सूरदास जीवन परिचय हिंदी में Class 11 - sooradaas jeevan parichay hindee mein chlass 11

सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka Jivan Parichay | सूरदास का जीवन परिचय एवं रचनाएं | Surdas Jivan Parichay class 10th | सूरदास जीवन परिचय हिंदी में | Class 10th Hindi Surdas Jivan Parichay |

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सूरदास जीवन परिचय

पूरा नामसूरदास जीजन्म1478 ईस्वी मेंजन्म स्थानसीही/रुणकता ग्रामपिता का नामरामदास जीमाता का नामजमुनादासगुरु का नाममहाप्रभु वल्लभाचार्य जीरचनाएंसाहित्य लहरी

सुर सारावली

सूरसागर

मृत्यु1583  ईस्वी मेंमृत्यु स्थानमथुरा के समीप परसोली नामक ग्राम में

सूरदास का जीवन परिचय class 9th, 10th, 11th, 12th

जीवन परिचय :-

सूरदास जी का जन्म आगरा के समीप सीही/रुणकता नामक ग्राम में 1478 ईस्वी में हुआ था लेकिन इनके जन्म स्थान से सभी विद्वान संतुष्ट नहीं है सूरदास जी के पिता रामदास जी गायक थे बचपन से ही सूरदास जी को कृष्ण भक्ति में आनंद आता था तथा उन्होंने बचपन से ही कृष्ण भक्ति तथा उनकी भक्ति में लीन हो गए थे तथा इसी कारण उन्होंने अपने कई दोहे में अपने आप को मदन मोहन के नाम से भी जाना जाता है। सूरदास जी बचपन से ही अंधे थे लेकिन कुछ विद्वान का मानना है कि वह बचपन से अंधे नहीं थे क्योंकि उन्होंने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का जिस प्रकार से गुणगान किया है उन्हें बिना देखे नहीं किया जा सकता।

सूरदास जी की कृष्ण भक्ति से प्रभावित होकर आचार्य महाप्रभु वल्लभाचार्य ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया तथा वल्लभाचार्य के पुत्र विठला नाथ ने एक संगठन तैयार किया जो कृष्ण भक्त कवियों से संबंधित था इस संगठन में कृष्ण भक्ति के सर्वश्रेष्ठ कवियों को शामिल किया गया था। सूरदास जी ने अपने जीवन काल में सुर सारावली साहित्य लहरी जैसे प्रमुख ग्रंथों एवं साहित्य की रचना की इसके कुछ समय बाद 1583 ईस्वी में मथुरा के निकट परसोली नामक ग्राम में इनकी मृत्यु हो गई।

Class 10th Hindi Surdas Jivan Parichay in hindi

रचनाएं :-

साहित्य लहरी 

सुर सारावली

सूरसागर

भाव पक्ष :- 

सूरदास जी कृष्ण भक्ति शाखा के कवि थे उन्होंने अपने रचनाओं में कृष्ण भक्ति के सौंदर्य भक्ति एवं बाल लीलाओं का बहुत ही अद्भुत तरीके से वर्णन किया है सूरदास जी कृष्ण को अपना शाखा मानते थे और उन्हीं को आराध्य मानकर उन्होंने कृष्ण की बाल लीला ओ तथा प्रेम लीलाओं का वर्णन किया है सूरदास जी ने अपने हृदय के भाव का वर्णन जैसे गोपाल बालक माता यशोदा पिता नंद के विभिन्न भागों का भी वर्णन किया है तथा इन्हें सबसे अच्छे रस का संयोजन करने की वजह से इन्हें  रस सिद्ध कवि के नाम से जाना जाता है इनके काव्य में श्रंगार रस वात्सल्य रस एवं शांत रस का वर्णन स्पष्ट दिखाई देता है।

कला पक्ष :- 

सूरदास जी सूरदास जी की भाषा सरल एवं आसान थी उन्होंने अपनी रचनाओं में ब्रजभाषा का तथा ब्रजभाषा को ललित प्रधान ब्रजभाषा बनाकर उपयोग किया सूरदास जी ने अपने चुनाव में फारसी और उर्दू शब्द का प्रयोग तथा लोकोक्तियों का प्रयोग इस तरीके से किया कि उन्होंने अपनी भाषा  चमत्कारिक हो गई तथा इनकी भाषा में माधुर्य गुण दिखाई देता है।

