In this article, we will share MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 4 नीति-काव्य Pdf, These solutions are solved subject experts from the latest edition books. MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 4 नीति-काव्यनीति-काव्य अभ्यासनीति-काव्य अति लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. नीति-काव्य लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. नीति-काव्य दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. संसार में मानव का शरीर ही ऐसा साधन है जिससे हम दीन-दुखियों को दान दे सकते हैं और अन्य प्रकार से उसका उपकार कर सकते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है-“देह धरे कर यह फलु भाई। भजिय राम सब काम बिहाई।” उनका तात्पर्य अपना कर्त्तव्य छोड़ कर भजन करने से नहीं है। उनका कहना है कि फालतू काम छोड़कर निरन्तर ईश्वर का भजन करिए तभी देह धारण करना सार्थक है। यही देह ऐसी है जिससे हम ईश्वर स्मरण करते हुए परोपकारी जीवन व्यतीत कर सकते हैं। ईश्वर, धर्म और मानव के लिए किया गया कोई भी शुभ कार्य दान की श्रेणी में ही आएगा। भूखे को अन्न देना, वस्त्रहीन को वस्त्र देना, बीमार को दवाइयाँ देना, संकट में किसी की रक्षा करना आदि यह सभी उत्तम दान हैं। प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रसंग : व्याख्या : संसार में माया रूपी गाय बड़ी सूक्ष्म है ओर उसकी उत्पत्ति (बछड़ा) बहुत विशाल है। माया रूपी गाय से मटकी भर-भर कर दूध दुह लिया यानि अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति कर ली। उसकी कामना रूपी पूँछ अठारह हाथ (बहुत लम्बी) की है। माया बड़ी सूक्ष्म है, लेकिन उसका संसार विशाल है, जो असत्य होते हुए भी सत्य का भान कराता है और हमारी अनेक सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति करता है। फिर भी हमारी तृष्णा (इच्छा) शेष रह जाती है। (ii) संदर्भ : प्रसंग : व्याख्या : (iii) संदर्भ : प्रसंग : व्याख्या : (iv) संदर्भ : प्रसंग : व्याख्या : नीति-काव्य काव्य सौन्दर्य प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. (2) को कहि सकै बड़ेन सौं, लखें बड़ी यै भूल। कविवर बिहारीलाल कहते हैं बड़ों से उनकी बड़ी भूल को देखकर भी कोई कुछ नहीं कहता। ईश्वर ने इतने सुन्दर गुलाब के फूलों की डाल पर काँटे लगा दिए हैं। अर्थात् काँटे और गुलाब का क्या संग है। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. (ii) श्लेष प्रश्न 8. व्याज निन्दा-जहाँ कथन में स्तुति का आभास हो,किन्तु वास्तव में निन्दा हो, वहाँ व्याज निन्दा अलंकार होता है। जैसे- अमृतवाणी भाव सारांश ‘अमृतवाणी’ नामक कविता के रचयिता ‘कबीरदास हैं। इसमें कवि ने संगति, उपदेश, विचार,वाणी और विपर्यय का वर्णन बड़े ही सहज और अनूठे ढंग से किया है। कबीर के काव्य में अनेक स्थलों पर नीतिपरक कथन सहजता से मिल जाते हैं। नीति कथनों का सीधा सम्बन्ध जीवनानुभवों से है। कबीर के पास गहरे जीवन अनुभक थे। इसी कारण उनके नीति कथन मार्मिक बन पड़े हैं। कबीर ने अपने दोहों में सत्संगति, शिक्षा और उपदेश के महत्व को प्रतिपादित किया है। विभिन्न उपमाओं के माध्यम से सत्संग और कुसंग के भेद को कबीर ने गहराई से प्रदर्शित किया है। ‘विचार’ के अन्तर्गत उन्होंने परिस्थितियों के परिवर्तन की ओर संकेत किया है। शक्तिशाली को कभी भी अपनी शक्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए। ‘वाणी’ के अन्तर्गत कबीर ने वाणी संयम को जीवन की उपलब्धि माना है। उनकी ‘उलटवासियाँ’ भी जीवन के रहस्यमय अनुभवों को व्यक्त करती हैं। अमृतवाणी संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या (1) संगति शब्दार्थ : संदर्भ : प्रसंग : व्याख्या : कुसंग