गलसुआ नाम सुनकर ही पता चलता है कि ये गले से संबंधित कोई रोग है। गलसुआ शरीर के अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित कर सकता है। गलसुआ को कंडमाला रोग भी कहते हैं। ये एक संक्रामक रोग है जो ज्यादातर गाल के नीचे जबड़ों के पास स्थित पेरोटिड ग्रंथियों में संक्रमण के फैलने से होता है। ये ग्रंथियां लार बनाती हैं। संक्रमण के कारण इस रोग में गालों में सूजन आ जाती है। इस रोग के लक्षण बहुत बाद में दिखते हैं। आमतौर पर बचपन से युवावस्था में प्रवेश होने तक इस बीमारी की संभावना रहती है मगर आजकल ये किसी भी उम्र में देखा जा सकता है। ये कोई गंभीर रोग नहीं है लेकिन इसकी वजह से चेहरा भद्दा दिखने लगता है और गालों और गर्दन में दर्द भी होता रहता है। Show गलसुआ के लक्षणगलसुआ के लक्षण शुरूआत में नजर नहीं आते हैं। वायरस के संपर्क में आने के लगभग 15 से 20 दिन बाद इसके लक्षण दिखना शुरू होते हैं। गलसुआ के ज्यादातर लक्षण टॉन्सिल से मिलते हैं इसलिए बहुत से लोग टॉन्सिल और गलसुआ में अंतर नहीं कर पाते हैं। बुखार, सिरदर्द, भूख न लगना, कमज़ोरी, चबाने और निगलने में दर्द होना और गालों में सूजन आदि लक्षण गलसुआ के भी हैं और टॉन्सिल के भी हैं। कई बार सिर्फ एक तरह की ही ग्रंथि में सूजन आती है। इसके रोगियों को पेट में तेज दर्द और उल्टी की समस्या हो जाती है। गलसुआ के कारण पुरूषों के अंडकोष में दर्द व प्रजनन क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी स्तन में सूजन, दिमाग की झिल्ली व दिमाग में सूजन आदि भी देखने को मिलती है। हांलाकि इसकी संभावना काफी कम होती है। इसके 10 में से एक मरीज को मेंनिंजाइटिस या एन्सिफलाइटिस के लक्षण भी उभर सकते है और अस्थाई रूप से बहरेपन की समस्या भी हो सकती है। इसे भी पढ़ें:- ज्यादातर अचानक मौत का कारण होता है पल्मोनरी एम्बोलिज्म, ये हैं इसके लक्षण और बचाव गलसुआ का वायरसगलसुआ चूंकि एक संक्रामक रोग है इसलिए ये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैलता है। गलसुआ के वायरस से प्रभावित रोगी, पेरोटिड ग्रंथि में सूजन शुरू होने के 7 दिन पहले और 7 दिन बाद तक संक्रमण फैला सकता है। यह संक्रमण संक्रमित लार, छींकने या खांसने तथा संक्रमित व्यक्ति के साथ बर्तन साझा करने के माध्यम से फैलता है। इस रोग में कानों के एकदम सामने जबड़े में सूजन दिखाई देती है। कई बार चिकित्सक भी गलसुआ और टॉन्सिल के लक्षणों में कन्फ्यूज रहते हैं तो इसके लिए ब्लड की जांच की जाती है। ब्लड में एंटीबॉडी की उपस्थिति आसानी से वायरल संक्रमण की पुष्टि कर देता है। इसे भी पढ़ें:- कई कारणों से फूल सकती हैं आपकी सांसें, ये हैं इसके लक्षण कारण और बचाव के उपाय गलसुआ का उपचारआमतौर पर किसी भी रोग के होने पर हमें एंटीबायोटिक दवाएं जरूर दी जाती हैं। गलसुआ एक तरह का वायरल संक्रमण होता है इसलिए गलसुआ होने पर एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन नहीं किया जाता है। मांसपेशियों का दर्द और पेरोटिड ग्रंथि में सूजन की वजह से मरीज़ को बहुत दर्द होता है जिसे कम करने के लिए दर्द निवारक दवाएं ली जा सकती हैं। गलसुआ आमतौर पर 10-12 दिनों में ठीक हो जाते हैं। प्रत्येक पैरोटिड ग्रंथि की सूजन उतरने में एक सप्ताह लगता है, लेकिन दोनों ग्रंथियों में एक