इन्होंने अपनी रचनाओं में मुक्तक काव्य शैली का तथा वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है तथा इनकी शैली सरल एवं प्रभावशाली थी। तथा इन्होंने अलंकारों का भी स्वाभाविक रूप से तथा बड़े सौंदर्य के साथ वर्णन किया है इसके अलावा उन्होंने विभिन्न छंदों का प्रयोग किया और मुक्तक के पदों की रचना  का वर्णन मिलता है।

सूरदास का जीवन परिचय एवं रचनाएं

साहित्य में स्थान :- 

सूरदास जी का हिंदी साहित्य में ब्रजभाषा कवियों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है इन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं वात्सल्य एवं श्रंगार का वर्णन अद्वितीय तरीके से किया है इन्हें ब्रजभाषा को साहित्यिक दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ बनाने का श्रेय दिया जाता है तथा इन्हें ब्रजभाषा तथा कृष्ण की बाल लीला सौंदर्य आदि का वर्णन के लिए इन्हें साहित्य में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है।

इस आर्टिकल में हम 16वीं शताब्दी के एक अंधे हिंदू भक्ति कवि और गायक, सूरदास जी के जीवन परिचय को बिल्कुल विस्तार से समझने वाले है। यहा पर हम इनके जीवन से जुड़े लगभग सभी महत्वपुर्ण प्रश्नों को समझेंगे, जिससे की आपको सूरदास के बारे में पूरी जानकारी हो जाये। अगर आप उन छात्रों में से है जो इस समय कक्षा 10 या 12 में पढ़ रहा है। तो, आपके लिये यह जीवनी काफी महत्वपुर्ण है क्योकी सूरदास का जीवन परिचय कक्षा 10 के बोर्ड परीक्षा में हिन्दी के विषय में सबसे ज्यादा पुछा जाता है। इसके अलावा सूरदास का जीवन परिचय Class 12 के परिक्षा में भी आने की सबसे ज्यादा संभावना होती है। 


ऐसे में यदि आप सूरदास का जीवन परिचय अच्छे से पढ़ कर समझे रहेंगे तो, आपको इससे परिक्षा में काफी मदद मिलेगी। और इस लेख में सूरदास के जीवन से सम्बंधित उन सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों को सामिल किया गया है जो, बोर्ड की परीक्षा में पुछे जाते है इसलिए आप इस लेख को पुरा ध्यानपूर्वक से जरुर पढ़े। जिन महत्त्वपूर्ण प्रश्नों की हम बात कर रहे है वो कुछ इस प्रकार है - सूरदास का जन्म कब और कहाँ हुआ था, सूरदास के माता का नाम क्या था, सूरदास के गुरु जी का नाम क्या था, सूरदास की मृत्यु कब और कहाँ हुई थी, सूरदास का साहित्यिक परिचय और सूरदास की प्रमुख रचनाएँ आदि। इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको इस लेख में बिल्कुल विस्तार से देखने को मिल जायेंगे। तो, अगर आप Surdas Ka Jeevan Parichay एकदम अच्छे से समझना चाहते है तो इस लेख को पुरा अन्त तक जरुर पढ़े। चलिये अब हम सूरदास की सम्पुर्ण जीवनी को विस्तारपूर्वक से समझे।


सूरदास की जीवनी (Surdas Biography In Hindi)

नामसूरदासजन्म तिथिसन् 1478 ई. (सम्वत 1535 वि.)जन्म स्थानरुनकता (आगरा)मृत्यु तिथिसन् 1583 ई. (सम्वत् 1640 वि .)मृत्यु स्थानब्रज, उत्तर प्रदेश (भारत)आयु (मृत्यु के समय)अनुमानित 101 वर्षधर्महिन्दूराष्ट्रीयताभारतीयपेशाकवि और गायकगुरुस्वामी बल्लभाचार्यभाषाब्रजभाषाशैलीगीति काव्य की भावपूर्ण और संगीतमयीरसवात्सल्य, शृंगारअलंकारउपमा रूपक उत्पेक्षारचनाएँसाहित्यलहरी सूरसारावली सूरसागरपत्नी का नामअविवाहितपिता का नामरामदास सारस्वतमाता का नामजमुनादास


