सिंहरण किस रचना का पात्र है इसके रचनाकार कौन हैं ?`? - sinharan kis rachana ka paatr hai isake rachanaakaar kaun hain ?`?

चन्द्रगुप्त (सन् 1931 में रचित) हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककार जयशंकर प्रसाद का प्रमुख नाटक है। इसमें विदेशियों से भारत का संघर्ष और उस संघर्ष में भारत की विजय की थीम उठायी गयी है।

प्रसाद जी के मन में भारत की गुलामी को लेकर गहरी व्यथा थी। इस ऐतिहासिक प्रसंग के माध्यम से उन्होंने अपने इसी विश्वास को वाणी दी है। शिल्प की दृष्टि से इसकी गति अपेक्षाकृत शिथिल है। इसकी कथा में वह संगठन, संतुलन और एकतानता नहीं है, जो ‘स्कंदगुप्त’ में है। अंक और दृश्यों का विभाजन भी असंगत है। चरित्रों का विकास भी ठीक तरह से नहीं हो पाया है। फिर भी ‘चंद्रगुप्त’ हिंदी की एक श्रेष्ठ नाट्यकृति है, प्रसाद जी की प्रतिभा ने इसकी त्रुटियों को ढंक दिया है। ‘चन्द्रगुप्त’, जय शंकर प्रसाद जी द्वारा लिखित नाटक है जो हिंदी-साहित्य के क्षेत्र में बहुत ही नामी-गिरामी पुस्तक है। यह नाटक मौर्य साम्राज्य के संस्थापक ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ के उत्थान की कथा नाट्य रूप में कहता है। यह नाटक ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ के उत्थान के साथ-साथ उस समय के महाशक्तिशाली राज्य ‘मगध’ के राजा ‘धनानंद’ के पतन की कहानी भी कहता है। यह नाटक ‘चाणक्य’ के प्रतिशोध और विश्वास की कहानी भी कहता है। यह नाटक राजनीति, कूटनीति, षड़यंत्र, घात-आघात-प्रतिघात, द्वेष, घृणा, महत्वाकांक्षा, बलिदान और राष्ट्र-प्रेम की कहानी भी कहता है। यह नाटक ग्रीक के विश्वविजेता सिकंदर या अलेक्सेंडर या अलक्षेन्द्र के लालच, कूटनीति एवं डर की कहानी भी कहता है। यह नाटक प्रेम और प्रेम के लिए दिए गए बलिदान की कहानी भी कहता है। यह नाटक त्याग और त्याग से सिद्ध हुए राष्ट्रीय एकता की कहानी भी कहता है।

‘चन्द्रगुप्त’ और ‘चाणक्य’ के ऊपर कई विदेशी और देशी लेखकों ने बहुत कुछ लिखा है। अलग-अलग प्रकार की कहानियां और उनसे निकलने वाला अलग-अलग प्रकार का निचोड़ मन में भ्रम पैदा करने के लिए काफी है। लेकिन, यह नाटक सभी पुस्तकों से कुछ भिन्न है। जो पाठक इस नाटक को पढना चाहते हैं उनके लिए महत्वपूर्ण सलाह यह की नाटक से पहले इसकी भूमिका जरूर पढ़ें। जय शंकर प्रसाद जी ने इस नाटक की भूमिका लिखने के लिए जिस प्रकार का शोध किया है वह काबिलेतारीफ है जबकि मुझे लगता है की तारीफ के लिए शब्द ही नहीं है। लगभग सभी देशी और विदेशी लेखकों के पुस्तकों से महतवपूर्ण बिन्दुओं को उठाकर उन्होंने चन्द्रगुप्त के जन्म से लेकर उसके राज्याभिषेक तक की गतिविधियों को अलग-अलग रूप से प्रस्तुत किया है। इस नाटक की भूमिका ही अपने आप में शोध-पत्र से कम नहीं है। जो इतिहास का पोस्टमॉर्टेम उन्होंने अपनी इस भूमिका में सभी देशी-विदेशी इतिहासकार द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन करके, सभी का रिफरेन्स देकर तुलना करते हुए ‘चन्द्रगुप्त’ से सम्बंधित हर प्रकार की घटना को उल्लेखित किया है, वह कहीं और आपको देखने को नहीं मिलेगा।

