जीवाणु जनित रोग कैसे होता है? - jeevaanu janit rog kaise hota hai?

वे रोग जो जीवाणुओं की वजह से उत्पन्न होते हैं जीवाणु जनित रोग कहलाते हैं। जीवाणु जनित रोग निम्नलिखित हैं :-

प्लेग (Plague) –

रोगजनक – बैसिलस पेस्टिस नामक जीवाणु।

लक्षण – आंखों का लाल होना, सिरदर्द, खुजली और बुखार तथा संक्रमितों के मुंह से खांसी से साथ खून आना और पेट में भयंकर दर्द होना।

प्रसार – यह बीमारी छूने मात्र से भी फैलती है।

उपचार – सल्फाड्रग्स और स्ट्रप्टोमाइसीन नामक दवाओं का उपयोग।

इसका संक्रमण चूहों पर पाए जाने वाले पिस्सुओं से होता है क्योंकि पिस्सुओं के शरीर में प्लेग का बैक्टीरिया पाया जाता है। जेनोप्सला केओपिस नामक पिस्सू प्लेग का सबसे भयानक पिस्सू है क्योंकि यह बड़ी आसानी से चूहों से मानव तक पहुँच जाता है।

पीलिया या हेपेटाइटीस (Jaundice) –

रोगजनक – लैप्टोस्पाईरा जीवाणु।

लक्षण – सिर दर्द, लो-ग्रेड बुखार, मतली और उल्टी, भूख कम लगना, त्वचा में खुजली और थकान, त्वचा और आंखों का सफेद भाग पीला पड़ जाना तथा मल पीला और मूत्र गाड़ा हो जाना।

प्रसार– संदूषित जल के उपयोग के कारण।

उपचार – न्यू लिवफ़ीट दवा , हेपटाइटिस B व C के टीके।

आंत्र ज्वर (Typhoid)-

रोगजनक – सॉलमोनेला टाइफोसा (Solmonella Typhosa) नामक जीवाणु।

लक्षण – सिरदर्द, कब्ज या डायरिया, तेज बुखार (103° फेरेनहाइट), भूख ना लगना, लिवर और स्प्लीन का बढ़ जाना, सीने पर लाल रंग के निशान, थकान, ठंड लगना, दर्द और कमजोरी महसूस होना, पेट में दर्द होना।

प्रसार – यह पानी की गंदगी से फैलता है।

उपचार – क्लोरोमाइसिटिन नामक दवा।

इसे आंत के बुखार के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग में आंत्र और प्लीहा की योजनी ग्रंथियां बढ़ जाती हैं।

तपेदिक या राजयक्ष्मा (Tuberculosis) –

इसे सामान्यतः टीबी कहते है।

यह रोग काक रोग या यक्ष्मा भी कहलाता है।

रोगजनक – माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलोसिस नामक जीवाणु।

लक्षण – ज्वर, रात में पसीना आना, भूख, वजन व शक्ति में कमी आना, पाचन व तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ी।

प्रसार – रोगी के साथ बैठने, सोने, खाने, पीने तथा संक्रमित पशु का दूध पीना आदि।

उपचार – स्ट्रेप्टोमाइसिन, विटामिन B-काम्प्लेक्स तथा आइसोनिएजिड उपयोगी औषधियाँ।

हैजा (Cholera) –

रोगजनक – विब्रियो कॉलेरा नामक जीवाणु।

लक्षण – डायरिया, उल्टी और मतली, सुस्ती, डिहाइड्रेशन, मांसपेशियों में ऐंठन, तेज पल्स, इलेक्ट्रोलाइट का असंतुलन, अत्यधिक प्यास, सूखी स्किन और सूखा मुंह आदि।

प्रसार – इसका संक्रमण मक्खयों द्वारा होता है।

उपचार – Dukoral और Shanchol / mORC वैक्स टीके।

डिप्थीरिया (Diptheria) –

रोगजनक – कोरोनोबैक्टीरियम डिप्थीरिया नामक जीवाणु।

लक्षण – इसका प्रभाव कंठ या गले पर होता है, बच्चो में आलस , सुस्ती, बुखार आना, शरीर में तांतिका तंत्र,फेफड़ो को प्रभित करना , नाक से खून आना।

प्रसार – रोगी के साथ खाने, पीने, सोने, तथा मक्खियों के द्वारा जीवाणु फैलते है।

उपचार – बच्चो में DPT (डिप्थीरिया एंटी टॉक्सिन) का टीका , तथा एंटीबॉयोटिक्स दवाईयां जैसे – पेनिसिलिन, इरिथ्रोमाइसिन आदि।

