धान में पीलापन क्यों आ रहा है? - dhaan mein peelaapan kyon aa raha hai?

जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली : धान की पौधशाला में यदि पौधों का रंग पीला पड़ रहा है तो इसमें लौह तत्व की कमी हो सकती है। पौधों की ऊपरी पत्तियां यदि पीली और नीचे की हरी हों तो यह लौह तत्व की कमी दर्शाती हैं। इसके लिए पौधशाला में फेरस सल्फेट व चूने के घोल की उचित मात्रा का छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।

किसान बारिश की संभावना को देखते हुए इस सप्ताह मक्का की बुवाई शुरू कर सकते हैं। संकर किस्मों में ए एच-421 व ए एच-58 तथा उन्नत किस्मों में पूसा कंपोजिट-3, पूसा कंपोजिट-4 की बुवाई कर सकते हैं। बीज की मात्रा 20 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60-75 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 18-25 सेंटीमीटर रखें। मक्का में खरपतवार नियंत्रण के लिए एट्राजिन एक से डेढ़ किलोग्राम प्रति हैक्टेयर 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।

पूसा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने किसानों को दी गई अपनी सलाह में कहा कि यदि मिर्च, बैंगन व फूलगोभी की पौध तैयार है तो रोपाई की तैयारी करें। कद्दूवर्गीय सब्जियों की वर्षाकालीन फसल की बुवाई मेढ़ों पर करें। लौकी की उन्नत किस्मों में पूसा नवीन, पूसा समृद्धि, करेला-पूसा विशेष, पूसा दो मौसमी, सीताफल-पूसा विश्वास, पूसा विकास शामिल हैं। वहीं, तोरई की उन्नत किस्मों में पूसा चिकनी, धारीदार तोरई- पूसा नसदार की बुवाई करें। वैज्ञानिकों का यह भी बताया कि कद्दूवर्गीय एवं अन्य सब्जियों में मधुमक्खियों का बड़ा योगदान है क्योंकि ये परागण में सहायता करती हैं, इसलिए जितना संभव हो मधुमक्खियों के पालन को बढ़ावा दें। कीड़ों एवं बीमारियों की निरंतर निगरानी करते रहें, कृषि विज्ञान केंद्र से सम्पर्क रखें व सही जानकारी लेने के बाद ही दवाईयों का प्रयोग करें। फलमक्खी से प्रभावित फलों को तोड़कर गहरे गढ्डे में दबा दें। फलमक्खी के बचाव हेतू खेत में विभिन्न जगहों पर गुड़ या चीनी के साथ मैलाथियान का घोल बनाकर छोटे कप या किसी और बर्तन में रख दें ताकि फलमक्खी का नियंत्रण हो सके। कद्दूवर्गीय सब्जियों की बेलों को ऊपर चढ़ाने की व्यवस्था करें ताकि बारिश के पानी से बेलों को गलने से बचाया जा सके।

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मेढ़ को करें मजबूत

बृहस्पतिवार, शुक्रवार व रविवार को बारिश की संभावना को ध्यान में रखते हुए किसान धान के खेतों की मेढ़ों को मजबुत करें, जिससे ज्यादा पानी खेत में ठहरे तथा अन्य फसलों (दलहनी, मक्का तथा सब्जियों) में खेत से जल निकासी का प्रबंध करें।

चंदौली: कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी अधिकारी व वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. आरपीएस रघुवंशी ने अपना कार्यभार संभाल लिया। वे महाराजगंज से स्थानांतरित होकर यहां आए हैं। जागरण से बातचीत के दौरान डा. सिंह ने कहा कि उनकी प्राथमिकता व प्रयास केंद्र व प्रदेश सरकार की संचालित योजनाओं को प्रमुखता से किसानों तक पहुंचाना है। कहा कि कृषि प्रधान जिले में किसानों को आधुनिक तकनीकि जानकारी देकर उनकी फसलों की पैदावार को बढ़ाना है। किसानों को खेती से संबंधित सम सामयिक जानकारी दी जाएगी। एक सवाल के जवाब में सुझाव दिया कि जिन किसानों के धान पीले पड़ रहे हों वे यूरिया व जिंक का मिक्सचर करके धान में छिड़काव करें। इससे पीलापन दूर होगा। इसके अलावा जिस धान के खेत में पौधे का बढ़ाव नहीं हो रहा है व फसल पीली पड़ रही है, उस खेत को सुखाने के बाद उसमें कारवां फ्यूरान दवा का छिड़काव करें या एक बीघे में तीन किलो नमक राख में मिलाकर छिड़काव करें। बताया कि मौजूदा समय में अरहर की पत्तियों में कटुआ रोग हो गया जिससे पत्तों में छेद हो जा रहा है। कहा कि किसान उसके लिए पेस्साइड दवाओं का प्रयोग करें।

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धान का पीलापन कैसे दूर करें?

धान में पीलापन पोषकतत्व के कमी के कारण होता है। इसके नियंत्रण के लिए धान की फसल में यूरिया 2 किलोग्राम प्रति एकड 200 लीटर पानी + जिंक सल्फेट 1 किलोग्राम प्रति एकड 200 लीटर पानी मे घोलकर छिडकाव करें

धान की पत्ती पीली क्यों हो जाती है?

पौधों की ऊपरी पत्तियां यदि पीली और नीचे की हरी हों तो यह लौह तत्व की कमी दर्शाती हैं। इसके लिए पौधशाला में फेरस सल्फेट व चूने के घोल की उचित मात्रा का छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।

सबसे मोटा धान कौन सा है?

आरआर - 167 (बंदना) RR - 167 (Bandana) धान की इस किस्म के दाने मोटे और लंबे होते हैं। यह किस्म अधिक जल्दी पक कर तैयार हो जाती है। इसके पकने में 90 से 95 दिन का समय लगता है। पौधे की ऊंचाई 95 से 110 सेंटीमीटर तक होती है।

धान में कितने प्रकार के रोग होते हैं?

धान की फसल में विभिन्न बीमारियां जैसे धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड और तना छेदक, गुलाबी तना छेदक, पत्ती लपेटक, धान का फुदका और गंधीबग जैसे कीट नुकसान पहुंचाते हैंधान की फसल को विभिन्न बीमारियों में जैसे धान का झोंका, भूरा धब्बा, शीथ ब्लाइट, आभासी कंड व जिंक कि कमी आदि की समस्या आती है।