दुर्गा सप्तशती के पाठ में क्या क्या पढ़ना चाहिए? - durga saptashatee ke paath mein kya kya padhana chaahie?

नई दिल्ली: 13 अप्रैल मंगलवार से चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) की शुरुआत हो चुकी है. इस दौरान मां शैलपुत्री से लेकर सिद्धिदात्री तक, नवरात्रि के इन नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूरे विधि विधान के साथ पूजा की जाती है (Nine forms of durga is worshipped). साथ ही नवरात्रि के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ करना भी विशेष रूप से फलदायी माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि में रोजाना दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) पढ़ने से मां प्रसन्न होती हैं और व्यक्ति को धन-धान्य, मान-सम्मान और सौभाग्य का आशीर्वाद देती है. लेकिन दुर्गा सप्तशती पढ़ने का पूरा लाभ आपको मिले, इसके लिए कुछ जरूरी बातों और नियमों का ध्यान रखना चाहिए.

दुर्गा सप्तशती पढ़ते वक्त इन नियमों का पालन करें

-दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के दौरान शुद्धता (Purity) का पालन करना बेहद जरूरी है. इसलिए स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहकर ही पाठ करें. कुशा के आसन या ऊन के बने आसन पर बैठकर ही पाठ करें. साथ ही पाठ करते वक्त हाथों से पैर का स्पर्श न करें.

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-दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करने से पहले पुस्तक को लाल कपड़े पर रखकर उस पर अक्षत और फूल चढ़ाएं. पूजा करने के बाद ही किताब पढ़ना शुरू करें.

-नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के पाठ से पहले और बाद में नर्वाण मंत्र ''ओं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे'' का जाप करना (Mantra jaap) जरूरी होता है.

-दुर्गा सप्तशती के पाठ में एक-एक शब्द का उच्चारण साफ और स्पष्ट होना चाहिए (Pronunciation is important). इसमें शब्दों को उल्टा-पुल्टा न बोलें और ना ही शब्दों का हेर-फेर करें. सप्तशती पढ़ते वक्त बहुत जोर से या धीरे से पाठ ना करें. इस तरह करें कि आपको एक-एक शब्द स्पष्ट सुनाई दे.

-अगर संस्कृत भाषा में दुर्गा सप्तशती के पाठ का उच्चारण करने में कठिनाई हो रही हो तो इसे हिंदी में किया जा सकता है. लेकिन जो भी पढ़ें उसे सही और स्पष्ट बोलें.

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-दुर्गा सप्तशती का पाठ करते वक्त जम्हाई नहीं लेनी चाहिए क्योंकि यह आलस को दर्शाता है. इसलिए मन को शांत और स्थिर करके ही पाठ शुरू करें.

-अगर किसी दिन आपके पास समय की कमी है और आप दुर्गा सप्तशती का पूरा पाठ नहीं कर सकते तो सप्तशती के आखिर में दिए गए कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें और देवी से अपनी पूजा स्वीकार करने की प्रार्थना करें.

-पाठ खत्म हो जाने के बाद आखिर में मां दुर्गा से अपनी किसी भी तरह की भूल चूक के लिए क्षमा प्रार्थना जरूर करें.

(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)

नवरात्रि में माता का हर भक्त श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करने की लालसा रखता है. बहुत से लोग करते भी हैं. कई लोग अज्ञानता में विधियों का ध्यान नहीं रख पाते और पूर्ण फल से वंचित रह जाते हैं.  श्री दुर्गा सप्तशती पाठ की कई विधियां कही गई हैं. श्री दुर्गा सप्तशती के अलावा इसके कुछ विकल्प भी हैं जिनका पाठ भी पूरे दुर्गा सप्तशती के पाठ के बराबर फलदायी होता है. कई लोगों के साथ समय का अभाव रहता है या कोई अन्य कारण जिससे वे लंबी पूजा नहीं कर पाते. शास्त्रों में उनके लिए भी कई उपाय बताए गए हैं. बस जरूरत है आपको जानने की.

