क्या कश्मीर से धारा 370 हट गई है? - kya kashmeer se dhaara 370 hat gaee hai?

आर्टिकल 370 हटने के दो साल पूरे, कश्मीर में हुए हैं अब तक ये सात बड़े बदलाव, समझें फैसले के बाद के हालात

Show
आर्टिकल 370 हटने के दो साल पूरे, कश्मीर में हुए हैं अब तक ये सात बड़े बदलाव, समझें फैसले के बाद के हालात

आज जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को खत्म करने की दूसरी सालगिरह है। आज ही के दिन यानी पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी कर दिया गया था। केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र-शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में बांटने का ऐलान भी किया था। आज यानी गुरुवार को इस ऐतिहासिक कदम के दो साल पूरे हो रहे हैं। इस अवधि में जम्मू-कश्मीर से जुड़े कई प्रावधानों में भी बदलाव किया गया है। इतना ही नहीं, केंद्र शासित राज्य के हालात भी काफी कुछ बदल गए हैं। आइए इनमें से कुछ पर नजर डालते हैं और समझते हैं। जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए तीन साल हो गए हैं. 370 हटाने के बाद कई दावे किए जा रहे हैं कि अब कश्मीर के हालात सुधर गए हैं, जबकि विपक्ष इसके विपरीत बातें कर रहा है. तो जानते हैं कि 370 के बाद कितने बदल गया है कश्मीर.

5 अगस्त 2019 यानी आज से 3 साल पहले केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटा दिया था, जिसका लंबे समय से विवाद चल रहा था. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. आर्टिकल 370 से जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष अधिकार मिल रखे थे, जैसे वहां कोई जमीन खरीद सकता था. हालांकि, अब 370 हटाने के बाद कश्मीर में काफी बदलाव हुआ है, लेकिन आतंकी हमलों में अभी भी कमी नहीं आई है.

ऐसे में जानते हैं कि धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर बदल गया है और कश्मीर में क्या नया हो रहा है. नीचे दिए गए डेटा के आधार पर आप समझ सकते हैं कि कश्मीर किस दिशा की ओर बढ़ रहा है.

कितने लोगों ने जमीन खरीदी?

हाल ही में सरकार की ओर से लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, अभी तक जम्मू और कश्मीर के बाहर के 34 लोगों ने केंद्र शासित प्रदेश में संपत्ति खरीदी है. वहीं, जम्मू-कश्मीर में सऊदी अरब की तीन कंपनियां यहां भारी निवेश कर रही हैं.

आंतकी हमलों की क्या है स्थिति?

अगर आतंकी हमलों की बात करें तो हाल ही में 5 अगस्त 2019 से 26 जनवरी 2022 तक का आंकड़ा संसद में पेश किया था. इस डेटा के अनुसार, इस वक्त 541 आतंकवादी घटनाएं दर्ज की गई हैं. इन आतंकी घटनाओं में 98 आम नागरिक, सेना के ऑपरेशन में 439 आतंकवादी मारे गए. वहीं, सुरक्षा बल के 109 जवान शहीद हुए हैं.

कितने कानून लागू किए गए?

बता दें कि जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद वहां अब तक 890 केंद्रीय कानूनों को लागू किया गया है. इससे वहां की कानून व्यवस्था और कई नियम देश के अन्य राज्यों की तरह हो गए हैं.

पत्थरबाजी का क्या है हाल?

रिपोर्ट्स के अनुसार, साल 2016 में 2653 पत्थरबाजी की घटनाएं हुई थीं और 2017 में करीब 1400 घटनाएं हुई. वहीं 370 हटाने से पहले तक 2018 में 1500 और 2019 में करीब 2000 घटनाएं हुईं. लेकिन इसके बाद ये 255 रह गईं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 90 फीसदी घटनाएं कम हो गई हैं. यानी अब कश्मीर शांति की ओर बढ़ रहा है.

विकास का हुआ काम

एक तो केंद्र सरकार की ओर से बजट आवंटन में कश्मीर का खास ध्यान रखा गया है. जैसे 28400 करोड़ रुपये औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए बजट बनाया गया है. इसके साथ ही 2020-21 में उद्योगों के लिए 29030 हजार कैनाल लैंड बैंक बनाए गए हैं. इसके अलावा करीब 500 एमओयू निवेश को लेकर साइन हो चुके हैं और कई अटके प्रोजेक्ट पूरे किए जा रहे हैं और नए प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है.