सूरदास का जीवन परिचय (Surdas Ka Jivan Parichay)

सूरदास भक्ति-काव्य की सगुण धारा की कृष्ण भक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। कहा जाता है कि इनका जन्म सन् 1478 ई. (सम्वत् 1535 वि.) में आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क पर स्थित रुनकता में हुआ था। कुछ विद्वान् इनका जन्म दिल्ली के निकट सीही नामक ग्राम में मानते हैं। इनके पिता का नाम पं. रामदास सारस्वत था। जनश्रुति है कि सूरदास जन्म से ही अन्धे थे। परन्तु कुछ विद्वान् इसमें सन्देह करते हैं क्योंकि सूरदास ने वात्सल्य और श्रृंगार का जैसा अनुपम वर्णन किया है, वैसा जन्मान्ध कवि नहीं कर सकता। 


अत: उनका बाद में अन्धा होना ही अधिक उचित समीचीन जान पड़ता है। सूरदास बचपन से ही विरक्त हो गये थे और गऊघाट में रहकर विनय के पद गाया करते थे। यहाँ पर बल्लाभाचार्य से इनकी भेंट हो गयी। भेंट के समय सूरदास ने उन्हें स्वरचित एक पद गाकर सुनाया। बल्लभाचार्य उसे सुनकर गद्गद् हो गये। सूर बल्लभाचार्य के शिष्य बन गये। बल्लभाचार्य से गुरु दीक्षा लेकर उनके आदेशानुसार सूरदास कृष्ण लीला का गान करने लगे। 


बाद में गुरु जी ने इनको गोवर्धन के श्रीनाथ जी के मन्दिर में कीर्तन का भार सौंप दिया। बल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने आठ कृष्ण भक्त कवियों का एक मण्डल बनाया जिसे 'अष्टछाप' कहा जाता है। सूरदास अष्टछाप के प्रमुख और सर्वश्रेष्ठ कवि थे। अपने जीवन के अन्तिम दिनों में सूरदास गोवर्धन के पारसौली नामक स्थान पर चले गये। यहीं पर सन् 1583 ई. (सम्वत् 1640 वि.) के लगभग इनका देहावसान हो गया। प्राणान्त होने से पूर्व बिट्ठलनाथ के पूछने पर उन्होंने अग्र पद बनाकर सुनाया


'खंजन जैन रूप रस माते।

अति सै चारु चपल अनियारे पल पीजरा न समाते।'


सूरदास का साहित्यिक परिचय

सूरदास हिन्दी साहित्य के अनुपम कवि हैं। इनका काव्य भाव और कला दोनों ही पक्षों की दृष्टि से उच्चकोटि का काव्य है। सूरदास जी कवि सम्राट हैं और शृंगार रस के श्रेष्ठतम कवि हैं। सूरदास भक्ति काल की कृष्णाश्रयी शाखा के प्रमुख एवं प्रतिनिधि कवि हैं। निश्चय ही सूरदास हिन्दी साहित्याकाश के सूर्य हैं, जैसा कि निम्न दोहे से स्पष्ट है।


सूर-सूर तलसी ससी, उडगन केशवदास।

अब के कवि खद्योत सम, जह-तह करत प्रकास।।


'अस्तु, हिन्दी साहित्य में सूर का स्थान सर्वोच्च है।' 


सूरदास की रचनाएँ

सूरदास की प्रमुख रचना 'सूरसागर' है। सूरसागर में उन्होंने सवा लाख पदों का संकलन किया। किन्तु अभी तक केवल साढ़े पाँच हजार पद ही प्राप्त हुए हैं। 'सूर सारावली' और 'साहित्य लहरी' भी सूरदास द्वारा रचित अन्य रचनाएँ हैं।


सूरदास का जीवन परिचय PDF

छात्रों की सुविधा के लिए, सूरदास के इस जीवन परिचय को हमने पीडीएफ के रुप में यहा पर दिया है जिसे आप बहुत ही असानी से डाउनलोड कर सकते है। सूरदास जीवन परिचय PDF में डाउनलोड करने के लिए आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करे और पीडीएफ को असानी से डाउनलोड करे।


सूरदास के जीवन परिचय को वीडियो के माध्यम से समझे



FAQ: सूरदास के बारे में पुछे जाने वाले प्रश्न और उनके उत्तर

प्रश्न -- सूरदास जी का जन्म कब हुआ था?

