मृग मरीचिका किस कारण दिखाई देती है in english - mrg mareechika kis kaaran dikhaee detee hai in ainglish

जमशेदपुर. 38 डिग्री के पास पारा पहुंचते ही सड़काें पर मृगमरीचिका बनने लगी है। मृगमरीचिका सड़कों पर तब बनती है, जब तापमान बढ़ने पर गरम हवा की लेयर बनने लगती है। इससे सूर्य का प्रकाश विभिन्न कोणों पर सघन माध्यम से विरल की ओर जाता है। यह अविलंब से हटता है।

इससे विरल माध्यम में अपवर्तन कोण 90 डिग्री के बराबर हो जाता है। इससे आपतन कोण की ओर बढ़ने पर अपवर्तित किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश नहीं करती बल्कि लौट जाती है। इस क्रिया को प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते हैं।

इस परावर्तन में प्रकाश का सम्पूर्ण भाग परावर्तित होता है। इससे प्रकाश की तीव्रता अत्यधिक होती है। इसी कारण सड़क व रेत पर पानी की चमक का आभास होता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे सड़क पर पानी की लहर आ रही है। इसी को मृगमरीचिका कहते हैं।

मृग-मरीचिका MEANING - NEAR BY WORDS

मृगमरीचिका = MIRAGE(Noun) उदाहरण : रेगिस्तान में दूर से पानी का दिखना, पास जाने पर केवल रेत| इसे ही मृगमरीचिका कहते हैं|
Usage : The oasis was nothing but a mirage.

मृगमरीचिका = MIRAGE, DEILLUSION(Article) उदाहरण : रेगिस्तान में दूर से पानी का दिखना, पास जाने पर केवल रेत| इसे ही मृगमरीचिका कहते हैं| रामचंद्रजी जब स्वर्ण मृग के पीछे गये थे, तदोपरांत इस शब्द का प्रयोग होता है|

मरीचिका एक प्रकार का वायुमंडलीय दृष्टिभ्रम है, जिसमें प्रेक्षक अस्तित्वहीन जलाश्य एवं दूरस्थ वस्तु के उल्टे या बड़े आकार के प्रतिबिंब तथा अन्य अनेक प्रकार के विरूपण देखता है। वस्तु और प्रेक्षक के बीच की दूरी कम होने पर प्रेक्षक का भ्रम दूर होता है, वह विरुपित प्रतिबिम्ब नहीं देख पाता। गरम दोपहरी में सड़क पर मोटर चलाते समय किसी सपाट ढालवीं भूमि की चोटी पर पहुँचने पर, दूर आगे सड़क पर, पानी का भ्रम होता है। यह मरीचिका का दूसरा सुपरिचित स्वरूप है।

इस घटना की व्याख्या प्रकाश के अपवर्तन के सिद्धांत के आधार पर की जाती है। जब पृथ्वी की सतह से सटी हुई हवा की परत गरम हो जाती है, तब वह विरल हो जाती है और ऊपर की ठंढी परतों की अपेक्षा कम अपवर्तक (refracting) होती है। अत: किसी सुदूर वस्तु से आनेवाला प्रकाश (जैसे पेड़ की चोटी से आता हुआ) ज्यों-ज्यों हवा की परतों से अपवर्तित होता आता है, त्यों त्यों वह अभिलंब (normal) से अधिकाधिक विचलित (deviate) होता जाता है और अंत में पूर्णत: परावर्तित हो जाता है। फलत: प्रेक्षक वस्तु का काल्पनिक उल्टा प्रतिबिंब देखता है।

mirage desert in hindi , मृग मरीचिका किसे कहते हैं , मृग मरीचिका किसका उदाहरण है क्या है ? अर्थ हिंदी में :-

प्रकाश का पूर्ण आन्तरिक परावर्तन : जब कोई प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम की ओर प्रवेश करती हुई अपवर्तक पृष्ठ पर क्रांतिक कोण से अधिक कोण पर आपतित होती है तो प्रकाश किरण का अपवर्तन के स्थान पर परावर्तन हो जाता है तो प्रकाश किरण की इस घटना को ही पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहते है।

 क्रांतिक कोण (ic)

सघन माध्यम से विरल माध्यम की ओर गति करती हुई प्रकाश किरण का अपवर्तनांक पृष्ठ पर वह आपतन कोण जिस पर अपवर्तित किरण , अपवर्तक पृष्ठ के समान्तर हो जाती है अर्थात अपवर्तक कोण का मान 90 डिग्री हो जाता है तो उस आपतन कोण को ही क्रान्तिक कोण कहते है।

पूर्ण आन्तरिक परावर्तन की शर्ते

  1. प्रकाश किरण सदैव सघन माध्यम से विरल माध्यम की ओर प्रवेश करनी चाहिए।
  2. आपतन कोण का मान सदेव क्रांतिक कोण से अधिक होना चाहिए।

पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से सम्बंधित कुछ प्राकृतिक घटनाएँ

