कौन हमें शुद्ध रूप से लिखना और बोलना सिखाता है? - kaun hamen shuddh roop se likhana aur bolana sikhaata hai?

राजभाषा हिंदी शृंखला की समापन कड़ी के रूप में 13 वीं कड़ी, लेख के रूप में - बोलना, पढ़ना और लिखना - प्रेषित है.

प्रिय मित्रों , हिंदीकुंज में रंगराज अयंगर द्वारा विरचित - राजभाषा हिंदी शृंखला की समापन कड़ी के रूप में 13 वीं कड़ी, लेख के रूप में - बोलना, पढ़ना और लिखना - प्रेषित है. इन लेखों के माध्यम से अयंगर जी ने ,हिंदी राज भाषा को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा है और अपने बहुमूल्य सुझाव भी दिए है . यदि इनके माध्यम से हिंदी प्रेमियों , साहित्य विधार्थी ,अध्यापकजन व हिंदी के माध्यम से जीविका चलाने वालों को किसी प्रकार का लाभ पहुँचता है , तो अयंगर जी का श्रम सार्थक सिद्ध होगा . आप साथ ही अपने सुझाव भी प्रकट करें ,जिससे लेखक का उत्साहवर्धन हो .

                                                    बोलना – पढ़ना और लिखना.



सबसे पहले शीर्षक पर ही आ जाता हूँ. साधारणतः लय में लिखना, पढ़ना और बोलना कहना उचित है. यह केवल आदतन है. इनके नियमों का ज्ञान नहीं है. लेकिन बोलना अलग से शुरु होने वाली विधा है, जो  पढ़ने - लिखने के पहले ही सीख ली जाती है, जिसके लिए लिखना और पढ़ना जानना जरूरी नहीं है. किंतु यदि सही बोला न जाए तो सही लिखा भी नहीं जाएगा. उसी तरह सही पढ़ा न जाए तो भी सही लिखा नहीं जाएगा. इसलिए पहले बोलना सीखता है, उसके बाद पहले पढ़ना सिखाया जाता है, फिर लिखना.



बोलना व पढ़ना अलग - अलग सीखे जाने की वजह से उनमें तालमेल नहीं रहता. पढ़ते वक्त लिखने की क्रिया, पढ़ने के अनुरूप हो जाती है. यदि जिस तरह पढ़ा जा रहा है उसी तरह बोला न जाता हो, तो लिखने में फर्क आ जाएगा. हिज्जे और हर्फ बिगड़ जाएंगे. क्योंकि लिखने के समय पढ़ने वाला उच्चारण नहीं बल्कि बोलने वाला उच्चारण साथ निभाता है. इसलिए जरूरी है कि जब पढ़ना सिखाया जाए तो उनके बोलने के उच्चारण पर भी सही ध्यान दिया जाए एवं जहाँ कहीं जरूरत हो ठीक किया जाए.



यही कारण है कि छोटी कक्षाओं में बच्चों को घर व स्कूल दोनों जगह बोलकर लिखने की आदत डाली जाती है, जो बड़े होने पर रुकवाई भी जाती है. इसलिए कि बड़े होने पर बोलकर लिखने की प्रक्रिया औरों के लिए बाधक होने लगती है. स्कूल व घर में बड़े ( गुरुजन) बच्चे के उच्चारण पर ध्यान दे पाते हैं और जहाँ आवश्यक हो सुधारा जाता है.


कौन हमें शुद्ध रूप से लिखना और बोलना सिखाता है? - kaun hamen shuddh roop se likhana aur bolana sikhaata hai?

इस तरह बोलने व पढ़ने – दोनों की विधा में सही होने पर ही लिखने की प्रक्रिया सही रूप से हो पाएगी. व्यक्ति बोलना अपने समाज में, दोस्तों से, घर के बड़ों से या विद्यालय में गुरुओं से सीखता है. उनके ही उच्चारण को दोहराने की कोशिश ही सीखने का प्रथम चरण होता है. इसका शुद्धिकरण पढ़ने व लिखने को सीखने के वक्त होता है जब विद्यार्थी बोलकर लिखता है.