नाटक का प्रस्तुतीकरण एवं उसमे प्रयोग की गयी सरल हिंदी भाषा इस नाटक को पठनीय बनाती है। वहीँ नाटक के बीच-बीच में कई गीत ऐसे हैं जो आपके दिल में सदा के लिए बस जाने इच्छुक होते हैं। प्रत्येक पात्र का सौंदर्य एवं चरित्र चित्रण करने में वे सफल रहे हैं। साथ ही घटनाओं को एक ही धागे में पिरोने से यह नाटक पढने में रोमांचक हो चला है। मेरी इच्छा है की कभी भविष्य में मैं इसका नाट्य-मंचन भी देख सकूँ ताकि इसे पूरी तरह से जी सकूँ।

इस नाटक और भूमिका में सीखने के लिए बहुत कुछ है। भूमिका आपके दिमाग के ऊपर जमी सभी प्रकार के धुल को हटाने में मदद करती है जो ‘चन्द्रगुप्त एवं चाणक्य’ के ऊपर आधारित कई पुस्तकों को पढने से आ गए थे। भूमिका एक प्रकार से इस विषय पर बनाया गया वह मिश्रण है जिसे पीने के बाद या यूँ कहूँ पढने के बाद होश में आ जाते हैं। वहीँ नाटक में मनुष्य के विभिन्न रूपों को देखकर हम बहुत कुछ सीख जाते हैं। चाणक्य के कई नीतियों को हम आसानी से नाटक में देख सकते हैं और शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। जय शंकर प्रसाद की यह रचना सही मायने में एक ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजक पुस्तक है जिसे सभी वर्ग के पाठकों को जरूर पढना चाहिए।

चंद्रगुप्त के कारण मौर्य वंश का नाम सर्वत्र फैला केवल भारतवर्ष ही नहीं बल्कि ग्रीस आदि समस्त देशों से परिचित करा दिया।

नाटक के पात्र

चाणक्य ( विष्णुगुप्त) – मौर्य साम्रज्य का निर्माता। मुख्य पात्र। नाटक पूरा इसी पात्र के ऊपर निर्भर है।

चंद्रगुप्त – मौर्य-सम्राट। नाटक का नायक है। जो कि निर्भीक, दृढ़ और आत्मविश्वास से परिपूर्ण है

नंद – मगध का सम्राट।

राक्षस – मगध का अमात्य।

वररुचि (कात्यायन) – मगध का अमात्य।

शकटार – मगध का मंत्री।

आम्भीक – तक्षशिला का राजकुमार।

पर्वतेश्वर – पंजाब का राजा (पोरस)।

सिंहरण – मालव गण-मुख्य का कुमार। जो कि एक गौण पात्र है।

लेकिन चाणक्य, चन्द्रगुप्त, अलका, आम्भीक इन सभी पात्रों पर इसका प्रभाव है।

नाटक को प्रचालित करने का कार्य करता है।

सिकंदर – ग्रीक-विजेता।

फिलिप्स – सिकंदर का क्षत्रप।

मौर्य सेनापति – चंद्रगुप्त का पिता।

एनिसाक्रिटीज़ – सिकंदर का सहचर।

देवबल, नागदत्त, गण-मुख्य – मालव-गणतंत्र के पदाधिकारी।

साइबर्टियस, मेगास्थनीज – यवन दूत।

गांधार-नरेश – आम्भीक का पिता।

सिल्यूकस – सिकंदर का सेनापति।

दण्डयायन – एक तपस्वी।

अलका – मुख्य नारी पात्र। गांधार नरेश की पुत्री।

तक्षशिला की राजकुमारी। आम्भीक की बहन। राजकुमारी दयालु, गुणी और साहसी थी।

सुवासिनी – शकटार की कन्या।

कल्याणी – मगध-राजकुमारी।

नीला, लीला – कल्याणी की सहेलियाँ।

मालविका – सिंधु-देश की कुमारी। मुख्य नारी पात्र।

यह एक संघर्षशील, स्वाभिमानी स्त्री है। जो कि अशिक्षित भी है।

कार्नेलिया – सिल्यूकस की कन्या।

मौर्य-पत्नी – चंद्रगुप्त की माता।

एलिस – कार्नेलिया की सहेली।

चन्द्रगुप्त नाटक की समीक्षा

चन्द्रगुप्त नाटक चार अंकों में विभाजित है।

इनमें से तीन घटनाएँ ऐतिहासिक हैं –

  1. अलक्षेन्द्र का आक्रमण
  2. नंदकुल की पराजय
  3. सेल्यूकस का प्रभाव

प्रथम अंक

चन्द्रगुप्त नाटक का प्रथम अंक में तक्षशिला के गुरुकुल के मठ का चित्रण है। जिसमें चाणक्य और सिंहरण का वार्तालाप है।

प्रथम अंक में अलक्षेन्द्र का आक्रमण होता हैं, नंदकुल का विनाश होता है और सभी पात्रों को संघर्षरत दिखाया गया है।

