विकलांग बच्चों का इलाज कहां होता है - vikalaang bachchon ka ilaaj kahaan hota hai

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सिमलॉस सर्जरी से जन्मजात विकलांग बच्चों के इलाज में मिली सफलता

अलवर। सेरेब्रल पालसी के इलाज में जापान की सिमलॉस सर्जरी तकनीक से सफलता मिली है। जन्मजात विकलांग बच्चों को शत-प्रतिशत तो ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन उन्हें 80 फीसदी तक सामान्य कर मानसिक रूप से सोच विकसित की जाती है।

इसका मुख्य उद्देश्य उन्हें शिक्षा से जोड़ना है। यह कहना है संवेदना ट्रस्ट इलाहाबाद के सचिव एवं बाल अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. जेके जैन का। श्री चन्द्रप्रभु विकलांग कल्याण समिति की ओर से रविवार को संबल भवन में आयोजित शिविर में आए डॉ. जैन ने बताया कि विकसित मेडिकल तकनीक ने रोग और नौ महीने से पहले जन्म लेने वाले बच्चों को तो बचा लिया, लेकिन उनका मानसिक विकास नहीं हो सका।

नौ महीने से कम समय में बच्चों के पैदा होने, कम वजन, पीलिया, वंशानुगत, गर्भ में इंफेक्शन, झटके आने, चोट लगने आदि मानसिक विकलांगता के कारण हैं, जो कई अंगों को प्रभावित करते हैं। यह विकलांगता जन्म के तीन साल तक भी हो सकती है। इलाज के लिए परिजनों को जागरूक होना आवश्यक है।

बाल अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. जैन बताते हैं कि जापान की सिमलॉस सर्जरी दो जोड़ों को क्रास करने वाली मांसपेशियों के सख्तपन की अवधारणा पर आधारित है। इसमें सभी सख्त लंबी मांसपेशियों को ऑपरेशन से संतुलित किया जाता है और छोटी मांसपेशियों में सर्जरी से बचा जाता है। क्योंकि छोटी मांसपेशी शरीर का संतुलन बनाने का कार्य करती हैं। इस तकनीक से शरीर की विकृति को एक बार के ऑपरेशन से ही ठीक कर दिया जाता है।

रुक नहीं सकती सेरेब्रल पालसी

डॉ.जैन का कहना है कि बच्चों में सेरेब्रल पालसी को रोक पाना संभव नहीं है। क्योंकि इसका जन्म से पहले पता लग पाना संभव नहीं है। अमेरिका जैसे विकसित देश में 7.50 लाख बच्चे सेरेब्रल पालसी से ग्रसित हैं, जबकि इनकी संख्या भारत में 40 लाख है। यह रोग प्राचीन काल से चला रहा है। लेकिन मानसिक विकलांगता अभिशाप नहीं है। जिन्हें हम मंदबुद्धि समझते हैं उनकी संख्या मात्र तीस फीसदी होती है, जबकि 70 फीसदी मानसिक रूप से सही होते हैं।

अलवर | श्रीचन्द्रप्रभु विकलांग कल्याण समिति अलवर के तत्वावधान में रविवार को अंबेडकर नगर स्थित जिला निशक्तजन पुनर्वास केंद्र पर आयोजित सेरेब्रल पाल्सी शिविर का 55 मरीजों ने लाभ लिया। समिति के कार्यकारी अध्यक्ष हरीश कालरा समन्वयक सीताराम ने बताया कि इस शिविर में संवेदना संस्थान इलाहबाद से डॉ. जेके जैन अपनी टीम के साथ पहुंचे और जन्मजात मानसिक विकलांग बच्चों को निशुल्क परामर्श दिया।

उन्होंने निरामाया कार्ड के बारे में भी जानकारी दी। कार्ड से जरूरतमंद बच्चों के इलाज के लिए सरकार की ओर से एक लाख रुपए की सहायता राशि दी जाती है। शिविर में आने वाले बच्चों को फिजियोथैरेपी की निशुल्क सुविधा दी गई। इस बार खास बात ये रही कि शिविर में अलवर जिले के अलावा जयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर आदि लोग बच्चों को लेकर आए।

हिंदी न्यूज़बिना सर्जरी ठीक हो सकते हैं बच्चों के टेढ़े मेढ़े पैर

बिना सर्जरी ठीक हो सकते हैं बच्चों के टेढ़े मेढ़े पैर

गर्भ के समय या पूर्व में मां ने स्टेरॉयड दवाओं का इस्तेमाल अधिक किया है तो इससे नवजात के पैर जन्म से टेढ़े हो सकते हैं। जिसे क्लब फुट बीमारी कहा जाता है। जिसका बिना सर्जरी इलाज किया जा सकता है। बच्चे...