एक शब्द है रबर. इसका उच्चारण कहीं रबड़ होता है कहीं रबर. आज दोनों उच्चारण सही मान लिए गए हैं पर कौन सा मूल रूप है, इसकी खबर शायद ही किसी को हो. मलयालम व तमिल भाषाओं में ऐसे कई शब्द हैं जिन्हें उच्चरित करना अन्यों के लिए बहुत ही मुश्किल यानी असंभव समान है. उस उच्चारण को सही ढंग से हिंदी (देवनागरी) लिपि में लिखा भी नहीं जा सकता. ऐसे मे हिंदी भाषी गलती तो करेगा ही. उसी तरह हिंदी में अन्य गलती करते हैं. यह किसी भी दूसरी भाषा - भाषियों के बारे में कहा जा सकता है.


बंगाल - बिहार बॉर्डर (सीमारेखा) पर ऐसे कई शब्द मिलेंगे जिनका उच्चारण दो रूपों में किया जाता है. जैसे विश्वास – बिस्वास, खरा – खड़ा, बरा – बड़ा, यामिनी – जामिनी, यश- जश इत्यादि. कुछ र को ड़ और कुछ ड़ को र उच्चरित करते हैं. मैंने हिंदी भाषियों को भी कहते सुना है – “ मेरेको तेरेको पाँच रुपए देना है “ लेकिन आज तक समझ नहीं पाया कि वह कहना क्या चाहता है – कोन किसके पाँच रुपए देगा. मैने कई बार सोचा कि सबसे बढ़िया होगा कि पाँच रुपए उसे दिए जाएं जो मुझे इसका सही अर्थ समझा देगा. ऐसे ही कुछ वाक्य प्रचलन में है, जहाँ विराम चिन्हों की कमी के कारण अर्थ का अनर्थ हो जाता है. उनमें से एक है – रोको मत जाने दो. उसने उसकी बीवी को मारा – किसने किसकी बीवी को मारा. ऐसे संशयात्मक वक्तव्यों से बचना चाहिए. ज्यादातर इनका (संशयात्मक वक्तव्य़ों का) प्रयोग नेताओं द्वारा राजनीति में ही होता है.


इसी तरह से प्रदेशों में परिवर्तन होते ही बोली में परिवर्तन दिखेगा. वैसे बड़ों ने तो कहा ही है कि “कोस –कोस में बोली बदले, चार कोस में भाषा”. लेकिन लिपि नहीं बदलती, शब्द के उच्चारण के अनुसार ही रहती है. बोली बदलने से उच्चारण बदलता है, इसलिए असर लिपि पर भी पड़ता है.


महाराष्ट्र में खासकर उन शब्दों में जहाँ अँग्रेजी के Z सा उच्चारण होता है, ज अक्षर पर जोर देकर झ बोला जाता है, इसीलिए वे जबरन नहीं झबरन बोलेंगे भी और लिखेंगे भी. वे जेड को झेड कहेंगे. यह त्रुटि उनके भाषा - ज्ञान में उच्चारण के कारण है न कि इसलिए कि वे हिंदी ठीक लिखना नहीं जानते. ऐसे ही महीन शब्द को अक्सर महिन लिखते हैं. यह उच्चारण की गलतियाँ हैं. इस तरह की क्षेत्रीय उच्चरणों का विभिन्न भाषा के ज्ञान पर असर होता है और वह बहुत सारी गलतियों का कारण बन जाता है. इन जैसी परिस्थितियों के कारण बंगाली दादा ब एवं व में गफलत कर जाता है. उनके अपनी भाषा में एक ही अक्षर से काम चलता है इसलिए यहाँ के दो अक्षरो में कौन सा प्रयोग करें, इसके निर्णय में कठिनाई होती है. अक्सर व की जगह भी ब का प्रयोग हो जाता है.


पंजाब में आधा अक्षर की सुविधा नहीं होने की वजह से वे आधे अक्षर का प्रयोग करना सम्मत नहीं पाते इसलिए पूरा अक्षर ही लिखते हैं. धर्मेंद्र को वे धरमिंदर कहना या लिखना पसंद करेंगे. उनके लिहाज से वह सही है किंतु हिंदी भाषी के लिहाज से वह सही तो नहीं ही है. जो लोग कमोबेश हिंदी के अर्धाक्षरों से वाकिफ हैं वे भी क्लब को कल्ब लिखने की गलती कर जाते हैं. शब्दों में अक्षरों का भी हेर फेर होता देखा गया है जैसे मुसाफिर को मुफासिर कह जाते हैं. यह गलती अक्सर चार –पाँच अक्षरों वाले शब्दों में ही पाई जाती है.