समान समय पर सूजन नहीं होती। इन बातों का रखें ध्यानगलसुआ होने पर गालों की बर्फ या फ्रोजन मटर से सिंकाई की जाती है। इसके अलावा गलसुआ चूंकि शरीर में वायरस के प्रवेश से होता है इसलिए इस रोग में खूब पानी पीने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा गलसुआ होने पर गर्म पानी का गरारा करने से भी दर्द में आराम मिलता है। इसमें रोगी को अम्लीय पदार्थों व फलो के रस का सेवन करने से बचना चाहिए। इसका कारण एक विषाणु है। यह रोग शहरों में तथा घनी बस्तियों में बसन्त और शरद ऋतु में होता है। ५-२५ उम्र के बालक और नौजवान इससे अधिक व शिशु और बूढ़े कम पीड़ित होते हैं। स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में अधिक होता है। इसका प्रारंभ अधिकतर पाठशाला, छात्रालय, जेल इत्यादि स्थानों में शुरू होता है और प्राय: वही मर्यादित रहता है। रोग का संक्रमण :✦ रोग प्रकट होने से पहले कुछ दिन रोग के कारणभूत विषाणु रोगी की लाला में उपस्थित रहते हैं जो खांसते छींकते समय हवा में लाला कणों के साथ उड़कर समीपस्थ मनुष्य पर आक्रमण करते हैं। गलसुआ (कनफेड) के लक्षण :१. जबड़े के कोण पर कान के नीचे सूजन उत्पन्न हो जाती है, जिनमें दर्द होने लगता है। इसके रोगाणु लार तथा मांस में विद्यमान रहते हैं। यह रोग निकट सम्पर्क तथा उसके थूक के द्वारा फैलता है। जब कोई स्वस्थ व्यक्ति इससे पीड़ित रोगी के पास ज्यादा रहता है, तो भी वह रोग होने की संभावना बनी रहती है। रोगी के थूकने से इसके जीवाणु वातावरण में चारों तरफ फैल जाते हैं। जब कोई स्वस्थ इसके सम्पर्क में आता है तो वह इससे पीड़ित हो जाता है। रोगी की देखभाल :रोगी को यथासंभव ठंड से बचाना चाहिये, आराम कराना चाहिये। रोग मुक्त होने तथा हल्का एवं सुपाच्य भोजन दें। गले तथा चेहरे के पास क्रमश: ठण्डी और गर्म पट्टियां बदलते रहना चाहिये। गले के पास जहां सूजन हो वहां पर प्लास्टर (बेलाडोना प्लास्टर) थोड़ा गर्म करके चिपका दें। दर्द हेतु दर्दशामक औषधियों की व्यवस्था करें। गलसुआ कितने दिन तक रहता है?गलसुआ लार ग्रंथियों की सूजन और दर्द का करण बनता है। इस बीमारी में बच्चे के चेहरे पर एक साइड से सूजन शुरू हो जाती है, जो उपचार नहीं कराने की स्थिति में दूसरे हिस्से तक पहुंच जाती है। इसका असर 6-7 दिन तक रहता है।
गलसुआ रोग क्यों होता है?गलगण्ड एक संक्रामक रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को एक विषाणु के कारण होता है जो संक्रमित लार से सम्पर्क के द्वारा फैलता है। 2 से 12 वर्ष के बीच के बच्चों में संक्रमण की सबसे अधिक सम्भावना होती है।
गलशोथ का अर्थ क्या है?यह स्थिति धमनी दीवारों के साथ फैटी सामग्री (fatty material) के निर्माण के कारण हुई है। यह धमनी कम लचीला और संकीर्ण बनाता है। बदले में संकुचन दिल में रक्त प्रवाह (blood flow) में बाधा डालता है और अत्यधिक छाती का दर्द होता है।
कान के पीछे सूजन किस रोग के लक्षण है तथा इस रोग के क्या लक्षण है?कानों में फंगल इन्फेक्शन को ऑटोमायकोसिस (Otomycosis) कहते हैं। कान में फंगल इंफेक्शन होने के बाद कान की परत में सूजन, कान की सूखी त्वचा एवं कान से बदबू की शिकायत होती है। बरसात में ऑटोमायकॉसिस होने का खतरा अधिक रहता है।
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