टिटनेस (Tetanus) –

टिटनेस को धनुष्टंकार या लॉक-जॉ के नाम से भी जाना जाता है।

रोगजनक – बैसीलस टेटनी नामक जीवाणु।

प्रसार – टिटनेस के जीवाणु घाव से होकर शरीर में प्रवेश करते हैं।

लक्षण – अचानक पेट व शरीर की अन्य मांसपेशियों में ऐंठन होना, पूरे शरीर में अकड़न महसूस होना, जबड़ों में ऐंठन और अकड़न, लार टपकना, बुखार होना, ज्यादा पसीना आना, हाथों और पैरों में ऐंठन होना, चिड़चिड़ापन, निगलने में परेशानी, ब्लड प्रेशर बढ़ना, दौरे आना आदि।

उपचार – DTaP, Tdap, DT, and Td टीकों का उपयोग। इनमें से दो टीकें (DTaP and DT) 7 वर्ष की अवस्था से बड़े बच्चों को दिये जाते है तथा दो टीकें (Tdap and Td) बड़े बच्चों एवं वयस्कों को दिये जाते है।

निमोनिया (Pneumonia) –

रोगजनक – डिप्लोकोकस न्यूमोनी नामक जीवाणु।

लक्षण – कमजोरी, थकान महसूस, बलगम वाली खांसी, बुखार के साथ पसीना, कंपकंपी महसूस होना, बेचैनी होना, भूख लगनी कम या बंद हो जाना।

उपचार – एंटीबायोटिक का उपयोग।

काली खाँसी (Whooping Cough) –

रोगजनक – हीमोफिलिस परटूसिस नामक जीवाणु।

लक्षण – नाक का बहना या नाक का बंद होना, छींक, आँख से पानी आना सूखी खांसी, गले में खराश , थोड़ा बुखार आदि।

प्रसार – इसका प्रसार हवा द्वारा होता है।

उपचार – DPT का टीका लगाया जाता है।

कोढ़/कुष्ठ (Leprosy)-

रोगजनक – माइकोबैक्टीरियम लेप्री नामक जीवाणु।

लक्षण – कोढ़ से चमड़ी पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है, बदन के किसी हिस्से में चमड़ी पर धब्बा, नाक के छेद मोटे और सख्त होना, नाक से खून भी बहना, साँस लेने में कठिनाई होना, नाक की हड्डी गलना, हाथों और पावों के पंजे में लकवा होना।

उपचार – MDT दवाओं का प्रयोग।

गोनोरिया (Gonorrhoea) –

रोगजनक – नाइसेरिया गोनोरिया।

प्रसार – रोगी के साथ संभोग करने से भी यह रोग फैलता है।

पुरुषो में लक्षण – लिंग की नोक से असामान्य सफेद, पीले या हरे रंग का निर्वहन (द्रव निकलना), पेशाब के दौरान दर्द या जलन, शिश्नाग्रच्छद (फोरस्किन) की सूजन, अंडकोष या प्रोस्टेट ग्रंथि में दर्द एवं पीड़ा (हालांकि बेहद कम) होता है।

स्त्रियों में लक्षण – योनि से असमान्य गाढ़ा द्रव निकलना, जो कि हरा या पीले रंग का हो सकता है, पेशाब करते समय दर्द होना, पेट के निचले हिस्से में दर्द या पीड़ा (यह बेहद कम सामान्य है), मासिक धर्म के बीच में खून बहना या मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्त (बेहद कम) बहना।

जीवाणु जनित रोग क्या होते हैं?

अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा , मियादी बुखार, निमोनिया , तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि। केवल क्षय रोग से ही प्रतिवर्ष लगभग २० लाख लोग मरते हैं, जिनमें से अधिकांश उप-सहारा क्षेत्र के होते हैं

जीवाणु रोग कैसे फैलता है?

जीवाणु जनित रोग.
गलघोंटू रोग यह रोग अधिकत्तर बरसात के मौसम में गाय व भैंसों में फैलता है। यह घूंतदार रोग है। भैंसों में अधिक होता है। ... .
लंगड़ा बुखार (ब्लैक कवाटर) यह रोग गाय व भैंसों में होता है। परन्तु गोपशुओं में अधिक होता है। पशु के पिछली व अगली टांगों के ऊपरी भाग में भारी सूजन आ जाती है।.

जीवाणु कैसे होते हैं?

सरल, छोटे जीवित सूक्ष्मजीव जो हर स्थान पाए जाते हैं और जिन्हें नग्न आँखों से नहीं देखा जा सकता है। जीवाणु ऐसे जीवन रूप हैं जो ऐसी एकल कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं जिनमें कोई केन्द्रक नहीं होता है। "जीवाणु तेज़ गति से प्रजनन करने कर सकते हैं

जनित रोग कौन कौन से हैं?

मनुष्यों में सामान्य वेक्टर-जनित रोगों में डेंगू बुखार, जापानी एन्सेफलाइटिस, मलेरिया, स्क्रब टाइफस और चित्तीदार बुखार (स्पॉटेड फीवर) शामिल हैं। डेंगू बुखार, जापानी इंसेफेलाइटिस, मलेरिया और ज़ीका वायरस को फैलाने के लिए मच्छर जिम्मेदार होते हैं जबकि स्क्रब टाइफस और चित्तीदार बुखार घुन और किलनियों द्वारा फैलते हैं