कई क्षेत्र के लोग स  को श (ष) की तरह उच्चरित करते हैं और शब्दों में हेरफेर हो जाता है. खास तौर पर नेपालियों में साथ का उच्चारण शाथ होता है जो शाठ सा सुनाई देता है ... पूरा संशय संपन्न.


कुछ जगह मैंने चुटकुले कहते सुना है ... “शादी मुबारक हो, जोड़ी साला मत रहे”.  पहले तो चकराया कि यह कैसा मजाक है. फिर कुछ देर से समझ आया कि किसी ने शब्द ज्ञान के आभाव में सलामत शब्द को तोड़ कर    “साला मत” कर दिया है जिससे खेल खराब ही हो गया. सब कुछ किरकिरा हो गया. किसी के हकलाने के कारण हुआ हो, तो समझें भी, लेकिन कोई तोड़कर बोले तो... कभी कभी खतरनाक भी साबित हो सकता है.


हिंदी में साधारणतः शब्दों मे आ की मात्रा को ई की मात्रा में बदल देने से पुर्लिंग शब्द स्त्रीलिंग हो जाता है जैसे साला – साली, नाला – नाली. लेकिन जहाँ अपवाद हैं वहाँ मजा किरकिरा हो जाता है. मजाक की एक और बात सुनिए -  जब कोई बनिया पूछे कि मेरी बनियाइन कहाँ है तो जवाब क्या होगा – अलमारी में या पड़ोस में. सोचिए ....कहीं जवाब हुआ कि बिस्तर पर है तो ... भगवान बचाए.


जब भी कोई अहिंदी भाषी हिंदी बोलेगा तो उसकी बोली मे मातृभाषा का पुट अक्सर आ ही जाता है. इसी का असर है कि गणेश, कणेश हो जाते हैं खाना, काना हो जाता है और स्कूल, सकूल हो जाते हैं.. शिक्षकों को इनका ध्यान रखना चाहिए और खास जोर देकर ऐसी त्रुटियों का निवारण करना चाहिए. यदि छोटे वय में ऐसा न किया गया, तो बड़े वय में ऐसा करना बहुत ही मुश्किल है. कभी कभी यह असंभव भी हो जाता है - क्योंकि छोटी उम्र में सिखाने के तरीके बड़ी उम्र में अपनाए नहीं जा सकते. यह केवल हिंदी के साथ ही नहीं है. अंग्रेजी का एगेन्स्ट (Against) तेलुगु भाषी के लिए अगेनस्ट हो जाता है. वैसे ही ब्रिज (Bridge) , ब्रिड्ज हो जाता है. खैर इसमें अंग्रेजी के उच्चारण - लुप्तता का असर साफ दिखता है किंतु भारतीय भाषाओँ की खासियत है कि किसी भी वर्ण का उच्चारण लुप्त नहीं होता. यहाँ यह अंग्रेजी से बहुत बेहतर है. उच्चारण की बहुत सी खामियाँ टल जाती हैं. ऐसा नहीं है कि इनके कारण केवल नुकसान ही होता है. ऐसी आदतों के कारण ही दक्षिण भारतीय अच्छे स्टेनोग्राफर साबित हुए हैं. स्टेनोग्राफी एक उच्चारण आधारित लिपि है इसलिए उससे कोई भी भाषा लिखी जा सकती है. यदि भाषा का ज्ञान हो तो आसानी से पुनः लॉन्ग हैंड में भी   सही - सही प्रस्तुत किया जा सकता है.


इसी तरह शब्दों का मुल रूप के साथ अपनी भाषा के प्रत्यय व उपसर्ग जोड़ दिए जाते हैं जैसे  - चार टे आम दे दो. यानी चार नग आम दे दो. बंगाली में नग शब्द के बदले टे का प्रयोग होता है. वैसे ही आँध्र वाले कहते हैं 6 की आएगा यानी 6 बजे आएगा या आऊंगा-आऊंगी. यहाँ संशय है कि किसी के आने की बात कही जा रही है या खुद के आने-जाने की बात कही जा रही है. आने वाली आवाज से ही पता चलता है कि वहाँ झाऊगा होगा या जाऊंगी. वहाँ दक्षिण में प्रय़मपुरुष के साथ लिंग भेद नहीं हैं.


