मेवाड़ का गुहिल वंश: राजस्थान के इतिहास की इस पोस्ट में मेवाड़ के गुहिल वंश एवं मेवाड़ के सीसोदया वंश से संबंधित नोट्स एवं महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई गई है जो सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बेहद ही उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है मेवाड़ वंश का इतिहास, guhil vansh ka itihas, gohil vansh ka itihas, गुहिल वंश का इतिहास, mewar ka itihas मेवाड़ का गुहिल वंश Show
Table of Contents
मेवाड़ का गुहिल वंश | मेवाड़ वंश का इतिहासगुहिल वंश की उत्पति👉🏻 अबुल फजल के अनुसार ईरान के बादशाह नौशेरवाँ आदिल के वंशज है बप्पा रावल (734-753 ई.)◆ बापा ने हरित ऋषि के आर्शीवाद से 734 ई. में मौर्य राजा मानमोरी से चितौड छीना। अल्लट◆ इसने हूण राजकुमारी हरिया देवी से विवाह किया। रावल सामंत सिंह (1172-1191 ई.)◆ 1174 ई. में गुजरात के अजयपाल सोलंकी को परास्त किया । जैत्रसिंह (1213—1253 ई.)◆ दिल्ली के 6 सुल्तानों का शासन देखने वाला गुहिल नरेश । ◆ भूताला का युद्ध – 1227 ई., स्थान – राजसमंद तेजसिंह (1252-1267)◆ उपाधि – परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वर यह भी पढ़ें>> चौहान वंश का इतिहास नोट्स पीडीएफ़ समरसिंह (1267-1302 ई.)◆ इसका संघर्ष 1299 ई. में अलाउद्दीन के सेनापति (भाई) उलूग खाँ से हुआ जब वह गुजरात विजय के लिए जा रहा था। जिनप्रभसूरि के तीर्थकल्प से पता चलता है कि समरसिंह ने उन्हें दण्ड़ लेकर ही आगे बढऩे दिया था। रतनसिंह (1302—1303 ई.)◆ 1302 ई. में समरसिंह का पुत्र रतनसिंह गद्दी पर बैठा इसका प्रमाण कुम्भलगढ़ प्रशस्ती तथा एकलिंग महात्मय से मिलता है। आक्रमण:— सुल्तान ने चित्तौड़ पर आक्रमण के लिए 28 जनवरी 1303 ई. को दिल्ली से प्रस्थान किया और चित्तौड़ के निकट पहुंचकर गंभीरी और बेड़च नदियों के मध्य स्थित टेकरी पर अपना शिविर स्थापित किया तथा दो ओर से किले का घेरा डाला। युद्ध में उपस्थित कवि तथा इतिहासकार अमीर खुसरो के अनुसार घेरा 8 माह चला, इस दौरान सुल्तान ने खाद्य सामग्री का मार्ग अवरुद्ध रखा। पद्मावत :- महाराणा हम्मीर (1326-1364 ई.)◆ सीसोदिया शाखा का संस्थापक महाराणा क्षेत्रसिंह (1364-1382 ई.)◆ हम्मीर की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र क्षेत्रसिंह मेवाड़ का महाराणा बना। इसने मालवा के दिलावर खाँ गोरी को परास्त कर भविष्य में होने वाले मालवा-मेवाड़ संघर्ष का सूत्रपात कर दिया। तथा हाड़ौती के हाड़ाओं को दबाने का श्रेय भी क्षेत्र सिंह को जाता है। यह भी पढ़ें>> आमेर का कछवाहा वंश का इतिहास नोट्स पीडीएफ़ महाराणा लक्षसिंह (लाखा) (1382-1421 ई.)◆ वास्तविक नाम – लक्ष सिंह महाराणा मोकल (1421-1433 ई.)◆ पिता – लाखा, माता – हंसाबाई, संरक्षक – चूँडा महाराणा कुम्भा (1433-1468 ई.)◆ कुम्भा का जन्म 1403 ई. में मोकल की परमार रानी सौभाग्य देवी के गर्भ से हुआ। 30 वर्ष की अवस्था में 1433 ई. में मेवाड़ का शासक बना। महाराणा कुम्भा की राजनैतिक उपलब्धियाँ:— कुम्भा की मृत्यु:— कुम्भा को अपने अंतिम दिनों में उन्माद का रोग हो गया। तथा इसी अवस्था में कुंभलगढ़ दुर्ग में जलाशय के किनारे महाराणा के बड़े पुत्र ऊदा ने महाराणा की हत्या कर दी। सांस्कृतिक उपलब्धियाँ:— महाराणा और स्थापत्य:— विजय स्तम्भ (कीर्ति स्तम्भ):— कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ती :— चित्तौडग़ढ़ दुर्ग में स्थित कीर्ति स्तम्भ की कई शिलाओं पर उत्कीर्ण श्लोकों को सामुहिक रूप से कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ती