प्रथम अंक में ग्यारह दृश्य हैं –

  1. स्थान – तक्षशिला के गुरुकुल का मठ जहाँ चाणक्य और सिंहरण के बीच बातचीत होती है।
  2. इसमे मगध सम्राटों की विलासिता का जिक्र है। जिसमें विलासी युवक और युवतियों का विकार दिखाई देता है।
  3. पाटलिपुत्र में एक भगनकुटीर। जहाँ चाणक्य और प्रतिवेशी के मध्य संवाद है।
  4. कुसुमपुर के सरस्वती-मंदिर के उपवन का पथ है। जिसमें राक्षस, सुवासिनी, कल्याणी, नीला, ब्रह्मचारी, चन्द्रगुप्त और लीला के मध्य संवाद है।
  5. मगध में नंद की राजसभा का दृश्य है। जहाँ राक्षसों और सभासदों के साथ नंद का दृश्य का वर्णन है। जिसमें चाणक्य, वररुचि, कल्याणी, चन्द्रगुप्त, राजकुमारी और प्रतिहारी के बीच संवाद है।
  6. सिंधु नदी तट पर अलका और मालविका का दृश्य है। जिसमें यवन, सिंहरण और सैनिक के मध्य संवाद है।
  7. मगध का बंदीगृह का दृश्य। जहाँ चाणक्य, राक्षस और वररुचि के मध्य संवाद है।
  8. गंधार नरेश का प्रकोष्ठ जिसमें राजा चिंतायुक्त प्रवेश करते है। जहाँ राजा, अलका, यवन और आम्भीक के मध्य संवाद है।
  9. पर्वतेश्वर की राजसभा । जिसमें चाणक्य और पर्वतेश्वर के बीच संवाद है।
  10. कानन पथ में अलका जाती हुई का दृश्य है। जहाँ अलका, सिल्यूकस, चाणक्य और चन्द्रगुप्त के मध्य संवाद है।
  11. सिंधु तट पर दण्डयायन का आश्रम। जहाँ एनिसाक्रिटीज़, दण्डयायन, अलका,चन्द्रगुप्त,यवन,चाणक्य,सिकंदर और सिल्यूकस का प्रवेश है।

द्वितीय अंक

पश्चिमोत्तर प्रान्त की राजनीतिक स्तिथि को प्रस्तुत किया गया है।

फिलिप्स के चंगुल से कार्नेलिया का चन्द्रगुप्त द्वारा उद्धार।

इसके पश्चात कार्नेलिया का चन्द्रगुप्त का अपना बन जाना दिखाई दिया है।

विदेशी सेना की यथास्थिति चाणक्य को प्राप्त होना।

मगध का पुनः समस्त कार्य-व्यापारों का केंद्र बनना।

चन्द्रगुप्त का दोनों गणतंत्रों का सेनापति बनना।

द्वितीय अंक में दस दृश्य हैं –

  1. उद्भाण्ड में सिंधु के किनारे ग्रीक-शिविर के पास वृक्ष के नीचे कार्नेलिया बैठी हुई का दृश्य है। जिसमें कार्नेलिया, फिलिप्स, सिकन्दर, एनिसाक्रिटीज़, आम्भीक, सिल्यूकस, और चन्द्रगुप्त के मध्य वार्तालाप है।
  2. झेलम तट का वन पथ। अलका, चाणक्य, चन्द्रगुप्त, गान्धार-राज, सिंहरण, कल्याणी, सेनापति और पर्वतेश्वर के मध्य वार्तालाप है।
  3. युद्धक्षेत्र-सैनिकों के साथ पर्वतेश्वर। पर्वतेश्वर, सेनापति, कल्याणी, चन्द्रगुप्त, सिल्यूकस, सिंहरण, सिकंदर के मध्य वार्तालाप है।
  4. मालव में सिंहरण के उद्यान का एक अंश। मालविका, चन्द्रगुप्त, चाणक्य और सैनिक के बीच वार्ता है।
  5. स्थल-बंदीगृह, घायल सिंहरण और अलका। अलका, सिंहरण और पर्वतेश्वर के बीच वार्ता है।
  6. मालवों के स्कंधारवार में युद्ध – परिषद। देवबल, नागदत्त, सिंहरण, गणमुख्य और चाणक्य के मध्य वार्ता।
  7. पर्वतेश्वर का प्रवेश। जहाँ अलका और पर्वतेश्वर के मध्य वार्ता।
  8. रावी के तट पर सैनिकों के साथ मालविका और चन्द्रगुप्त, नदी में दूर पर कुछ नावें। चन्द्रगुप्त, मालविका, सैनिक, सिंहरण, अलका और यवन के मध्य वार्ता।
  9. शिविर के समीप कल्याणी और चाणक्य। जहाँ राक्षस, कल्याणी और चाणक्य के मध्य वार्ता।
  10. मालव दुर्ग का भीतरी भाग, एक शून्य परकोटा। जहाँ मालविका, अलका, सिंहरण, सिकंदर, यवन और मालव-सैनिक के मध्य वार्ता।