दक्षिण भारत में की जगह रु () वर्ण है.  इसलिए वहाँ कृष्ण को क्रुष्ण सा उच्चरित किया जाता है. वह कृष्ण शब्द को हिंदी में (देवनागरी लिपि) में लिखना चाहेगा – तो इसी तरह की गलतियाँ करेगा. वैसे ही हिंदी भाषी दक्षिणी लिपियों में लिखते वक्त करेगा. इसी तरह पृथ्वी, कृपाण. प्रकृति भर्तृहरि शब्दों को भी लिखने में गलतियाँ होंगी. शिक्षकों को इनकी जानकारी दी जानी चाहिए ताकि यह विद्यार्थियों तक पहुँचाई जा सके और वे इन गलतियों को करने से बच जाएं या कहिए सही समय पर सँभल जाएं. दक्षिण में अंग्रेजी के डब्लू (W) को डबल्यू उच्चरित किया जाता है. वहाँ अंग्रेजी का एस (S) यस बन जाता है.




तमिल में द्वि-अक्षरीय वर्गमाला होने के कारण गणेश को भी कणेश लिखा जाता है. गजेंद्रन, कजेंद्रन लिखे जात हैं. कमला व गमला की लिपि में कोई अंतर नहीं होता. वैसे ही तंगम शब्द जिसका संस्कृत में अर्थ सोना (स्वर्ण) होता है को तमिल भाषी अंग्रेजी मे Thangam लिखते हैं और वहीं हिंदी में थंगम हो जाता है. इसी तरह तंगराज (स्वर्णराज) हिंदी में थंगराज हो जाता है. त थ व ट ठ के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी वर्ण तामिल भाषियों के लिए Th, Thh  एवं T, Tth हैं. इसलिए उन्हे वापस अपनी भाषा में अनुवाद करने में कोई तकलीफ नहीं होती. हिंदी भाषी इन दोनों अक्षरयुग्मों के लिए T & Th  ही प्रयोग करते हैं. वर्ण विशेष के लिए विशेष प्रावधान न होने की वजह से लौटकर हिंदी में अनुवाद करने में गलतियाँ हो जाती हैं. इसलिए हिंदी भाषियों को व उसी तरह अन्य भाषा भाषियों को चाहिए कि भाषान्तर के लिए वर्ण विशेष लिपि को अपनाएं. ताकि भाषान्तरण के वक्त गलतियाँ न हो. उदाहरण के लिए प्रस्तुत निम्न शब्दों पर जरा गौर कीजिए-


तक गया – Thak gaya.

थक गया – Thhak Gaya.


टकटकी लगाना – Taktaki lagana.

ठक ठक करना – Tthak tthak karna.


ऐसा ही द ध एवं ड ढ के साथ है. Da और Dha लिखे जाते हैं. अच्छा होता –

डाल     - Dal

दाल -   Dhal

ढ़क्कन -   Ddhakkan

धड़कन -   Dhhadakan


जैसे संरचना का प्रयोग होता.


ऐसा ही एक और संशय है स, श एवं ष में –


हिंदी शब्द   हिंदी भाषी दक्षिण भारतीय


सैनिक Sainik       Shainik.

शाम Sham Sam


संकर Shankar Sankar

शंकर Sankar Shankar


शेषाद्रि Sheshadri Seshadri

विशेष Vishesh Visesh.


इसमें यहाँ तक तो मान लिया जा सकता है कि श व ष के लिए एक ही शब्द युग्म प्रयोग करें लेकिन स के लिए अलग हो . इस तरह के युग्मों में भ्रांति उत्पन्न हो रही है. जहाँ हिंदी भाषी स के लिए S का प्रयोग करते हैं वहाँ दक्षिणी लोग Sh का प्रयोग करते हैं. श के लिए हिंदी भाषी Sh का प्रयोग करते हैं तो दक्षिणी S का. श व ष हिंदी में तत्सम व तद्भव शब्दों के अलावा एक ही है सो  अहिंदी भाषियों की इतनी गलती हजम की जा सकती है. पर यदि बहुत ही सही लिखना हो तो कुछ सोचना ही पड़ेगा. हिंदी जानने पर तत्सम व तद्भव शब्दों के अनुसाप श व ष का चयन संभव है.


इस वर्ण संरचना के बाद हिंदी के एक वर्ण के लिए, अंग्रेजी की एक तरह की ही वर्ण संरचना होगी और किसी प्रकार का संशय नहीं रह जाएगा. हालाँकि यह काफी कठिन है. हमारे पूर्व राष्ट्रपति  व विशिव प्रसिद्ध दार्शनिक डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन की अंग्रेजी में लिखी गई श्रीमद्भगवत्गीता में हिंदी उच्चारणों के जो संकेत दिए हैं, वे सटीक हैं. किसी कम्प्यूटर या टाईपराईटर पर, वैसे संकेत मैंने तो आज तक नहीं देखा.


