वैभव लक्ष्मी व्रत कथा इन हिंदी PDF - vaibhav lakshmee vrat katha in hindee pdf

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा | Vaibhav Laxmi Vrat Katha PDF in Hindi

Published / Updated On: August 13, 2021

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा | Vaibhav Laxmi Vrat Katha Hindi PDF Download

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वैभव लक्ष्मी व्रत कथा | Vaibhav Laxmi Vrat Katha PDF Details

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा इन हिंदी PDF - vaibhav lakshmee vrat katha in hindee pdf
PDF Name वैभव लक्ष्मी व्रत कथा | Vaibhav Laxmi Vrat Katha PDF
No. of Pages 25
PDF Size 0.37 MB
Language Hindi
Category Religion & Spirituality
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Tags: व्रत कथा

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा | Vaibhav Laxmi Vrat Katha Hindi PDF Summary

वैभव लक्ष्मी व्रत घर में सुख-समृद्धि की कामना को पूर्ण करता है। यदि आप आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं, घर में धन रुक नहीं रहा है, प्रयास करने पर भी काम नहीं बन रहे हैं तो 11 या 21 शुक्रवार को माँ वैभव लक्ष्मी का व्रत करने का संकल्प लें। यह व्रत शुक्रवार को ही किया जाता है इसलिए यदि किसी कारणवश 11 या 21 शुक्रवार के व्रत के बीच आप किसी शुक्रवार को व्रत नहीं कर पाये तो माफी माँग कर उस व्रत को अगले शुक्रवार को रख लें। वैभव लक्ष्मी का व्रत स्त्री और पुरुष, दोनों ही कर सकते हैं। व्रत शुरू करने से पहले अपनी उस मन्नत का उल्लेख अवश्य कर दें जिसको पूरी करने के लिए आप व्रत का संकल्प ले रहे हैं। यहाँ से आप बड़ी आसानी से Vaibhav Laxmi Vrat Katha Hindi PDF / वैभव लक्ष्मी व्रत कथा पीडीऍफ़ हिंदी में डाउनलोड कर सकते हैं।
सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र के नियमपूर्वक पठन से माँ लक्ष्मी जी अपने भक्तों पर विशेष कृपा करती है। श्री महालक्ष्मी कवच भक्तों के जीवन से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। महालक्ष्मी अष्टकम तथा श्री लक्ष्मी चालीसा को सच्चे मन से पढने वाले भक्तजनों पर लक्ष्मी माता खूब धनवर्षा करती हैं। माँ लक्ष्मी का श्रद्धापूर्वक ध्यान कर के श्री महालक्ष्मी सुप्रभातम का पाठ करना चाहिए। जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुखों को प्राप्त करने के लिए कोजागिरी पौर्णिमा का व्रत करना चाहिए साथ ही कोजागिरी पौर्णिमा व्रत कथा भी अवश्य सुननी चाहिए। श्री लक्ष्मी सहस्रनाम स्तोत्र तथा श्री महालक्ष्मी स्तोत्र को निरंतर पढने से आपके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

वैभव लक्ष्मी व्रत पूजा विधि और मंत्र | Vaibhav Laxmi Vrat Pooja Vidhi & Mantra

वैभव लक्ष्मी का पूजन शाम को किया जाता है। शाम को भगवान श्रीगणेश, माता लक्ष्मी और श्रीयंत्र को एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। चौकी पर थोड़े चावल रख कर उस पर जल से भरा तांबे का कलश रखें। कलश पर एक कटोरी रखें और उसमें सोने या चांदी का कोई गहना, अक्षत और लाल फूल चढ़ाएं। माता को चावल की खीर का भोग लगाएं और यह ध्यान रखें कि व्रत वाले दिन आपको रात को यह खीर खाकर ही रहना है। अगर आप पूरे दिन का व्रत नहीं रख पा रहे हैं तो रात को भोजन कर सकते हैं। वैभव लक्ष्मी पूजनके दौरान इन मंत्रों का अवश्य उच्चारण करें-
या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥
यत्राभ्याग वदानमान चरणं प्रक्षालनं भोजनं
सत्सेवां पितृ देवा अर्चनम् विधि सत्यं गवां पालनम
धान्यांनामपि सग्रहो न कलहश्चिता तृरूपा प्रिया:
दृष्टां प्रहा हरि वसामि कमला तस्मिन ग्रहे निष्फला:

वैभव लक्ष्मी व्रत उद्यापन विधि | Vaibhav Laxmi Vrat Udyapan Vidhi

आपने जितने भी शुक्रवार के व्रत करने की मन्नत मांगी थी, उतने शुक्रवार हो गये हैं तो अंतिम व्रत वाले दिन शाम को कथा का श्रवण कुछ सुहागिन स्त्रियों के संग करें। माता को सुहाग की सामग्री चढ़ाएं और सभी सौभाग्यशाली महिलाओं को कथा के बाद वैभव लक्ष्मी व्रत कथा की एक-एक पुस्तक उपहार में दें और खीर का प्रसाद दें। सभी महिलाओं को कुमकुम का तिलक भी लगाएँ और कम से कम सात कुआंरी कन्याओं को भोजन करा कर उन्हें उपहार स्वरूप कुछ दें। पूजन के पश्चात वैभव लक्ष्मी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ को नमन कर प्रार्थना करें- ‘हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है। हमारी मनोकामना पूरी करो माँ। यह कह कर वैभव लक्ष्मी को प्रणाम करें। इसके अतिरिक्त आप माँ लक्ष्मी चालीसा का गायन भी कर सकते हैं। इससे भी महालक्ष्मी प्रशन्न होती हैं।

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा | Vaibhav Laxmi Vrat Katha in Hindi