कश्मीर प्रवासी भी कश्मीर लौटे

आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद प्रधानमंत्री विकास पैकेज के तहत करीब 2105 प्रवासी कश्मीर घाटी वापस लौट आए हैं. अभ विकास पैकेज के जरिए लोगों को नौकरियां और रहने जैसी कई सुविधाएं दी जा रही है. 2020-21 में नियुक्तियों की संख्या 841 थी और 2021-22 में नियुक्तियों की संख्या 1264 थी.

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक ऐसा अनुच्छेद था जो जम्मू और कश्मीर को स्वायत्तता प्रदान करता था।[1][2] संविधान के 21वें भाग में अनुच्छेद के बारे में परिचयात्मक बात कही गयी थी- अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान।[3] जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा को, इसकी स्थापना के बाद, भारतीय संविधान के उन लेखों की सिफारिश करने का अधिकार दिया गया था जिन्हें राज्य में लागू किया जाना चाहिए या अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से निरस्त करना चाहिए। बाद में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने राज्य के संविधान का निर्माण किया और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सिफारिश किए बिना खुद को भंग कर दिया, इस लेख को भारतीय संविधान की एक स्थायी विशेषता माना गया।

भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में एक ऐतिहासिक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पेश किया जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केन्द्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया। जम्मू कश्मीर केन्द्र शासित क्षेत्र में अपनी विधायिका होगी जबकि लद्दाख बिना विधायिका वाला केन्द्र-शासित क्षेत्र होगा।

विशेष अधिकार

  • धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिये केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिये।
  • इसी विशेष दर्ज़े के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती।
  • इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं है।
  • 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता।
  • इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि ख़रीदने का अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते।
  • भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती।
  • जम्मू और कश्मीर का भारत में विलय करना ज़्यादा बड़ी ज़रूरत थी और इस काम को अंजाम देने के लिये धारा 370 के तहत कुछ विशेष अधिकार कश्मीर की जनता को उस समय दिये गये थे। ये विशेष अधिकार निचले अनुभाग में दिये जा रहे हैं।

धारा ३७० के सम्बन्ध में कुछ विशेष बातें

१) धारा ३७० अपने भारत के संविधान का अंग है।

२) यह धारा संविधान के २१वें भाग में समाविष्ट है जिसका शीर्षक है- ‘अस्थायी, परिवर्तनीय और विशेष प्रावधान’ (Temporary, Transitional and Special Provisions)।

३) धारा ३७० के शीर्षक के शब्द हैं - जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में अस्थायी प्रावधान (“Temporary provisions with respect to the State of Jammu and Kashmir”)।

४) धारा ३७० के तहत जो प्रावधान है उनमें समय समय पर परिवर्तन किया गया है जिनका आरम्भ १९५४ से हुआ। १९५४ का महत्त्व इस लिये है कि १९५३ में उस समय के कश्मीर के वजीर-ए-आजम शेख़ अब्दुल्ला, जो जवाहरलाल नेहरू के अंतरंग मित्र थे, को गिरफ्तार कर बंदी बनाया था। ये सारे संशोधन जम्मू-कश्मीर के विधानसभा द्वारा पारित किये गये हैं।