इसी तरह तकलीफ होती है जब रमा शब्दोच्चारण को अंग्रेजी में किसी को बताना होता है. अदतन इसे Rama लिखा जाता है और उसे रामा समझा जाता है. रमा अंग्रेजी से होकर हिंदी में लौटने पर रामा हो जाता है. इनसे बचने के उपाय करने होंगे. रम (XXX Rum  नहीं) को लोग Ram लिखते हैं और पढ़ने वाला राम पढ़ता है. देखा. इस तरह रम, राम, रमा और रामा शब्द अंग्रेजी में जाने आने में ऐसे घुल जाते हैं कि सही शब्द का पता ही नहीं चलता. यदि एक से अधिक बार   जा – आ लिए, तो शब्द ही बदल जाता है.


देखा आपने कैसे अर्थ का अनर्थ होता है. दोष किसे दें. कहीं न कहीं कुछ न कुछ गलत है, अन्यथा ऐसा अनर्थ क्यों ? शायद दोष है मानकी करण न होने का. अब बताएं अंग्रेजी में किसी व्यंजन मात्र (च्) कैसे लिखेंगे. क्या वापस हिंदी में आने पर वह (च्) रह जाएगा या च अथवा चा बन जाएगा. इन सभी मुसीबतों को ध्यान में रखकर, यदि भाषा के अंग्रेजी अनुवाद की कोई तकनीक बनाई जाए, तो कईयों की भाषा सुधर जाएगी.


कुछ को तो कहने में तकलीफ नहीं होगी, किंतु बहुत मजा भी आएगा कि हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद किसलिए ? सीधे किसी दूसरी भारतीय भाषा में क्यों नहीं किया जाता. इसका कारण हैं कि-


  1. कई भारतीय अंग्रेजी के माध्यम से अन्य भारतीय भाषा सीखना चाहते हैं क्योंकि वे अपनी भाषा व अंग्रेजी जानते हैं.

  2. कई विदेशी जो भारतीय भाषा सीखना चाहते हैं वे भी अंग्रेजी का सहारा लेते हैं क्योंकि विदेशी भाषाओं में से भारत में सबसे ज्यादा उपयोग की जाने वाली भाषा अंग्रेजी ही है.

  3. मुझे अपनी बात कहने के लिए यही उचित माध्यम लगता है क्योंकि अन्य भाषाओं में मेरी पकड़ ऐसी नहीं है इसलिए हिंदी व अंग्रेजी मे अपनी बात रख रहा हूँ.


कौन हमें शुद्ध रूप से लिखना और बोलना सिखाता है? - kaun hamen shuddh roop se likhana aur bolana sikhaata hai?
रंगराज अयंगरअब आईए उन प्रदेशों की तरफ जहाँ की भाषा में लिंग भेद नहीं हैं. अंग्रेजी का भी ज्यादातर यही हाल है.केवल He को She या  It कर दीजिए. जा रहा है और जा रही है दोनों के लिए – going चल जाता है. इसलिए उन्हें लिंग भेद समझ में नहीं आता. ऐसे बंगभाषा में भी है. दक्षिणी भाषाओं में लिंग भेद तो है किंतु जब स्वयं की बात आती है तो I am going की तरह ही है. लिंग भेद नहीं रहता . इसलिए ऐसे लोग हम खाना खाती हूँ बोलने में गलती महसूस नहीं करते. लिंगभेद से वे इतने परेशान हो जाते हैं कि वे चाहते हैं कि मुझे सीखना नहीं है और लोग मुझे ऐसे ही अपनाएं और समझें. कई बार तो वे हँसी के पात्र भी बन जाते हैं  जैसे  - मैं रुकता हूँ, मेरा हसबेंड आकर मुझे ले जाएगी. हिंदी में भी ऐसे परेशान करने वाले शब्द हैं जहाँ ई की मात्रा के बावजूद भी वह स्त्रीलिंग नहीं होता.थोड़ा मुश्किल है पर स्कूल की कक्षाओं में बच्चों को समझाया जा सकता है कि कर्म का लिंग निर्भर करता है कि करने वाला किस लिंग का है. जैसे-


मैं नहीं लिख रही हूँ.(स्त्री नहीं लिख रही है)

मैं लिख नहीं रहा हूँ. ( पुरुष नहीं लिख रहा है)

मेरी कलम नहीं लिख रही है.( कलम नहीं लिख रही है)


अब सवाल आता है कि कलम स्त्रीलिंग या पुर्लिंग कैसे हुई. ऐसे कई शब्द हैं जिनके लिग के बारे में अच्छे अच्छों को तकलीफ हो जाती है.

यहीं पर कहेंगे कि -  पेन लिख नहीं रहा है.

मैंने भी यह लिंग विद्या बोलते बोलते ही सीखी है. अब जुबाँ पर वहीं आता है जो सुनते रहे या बोलते रहे. लेकिन इसका सही समाधान (नियम) मुझे आज भी पता नहीं है. कुछेक नियम बड़ों ने बताए हैं और अक्सर सही पाए गए हैं, किंतु कहीं कहीं अपवाद भी हैं. जैसे जिस किसी वस्तु में जगह होती है उसे माद या स्त्रीलिंग माना गया है.


The train/plane/ ship is late. She is expected to arrive at say 1850 hrs.


गाड़ी आ रही है.एक गाना भी तो था गाड़ी बुला रही है सीटी बजा रही है..


लेकिन हम कहते हैं नाव खुल गई, गाड़ी चल पड़ी.


हवाई जहाज उड़ गया.


जो कि इसमें अपवाद है. ऐसे अपवादों के कारण पता नहीं है. किसी को कोई नियम पता हो तो जरूर बताएं.


भाषा भाषियों के उच्चारण में होने वाली खामियाँ और उसकी वजह से लिखने व पढ़ने में होने वाली त्रुटियों को उजागर करने का प्राथमिक ध्येय हिंदी के शिक्षकों को सचेत करना या कहिए बताना था कि इन विषयों पर भी गौर किया जाए न कि किसी की भाषा में से मीन मेख निकालना.


मैंने वह सब लिखने की कोशिश की है जो मुझे पता है या समझ में आता है. ऐसी और भी भ्रांतिपूर्ण स्थितियाँ होंगी जिनसे मैं अनभिज्ञ हूँ. भाषाएं सीखने की और खासकर हिंदी सीखने की चाह के कारण आप सब से निवेदन है कि ऐसी और बाते जो इस लेख में समावेशित नहीं हैं का ज्ञान हो तो ज्ञान - दान जरूर कीजिएगा.


ज्ञान पिपासु आपकी ओर मुखातिब है. आभारी रहूँगा.

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यह रचना माड़भूषि रंगराज अयंगर जी द्वारा लिखी गयी है . आप इंडियन ऑइल कार्पोरेशन में कार्यरत है . आप स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य में रत है . आप की विभिन्न रचनाओं का प्रकाशन पत्र -पत्रिकाओं में होता रहता है . संपर्क सूत्र - एम.आर.अयंगर. , इंडियन ऑयल कार्पोरेशन लिमिटेड,जमनीपाली, कोरबा. मों. 08462021340

भाषा को शुद्ध रूप में बोलना और लिखना कौन सिखाता है?

Answer: व्याकरण के द्वारा भाषा का शुद्ध बोलना, पढ़ना और लिखना सीखा जाता है। भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त कर सकते हैं और इसके लिये हम वाचिक ध्वनियों का प्रयोग करते हैं। भाषा, मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बताई जाती है।

भाषा को शुद्ध रूप में बोलना पढ़ना व लिखना सिखाने वाले शास्त्र को क्या कहते हैं?

उत्तर : भाषा को शुद्ध रूप में लिखना, पढ़ना और बोलना सिखाने वाला शास्त्र व्याकरण कहलाता है। व्याकरण द्वारा भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान होता है। इसमें भाषा के सम्बन्ध में नियम होते हैं

जो विद्या भाषा की शुद्धता सिखाती है उसे क्या कहते हैं?

व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा किसी भाषा को शुद्ध बोला, पढ़ा और शुद्ध लिखा जाता है।

हिंदी शुद्ध शुद्ध कैसे पढ़े?

हिंदी वर्णमाला का सही ज्ञान ... .
एप की सहायता से हिंदी बोलना सीखें ... .
रोज़ाना रीडिंग करें और हिंदी बोलना सीखें ... .
हिंदी गाने सुने और हिंदी बोलना सीखें ... .
हिंदी सिखाने वाली अकैडमी ज्वाइन करें ... .
हिंदी के कठिन शब्दों को रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग करें ... .
शब्दों से वाक्य बनाना सीखें ... .
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