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The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of5 DAYSor aFULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city. ध्वनि संरचना, वर्णमाला, वर्तनी भाग-1 अब हम स्कूल में बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाने का (अक्सर असफल) प्रयास करते हैं तो अक्सर यह भूल जाते हैं कि हर बच्चे में भाषा सीखने की असीम क्षमता होती है और वह अपनी भाषा व उसका व्याकरण पूर्णतया आत्मसात करने के बाद ही स्कूल आता है। यानी चार वर्ष की आयु का बच्चा भाषागत दृष्टि से एक वयस्क ही होता है। ध्वनि-संरचना का जटिल संसार बच्चा स्वयं बिना किसी की मदद के सुलझा लेता है। यही नहीं कि हर बच्चा जानता है कि उसकी भाषा की ध्वनियां कैसे बोली जाएंगी अपितु यह भी कि ये ध्वनियां किस क्रम में आ सकती हैं और किस क्रम में नहीं। ये सब नियम बच्चे के दिमाग में सु व्यवस्थित ढंग से उपलब्ध रहते हैं। बच्चा सार्थक शब्द ही बोलता है, यदा कदा नए-नए शब्द बनाता भी है तो वे ध्वनि संरचना के नियमों का उल्लंघन नहीं करते। जरा सोचिए कि ‘प, फ, ब, भ और म' में क्या अंतर है। सब ओष्ठ्य ध्वनियां हैं। चलिए ओंठ तो दिखाई देते हैं। कुछ अनुकरण संभव है। ‘क, ख, ग, घ और ङ' के उच्चारण व अंतर को बच्चा कैसे पकड़ता है। और बच्चे को यह नियम कौन बताता है कि हिन्दी के अधिकतर शब्द ‘कल, नल, काला, बाल, कील, दरवाजा, किताब, पेड़, फूल' आदि जैसे होंगे यानी उनकी संरचना ‘व्यंजन-स्वर व्यंजन-स्वर' होगी। ‘परिणाम' शब्द की ध्वनि संरचना देखिए --प्+अ+र्+ई+ण्+आ+म बच्चा यह नियम कैसे पकड़ लेता है कि हिन्दी शब्दों के अंत में ‘अ’ (जो लिखित हिन्दी में सदैव दिखाई देता है) नहीं बोला जाएगा। ‘कल' को ‘क्+अ+ल' बोलते हैं न कि ‘क्+अ++अ' जैसा कि लिखा गया हैं। कुछ देर के लिए लिखने को भूलकर ध्वनि-संरचना के बारे में सोचिए। हिन्दी-भाषी चार वर्ष की आय के बच्चे के दिमाग में हिन्दी ध्वनि-संरचना का क्या चित्र होगा यह समझना तो असंभव है। लेकिन उसकी एक छोटी सी झलक देखने का प्रयास हम कर सकते हैं, बच्चे की भाषा के आधार पर। बच्चा ‘पापा, बाबा, मामा, चाचा, काका; काना, खाना; जाना, पाना; पानी, नानी; बाल, जाल; कील, नील' आदि शब्दों में स्पष्ट अंतर करता है। यह अंतर कर पाना तभी संभव है। जब बच्चे में ‘प्, ब्, म्, क्, च्, ख्, ज्, न्, लु,' आदि को एक-दूसरे से अलग करने की क्षमता हो। आखिर ‘कील' और 'नील' में क्या अंतर है। केवल 'कू' और 'न' का। 'क' कण्ठ से बोली जाने वाली ध्वनि है --अल्पप्राण है व अधोष है। ‘न्' दन्त्य है - नासिक व सघोष। यह सब ने तो मां-बाप जानते हैं, न रिश्तेदार। बच्चा नियम पकड़ता है। बच्चा यह कैसे समझ लेता है कि ‘ए’ अल्पप्राण, अघोष, ओष्ठ्य ध्वनि है और ‘घ्' महाप्राण, सघोष, कण्ठय ध्वनि है। जैसा विवरण ऊपर दिया गया है वैसा तो बच्ची नहीं दे सकता। परंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि यह अंतर उसके दिमाग में है। वह 'पर' और ‘घर' में अंतर करता है। दोनों में ‘अर' तो समान है। अंतर केवल 'प्' और ‘घ्' का ही है। अल्पप्राण/महाप्राण में यह समझना होता है कि ध्वनि के साथ अतिरिक्त वायु का उपयोग होगा या नहीं - 'ख' में है लेकिन 'क' में नहीं। सघोष/अघोष में यह समझना होता है कि गले के अंदर छुपी श्वास नली के ऊपर बैठी स्वर-तंत्री में कंपनी है या नहीं। 