पितृ पक्ष में महिलाओं को क्या करना चाहिए? - pitr paksh mein mahilaon ko kya karana chaahie?

Pitru Paksha Rules: पितृपक्ष में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान करने का विशेष महत्व बताया गया है। पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कई उपाय किए जाते हैं। पूर्णिमा तिथि के दिन पितृलोक से पितृगण धरती पर आते हैं। प्रतिपदा तिथि से जल अन्न ग्रहण करने लगते हैं जो उनके परिवार के लोग उन्हें अर्पित करते हैं। इस साल पितृपक्ष का आरंभ 11 सितंबर रविवार से होने जा रहा है। हिंदू धर्म में पितरों को देवताओं के सामान ही माना जाता है। उनके आशीर्वाद से घर में सुख समृद्धि और धन धान्य बना रहता है। पितृ पक्ष में आपको बहुत सी बातों का ख्याल रखना चाहिए वरना आपके पितृ आपसे नाराज हो जाते हैं जिससे लाइफ में कई तरह की परेशानियां आने लगती हैं। इसी के साथ आइए जानते हैं पितृपक्ष के दौरान किन कामों को नहीं करना चाहिए।

पितृपक्ष में न करें ये 8 काम
- पितृ पक्ष में तामसिक भोजन से परहेज करें। इस दौरान सात्विवक भोजन करें। मूंग की दाल का सेवन करें, क्योंकि यह शुद्ध माना जाता है। मसूर दाल इस दौरान नहीं खाना चाहिए। लहसुन प्याज और मांस, मछली, मदिरा से पूरी तरह परहेज रखें।
पितृ पक्ष में कभी भी द्वार पर कोई पशु या मांगने वाला आए तो उसे अन्न जल जरूर देना चाहिए। कहते हैं पितृपक्ष में पितर किसी रूप में भी आकर अन्न जल की इच्छा करते हैं। जो व्यक्ति इस समय द्वार पर आए जीवों को संतुष्ट करके विदा करते हैं उनके जीवन पितरों की कृपा से आनंद और सुख की बहार आ जाती है।

- पितृ पक्ष में माता पिता में से कोई एक अगर जीवित हों तो उन्हें जितना अधिक हो सके आदर और सम्मान दें। इनकी हर खुशी का ध्यान रखें। क्योंकि इस समय माता पिता में से जो परलोक गए हैं वह धरती पर आकर देखते हैं कि आप माता अथवा पिता जो जीवित हैं उनका कितना ख्याल रखते हैं। अगर उनके साथी को कष्ट होता है तो उनके मन को कष्ट पहुंचता है और वह शाप देकर, बिना अन्न जल प्राप्त किए लौट जाते हैं जिससे जीवन में एक के बाद एक कष्ट आने लगते हैं। तरक्की रुक जाती है।

- नियमित घर में जलाएं घूप दीप और सभी लोग प्यार से रहें। घर में कलह और अशांति का माहौल पितृपक्ष में बिल्कुल न बनने दें। ऐसे करने से पितृगण खुश होते हैं। जो लोग पितृपक्ष में पितरों को याद नहीं करते हैं और घर में अशांति बनाए रखते है उनके घर से लक्ष्मी चली जाती हैं। क्योंकि पितरों का शाप उनकी खुशियों को छीन लेता है।

- पितृ पक्ष के दौरान यह याद जरूर रखें कि आपके परिवार में जो लोग परलोक गए हैं वह वापस आकर 15 दिनों के लिए आपके बीच में हैं। इसलिए इस दौरान जो भी भोजन करें उनमें थोड़ा सा हिस्सा निकालकर पितरों का ध्यान करें। जो ग्रास या भोजन अपने पितरों को याद करके निकाला है वह गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौआ को खिला दें। पितरों का ध्यान किए बिना और पितरों के निमित्त अन्न निकाले बिना अन्न खाने वाला रोगी होता है और आर्थिक परेशानियों का सामना करता है।

- पितृ पक्ष में जो लोग पितरों को जल देते हैं उन्हें लंबी दूरी की यात्रा इस समय नहीं करनी चाहिए। जिस स्थान पर पितरों का तर्पण आरंभ किया है उसी स्थान पर पूरे पितृ पक्ष में रहकर पितरों को जल अन्न देना चाहिए। अगर आप यात्रा करते हैं तो पितरों को भी भटकना पड़ता है और उन्हें इससे कष्ट होता है। अगर आप किसी तीर्थस्थल में पितरों को जल अन्न दान करना चाहते हैं इसलिए यात्रा करना चाह रहे हैं तो पितरों से प्रार्थना करें कि और कहें कि हे पितरों मैं आपकी तृप्ति के लिए (आप जिस भी तीर्थ में जा रहे हो उसका नाम लें। जल और अन्न का दान करने जा रहा हूं इसलिए आप भी कृपा करके मेरे साथ चलें। इससे पितृ प्रसन्न होंगे और अन्न जल प्राप्त करके आशीर्वाद देंगे।

- पितरों की पूजा करते समय जब जल हथेली से जमीन पर गिराएं तो इसे अंगूठे की और तर्जनी के बीच से गिराएं। इसे हथेली में पितृ तीर्थ कहते हैं। इससे जल पितरों को प्राप्त होता है। सामने से अंजुली से जल गिराने पर जल देवताओं को प्राप्त होता है पितरों को नहीं। इसलिए देव और पितरों की पूजा में जल देने का अलग नियम है।

- पितरों को जल देते समय हथेली में दो चीजों का होना बहुत ही जरूरी है। एक कुश और दूसरा तिल। बिना तिल और कुश से जल देने से पितरों को संतुष्टि नहीं होती है। और वह अतृप्त होकर नाराज होते हैं। पितरों के नाराज होने पर जीवन में अशांति और कई तरह की परेशानियां आने लगती हैं।

- सबसे जरूरी बात यह है कि पितृपक्ष में जिस दिन आपके पितरों की मृत्यु तिथि हो उस दिन अपनी क्षमता और व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मण को भोजन कराएं। ब्राह्मणों की संख्या विषम रखें। 1, 3, 5, 7,11, 21 इस तरह। पितरों की मृत्यु तिथि पर जो लोग पितरों के नाम से ब्राह्मण भोजन नहीं करवाते या अन्न जल का दान नहीं करते हैं उन्हें अगले जन्म तक इसका दंड भोगना पड़ता है। ऐसे लोगों की कुंडली में अगले जन्म में पितृ दोष बनता है और असफलता इनका पीछा नहीं छोड़ता है।

इस साल पितृपक्ष का प्रारंभ आज 10 सितंबर से हो रहा है, जो 25 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या तक रहेगा. इस समय में अपने पितरों को याद करके उनका पूजन करते हैं. उनके लिए श्राद्ध कर्म करते हैं. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट के अनुसार, पितृपक्ष के समय में सभी पितर पृथ्वी लोक में वास करते हैं और वे उम्मीद करते हैं कि उनकी संतानें उनके लिए श्राद्ध, तर्पण या पिंडदान आदि करेंगे. इन कार्यों से वे तृप्त होते हैं और फिर आशीर्वाद देकर अपने लोक वापस चले जाते हैं. जो लोग अपने पितरों को तृप्त नहीं करते हैं, वे उनके श्राप के भागी बनते हैं, जिसकी वजह से उनके जीवन में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं.

पितरों के श्राप के कारण संतान सुख में भी बाधा आती है. पितृपक्ष में कई ऐसे नियम (Pitru Paksha Niyam) हैं, जिनका पालन करना जरूरी है. आइए जानते हैं कि पितृपक्ष में क्या करें और क्या न करें.

पितृपक्ष में क्या करें?
1. पितृपक्ष में सबसे पहला काम है अपने पितरों को स्मरण करना.

2. पितृपक्ष में आप अपने पितरों को तर्पण करते हैं तो इसे पूरे पक्ष में आपको ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना है.

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3. जब भी आप पितरों को तर्पण करें तो पानी में काला तिल, फूल, दूध, कुश मिलाकर उससे उनका तर्पण करें. कुश का उपयोग करने से पितर जल्द ही तृप्त हो जाते हैं.

4. पितृपक्ष में आप प्रत्येक दिन स्नान के समय जल से ही पितरों को तर्पण करें. इससे उनकी आत्माएं तृप्त होती हैं और आशीर्वाद देती हैं.

5. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष के सभी दिन पितरों के लिए भोजन रखें. वह भोजन गाय, कौआ, कुत्ता आदि को खिला दें. ऐसी मान्यता है कि उनके माध्यम से यह भोजन पितरों तक पहुंचता है.

6. पितरों के लिए श्राद्ध कर्म संबह 11:30 बजे से लेकर दोपहर 02:30 बजे के मध्य तक संपन्न कर लेना चाहिए. श्राद्ध के लिए दोपहर में रोहिणी और कुतुप मुहूर्त को श्रेष्ठ माना जाता है.

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7. पितृपक्ष में पितरों के देव अर्यमा को अवश्य ही जल अर्पित करना चाहिए. जब ये प्रसन्न होते हैं तो सभी पितर भी प्रसन्न और तृप्त हो जाते हैं.

पितृपक्ष में क्या न करें?
1. पितृपक्ष के समय में लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. यह वर्जित है.

2. इस समय में अपने घर के बुजुर्गों और पितरों का अपमान न करें. यह पितृ दोष का कारण बन सकता है.

3. पितृपक्ष में स्नान के समय तेल, उबटन आदि का प्रयोग करना वर्जित है.

4. इस समय में आप कोई भी धार्मिक या मांगलिक कार्य जैसे मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश, नामकरण आदि न करें. पितृपक्ष में ऐसे कार्य करने अशुभ होते हैं.

क्या स्त्री तर्पण कर सकती है?

परिवार में पुरुषों के ना होने पर महिलाएं भी श्राद्ध कर्म करने की अधिकारी होती हैं। धर्मसिंधु ग्रंथ, मनुस्मृति, वायु पुराण, मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण में महिलाओं को तर्पण और पिंडदान करने का अधिकार बताया गया है। इसके अलावा बाल्मीकि रामायण में भी सीता जी ने राजा दशरथ के लिए पिंड दान किया था।

पितृपक्ष में औरतों को क्या करना चाहिए?

हथेली में जल लेकर अंगूठे की ओर से पितरों को जल अर्पित करें। हाथ में जल के साथ ही जौ, काले तिल, चावल, दूध, सफेद फूल भी रख लेंगे तो बेहतर रहेगा। धूप-ध्यान के लिए पीतल या तांबे के बर्तनों का उपयोग करेंगे तो अच्छा रहेगा। इस तरह धूप-ध्यान पूरा हो जाता है।

पितृ को खुश करने के लिए क्या करना चाहिए?

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सुबह स्नान-पूजन के बाद पितरों को तर्पण के साथ पिंडदान करना चाहिए। हथेली भर अनाज का पिंड (जौ के आटे, खीर या गाय का दूध के खोआ) बनाकर उसे पितरों को अर्पण करना चाहिए। इसके अलावा गंगाजल, कुश, काले तिल, फूल-फल और दूध व उनसे बने पकवान अर्पण करना चाहिए

पितृ पक्ष में क्या परहेज करना चाहिए?

नॉनवेज - पितृ पक्ष के दौरान नॉनवेज खाने से भी परहेज करने की सलाह दी जाती है. इसके साथ ही इन दिनों में शराब या अन्य किसी भी तरह के नशे का सेवन भी पूरी तरह से वर्जित माना जाता है. चना - पितृ पक्ष के विशेष समय में चना, चना दाल या चना से बनने वाले उत्पादों से भी दूरी बनाकर रखना चाहिए.