दुर्गा सप्तशती के पाठ में क्या क्या पढ़ना चाहिए? - durga saptashatee ke paath mein kya kya padhana chaahie?

अब जानें कैसे. और जाने भी तो सही है या नहीं इसका पता कैसे चले. दो रास्ते हैं. पहला तो आप गीता प्रेस की दुर्गा सप्तशती ग्रंथ खरीद लें और उसे ध्यान से पढ़ें उसमें सारी बातें दी गई हैं.

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श्री दुर्गा सप्तशती पाठ संपूर्ण और लंबी विधि:

श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ आरंभ करने से पूर्व श्री गणेशजी, शिवजी, माता जगदंबा, श्रीविष्णु आदि देवताओं का स्मरण एवं पूजा कर लेनी चाहिए. गणेशजी का आह्वान तो हर पूजन से पूर्व किया ही जाता है. यदि आप गणेशजी का आह्वान विधिवत करना चाहते हैं जो कि कर ही लेना चाहिए तो इसके लिए प्रभु शरणम् ऐप्प के दैनिक पूजन मंत्र सेक्शन में देखें. वहां सरलतम विधि मिल जाएगी. नवरात्रि में यदि आप व्रत रखते हैं तो पूजन विधिवत क्यों न हो.

गणेशजी का आह्वान पूजन कर लें. यदि आप विधिवत नहीं कर पा रहे किसी कारण तो आप कम से कम एक माला ऊँ गं गणपत्यै नमः मंत्र की जप लें. फिर हाथ जोड़कर गणेशजी का ध्यान करें और उनसे प्रार्थना करें-

हे मंगलमूर्ति बिना आपके आशीर्वाद के कोई भी पूजन या मंगलकार्य संभव ही नहीं. मैं अज्ञान अबोध हूं. मुझसे कई अपराध हुए हैं. मैं ज्ञात-अज्ञात विधियों से विमुख हूं. इसके लिए क्षमा करेंगे. मैं आपका शरणागत हूं. आपका शरणागत होकर आपकी मैं मां जगदंबा की प्रसन्नता के लिए यह पूजन कर रहा हूं. हे विघ्नहर्ता आप सदैव मेरे साथ उपस्थित रहें. इस पूजन में आने वाले विघ्नों का नाश करें. मां जगदंबा का पूजन निर्विघ्न कर सकूं इसके लिए मुझे आशीर्वाद दें.

फिर भी मैं कहूंगा कि गणेशजी का आह्वान कर ही लेना चाहिए. यदि घर में पूजन कर रहे हैं तो जरूर. विधि बहुत छोटी सी है. यदि नौ दिन तक उसे करते रहे तो सदा-सर्वदा के लिए याद हो जाएगी और हमेशा काम आएगी. विधि ऐप्प में देखें.

इसके बाद श्री दुर्गा सप्तशती पाठ के लिए लिए पुस्तक का पूजन भी कर लेना चाहिए. श्री दुर्गा सप्तशती पाठ जिस पुस्तक से करते हैं सर्वप्रथम उस ग्रंथ को पूजन कर उन्हें संतुष्ट कर लेना चाहिए. इसके बिना किया श्री दुर्गा सप्तशती पाठ अपूर्ण है.

पुस्तक के पूजन के लिए उन पर जल छिड़कर स्नान भाव से स्नान कराएं. फिर धूप-दीप पुष्प आदि समर्पित करें.  इससे जुड़ी छोटी-छोटी बहुत सी काम की बातें जो बहुत सरल हैं नवरात्र में आपको नियम से प्रभु शरणम् ऐप्प में भी बताई जाएंगी. जुड़े रहिएगा और पढ़ते रहिएगा.

