से हाथ मिलाने या शारीरिक संपर्क में आने से बचें और हो सके तो सार्वजनिक स्थानों पर मुंह पर नकाब बांध कर चलें. फ्लू के पहले लक्षण देखते ही डॉक्टर से संपर्क करें. डॉक्टर से पूछे बिना टामीफ्लू या रिलेंज़ा जैसी कोई दवा न लें. भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें.

ध्यान देने की बात यह भी है कि सूअर-ज्वर से अब तक जितनी मौतें हुई हैं, उससे कहीं ज़्यादा मौतें अधिकतर देशों में हर साल सामान्य मौसमी फ्लू से हुआ करती हैं. इसलिए बहुत आतंकित होने या घबराने का अभी कोई कारण नहीं है.

रिपोर्ट- राम यादव

संपादन- महेश झा

सूअर काटने से क्या होता है?

किसी भी व्यक्ति को कुत्ते, बंदर, सुअर, चमगादड़, लोमड़ी या किसी जंगली जानवर ने काट लिया है तो उसके लिए जरूरी है। कि वह जानवर के काटे जाने के 72 घंटे के अंतराल में एंटी रेबीज वैक्सीन का इंजेक्शन अवश्य ही लगवा लेना चाहिए। अगर 72 घंटे के अंतराल में मरीज इंजेक्शन नहीं लगवाता है तो वह रेबीज रोग की चपेट में आ सकता है।

सूअर से कौन सा रोग फैलता है?

स्वाइन फ्लू और इन्फ्लूएंजा ए (H1N1) क्या है? स्वाइन इन्फ्लूएंजा एक संक्रामक सांस की रोग है जो कि सामान्य रूप से केवल सूअरों को प्रभावित करती है। यह आमतौर पर स्वाइन इन्फ्लूएंजा ए वायरस के H1N1 स्ट्रेंस के कारण होता है। हालांकि H1N2, H3N1 और H3N2 के रूप में अन्य स्ट्रेंस भी सूअरों में मौजूद रहते हैं।

सूअर का मांस क्यों नहीं खाना चाहिए?

यह उन्हें बिना बीमार हुए एंथ्रेक्स और रेबीज जैसी बीमारियों से दूषित मांस खाने की अनुमति देता है, और वास्तव में, उनके शरीर रोगजनकों को प्रभावी ढंग से मारते हैं। इसलिए वे चूहों या कुत्तों जैसे जानवरों की तुलना में अधिक कुशल मैला ढोने वाले हैं, जो रोगजनकों को फैलाएंगे, और गिद्ध मनुष्यों के लिए इतने फायदेमंद क्यों हैं।

सूअर का मुख्य भोजन क्या है?

सुअर के आहार में अनाज और प्रोटीन की खुराक होनी चाहिए। मुख्य रूप से उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सुअर के आहार में कसावा, ज्वार, जवी, गेंहू, चावल, बिनौले, मछली का आहार (फिश मील), मक्का चोकर, पूर्व मिश्रित विटामिन और पानी शामिल हैं। सुअर आहार में एक पूरक के रूप में विटामिन बी 12 आवश्यक है।