तृतीय अंक

चाणक्य के ज्ञान और बुद्धि से चन्द्रगुप्त को शक्तिशाली बनाना और नंद का विनाश करना।

चन्द्रगुप्त को समस्त प्रजा द्वारा राजा स्वीकारना।

इस अंक में नौ दृश्य हैं –

  1. विपाशा तट का शिविर जहाँ राक्षस टहलता हुआ। राक्षस, चर, नायक और नवागत-सैनिक के मध्य वार्ता।
  2. रावी तट के उत्सव शिविर का एक पथ। पर्वतेश्वर अकेले टहलते हुए। पर्वतेश्वर का आत्महत्या करने का प्रयास। चाणक्य, पर्वतेश्वर, वृद्ध गान्धार नरेश, कार्नेलिया, चन्द्रगुप्त, फिलिप्स, कल्याणी और राक्षस के मध्य वार्ता।
  3. रावी का तट सिकंदर का बेड़ा प्रस्तुत है; चाणक्य और पर्वतेश्वर। सिकंदर, चन्द्रगुप्त और सिल्यूकस के मध्य वार्ता।
  4. पथ में चर और राक्षस। चर, राक्षस, सिंहरण, अलका, चाणक्य, पर्वतेश्वर, चन्द्रगुप्त, मालविका के बीच वार्ता।
  5. मगध में नंद की रंगशाला। जहाँ नंद सुवासिनी के साथ दुर्व्यवहार करना चाहता है किंतु राक्षस के आने पर रुक जाता है।
  6. कुसुमपुर का प्रान्त भाग – चाणक्य, मालविका,अलका और शकटार ।
  7. नंद के राज-मंदिर का एक प्रकोष्ठ। नंद, वररुचि, स्त्री, प्रतिहार, मालविका।
  8. कुसुमपुर के प्रांत में-पथ। चाणक्य, पर्वतेश्वर, अलका, मौर्य, शकटार, चन्द्रगुप्त, वररुचि, नागरिक।
  9. नंद की रंगशाला – सुवासिनी और राक्षस बंदी वेश में। नंद, राक्षस, नागरिक, शकटार, चन्द्रगुप्त, वररुचि, चाणक्य।

चतुर्थ अंक

पर्वतेश्वर के मृत्यु के पश्चात कल्याणी का आत्महत्या कर लेना।

सभी आंतरिक विद्रोह को चाणक्य समाप्त कर देता है।

राक्षस एवं सुवासिनी और चन्द्रगुप्त एवं कार्नेलिया विवाह कर लेते है।

ततपश्चात चाणक्य राजनीति से विश्राम लेता है यह कहकर कि चिर विश्राम के लिए संसार से अलग होना चाहता हूँ।

सिंहरण के रचनाकार कौन है?

मुलाकात आज्ञा जयशंकर प्रसाद विरचित 'चंद्र‌गुप्त नाटक में सिंहरण का चरित्र काफी महत्त्वपूर्ण है। नजर आता है। सिंहरण आर्य चाणक्य एवं चन्द्र‌गुप्त का साथ देता है। भी सिंहरण अपनी युद्ध-कुशलता से करता है।

चंद्रगुप्त का पात्र कौन कौन है?

इसलिए इस नाटक का नायक नाटककार ने चंद्रगुप्त को ही माना है और नाटक का नाम भी 'चंद्रगुप्त' ही रखा है। इसके अतिरिक्त मगध सम्राट नंद, मालवगण सिंहरण, राजकुमार आम्भीक, पर्वतेश्वर, अलक्षेद्र, राक्षस, मालविका, कार्नेलिया, अलका, सुवासिनी आदि चरित्र महत्वपूर्ण व्यक्तित्व है।

सिंहरण कौन था?

सिंहरण- मालव गण-मुख्य का कुमार, जो गौण पात्र है। सिकंदर- ग्रीक विजेता। फिलिप्स- सिकंदर का क्षत्रप। मौर्य सेनापति- चन्द्रगुप्त का पिता।

चंद्रगुप्त नाटक में कुल कितने अंक हैं?

नाटक के प्रथम अंक में- 11 दृश्य है। दूसरे अंक में- 10 दृश्य है।