'क' और 'ख' में कंपन नहीं है, वे अघोष हैं, ‘ग' और 'घ' में कंपन है, वे सघोष हैं। स्वर-ध्वनियों को संसार देखिएः अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ('ऋ' के बारे में अलग से चर्चा करेंगे। लिखने में मात्राओं का प्रश्न भी सामने आएगा।) 'अ' और 'आ' में अंतर शायद बहुत सरल लगे पर जरा महसूस करके देखिए कि 'इ' और 'ए' में क्या अंतर है। सुनने में तो साफ है यथा 'कि' और 'के'। पर बोलने में यह अंतर कैसे लाया जाता है। बच्चा यह कैसे पकड़ लेता है कि ‘उ' में जीभ को पीछे खींचना है व ओठों को गोल करना है? यह भी समझता है कि व्यंजनों में तो वायु-प्रवाह को कहीं न-कहीं अवश्य रोकना है; परंतु स्वरों में वायु निरंतर बहती रहनी चाहिए। क्या यह सब अनुकरण से सीखना संभव है? ध्वनि संरचना के दो नियमों की, जो 3-4 साल का बच्चा निश्चित रूप से जानता है, हमने ऊपर चर्चा की। एक तो यह कि बच्ची पकड़ लेता है कि अधिकतर शब्दों की संरचना 'व्यंजन-स्वर-व्यंजन-स्वर' होगी। दूसरा यह कि ध्वन्यात्मक मूल्य स्थान के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। ‘लड़का' में ‘ल' पूरा है लेकिन 'कमल' व ‘कलकल' के तीनों ‘ल' आधे हैं। हिन्दी का नियम है कि 'व्यंजन-स्वर व्यंजन-स्वर' की कड़ी में अंतिम स्वर बोला नहीं जाएगा। कुछ और नियम देखिए। अनुस्वार अनुनासिक चंद्रबिन्दु) तथा नासिक्य व्यंजनों को कैसे लिपिबद्ध किया जाएगा तथा वर्णमाला व वर्तनी में उसका प्रयोग कैसे होगा; ये तो स्कूली बातें हैं, लिखाई-पढ़ाई से जुड़ी। परंतु इनके उपयोग के ध्वन्यात्मक नियम तो बच्चा सीखकर ही स्कूल आता है। स्वयं अपनी क्षमता से सीखकर। बच्चा जानता है - ‘जिस वर्ग की ध्वनि उससे पहले उसी वर्ग का समस्थानीय पंचम नासिक व्यंजन'। यथा ‘पंप' में 'म्' होगा; ‘आनंद' में ‘न्'; 'चंचल' में अ'; “पंडित' में 'ए'। देखिए 'संबंध' में पहला अनुस्वार 'म्' (प वर्ग के ‘ब्' से पहले) और दूसरा ‘न्’ (त वर्ग के ‘ध्' से पहले) - क्या कोई बच्चा कभी ‘सन्बम्ध' बोलता है? बच्चा नित ऊल-जलूल नए शब्द बनाया करे पर इस नियम का उल्लंघन न होगा। ‘इंक-विंक' में समस्थानीय नासिक व्यंजन 'ङ' ही आएगा। अनुनासिकता बिल्कुल अलग बात है और इसका संबंध स्वरों से है व्यंजनों से नहीं। कुछ विशेष शब्दों में बच्चे को यह सीखना है कि स्वर की ध्वनि मुख के साथ-साथ नाक से भी निकलेगी यथा आँख, आँधी, मैं, हूँ, ऊँट, फेंकना आदि। कुछ शब्दों में तो बच्चे को अनुनासिक स्वरों व नासिक्य व्यंजनों में सूक्ष्म ध्वनात्मक अंतर करना होता है जैसे - हँस (स्वर अनुनासिकता) व हंस (नासिक व्यंजन, पक्षी)। व्यंजन-स्वर-व्यंजन-स्वर
हिन्दी में भी 'स्त्री' में ‘स्’, ‘त्' व 'र्’ ही हैं। ‘प्रकार’, ‘न्यूनता', 'स्नान', ‘स्नेह', ‘क्रम', 'ट्रक', 'प्यास', 'व्याख्या आदि के आरंभ में केवल दो ही व्यंजन ध्वनियां हैं। क्या हिन्दी में ऐसा संभव है कि शब्द के आरंभ में तीन व्यंजन ध्वनियां आएं और उनका क्रम हो: सघोष महाप्राण + अघोष महाप्राण + अघोष अल्पप्राण आखिर बच्चे कैसे समझ लेते हैं। कि ‘हरकीच' जैसा शब्द हिन्दी में नहीं हो सकता। यही नहीं कि बच्चे हिन्दी के 41 व्यंजनों को अलग कर लेते हैं; वे इस नियम को भी सहज ही आत्मसात कर लेते हैं कि कौन-कौन सी व्यंजन ध्वनियां एक-दूसरे के साथ जुड़ सकती