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ करते समय पुस्तक को भगवती दुर्गा का ही स्वरूप मानना चाहिए. इस पुस्तक का पाठ करने से पूर्व निम्न मंत्र द्वारा पंचोपचारपूजन करें. पंचोपचार पूजन क्या होता है यह आपको बहुत बार बता चुका हूं. आप ऐप्प के दैनिक पूजन सेक्शन में जरूर देखिए. पंचोपचार पूजन में मुश्किल से एक से डेढ़ मिनट लगते हैं तो फिर क्यों न किया जाए.

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ से पूर्व पुस्तक के पूजन का मंत्रः

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै भद्रायैनियता:प्रणता:स्मताम्॥

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ के लिए ग्रंथ पूजन के बाद श्री देवी कवच, श्री अर्गला स्तोत्रम्, श्री कीलक स्तोत्र का पाठ जरूर कर लेना चाहिए. उसके बाद माता का सिद्ध मंत्र नवार्ण  मंत्र  “ऊं ऐं ह्री क्लीं चामुण्डायै विच्चै”  की एक माला जप लेनी चाहिए.

नवार्ण मंत्रः ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै।

नवार्ण मंत्र माता का बड़ा चमत्कारी मंत्र है. इसके नवार्ण होने के कारण और महत्व के विषय पर जल्द ही पोस्ट प्रभु शरणम् ऐप्प में प्रकाशित की जाएगी. आपको जानकर बहुत सुखद आश्चर्य होगा.

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इसके बाद रात्रिसूक्त का पाठ करने का भी विधान है.

रात्रिसूक्त के पाठ के बाद तेरह अध्यायों का पाठ एवं पाठ के उपरांत देवी सूक्त का पाठ किया जाता है किंतु यह सारी प्रक्रिया साधकों के लिए है.

आम माताभक्त गणेशजी, शिव-पार्वती, श्रीहरि का अपनी विधि से स्मरण कर फिर नवार्ण मंत्र का 11 या 21 बार जप करके कवच, अर्गला और कीलक का पाठ करें. फिर वे सप्तशती पाठ आरंभ कर सकते हैं.  श्री दुर्गा सप्तशती पाठ भी एक ही दिन में करना कोई जरूरी नहीं है. सप्तशती में सात सौ श्लोक हैं जो तेरह अध्यायों में हैं. आठ दिन में भी इसका पाठ किया जा सकता है. इसका एक क्रम बताया गया. किस दिन किस-किस अध्याय का पाठ करना है इसकी भी एक विधि है.

इससे उनके लिए बहुत सुविधा हो जाती है जिन्होंने व्रत तो किया है पर जीवन के अन्य कार्य भी करने हैं और समय नहीं निकाल पाते. प्रभु शरणम् ऐप्प में इस विषय पर विस्तृत जानकारी नवरात्रि आरंभ होने की पूर्वसंध्या पर दी जाएगी. यानी नवरात्रि के एक दिन पहले. आपको इससे बहुत सुविधा हो जाएगी.

नवरात्र में पूजा के अवसर पर दुर्गासप्तशती का पाठ श्रवण करने से देवी अत्यन्त प्रसन्न होती हैं. सप्तशती का पाठ करने पर उसका सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है.

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ से जुड़े कुछ उपयोगी तथ्यः

 

लघुपाठ या शॉर्टकट विधि 

प्रसंग भेद के आधार पर श्रीदुर्गासप्तशती के तेरह अध्यायों को तीन चरित में बांटा जाता है.

प्रथम चरित, द्वितीय चरित और तृतीय चरित.

प्रथम चरित्र के अंतर्गत केवल प्रथम अध्याय को माना जाता है.

द्वितीय चरित में दूसरा तीसरा एवं चौथा अध्याय शामिल है.

तृतीय चरित में पांचवें से तेरहवें अध्याय माने जाते हैं.