विकलांग बच्चों का इलाज कहां होता है - vikalaang bachchon ka ilaaj kahaan hota hai

लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 13 Jul 2014 10:18 PM

गर्भ के समय या पूर्व में मां ने स्टेरॉयड दवाओं का इस्तेमाल अधिक किया है तो इससे नवजात के पैर जन्म से टेढ़े हो सकते हैं। जिसे क्लब फुट बीमारी कहा जाता है। जिसका बिना सर्जरी इलाज किया जा सकता है। बच्चे के पैरों का सामान्य विकास होने के इंतजार करने में अधिकतर माता पिता दो से तीन साल की उम्र में ही ऐसे बच्चों के इलाज के लिए डॉक्टर के पास पहुंचते हैं। जबकि जल्दी इलाज शुरू कर विकलांगता सही होने की संभावना अधिक रहती है। दिल्ली के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में इसका निशुल्क इलाज किया जाता है, जहां अब तक 2100 बच्चों को ठीक किया जा चुका है।

एम्स के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. शाह आलम खान ने बताया जेनेटिक कारणों के अलावा अधिक स्टेरॉयड दवाओं का इस्तेमाल, खून की कमी या जुड़वा बच्चे होने की सूरत में गर्भ में नवजात के पैरों का सामान्य विकास नहीं हो पाता, जिसकी वजह से पैर विकृत या विकलांग हो जाते हैं। ऐसे बच्चों को जन्म के तुरंत बाद पहचाना जा सकता है, जिन अस्पतालों में क्लबफुट का इलाज उपलब्ध वह इसे जन्म के बाद ही शुरू कर देते हैं। जबकि विशेषज्ञों की सलाह पर क्लब फुट सोसाइटी से भी संपर्क कर इलाज कराया जा सकता है।

चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. अनिल अग्रवाल ने बताया कि इलाज के लिए टीनोटॉमी विधि से बच्चों को विशेष तरह का प्लास्टर चढ़ाया जाता है, इसके बाद विशेष जूतों की सहायता से पैरों को सही एंगल (40 डिग्री) दिया जाता है। पूरी तरह ठीक होने पर 10 से 12 साल का समय लगता है। एम्स सहित दिल्ली के सात सरकारी अस्पतालों में क्लब फुट का इलाज किया जाता है। क्योर इंटरनेशनल के डॉ. संतोष जार्ज ने बताया क्लबफुट के दिल्ली में बीते तीन साल में 2100 बच्चों का इलाज किया जा चुका है, जबकि अब तक देश भर में 4000 बच्चें सही हो चुके हैं। जबकि वर्ष 2008 से पहले ऐसे बच्चों को विकलांगों की श्रेणी में रखा जाता था।

क्या है टीनोटॉमी
बच्चों की एड़ी को सही एंगल देने के लिए टीनाटॉमी के बाद प्लास्टर चढ़ाया जाता है, इसके लिए डॉक्टर एड़ी में हल्का कट लगाते हैं, विकृत 90 डिग्री के एंगल के पैरों में टीनाटॉमी की जरूरत अधिक होती है। कई बार बच्चों को एक पैर में विकलांगता की शिकायत होती है, जबकि कभी दोनों पैरों में विकलांगता होती है। टीनोटॉमी के बाद विशेष तरह के जूतों (स्पीन्ट) से विकृति को दूर करते हैं। प्रक्रिया में बच्चों की बोन ग्राफ्टिंग नहीं होती है।

कब कहां इलाज
चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय - बुधवार
दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल- सोमवार
महर्षि वाल्मिकी अस्पताल बावाना- गुरुवार
लेडी हार्डिग मेडिकल कॉलेज और कलावती सरन बाल चिकित्सालय- बुध व शुक्र
सेंट स्टीफेंस अस्पताल- शनिवार
सफदरजंग अस्पताल - सोमवार
नोट- लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में भी क्लबफुट क्योर शुरू किया जा चुका है, सभी केन्द्रों पर बच्चों का निशुल्क इलाज किया जाता है।

सात महीने की उम्र में 11 प्लास्टर
बिहार के भागलपुर जिले से क्लबफुट बच्चे का इलाज कराने आए बिरजू यादव ने बताया कि सात महीने के उनके बेटे जय सच्चिदानंद के पैर जन्म से सामान्य नहीं थे, बच्चे के इलाज के लिए अस्थाई रूप से सोनीपत में रह रहे हैं। अब तक 11 बार प्लास्टर चढ़ चुका है। धीरे-धीरे विकृति दूर होगी, प्लास्टर के बाद विशेष जूतों से बच्चे का इलाज किया जाएगा। जिसे बच्चों को सोते हुए भी पहनना पड़ता है।

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