उस पत्थर के समान है जो स्वयं तो पानी (संसार) में डूबता ही है और बैठने वाले को भी डुबो देता है अर्थात् नष्ट कर देता है। संसार में जैसा संग करोगे वैसा ही फल मिलेगा। सुन्दर प्रतीकों को माध्यम से कितनी मधुर व सरल भाषा में कबीर समझाते हैं कि स्वाति नक्षत्र की बूंद तो एक है लेकिन वह केले के ऊपर गिरती है तो कपूर बन जाती है,सीपी के मुँह में गिरती है तो मोती बन जाती है और वही बूंद यदि सर्प के मुंह में गिरती है तो विष बन जाती है। अर्थात् सम्पर्क के गुण के साथ समाहित होकर तीन प्रकार का फल प्राप्त करती है। काव्य सौन्दर्य :
(2) उपदेश शब्दार्थ : संदर्भ : प्रसंग : व्याख्या : कबीर कहते हैं कि घर में यदि धन अधिक बढ़ जाय तो मनुष्य को उसे दान करना चाहिए या सत्कर्म में लगाना चाहिए। उदाहरण देते हए कबीर मनुष्य को सचेत करते हैं कि जिस प्रकार नाव में पानी भर जाने पर उसे दोनों हाथों से बाहर निकाल देना चाहिए ताकि नाव डूबने से बची रहे,उसी प्रकार,घर में बढ़ा हुआ धन सत्कर्म व दान में खर्च नहीं किया तो वह अपने साथ-साथ धन के स्वामी को भी ले डूबता है अर्थात् नष्ट कर देता है। काव्य सौन्दर्य :
(3) विचार शब्दार्थ : संदर्भ : प्रसंग : व्याख्या : कबीरदास जी कहते हैं कि यह शरीर कच्चे घड़े के समान है जिसे हम साथ-साथ लिए चलते हैं। वर्षा के जल के पड़ने से यह गीला होकर टूट जायेगा और हमारे हाथ कुछ भी नहीं रहेगा। शरीर के अर्थ में मृत्यु रूपी वर्षा इसको तोड़ देगी फिर इस निस्सार शरीर का संकेतमात्र भी हमारे पास नहीं बचेगा। अतः मनुष्य को इस नाशवान शरीर का अभिमान न करते हुए हरि स्मरण करके और दान करके इसे सार्थक बनाना चाहिए। काव्य सौन्दर्य :
(4) वाणी शब्दार्थ : संदर्भ : प्रसंग : व्याख्या : कबीरदास जी पुनः स्पष्ट करते हैं कि जिन लोगों ने अपनी जिह्वा को वश में कर लिया है उन्होंने संसार को ही वश में कर लिया है। यदि जिह्वा किसी के वश में नहीं है तो वह अनेक बुराइयों को जन्म देती है। ऐसा सभी साधुजन कहते हैं। कहने का तात्पर्य है कि मीठी बोली से संसार अपना बन जाता है और कर्कश वाणी से शत्रुता, द्वेष और घृणा के भाव जाग्रत होते हैं। काव्य सौन्दर्य :
(5) विपर्यय (उलटबाँसियाँ) शब्दार्थ : संदर्भ : प्रसंग : व्याख्या : संसार में माया रूपी गाय बड़ी सूक्ष्म है ओर उसकी उत्पत्ति (बछड़ा) बहुत विशाल है। माया रूपी गाय से मटकी भर-भर कर दूध दुह लिया यानि अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति कर ली। उसकी कामना रूपी पूँछ अठारह हाथ (बहुत लम्बी) की है। माया बड़ी सूक्ष्म है, लेकिन उसका संसार विशाल है, जो असत्य होते हुए भी सत्य का भान कराता है और हमारी अनेक सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति करता है। फिर भी हमारी तृष्णा (इच्छा) शेष रह जाती है। काव्य सौन्दर्य :
दोहे भाव सारांश संकलित ‘दोहे’ कविवर ‘बिहारी लाल’ ने लिखे हैं। इनमें नीतिपरक बातें बड़े ही सरल और मार्मिक शब्दों में बताई गई हैं। बिहारी सतसई’ के नीतिपरक दोहों ने जीवन व्यवहार के अनेक पक्ष रखे हैं। संकलित दोहों में सुन्दरता की सापेक्षता को ही स्वीकार किया है। समय के फेर से सज्जन भी विपत्ति में पड़ जाते हैं और दुर्जनों को सम्मान मिलने लगता है, अपने गुणों से ही व्यक्ति महान् बनता है। मनुष्य की विनम्रता ही उसे बड़ा बनाती है। समान संग होने पर ही शोभा बढ़ती है। बड़ों की भूल-भूल नहीं मानी जाती। धन बढ़ने पर संयम रखना चाहिए। यदि दुर्जन अपनी दुर्जनता छोड़ देता है तो उसे अनिष्ट की आशंका बढ़ जाती है। अवसर मिलने पर थोड़े समय तक ही सम्मान मिल सकता है। जिस जल से व्यक्ति की प्यास बुझती है, उसके लिए वही महत्वपूर्ण होता है। इन्हीं नीति के सिद्धान्तों को बिहारी ने अनेक रूपकों और उत्प्रेक्षाओं के माध्यम से व्यक्त किया है। |