कहते है। इस समय इसकी केवल दो शिलायें बची है। इसकी रचना कवि अत्री ने की तथा उनकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र महेश ने इसे पूरा किया। प्रशस्ती में हम्मीर, खेता और मोकल की उपलब्धियों के बाद कुम्भा के द्वारा सपादलक्ष, नारायणा, वसन्तपुर और आबू को जीतने का वर्णन है। प्रशस्ती में चित्तौडग़ढ़ दुर्ग में निर्मित मंदिरों, मार्गों, जलाशयों, विभिन्न द्वारों का वर्णन है। प्रशस्ती से हमें कुम्भा का उपाधियों महाराजाधिराज, रायरायन, राणोरासो (साहित्यकारों का आश्रयदाता), राजगुरू, दानगुरू, हालगुरू (पहाड़ी दुर्गों का स्वामी), शैलगुरू, परमगुरू (सर्वोच्च शासक) आदि उल्लिखित है। इसमें कुम्भा द्वारा ग्रन्थों चण्डीशतक, गीत-गोविन्द की टीका-रसिक प्रिया, संगीतराज आदि का उल्लेख है। (मेवाड़ का गुहिल वंश) मंदिर:— कुंभा द्वारा रचित ग्रंथ:— कुम्भा द्वारा राज्याश्रित कलाकार:— ◆ 1468 ई. में राणा कुम्भा की हत्या कर ऊदा गद्दी पर बैठा लेकिन महाराणा के छोटे पुत्र राणा रायमल ने उसे मेवाड़ से भगा दिया तथा 1473 ई. तक सम्पूर्ण मेवाड़ पर अधिकार कर गद्दी पर बैठा। यह भी पढ़ें>> बीकानेर का राठौड़ वंश का इतिहास रायमल (1473—1509 ई.)◆ इसमें पिता की भांति शूरवीरता तथा कूटनीज्ञता का अभाव था। आबू, तारागढ़ और सांभर ऊदा के समय ही मेवाड़ से पृथक हो गये और उन्हें इसने पुन: अधिकृत करने का प्रयास नहीं किया। (मेवाड़ का गुहिल वंश) महाराणा संग्राम सिंह (1509—1528 ई.)◆ सांगा की उपाधि – हिन्दूपत, सैनिकों का भग्नावशेष (80 घाव) ◆ खातौली का युद्ध:— 1517 ई. में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी ने मेवाड़ पर चढ़ाई की तथा खातोली (बूंदी जिला) के युद्ध में इब्राहिम की निर्णायक पराजय हुई। इस युद्ध में राणा साँगा घायल हुए उनका एक हाथ कट गया तथा टाँग में तीर लगने से वे लगड़े हो गये। ◆ धौलपुर/बाडी का युद्ध (1518 ई.):— खातौली के युद्ध में पराजय के पश्चात् इब्राहिम लोदी ने मियाँ हुसैन तथा मियाँ माखन के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी लेकिन धौलपुर के निकट बाडी में हुए युद्ध में राणा साँगा की विजय हुई। बाबरनामा से साँगा की विजय की पुष्टि होती है। ◆ गागरौन का युद्ध:— 1519 ई. में राणा साँगा ने गागरौन के युद्ध में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय को पराजित कर कैद कर लिया तथा 6 महीने चित्तौडग़ढ़ दुर्ग में बंदी रखकर उसे छोड़ दिया। ◆ खानवा का युद्ध (17 मार्च, 1527 ई.) :— बावर तथा राणा साँगा के मध्य लड़ा गया जिसमें राणा की हार हुई। ◆ राणा सांगा ने अपनी चहेती रानी कर्मवती (करमेती) तथा उसके दो पुत्रों उदयसिंह तथा विक्रमादित्य को रणथम्भोर का दुर्ग तथा 60 लाख रु . की जागीर प्रदान की। राणा रतन द्वितीय (1528 —30 ई.)◆ महाराणा साँगा की मृत्यु के बाद रतनसिंह द्वितीय (जोधपुर की राजकुमारी धनबाई का पुत्र) गद्दी पर बैठा। बूंदी के शासक सूरजमल हाड़ा ने इसे अहेरिया उत्सव के दौरान बूंदी आमंत्रित किया जहाँ आखेट के दौरान विवाद में दोनों के लडऩे से दोनों की मृत्यु हो गई। यह भी पढ़ें>> जोधपुर के राठौड़ वंश का इतिहास राणा विक्रमादित्य (1531—36 ई.)◆ पिता – सांगा, माता – कर्मावती महाराणा प्रताप (1572-97 ई.)