हैं। संभव है कि हिन्दी का यह नियम है कि ‘सघोष महाप्राण + अघोष महाप्राण + अघोष अल्पप्राण वाला क्रम हिन्दी में नहीं हो सकता। (जो अन्य किसी भाषा में हो सकता है)। यानि 'ध्ठे', 'थ्टा', 'ध्ख्ती', 'भ्फ्यू आदि हिन्दी में संभव नहीं। हिन्दी का शब्दकोष देखें - शब्दों के शुरू में अधिकांश ‘क’ के साथ 'र' मिलेगा या ‘श' यानी ‘क्रम', “क्षमा' आदि। वो ही व्यंजन; उसके बाद स्वर। ‘व्यंजन-स्वर', 'स्वर-व्यंजन' का क्रम बना रहे, यानी दो स्वर या दो व्यंजन साथ-साथ आएं इस व्यवस्था के लिए अलग-अलग भाषाएं अलग अलग प्रावधान करती हैं। बांग्ला में ‘सीता का' कहने के लिए केवल 'र्’ जोड़ते हैं, 'सीतार'। लेकिन ‘राम का कहने के लिए केवल ‘ए’ जोड़ने से काम नहीं चलेगा क्योंकि 'राम' में दो व्यंजन साथ-साथ आ जाएंगे। इसलिए ‘एर' का प्रयोग, ‘र' से पहले स्वर, ‘रामेर। अंग्रेजी में भी यही नियम भाषा की पूरी ध्वनि-संरचना पर फैला हुआ है। a boy कहते हैं लेकिन an egg; दो स्वरों के बीच ‘न्' आ गया। car-park में दोनों 'र' का उच्चारण नहीं होता, इंगलैंड की अंग्रेजी में। लेकिन car engine में 'र' का उच्चारण होगा। ‘स्टेशन' को पंजाब में ‘सटेशन', उत्तर प्रदेश में इसटेशन' में हरियाणा में 'टेशन'। दो व्यंजन साथ-साथ भाते नहीं हमें। बोलने को तो बोल ही सकते हैं। अंग्रेजी में तो दो स्वर साथ होने पर 'र' अक्सर आसमान से टपक पड़ता है जैसे India and Pakistan में India के बाद 'र' आएगा उच्चारण में; वैसे ही idea of में idea के बाद। बच्चा यह कैसे सीखता है? शुरुआत वर्णमाला से ही क्यों? रमाकांत अग्निहोत्रीः दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय में भाषा विज्ञान पढ़ाते हैं। एकलव्य के प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम से शुरुआत से जुड़ाव। चित्र: माधुरी पुरंदरे। माधुरी पूना में रहती हैं। बच्चे भाषा कैसे सीख रहे होते है?भाषा सीखना स्वाभाविक है और बच्चे इसे सीखने की क्षमता के साथ पैदा होते हैं। सभी बच्चे, चाहे उनके माता-पिता कोई भी भाषा बोलते हों, एक ही तरह से भाषा सीखते है! तीन बुनियादी चरण हैं जिनमें बच्चे अपनी भाषा कौशल विकसित करते हैं। जब बच्चे पैदा होते हैं, तो वे दुनिया की सभी भाषाओं में सभी ध्वनियों को बना और सुन सकते हैं।
स्किनर के अनुसार बच्चे भाषा कैसे सीखते हैं?स्किनर के अनुसार, बच्चा अपने माता-पिता या अपने आसपास के व्यक्तियों की नकल करके भाषा सीखता है। बच्चे अपनी प्रतिक्रियाओं को दोहराव, सुधार और वयस्कों द्वारा प्रदान की जाने वाली अन्य प्रतिक्रियाओं से मजबूत करते हैं, इस प्रकार भाषा अभ्यास-आधारित है।
बच्चे भाषा कैसे अर्जित करते हैं?भाषा अर्जन: इस प्रक्रिया में बालक सुनकर, बोलकर, भाषा ग्रहण करता है तथा निरंतर परिमार्जन करता रहता है। भाषा सीखने की प्रक्रिया में भाषा अर्जन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। सीखी हुई भाषा को समझने की क्षमता अर्पित करना तथा उसे दैनिक जीवन में प्रयोग में लाने को भाषा अर्जन कहते हैं।
भाषा सीखने में बच्चों को क्या क्या सीखना आवश्यक है?भाषा सीखने-सिखाने का उद्देश्य है. अपनी बात कहना सीखना भाषा सीखने-सिखाने का उद्देश्य है. दूसरों की बात समझना सीखना. अपनी बात की पुष्टि के लिए तर्क देना. विभिन्न स्थितियों में भाषा का प्रभावी प्रयोग करना. |