(i) हीरे का चमकना : प्रकाश किरणों के पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कारण हीरा चमकता हुआ दिखाई देता है , हीरे का अपवर्तनांक 2.42 तथा क्रांतिक कोण 24.41 डिग्री होता है। हीरे को बनाने वाला कारीगर इसके फलको को इस प्रकार से घिसता है कि जब प्रकाश किरण इसके अन्दर फलक पर आपतित हो तो उसका आपतन कोण क्रांतिक कोण से अधिक होता है। जिसके कारण इस प्रकाश किरण का हीरे के अन्दर बार बार पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है जिसके कारण हिरा चमकता हुआ दिखाई देता है।

(ii) मृग मरीचिका : मृग मरिचिका की घटना पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण होती है। आँखों के भ्रम को ही मरीचिका कहते है। गर्मियों के दिनों में पृथ्वी का धरातल अधिक गर्म होने के कारण पृथ्वी के पास वाली वायु बहुत विरल होती है। पृथ्वी के धरातल से जैसे जैसे ऊपर जाते है वैसे वैसे वायु की सघनता बढती जाती है। जिसके कारण किसी पेड़ के शीर्ष से आने वाली प्रकाश किरणें सघन माध्यम से विरल माध्यम की ओर प्रवेश करती हुई क्रांतिक कोण से अधिक कोण पर धरातल पर आपतित होती है तो पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कारण यह किरणें प्रेक्षक की आँखों में जाती है तो उसे ऐसा प्रतीत होता है कि किसी पेड़ की परछाई किसी जलाशय के कारण उल्टी दिखाई देती है , ठीक इसी प्रकार की घटना गर्मियों के दिनों में रेगिस्तान में दौड़ते हुए मृग (हिरण) के साथ भी होती है। मृग के इस आँखों के भ्रम को ही मृग मरीचिका कहते है।

(iii) प्रकाशिकी तन्तु : प्रकाशिकी तंतु या केवल पूर्ण आंतरिक घटना पर आधारित एक ऐसा यंत्र है जिसकी सहायता से श्रव्य या ध्वनि संकेतो को एक स्थान से दूर स्थित दुसरे स्थान तक भेजा जाता है।

प्रकाशिकी तन्तु के क्रोड़ का अपवर्तनांक 1.7 तथा अधिपट्टन का अपवर्तनांक 1.5 होता है अर्थात प्रकाशिकी तन्तु का क्रोड़ अधिपट्टन की तुलना में अधिक सघन होता है। जब कोई श्रव्य संकेत चित्रानुसार क्रोड में आपतित किया जाता है तो इस संकेत का सघन से विरल में जाने के कारण बार बार पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है (क्रोड़ में) जिसके कारण यह संकेत एक स्थान से दुसरे स्थान तक आसानी से चला जाता है।

गोलीय अपवर्तक पृष्ठ द्वारा अपवर्तन सूत्र

माना गोलीय अपवर्तक पृष्ठ (उत्तलाकार) m1 m2 जिसके एक ओर विरल माध्यम जिसका अपवर्तनांक u1 तथा दूसरी ओर सघन माध्यम जिसका अपवर्तनांक u1 (u2>u1) है | मुख्य अक्ष के बिंदु O पर स्थित बिम्ब से निकलने वाली प्रकाश किरण OM अपवर्तक पृष्ठ m1 m2 के बिंदु M पर आपतित होती है जो अपवर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के बिन्दु I पर अपवर्तित किरण MI के रूप में आपतित होती है जहाँ इसका प्रतिबिम्ब प्राप्त होता है तो अपवर्तन सूत्र की गणना के लिए –

मृग मरीचिका का कारण क्या है?

मृगमरीचिका सड़कों पर तब बनती है, जब तापमान बढ़ने पर गरम हवा की लेयर बनने लगती है। इससे सूर्य का प्रकाश विभिन्न कोणों पर सघन माध्यम से विरल की ओर जाता है। यह अविलंब से हटता है। इससे विरल माध्यम में अपवर्तन कोण 90 डिग्री के बराबर हो जाता है।

रेगिस्तान में मरीचिका क्यों दिखाई देती है?

मरीचिका विभिन्न घनत्वों की वायु की परतों पर प्रकाश के पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण होती है। एक रेगिस्तान में दिन के समय में रेत बहुत गर्म होती है और इसके संपर्क में हवा की परत गर्म हो जाती है और हलकी हो जाती है। हल्की हवा ऊपर उठती है और ऊपर से सघन हवा नीचे आती है।

मृगतृष्णा बनने का कारण क्या है?

जब प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता है तो मृगतृष्णा बनती है। रेगिस्तान में कुछ दूरी पर जलाशय या पानी होने का भ्रम (मरीचिका) प्रकाश के पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कारण होता है।

मरीचिका से आप क्या समझते हैं?

मरीचिका एक प्रकार का वायुमंडलीय दृष्टिभ्रम है, जिसमें प्रेक्षक अस्तित्वहीन जलाश्य एवं दूरस्थ वस्तु के उल्टे या बड़े आकार के प्रतिबिंब तथा अन्य अनेक प्रकार के विरूपण देखता है। वस्तु और प्रेक्षक के बीच की दूरी कम होने पर प्रेक्षक का भ्रम दूर होता है, वह विरुपित प्रतिबिम्ब नहीं देख पाता।