◆ उदयसिंह के कुल 20 रानियाँ थी जिनसे 17 पुत्र पैदा हुए, प्रताप उनमें बड़े थे। मुहणोत नैणसी के अनुसार 9 मई, 1540 ई. को जैवन्ताबाई के गर्भ से प्रताप (बचपन का नाम कीका) का जन्म का हुआ। ◆ 1572 ई. तक लगभग सभी राजपूत शासकों ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली तथा उसने प्रताप को अधीन करने पहले चार शिष्टमण्डल भेजे। हल्दीघाटी का युद्घ (21 जून, 1576 ई.):— ◆ इसके बाद 1576 ई. से 1585 ई. तक अकबर निरंतर सैन्य अभियान भेजता रहा लेकिन महाराणा को झुकाने में असफल रहा। दिवेर का युद्ध (अक्टूबर 1582 ई.):— यह भी पढ़ें>> मुगल राजपूत संबंध नोट्स महाराणा अमरसिंह प्रथम (1597-1620 ई.)◆ इनका जन्म 16 मार्च, 1559 ई. को हुआ तथा 19 जनवरी, 1597 ई. को चावण्ड में राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ। ◆ मुगल-मेवाड़ संधि (5 फरवरी, 1615 ई.):— राणा अमरसिंह ने शुभकरण व हरिदास को खुर्रम के पास संधि वार्ता के लिए भेजा तथा खुर्रम ने मुल्ला शक्रुल्लाह शीराजी तथा सुन्दरदास को इस संधि प्रस्ताव को लेकर अजमेर बादशाह के पास अनुमोदन के लिए भेज दिया तथा शर्तों के अनुमोदन के पश्चात इन दोनों को फरमान देकर राणा के पास सूचनार्थ भेजा। संधि की शर्तें इस प्रकार थी:— ◆ 26 जनवरी, 1620 ई. को महाराणा अमरसिंह का निधन उदयपुर में हुआ। तथा आहड़ में अंत्योष्टि हुई। आहड़ में स्थित महासतियों (मेवाड़ के महाराणाओं की छतरियाँ) में प्रथम महासती अमरसिंह की ही है। महाराणा कर्णसिंह (1620-1628 ई.)◆ महाराजा कर्णसिंह का जन्म 1584 ई. में हुआ तथा राज्यभिषेक 26 जनवरी, 1620 को हुआ। महाराणा जगतसिंह (1628-1652 ई.)◆ इनका राज्यभिषेक 28 अप्रैल 1628 ई. को हुआ। यह भी पढ़ें>> गुर्जर प्रतिहार वंश का इतिहास नोट्स पीडीएफ़ महाराणा राजसिंह (1652-1680 ई.)◆ महाराणा जगतसिंह के बाद उनका पुत्र राजसिंह 10 अक्टूबर, 1652 ई. को महाराणा बना। इन्होंने अपने पिता के काल से जारी चित्तौड़ दुर्ग की मरम्मत के कार्य को जारी रखा लेकिन शाहजहाँ ने सादुल्ला खाँ को भेजकर उसे तुड़वा दिया। महाराणा जयसिंह (1680-1698 ई.)◆ महाराणा राजसिंह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र जयसिंह महाराणा बना। इनका राज्यभिषेक कुरजाँ गाँव (राजसन्द) में सम्पन्न हुआ। इन्होंने 1687 ई. में गोमती, झामरी, रूपारेल एवं बगार नामक नदियों के पानी को रोककर ढ़ेवर नाके पर जयसमन्द झील का निर्माण प्रारम्भ करवाया। जो 1691 ई. में जाकर पूर्ण हुई। इस झील को ढ़ेबर झील भी कहते है। इस झील के सबसे बड़े टापू को ‘बाबा का भाखड़ा’ तथा सबसे छोटे को ‘प्यारी’ कहते है। महाराणा अमरसिंह द्वितीय (1698-1710 ई.)◆ इनके समय में मेवाड़-मारवाड़ तथा आमेर तीनों रियासतों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर एकता स्थापित हुई। मेवाड़ के अंतिम शासक कौन थे?रतन सिंह मेवाड़ के राजा थे जो गुहिल वंश की रावल शाखा से ताल्लुक रखते हैं. अपनी शाखा के अंतिम शासक रहे रतन सिंह को दिल्ली सल्तनत के शासक अलाउद्दीन ख़िलजी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.
मेवाड़ का सर्वप्रथम राजा कौन था?मेवाड़ के प्राचीन नाम शिवि, प्राग्वाट व मेदपाट रहे हैं। गुहिल राजवंश की स्थापना गुहिल राजा गुहादित्य ने 566 ई० में की। "रावल राजवंश का संस्थापक।" नागादित्य के पुत्र कालभोज ने 727 ई० में गुहिल राजवंश की कमान संभाली। बप्पा रावल उसकी उपाधि थी ।
मेवाड़ का प्राचीन नाम क्या है?मेवाड़ का इतिहास बेहद ही गौरवशाली रहा है , मेवाड़ का प्राचीन नाम शिवी जनपद था । चित्तौड़ उस समय मेवाड़ का प्रमुख नगर था ।
वर्तमान में मेवाड़ के राजा कौन है?अरविन्द सिंह मेवाड़ (जन्म १३ दिसम्बर १९४४) मेवाड़ राजवंश के ७६वें संरक्षक है जिनका जन्म उदयपुर के सिटी पैलेस में हुआ था ,ये महाराणा शासक तो नहीं है पर संरक्षक है। ये भगवत सिंह के दूसरे पुत्र तथा महेंद्र सिंह मेवाड़ के भाई है।
...
अरविन्द सिंह मेवाड़. |