संशोधित किये हुये प्रावधान इस प्रकार के हैं-

  • (अ) १९५४ में चुंगी, केंद्रीय अबकारी, नागरी उड्डयन और डाकतार विभागों के कानून और नियम जम्मू-कश्मीर को लागू किये गये।
  • (आ) १९५८ से केन्द्रीय सेवा के आई ए एस तथा आय पी एस अधिकारियों की नियुक्तियाँ इस राज्य में होने लगीं। इसी के साथ सी ए जी (CAG) के अधिकार भी इस राज्य पर लागू हुए।
  • (र्ई) १९६० में सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपीलों को स्वीकार करना शुरू किया, उसे अधिकृत किया गया।
  • (उ) १९६४ में संविधान के अनुच्छेद ३५६ तथा ३५७ इस राज्य पर लागू किये गये। इस अनुच्छेदों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक व्यवस्था के गड़बड़ा जाने पर राष्ट्रपति का शासन लागू करने के अधिकार प्राप्त हुए।
  • (ऊ) १९६५ से श्रमिक कल्याण, श्रमिक संगठन, सामाजिक सुरक्षा तथा सामाजिक बीमा सम्बन्धी केन्द्रीय कानून राज्य पर लागू हुए।
  • (ए) १९६६ में लोकसभा में प्रत्यक्ष मतदान द्वारा निर्वाचित अपना प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया गया।
  • (ऐ) १९६६ में ही जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने अपने संविधान में आवश्यक सुधार करते हुए- ‘प्रधानमन्त्री’ के स्थान पर ‘मुख्यमन्त्री’ तथा ‘सदर-ए-रियासत’ के स्थान पर ‘राज्यपाल’ इन पदनामों को स्वीकृत कर उन नामों का प्रयोग करने की स्वीकृति दी। ‘सदर-ए-रियासत’ का चुनाव विधानसभा द्वारा हुआ करता था, अब राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होने लगी।
  • (ओ) १९६८ में जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय ने चुनाव सम्बन्धी मामलों पर अपील सुनने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को दिया।
  • (औ) १९७१ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद २२६ के तहत विशिष्ट प्रकार के मामलों की सुनवाई करने का अधिकार उच्च न्यायालय को दिया गया।
  • (अं) १९८६ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद २४९ के प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू हुए।
  • (अः) इस धारा में ही उसके सम्पूर्ण समाप्ति की व्यवस्था बताई गयी है। धारा ३७० का उप अनुच्छेद ३ बताता है कि ‘‘पूर्ववर्ती प्रावधानों में कुछ भी लिखा हो, राष्ट्रपति प्रकट सूचना द्वारा यह घोषित कर सकते है कि यह धारा कुछ अपवादों या संशोधनों को छोड दिया जाये तो समाप्त की जा सकती है।

इस धारा का एक परन्तुक (Proviso) भी है। वह कहता है कि इसके लिये राज्य की संविधान सभा की मान्यता चाहिये। किन्तु अब राज्य की संविधान सभा ही अस्तित्व में नहीं है। जो व्यवस्था अस्तित्व में नहीं है वह कारगर कैसे हो सकती है?

जवाहरलाल नेहरू द्वारा जम्मू-कश्मीर के एक नेता पं॰ प्रेमनाथ बजाज को २१ अगस्त १९६२ में लिखे हुये पत्र से यह स्पष्ट होता है कि उनकी कल्पना में भी यही था कि कभी न कभी धारा ३७० समाप्त होगी। पं॰ नेहरू ने अपने पत्र में लिखा है-

‘‘वास्तविकता तो यह है कि संविधान का यह अनुच्छेद, जो जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिलाने के लिये कारणीभूत बताया जाता है, उसके होते हुये भी कई अन्य बातें की गयी हैं और जो कुछ और किया जाना है, वह भी किया जायेगा। मुख्य सवाल तो भावना का है, उसमें दूसरी और कोई बात नहीं है। कभी-कभी भावना ही बडी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है।’’०५/०८/२०१९ को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद ३७० को हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव रखा | जो निम्नानुसार है:-

संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए , राष्ट्रपति, जम्मू और कश्मीर राज्य सरकार की सहमति से, निम्नलिखित आदेश करते हैं: -

    1. इस आदेश का नाम संविधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू ) आदेश, २०१९ है।
    2. यह तुरंत प्रवृत्त होगा और इसके बाद यह समय-समय पर यथा संसोधित संविधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू ) आदेश, १९५४ का अधिक्रमण करेगा।
  1. समय-समय पर यथा संसोधित संविधान के सभी उपबंध जम्मू और कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में लागू होंगे और जिन अपवादों और अशोधानो के अधीन ये लागू होंगे ये निम्न प्रकार होंगे:-

अनुच्छेद ३६७ में निम्नलिखित खंड जोड़ा जायेगा, अर्थात :-

" (4) संविधान, जहाँ तक यह जम्मू और कश्मीर के सम्बन्ध में लागू है, के प्रयोजन के लिए  -

(क) इस संविधान या इसके उपबंधों के निर्देशों को, उक्त राज्य के सम्बन्ध में यथा लागू संविधान और उसके उपबंधों का निर्देश मन जायेगा;