नियम के अनुसार तीनों चरितों के पाठ का महात्म्य है परंतु समय के अभाव में द्वितीय चरित का पाठ भी किया जा सकता है. इसे लघु पाठ कहते हैं. लघु पाठ के बाद भी 11, 21 या 108 बार नर्वाण मंत्र का जप कर लेना चाहिए.

लघु पाठ से भी पूरा फल मिलता है.

बहुत विवशता है तो सप्तश्लोकी दुर्गा अथवा सिद्धकुंजिका स्तोत्रम का पाठ करें. श्रीदुर्गासप्तशती को नवरात्र के नौ दिनों में तीन बार करके, जैसे एक दिन प्रथम चरित, दूसरे दिन द्वितीय चरित और तीसरे दिन तृतीय चरित ऐसे करके भी पूरी दुर्गासप्तशती का एक पाठ तो कर ही लेना चाहिए.

सप्तशती पाठ या माता के किसी भी साधना की निश्चित संख्या पूरी हो जाने के बाद हवन, कन्या पूजन एवं ब्राह्मण भोजन अवश्य करा देना चाहिए.

श्री दुर्गासप्तशती के पाठ की एक और विधि है वाकार विधि

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श्री दुर्गा सप्तशती पाठ की वाकार विधि:

सात दिनों में तेरह अध्यायों के पाठ की एक और सरल विधि है. जो लोग नवरात्रि में नियम से सप्तशती पाठ करते हैं वे समय के अभाव में इस विधि का प्रयोग कर सकते हैं.

प्रथम दिन प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ- द्वितीय व तृतीय अध्याय का करें. तीसरे दिन एक पाठ यानी चतुर्थ अध्याय का करें.

चौथे दिन चार पाठ करने होते हैं. पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय का पाठ चौथे दिन करें. पांचवें दिन दो अध्यायों नवम एवं दशम अध्याय का करना चाहिए.

छठे दिन एक पाठ ग्यारहवें अध्याय का करना चाहिए. सातवें दिन दो पाठ यानी द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय का करें. इस तरह एक पाठ सप्तशती का पूरा किया जा सकता है.

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दुर्गा सप्तशती से पहले क्या पढ़ना चाहिए?

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिए सबसे पहले नवार्ण मंत्र, कवच, इसके बाद कीलक और अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इसके बाद दुर्गा सप्तशती के पाठ का आरंभ करना चाहिए। अगर आप इस तरह का पाठ करेंगे तो आपकी मनोकामनाएं जल्द पूरी होंगी। साथ ही मा दुर्गा प्रसन्न होकर अपनी विशेष कृपा आप पर बरसाएंगी।

दुर्गा सप्तशती का कौनसा अध्याय पढ़ना चाहिए?

कम समय में दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण लाभ लेने के लिए सबसे पहले कवच, कीलक व अर्गला स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इसके बाद कुंजिका स्त्रोत का पाठ कर लें। ऐसा करने से दुर्गा सप्‍तशती के संपूर्ण पाठ का फल प्राप्‍त हो जाता है।

दुर्गा सप्तशती कैसे पढ़ना चाहिए?

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक को साफ स्थान पर लाल कपड़ा बिछाकर रखें. इस दौरान ध्यान रहे कि जिस स्थान पर पुस्तक रखी गई है, उसे शुद्ध कर लें. इसके बाद कुमकुम, चावल और पुष्प से पूजन करें. इसके बाद अपने माथे पर रोली लगाकर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिए 4 बार आचमन करें.

महिलाओं को दुर्गा सप्तशती का पाठ कैसे करना चाहिए?

दुर्गा सप्‍तशती का पाठ करते समय आपको सभी जरूरी कार्य निपटाकर बैठना चाहिए। यानी कि ऐसा न हो कि आप पाठ कर रहे हों और आपको घर के या फिर बाहर के किसी काम की चिंता हो रही हो। पाठ करते समय जम्‍हाई नहीं लेनी चाहिए और न ही आलस्‍य करना चाहिए। मन को पूरी तरह एकाग्रचित करना चाहिए