उत्तर -- सूरदास का जन्म 1478 और 1483 के बीच में हुआ था।


प्रश्न -- सूरदास के गुरु का नाम?

उत्तर -- सूरदास जी के गुरु का नाम गुरुस्वामी बल्लभाचार्य था।


प्रश्न -- सूरदास के माता का नाम?

उत्तर -- सूरदास के माता जी का नाम जमुनादास था।


प्रश्न -- सूरदास के पिता का नाम?

उत्तर -- सूरदास के पिता जी का नाम रामदास सारस्वत था।


प्रश्न -- सूरदास की मृत्यु कब और कहाँ हुई?

उत्तर -- सूरदास जी की मृत्यु 1579 और 1584 के बीच, ब्रज उत्तर प्रदेश में हुई थी।


प्रश्न -- क्या सूरदास ने विवाह किया था?

उत्तर -- सूरदास जी अविवाहित थे, लेकिन ऐसा माना जाता है कि सूरदास ने विवाह किया था। और उनकी पत्नी का नाम रत्नावली बताया जाता है।


प्रश्न -- सूरदास का प्रिय अलंकार कौन सा है?

उत्तर -- सूरदास जी का प्रिय अलंकार अनुप्रास, रूपक आदि हैं।


निष्कर्ष

यहा पर इस लेख में हमने सूरदास जी का जीवन परिचय बिल्कुल ही सहज भाषा में समझा, जिसे आप अपने बोर्ड के परिक्षा में लिख सकते है। यह जीवनी जो हमने यहा पर शेयर किया है वो कक्षा 10 और 12 में पढ़ रहे छात्रों के लिये काफी महत्वपुर्ण है इसके बारे में अभी हमने ऊपर बात किया। तो अगर आप इन दोनो कक्षाओं में से किसी भी कक्षा के छात्र है तो, इस जीवनी को अच्छे से ध्यानपूर्वक जरुर पढ़े, ताकी आपको इससे परिक्षा में मदद मिले। इसी के साथ हम आशा करते है की आपको यह जीवनी जरुर पसंद आया होगा और हमे उमीद है की, इस लेख की सहायता से आपको surdas ka jivan parichay बिल्कुल अच्छे से समझ में आ गया होगा। अगर आपके मन में इस लेख को लेकर कोई प्रश्न है तो, आप हमसे नीचे कमेंट के माध्यम से पुछ सकते है। और साथ ही इस surdas ki jeevani को आप अपने सहपाठी एवं मित्रों के साथ शेयर भी जरुर से करे।

सूरदास का जीवन परिचय कैसे लिखते हैं?

सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka Jivan Parichayजीवन परिचय-सूरदास का जन्म 1478 ई. में सीही नामक ग्राम में हुआ था, लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि सूरदास का जन्म मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक ग्राम में हुआ था, सूरदास का जन्म निर्धन सारस्वत ब्राह्मण पं0 रामदास के यहाँ हुआ था। सूरदास के पिता गायक थे।

सूरदास जी का जन्म कब हुआ था जीवन परिचय?

इसलिए सूरदास की जन्म-तिथि वैशाख शुक्ला पंचमी, संवत् 1535 वि० समीचीन जान पड़ती है। अनेक प्रमाणों के आधार पर उनका मृत्यु संवत् 1620 से 1648 ईस्वी के मध्य स्वीकार किया जाता है। रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् 1540 वि० के सन्निकट और मृत्यु संवत् 1620 ईस्वी के आसपास माना जाता है।

सूरदास ने कितनी रचनाएं लिखी?

वहीं नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से प्रकाशित हस्तलिखित किताबों की विवरण सूची में महान कवि सूरदास जी के करीब 16 ग्रन्थों का ही वर्णन किया गया है। सूरदास जी की मशहूर कृति सूरसागर में लगभग एक लाख पद होने का दावा किया जाता है।

सूरदास जी ने क्या लिखा था?

सूरदास की मुख्य कृति सूर सागर है, यही वह रचना है जिसके लिए उन्हें सबसे ज्यादा जाना जाता है। सूरदास ने सूर सारावली और साहित्य लहरी की भी रचना कीये थे। कहा जाता है कि इसमें एक लाख श्लोक हैं, जिनमें से कई खो गए थे।