(ख) जिस व्यक्ति को राज्य की विधान सभा की शिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा जम्मू एवं कश्मीर के सदर-ए-रियासत, जो ततस्थानिक रूप से पदासीन राज्य की मंत्री परिषद् की सलाह पर कार्य कर रहे है, के रूप में ततस्थानिक रूप से  मान्यता दी गयी है, उनके लिए निर्देशों को जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल के लिए निर्देश माना जायेगा ।

(ग ) उक्त राज्य की सरकार के निर्देशों को, उनकी मंत्री परिषद् की सलाह पर कार्य कर रहे जम्मू एवं कश्मीर की राज्यपाल के लिए निर्देशों को शामिल करता हुआ माना जायेगा; तथा

(घ) इस संविधान की अन्नुछेद ३७० के परन्तुक में "खंड (२) में उल्लिखित राज्य की संविधान सभा" अभिव्यक्ति को  "राज्य की विधान सभा"  पढ़ा जायेगा।

धारा ३७० का विरोध

इस धारा का विरोध नेहरू के दौर में ही कांग्रेस पार्टी में होने लगा था।

संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री भीमराव आम्बेडकर अनुच्‍छेद 370 के धुर विरोधी थे। उन्‍होंने इसका मसौदा (ड्राफ्ट) तैयार करने से मना कर दिया था। आंबेडकर के मना करने के बाद शेख अब्‍दुल्‍ला नेहरू के पास पहुंचे और नेहरू के निर्देश पर एन. गोपालस्‍वामी अयंगर ने मसौदा तैयार किया था।[4]

भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने शुरू से ही अनुच्छेद 370 का विरोध किया। उन्होने इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने का बीड़ा उठाया था। उन्होंने कहा था कि इससे भारत छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट रहा है। मुखर्जी ने इस कानून के खिलाफ भूख हड़ताल की थी। वो जब इसके खिलाफ आन्दोलन करने के लिए जम्मू-कश्मीर गए तो उन्हें वहां घुसने नहीं दिया गया। वह गिरफ्तार कर लिए गए थे। 23 जून 1953 को हिरासत के दौरान ही उनकी रहस्यमत ढंग से मृत्यु हो गई।

प्रकाशवीर शास्त्री ने अनुच्छेद 370 को हटाने का एक प्रस्ताव 11 सितम्बर, 1964 को संसद में पेश किया था। इस विधेयक पर भारत के गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने 4 दिसम्बर, 1964 को जवाब दिया। सरकार की तरफ से आधिकारिक बयान में उन्होंने एकतरफा रुख अपनाया। जब अन्य सदस्यों ने इसका विरोध किया तो नन्दा ने कहा, “यह मेरा सोचना है, अन्यों को इस पर वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।” इस तरह का एक अलोकतांत्रिक तरीका अपनाया गया। नंदा पूरी चर्चा में अनुच्छेद 370 के विषय को टालते रहे। वे बस इतना ही कह पाए कि विधेयक में कुछ क़ानूनी कमियां हैं। जबकि इसमें सरकार की कमजोरी साफ़ दिखाई देती हैं। [5][6][7]

हिन्दू महासभा, भारतीय जनसंघ, भारतीय जनता पार्टी और शिव सेना शुरू से ही इसे हटाने की मांग करते आये हैं। अन्ततः यह धारा अगस्त २०१९ में समाप्त कर दी गयी।

जम्मू कश्मीर में धारा 370 कब समाप्त हुई?

केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म कर दिया था.

धारा 370 हटाने के बाद क्या हुआ?

बता दें कि जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद वहां अब तक 890 केंद्रीय कानूनों को लागू किया गया है. इससे वहां की कानून व्यवस्था और कई नियम देश के अन्य राज्यों की तरह हो गए हैं.

क्या धारा 370 खत्म हो गई है?

दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे। भारतीय संविधान की धारा 360 के तहत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है। यह जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था। जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 और 35ए द्वारा दिए गए विशेष दर्जे को हटाने के लिए संसद ने 5 अगस्त, 2019 को मंजूरी दी।

धारा 370 समाप्त करने का कानून कब पास हुआ?

भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में एक ऐतिहासिक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 पेश किया जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केन्द्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया।