रावण की असली लंका कहां पर है - raavan kee asalee lanka kahaan par hai

रांची। विश्व के महान धर्मग्रंथों में से एक रामायण विश्व को करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है। न सिर्फ हिन्दुओं बल्कि दूसरे धर्मों के लोगों की भी इससे श्रद्धा जुड़ी हुई है। भगवान विष्णु के अवतार और लगभग 17 लाख वर्ष पूर्व हो चुके विश्व के महानतम राजा श्रीराम के जीवन से जुड़ी इस कहानी पर अब तक कई शोध हो चुके हैं और हो रहे हैं। कई शोधकर्ता रामायण को कोरी कल्पना कहकर उसे सीधे तौर पर नकार देते हैं, तो कईयों ने तथ्यों और प्रमाणों के साथ इसे सच्चा इतिहास सिद्ध करने का प्रयास किया है।


रामायण की तरह उससे जुड़े स्थान भी शोधकर्ताओं के विवाद और कौतूहल के विषय रहे हैं। जिस तरह राम के जन्मस्थान अयोध्या के विवाद ने भले ही सांप्रदायिक रूप ले लिया हो, पर उसके अलावा कई स्थान तर्क-वितर्क के केंद्र में हैं पर उन धार्मिक विवाद नहीं हुआ।

इन्हीं में से एक प्रमुख स्थान है लंका। आम लोग नाम के आधार पर श्रीलंका को रावण की लंका मानते हैं, पर कई शोधकर्ता इससे सहमत नहीं हैं।

5 अक्टूबर, सन् 1971 को प्रख्यात इतिहासकार एच. डी. संकलिया की एक रिपोर्ट अंग्रेजी दैनिक 'द स्टेट्समैन' में प्रकाशित हुई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका नहीं बल्कि झारखंड का छोटानागपुर क्षेत्र ही रामायण की लंका है। संकलिया का निष्कर्ष था कि रामायण प्रारंभिक लौह-युग से जुड़ी गाथा है और इस पवित्र महाकाव्य में वर्णित लंका तो वर्तमान श्रीलंका नामक द्वीप हो ही नहीं सकती।

महिसादल और राजार धिपी से प्राप्त पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर यह पता चलता है कि इस शुरुआती संस्कृति और सभ्यता को एक लोहा उत्पादन करने वाली जाति ने या तो नष्ट कर दिया या फिर विस्थापित कर दिया।

अकेले रांची जिले में ही असुरों के किले और कब्रिस्तान पाए गए हैं। आस-पास के सैंकड़ों गांवों में प्राचीन लंबी कद-काठी वाली प्रजाति के मानवों से जुड़े अवशेष बिखरे पड़े हैं। इन्होंने सभ्यता का लंबा सफर तय किया और उसके शिखर तक पहुंचे। असुरों के कब्र बिल्कुल अव्यवस्थित क्रम में मिले हैं जिन्हें स्लैब द्वारा चिन्हित किया गया है। इनके छत के पत्थर सामान्यतया 8 फीट लंबे हैं पर कहीं-कहीं 10 से 12 फीट भी। वह कहते हैं, "वह लोहे का संदूक, जिसमें शिव का धनुष रखा गया था और जिसे केवल राम ही उठा सके थे, एक उच्चतम तकनीक का परिचय देता है।"

इतिहासकार एच. डी. संकलिया निष्कर्ष के रूप में लिखते हैं कि रामायण प्रारंभिक लौह युग से जुड़ा है। यह बात उनके हथियारों से साबित हो जाती है। उस काल में झारखंड की असुर जाति द्वारा लोहा गलाने के उद्योग समृद्ध रूप में थे।

अपने रिपोर्ट में संकलिया इन सब बातों के पुरातात्विक, भौगौलिक और जैववैज्ञानिक प्रमाण भी प्रस्तुत करते हैं। उनके निष्कर्षों के अनुसार रामायण की अधिकतर घटनाएं वर्तमान के उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड के छोटानागपुर पठार व पूर्वी मध्यप्रदेश में 1500 ईसा पूर्व के आस-पास घटित हुई हैं। ईसा पूर्व 2000 से 1500 के बीच की एक व्यवस्थित सभ्यता के प्रमाण के लिए उन्होंने कौशाम्बी, प्रह्लादपुर, चिरांद, सोनपुर आदि स्थानों पर खुदाई की बात कही थी।

उनके अनुसार, रामायण की लंका छोटानागपुर पठारी क्षेत्र (वर्तमान में झारखंड के रांची व हजारीबाग जिले) में ही कहीं रही होगी और 'वानर' व 'राक्षस' कोई और नहीं बल्कि यहां की वनवासी (आदिवासी) जातियां हैं। झारखंड के सबसे पुराने निवासी असुर हैं, जो स्वयं को महिषासुर के वंशज मानते हैं।

विरोधाभास और मतभिन्नता भारतीय संस्कृति के मूल में रहे हैं। यही इसकी विशेषता भी है और कमजोरी भी। विशेषता इसलिए कि इन कालखंडों के रचनाकारों ने काल और व्यक्ति की सीमा से परे बस शाश्वत अनुभवों के रूप में अभिव्यक्त किया है। इसीलिए वर्तमान विद्वान रामायण और महाभारत के घटनाक्रम, नायकों और भूगोल के प्रति अकसर संशकित दिखाई देते हैं। इस कारण जो वामपंथी हैं, उन्हें इन पात्रों और घटनाओं को मिथक एवं काल्पनिक कहने में देर नहीं लगती। इसके विपरी दक्षिणपंथी विद्वान भक्ति के आवेग में हर घटना और पात्र को ईश्वरीय रूप दे देते हैं। ऐसे में इतिहास और भूगोल को जानने की बौद्धिक इच्छा लगभग गौण हो जाती है।

वाल्मीकि रामायण में रावणकालीन लंका का विस्तृत वर्णन है। त्रिकुट पर्वत पर स्थित यह लंका रावण राज में बहुत अधिक संपन्न, उन्नत और विज्ञान-सम्मत माने जाने वाले विकास के शिखर पर थी। यहां सभी प्रकार के सांसारिक सुख और सुविधाएं उपलब्ध थीं। गरीबी नहीं थी, लंका का प्रत्येक नागरिक सुखी था। विभीषण जैसे अकर्मण्य, सत्ता-मोह में असंतुष्ट थे और रावण की उपलब्धियों से ईर्ष्या करने के कारण कुंठित थे। लोग कहते हैं कि लंका सोने की हो ही नहीं सकती ? मैक्सिकों के लोगों के पास खूब सोना था। पेरू के विशाल सूर्य मंदिर की दीवारें सोने से मढ़ी थीं। अफगानी महमूद गजनवी ने अकेले सोमनाथ मंदिर से इतना सोना लूटा था कि पूरे अफगानिस्तान की दरिद्रता दूर कर दी थी। तिब्बत की राजधानी ल्हासा के बौद्ध मंदिर की छत सोने से पटी है। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की बाहरी भित्तियों पर सोने के पत्तर चढ़े हैं। अंग्रेजों ने भारत से इतनी मात्रा में सोने, चांदी, हीरे, जवाहरात, रत्न एवं मोतियों की लूट की थी कि ब्रिटेन का आधुनिक एवं औद्योगिक विकास इसी लूट की बुनियाद पर टिका है।

पद्मनाभ स्वामी मंदिर के गर्भ में स्थित दस कमरों में स्वर्ण का इतना भंडार है कि खोले गए चार कक्षों में मिले सोने की ही ठीक से तौल नहीं की जा सकी है। अंततः न्यायालय को कोश कक्षों को यथावत रखने का आदेश देना पड़ा था। स्वामीनारायण संप्रदाय के सभी मंदिरों में प्रमुख मूर्तियां कई टन सोने की हैं। इसलिए यह कहना गलत है कि लंका सोने की नहीं थी। लंका के प्रमुख राज महल मंदिर और घर मणियुक्त सोने से अलंकृत थे। उस समय दक्षिण भारत और लंका में खदानों और नदियों की रेत से पर्याप्त मात्रा में सोना निकलता था। गांव-गांव इसके शोधन की प्रक्रिया में लोग पारंगत थे।

कुछ दशक पहले अमेरिकी वनों में किए गए पुरातत्वीय उत्खन्न में मय सभ्यता के अवशेष विपुल मात्रा में मिले हैं। ये मय दानव वही हैं, जिन्होंने लंका बसाई थी और मंदोदरी इस मय वंश की पुत्री थी। इसलिए वाल्मीकि रामायण में सुवर्णमयी लंका का वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण भले ही हो, कवि की कोरी कल्पना कतई नहीं है। सच्चाई है कि जो वर्तमान लंका है, जिसे सिलौन अर्थात सिंहलद्वीप के नाम से भी संबोधित किया जाता है, वही रामायणकाली लंका है। यहां बहुसंख्यक राक्षस थे, जो रावण के अधीन थे। तत्पश्चात डेक्कन महाविद्यालय के विद्वान डॉ. हससुख धी सांकलिया ने नर्मदा और ताप्ती नदियों का वर्णन नहीं होने और इन क्षेत्रों में रावण की प्रशंसा में आदिवासी समूहों में गीत गाए जाने के आधार पर लंका की काल्पनिक खोज मध्य-प्रदेश के जबलपुर संभाग और छत्तीसगढ़ के बस्तर में शुरू कर दी। चुनांचे लंका का साम्राज्य सुदूर में डागास्कर से लेकर भारत स्थित गंगा घाटी तक विस्तृत था। पुराणों में उल्लेखित है कि मेडागास्कर, लंका और पूर्वीय द्वीप समूह आपस में जुड़े थे और इस पूरे भू-भाग को लंका कहा जाता था। बाद में राम और रावण के बीच हुए आणविक युद्ध और प्रलय जैसे प्राकृतिक प्रकोप से लंका के भूगोल में बहुत कुछ परिवर्तन हो गया। बावजूद रावण की मूल लंका आज भी यथास्थिति में है। दरअसल रावण के राज्य का विस्तार भारत में पाण्ड्य, चोल, कृष्णा, गोदावरी, कावेरी, महानदी, उत्कल, चेरा और किष्किंधा तक फैला हुआ था। अतएव उसके रक्षकों के वंशजों में अपने सम्राट की प्रशंसा में लोक गीतों का गाया जाना और रावण समर्थित कई प्रथाओं का प्रचलन में बने रहना, कोई अनूठी बात नहीं कही जा सकती है।

यह शंका इसलिए हुई क्योंकि छत्तीसगढ़़ के गोंड़ वनवासी स्वयं को रावण के वंशज मानते हैं। बस्तर के माड़िया गोंड़ रावण को नफरत की दृष्टि से नहीं देखते हैं। गोड़ों की एक बड़ी आबादी आज भी रावण की पूजा-अर्चना करती है। मण्डला और बालाघाट जिलों में रावणवंशी गोड़ों की संख्या बहुत अधिक है। देश-दुनिया की अनेक रामायणों पर काम करने वाले डॉ कामिल बुल्के भी इसी मत का समर्थन करते हैं। भैना, उराओं, बिर्होर वनवासियों में गीध गोत्र पाया जाता है। रावण का संबंध भी गीध जाति से था। उरा, असुर, खिरिया आदि जातियों की भाषा में ‘रावना’ गीध अर्थ में ही प्रयुक्त होता है। रांची जिले के कटकया गांव में वर्तमान में भी एक ‘रावना-परिवार’ है। ये सब अपनी उत्पत्ति रावण से ही मानते हैं। नीलगिरी में शूर्पनखा की अब तक पूजा होती है। मलयाली नत्तु नामक जाति की स्त्रियाँ शूर्पनखा की संतान मानी जाती हैं। भोपों नामक जनजाति में आज भी ‘रावण-हत्था’ नामक वाद्य-यंत्र प्रचलन में है। यह यंत्र और इसका चित्र आज भी पूना के राज कपूर संग्रहालय में देखा जा सकता है। रावण संगीत का विशेषज्ञ था। बीणा का आविष्कार रावण ने ही किया था। दरअसल रावण का राज्य उत्तर भारत तक विस्तृत था। शूर्पनखा खर और दूषण इन राज्यों के अधिपति थे। रावण की अनेक रानियां थीं। इनमें से कुछ दक्षिण भारत की भी थीं। ऐसे में इन जातियों द्वारा स्वयं को रावण का वंशज मानना अजरज नहीं एक सच्चाई है। लेकिन इस आधार पर लंका को भी मध्यभारत में मान लेना या इसकी खोज करना, अनर्थक एवं वास्तविक साक्ष्यों के साथ खिलवाड़ करना है। मध्य-प्रदेश के मुरैना जिले के कई ग्रामों में आज भी महाभारत काल के कौरवों के वंशज रहते हैं। इससे यह आशय लगाना सर्वथा अनुचित होगा कि हस्तिनापुर और कुरुक्षेत्र मुरैना में हैं।

लंका पर यथार्थपरक कार्य डॉ. मधुसूदन चांसकर ने किया है। विष्णु श्रीधर वाकणकर ने भी इस दृष्टि से अहम् पहल की है। इन लोगों ने लंका में पहुंचकर लंका की प्राचीनता से जुड़े शोध पत्रों और ‘सेनालहिनी’ आदि काव्य का अध्ययन किया। राम और रावण के युद्ध से संबंधित सिंहली भाषा में लिखे ‘युद्धकांड’ का भी अध्ययन किया। इन ग्रंथों और वाल्मीकि रामायण में जो स्थल जहां वर्णित हैं, वहीं आज भी विद्यमान हैं। तिरूकोणमलै में रावण के शिव मंदिर, रावणकोट में रावण द्वारा अपनी सास का श्राद्ध किया गया था, यह स्थल आज भी मौजूद है। रावणकंुड नाम के गरम पानी के झरने का उल्लेख रामायण में है। यह झरना भी अपनी जगह उपलब्ध है। इन ग्रंथों में पुलिस्त नगर का विवरण है, यह नगर रावण के दादा पुलस्त्य ऋषि की महाकाय मूर्ति के साथ आज भी विद्यमान है। इसी प्रतिमा के सामने एक शिव मंदिर के भग्नावशेष हैं तथा एक विशाल जलाशय है। लंका के जिस वायुनिवारा क्षेत्र में वायुसेना का अड्डा था, उसके अवशेष भी उत्तरी लंका में देखने को मिलते हैं। जिस अशोक वाटिका में सीता को बंदी बनाकर रखा गया था, वह अशोक-वन भी यथास्थान पर है। एक प्राचीन भवन में विभीषण की मूर्ति है। यहीं एक दर्शनीय चित्रावली है। इसके दोनों ओर स्वर्ण-निर्मित पर्दे लटके हैं। विभीषण की मूर्ति के पीछे सफेद अश्व है। विभीषण एक हाथ में तलवार लिए है। इन विभीषण की सभी लंकावासी पूजा करते हैं और मन्नत माँगते हैं।