किसी शहर में अनेक लोग रहते थे। सभी अपने-अपने कामों में लगे रहते थे। किसी को किसी की परवाह नहीं थी। भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गए। शहर में बुराइयां बढ़ गई थीं। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती वगैरह बहुत से गुनाह शहर में होते थे। इनके बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे।
ऐसे ही लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी स्वभाव वाली थी। उनका पति भी विवेकी और सुशील था। शीला और उसका पति कभी किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे। शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे।
देखते ही देखते समय बदल गया। शीला का पति बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा। अब वह जल्द से जल्द करोड़पति बनने के ख्वाब देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा फलस्वरूप वह रोडपति बन गया। यानी रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी हालत हो गई थी। शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा वगैरह बुरी आदतों में शीला का पति भी फंस गया। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। इस प्रकार उसने अपना सब कुछ रेस-जुए में गंवा दिया।
शीला को पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ, किन्तु वह भगवान पर भरोसा कर सबकुछ सहने लगी। वह अपना अधिकांश समय प्रभु भक्ति में बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी। शीला ने द्वार खोला तो देखा कि एक माँजी खड़ी थी। उसके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था। उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था। उसका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलक रहा था। उसको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई। शीला के रोम-रोम में आनंद छा गया। शीला उस माँजी को आदर के साथ घर में ले आई। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः शीला ने सकुचाकर एक फटी हुई चद्दर पर उसको बिठाया।
मांजी बोलीं- क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी वहां आती हूं।’ इसके बावजूद शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी। फिर मांजी बोलीं- ‘तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं अतः मैं तुम्हें देखने चली आई।’
मांजी के अति प्रेमभरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया। उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह बिलख-बिलखकर रोने लगी। मांजी ने कहा- ‘बेटी! सुख और दुःख तो धूप और छाँव जैसे होते हैं। धैर्य रखो बेटी! मुझे तेरी सारी परेशानी बता।’
मांजी के व्यवहार से शीला को काफी संबल मिला और सुख की आस में उसने मांजी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई।
कहानी सुनकर माँजी ने कहा- ‘कर्म की गति न्यारी होती है. हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं। इसलिए तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है। अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आएँगे। तू तो माँ लक्ष्मीजी की भक्त है। माँ लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिए तू धैर्य रखकर माँ लक्ष्मीजी का व्रत कर। इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा।’
शीला के पूछने पर मांजी ने उसे व्रत की सारी विधि भी बताई। मांजी ने शीला को लक्ष्मी पूजन सामग्री के बारे में भी बता दिया।मांजी ने कहा- ‘बेटी! मां लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है। उसे ‘वरदलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है। वह सुख-संपत्ति और यश प्राप्त करता है।’
शीला यह सुनकर आनंदित हो गई। शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था। वह विस्मित हो गई कि मांजी कहां गईं? शीला को तत्काल यह समझते देर न लगी कि मांजी और कोई नहीं साक्षात्‌ लक्ष्मीजी ही थीं।
दूसरे दिन शुक्रवार था। सबेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला ने मांजी द्वारा बताई विधि से पूरे मन से व्रत किया और महालक्ष्मी जी की आरतीकी। आखिरी में प्रसाद वितरण हुआ। यह प्रसाद पहले पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया। उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं। शीला को बहुत आनंद हुआ। उनके मन में ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ के लिए श्रद्धा बढ़ गई।
शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ किया। 21वें शुक्रवार को माँजी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि कर के सात स्त्रियों को ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की सात पुस्तकें उपहार में दीं। फिर माताजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगीं- ‘हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे मां! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना। कुंआरी लड़की को मनभावन पति देना। जो आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्ति दूर करना। सभी को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपार है।’ ऐसा बोल कर लक्ष्मीजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को प्रणाम किया।
व्रत के प्रभाव से शीला का पति अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा। उसने तुरंत शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए। घर में धन की बाढ़-सी आ गई। घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई। ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियां भी विधिपूर्वक वैभवलक्ष्मी व्रत करने लगीं।
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वैभव लक्ष्मी का व्रत कौन से महीने से शुरू करना चाहिए?

Mahalaxmi Vrat Katha In Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ हो जाते हैं और अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक चलते हैं। धन की देवी लक्ष्मी को समर्पित ये व्रत 16 दिन के होते हैं।

वैभव लक्ष्मी का व्रत कितने बजे करना चाहिए?

वैभव लक्ष्मी व्रत के शाम के समय करना लाभकारी माना जाता है। शाम के समय स्नान आदि करके साफ वस्त्र धारण कर लें।

वैभव लक्ष्मी की पूजा कैसे की जाती है?

Vaibhav Lakshmi Vrat: वैसे तो वैभव लक्ष्मी व्रत की पूजा शाम को की जाती है लेकिन व्रत रखने के लिए सुबह से ही महिला या पुरुष को स्नान करके व्रत का पालन करना चाहिए. व्रत वाले दिन सुबह के समय फलाहार कर सकते है. इसके बाद शाम को दोबारा स्नान करके पूर्व दिशा में माता की चौकी लगाएं और इस पर लाल स्वच्छ कपड़ा बिछाएं.

वैभव लक्ष्मी व्रत कब उठाना चाहिए?

वैभव लक्ष्मी व्रत को शुरू करने के लिए शुभ दिन वैभव लक्ष्मी व्रत को शुक्रवार के दिन किया जाता है क्योंकि यह दिन दुर्गा एवं संतोषी माता का दिन माना जाता है और मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से पूजा अर्चना करने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वह सदैव अपनी कृपा बनाए रखती हैं।