सूरदास जी की
भक्ति - सूरदासजी भगवान कृष्ण के बड़े ही उच्च श्रेणी के भक्त थे. सूरदास जी जन्म से ही अंधे थे. सूरदासजी और कृष्ण के किस्से कई कथाओं में वर्णित हैं. सूरदास जी वृन्दावन में रहते थे और हरि कीर्तन करते थे. वर्तमान में श्री नाथजी, नाथद्वारा में जो मंदिर हैं, पहले वो मंदिर वृन्दावन में था. यह मंदिर गोवर्धन पर्वत पर स्थित था. लेकिन फिर विट्ठल महाराज उस मंदिर को नाथद्वारा लेकर आ गए. सूरदासजी ने सवा लाख पदों को लिखने का संकल्प ले रख था. एसा वर्णित हैं की सूरदास जी अपने इस संकल्प
को पूरा नहीं कर पाए थे. तो, स्वयं भगवान ने शेष पदों की रचना की थी.
तीसरी कघु कथा – सूरदासजी और भगवान का मिलनक्या
सूरदासजी को भगवान मिले थे? इसके ऊपर भी एक लघु कथा हैं. चौथी लघु कथा – सोने की गिलासएक सूरदासजी खाना खा रहे थे. सूरदासजी का शिष्य खाना देकर कही बाहर चला गया. सूरदासजी ने कुछ कौर खाए तो उनके गले में अटक गया. अब सूरदासजी को पानी की जरुरत पद गई. पानी ला दो! पानी ला दो! अब पास में कोई हो तो लाये. अब मंदिर से भगवान सुयम सोने की
गिलास लेकर आये और सूरदासजी को पानी पिलाया. इतने में उनका चेला आ गया, गुरूजी हम आपको पानी देना तो भूल ही गए. पांचवी लघु कथा – सूरदास जी का अंतिम समयसूरदासजी अपने अंतिम समय में वृन्दावन में ही थे. अंत समय में सूरदासजी जमींन पर लेते हुए थे. सूरदासजी के शिष्य आये और बोले की बाबाजी आप जा रहे हैं. हाँ अब मेरा उद्देश्य पूरा हो गया. क्या आपकी कोई आखिरी इच्छा हैं? नुझे दुःख हो रहा हैं की उरिन्धावन को पीठ दिखा के जा रहा हूँ. मुझे उल्टा पेट के बल लेटा दो. शिष्यों ने सूरदासजी को पेट के बल लेटाया. तब सूरदासजी के मुंह में वृन्दावन की मिट्टी गयी और सूरदासजी को सत्गति प्राप्त हो गयी.तो ये थी सूरदास जी की भक्ति और उनके जीवन से जुडी कुछ कथाएं. अगर आपको अच्छी लगी तो दूसरी पौराणिक कथाएं भी पढ़ सकते हैं. हमारा कंटेंट ज्ञानोपयोगी हैं. हम धार्मिक और पौराणिक कथाओं के अलावा दुसरे विषयों पर भी हिंदी कहानियां लिखते हैं. हमारा कंटेंट ज्ञानोपयोगी हैं, आप उसको भी नीचे दी गयी लिंक से पढ़ सकते हैं. क्लिक - और हिंदी कहानियां पढ़े तुलसी दासजी की बायोग्राफी
[email-subscribers-form id=5″] सूरदास की भक्ति क्या है?पहला चरण वल्लभाचार्य से मिलने के पूर्व का है, जिसमें सूरदास वल्लभ संप्रदाय में दीक्षित होने से पूर्व दैन्यभाव पर आधारित भक्ति के पदों की रचना कर रहे थे। दूसरा चरण वल्लभाचार्य से मिलने के बाद आरंभ होता है, जब सूरदास वल्लभ संप्रदाय में दीक्षित होकर पुष्टिमार्गीय भक्ति पर आधारित भक्ति के पदों की रचना की ओर प्रवृत हुए।
सूरदास के पद में किसकी भक्ति की गई है?सूरदास जी भक्ति काल की कृष्ण भक्ति शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उनकी अधिकतर रचनाएँ भक्ति पर आधारित हैं। इन पदों में कवि ने बाल कृष्ण की अद्भुत लीलाओं का मनोहारी चित्र प्रस्तुत किया है। यहाँ कवि ने वात्सल्य रस की सुन्दर अभिव्यक्ति की है।
सूरदास की कृष्ण भक्ति कौन सा भाव है?सूरदास भक्ति कहा जा सकता है कि एक उच्च कोटि के भक्त कवि है तथा उनकी भावना में पुष्टिमार्गीय भक्ति की प्रधानता है। लीला प्राधान्य पद कहलाते पद हैं।
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