रावण-वध के बाद लंका त्यागने से पहले ऋषि अगस्त्य के कहने से भगवान राम ने तीन शिव मंदिरों का शिलान्यास किया था। बाद में विभीषण ने इन मंदिरों का निर्माण कराया। ये रावणकोट में तिरूकोटीश्वर, मन्नार में तिरू केट्टीश्वरम् और चिलाव में मुनिईश्वरम् नाम से आज भीअस्तित्व में हैं। इनके अलावा लंका के रामायणकालीन मंदिरों में जाफना का नागुलेश्वरम् कोची का पोनंबल वंतेश्वरम्, चन्नागम का नेलूर कड्यालेश्वरम्, कोलंबों का कैलाशनाथम्, गल्ल और रत्नपुर के मेघनाद द्वारा पूजे जाने वाले शिव मंदिर भी मौजूद हैं। हनुमान संजीवनी बूटी के लिए हिमालय से जिस द्रोणगिरि पर्वत को लेकर आए थे, उससे संजीवनी चुनने के बाद, बची वनस्पतियों को गोलपोताश्रय क्षेत्र में फेंक दिया गया था। यहाँ अब फेंकी गई वनस्पतियों का वन है। इसे स्थानीय भाषा में संजीवनी मलाई या मारुति मलाई कहते हैं। तमिल भाषा में मलाई का अर्थ ‘पर्वत’ होता है। यहाँ आज भी बहुमूल्य औषधियाँ पाई जाती हैं। कंबूकगम नदी के तट पर होमग्राम है, यह वही स्थल है, जहाँ इंद्रजित होम किया करता था। लंका के दक्षिण-पूर्व तट पर हमवनतोता नामक पोताश्रय है, जो हनुमंतोता का अपभ्रंश है। डॉ जनार्दन मिश्र की पुस्तक ‘भारतीय प्रतीक विद्या’ में प्रमाण देकर रावण की लंका को आज की श्री लंका और उसके आसपास के क्षेत्र को माना है। इन्होंने माना है कि श्रीलंका का ‘उरूवेल नगर’ रामायण कालीन सुबेल है। इसके उत्तर में चार ऊँचे पहाड़ हैं। जिन्हें रामायण में त्रिकुट कहा गया है। लंका यहीं स्थित थी। बंदरवेला, तोतापल्ला, किनिंगलपोता और आदम, ये चारों शिखर आज भी मौजूद हैं। न्यूेरिला क्षेत्र में जो वर्तमान में हैगेल गार्डन है, वही प्राचीन अशोक-वन है। लंका के दक्षिण-पूर्व में एक चट्टान पर एक विशाल भवन है, जिसे रावण-दुर्ग नाम से जाना जाता है। लंका में करीब पचास साल पहले किए पुरातत्वीय उत्खनन में एक अति प्राचीन शिव मंदिर मिला है, इसे रावण की साधना स्थली माना गया है।

इतने प्रमाणों के बाद भी क्या किसी को संदेह होना चाहिए कि रावण की लंका, आधुनिक श्रीलंका से इतर कहीं और है ? इसीलिए जब 1802 में आए अंग्रेजों के चंगुल से सिलौन 1948 में स्वतंत्र हुआ तो 1972 में यहाँ के लोगों ने गर्व के साथ अपने देश का नाम सिलोन से बदलकर ‘श्रीलंका’ रख दिया। गोया, अब भारत के कथित विद्वानों को लंका की खोज भारत में करने की जरूरत नहीं है। लंका जहाँ पहले थी, वहीं आज भी है।

रावण की लंका कौन से देश में है?

श्रीलंका की श्रीरामायण रिसर्च कमेटी के अनुसार रामायण काल से जुड़ी लंका वास्तव में श्रीलंका ही है। कमेटी के अनुसार श्रीलंका में रामायण काल से जुड़ी 50 जगहों पर रिसर्च की गई है और इसकी ऐतिहासिकता सिद्ध की है। कुबेर रावण का सौतेला भाई था। कुबेर धनपति था।

रावण के मरने के बाद सोने की लंका का क्या हुआ?

माता पार्वती इसको देखकर काफी दुखी हुईं और क्रोध में आकर ऋषि विश्रवा को शाप दे दिया कि जिस सोने की लंका को आपने दान में मांग लिया है, वह एक दिन जलकर भस्म हो जाएगी। इस तरह माता पार्वती के शाप के कारण सोने की लंका को हनुमानजी ने जला दिया था।

मृत्यु के समय रावण की उम्र कितनी थी?

तो इस आधार पर हम ये कह सकते हैं कि रावण की आयु कम से कम 40000 वर्ष तो थी ही (उससे भी थोडी अधिक हो सकती है)। अर्थात वो करीब 112 दिव्य वर्षों तक जीवित रहा। श्रीराम और माता सीता के विषय मे वाल्मीकि रामायण मे कहा गया है कि देवी सीता श्रीराम से 7 वर्ष 1 माह छोटी थी

रावण से पहले लंका पर किसका राज्य था?

भाषिक विश्लेषणों से पता चलता है कि सिंहली भाषा, गुजराती और सिंधी से जुड़ी है। प्राचीन काल से ही श्रीलंका पर शाही सिंहला वंश का शासन रहा है। समय समय पर दक्षिण भारतीय राजवंशों का भी आक्रमण भी इसपर होता रहा है।