समुदाय से आप क्या समझते हैं समुदाय के प्रकार? - samudaay se aap kya samajhate hain samudaay ke prakaar?

प्रायः समाज में SOCIETY शब्द की तरह ही समुदाय या जिसे अंग्रेजी भाषा में COMMUNITY कहा जाता है। को भी लोग सामान्तया साधारण शब्द के रूप में लेते है।

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इसके पीछे का मुख्य वजह ये है कि,समुदाय को लोग कुछ व्यक्तियों का एक समूह मान बैठते है। दूसरा कारण है,खासतौर से भारत में नगर,गावों ,देश आदि के लिए भी समुदाय शब्द का इस्तेमाल किया जाता रहा है या फिर इन सबको भी एक समुदाय के रूप में समझा जाने लगा है। लेकिन COMMUNITY (समुदाय)  केवल इतना ही नहीं है। और न ही इन सबसे समुदाय शब्द का आभास ही हो पता है। 

समुदाय का शाब्दिक का अर्थ 

यदि केवल COMMUNITY (समुदाय) शब्द का संज्ञान लेते हुए ANALYSIS या विश्लेषण करके देखा जाये तो विदित होता है कि, समुदाय शब्द अंग्रेजी (लेटिन) भाषा के शब्द COMMUNITY से बना प्रतीत होता है। 

COMMUNITY शब्द खुद दो शब्दों यथा COM एवं MUNIS नामक शब्दों से मिलकर बना है। इन दोनों शब्दों का अर्थ है “एक साथ रहकर सेवा करना है।” से लिया जाता है।

अर्थात एक और जहां COM शब्द का अर्थ अंग्रेजी में TOGETHER से है।  और हिंदी मै इसे “एक साथ” के अर्थ में देखा जाता है। तो दूसरी तरफ MUNIS जिसे अंग्रेजी में SERVICE कहा गया है।

और हिंदी भाषा में इस शब्द को “सेवा करने” के रूप में प्रस्तुत किया है,इस प्रकार से समुदाय शब्द का विश्लेषण समाजवेताओं के द्वारा किया गया है ।

समुदाय का अर्थ 

जैसा की समुदाय के शाब्दिक अर्थ का विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि,समुदाय कुछ व्यक्तियों का एक समूह है।  वे जब अपने एक समान उदेश्यों या लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक ही क्षेत्र में जीविकोपार्जन करते है।

तो उसको एक समुदाय के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। और समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से भी समुदाय को इसी अर्थ में उपयोग किया जाने लगा है।

तथापि आम जनमानस इस शब्द का उपयोग अधिकांशतः किसी जाति,या धर्म विशेष या फिर किसी संप्रदाय के सदस्यों के समूहों या ग्रुपों के लिए किया जाता रहा है ।

उदाहरण के तौर पर MUSLIM (मुस्लिम) समुदाय, जैन समुदाय,DALIT (दलित) समुदाय या भारतीय SOCIETY (समाज) में प्रचलित वर्णों में से किसी भी वर्ग के लिए इसका उपयोग कई बार किया जाता रहा है।

हालांकि इस सब का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से COMMUNITY के संदर्भ में प्रयुक्त शब्दों का कोई वास्ता नहीं है। वास्तव में देखा जाए तो समुदाय एक क्षेत्रीय अवधारणा है । क्यूंकि समाजशात्र विषय के अंतर्गत समुदाय हो या फिर समिति हो या संस्था हो,ये सभी महत्वपूर्ण अवधारणा है।

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समुदाय की परिभाषा 

COMMUNITY की अवधारणा को बेहतरीन रूप से समझने के लिए उसकी परिभाषा को भी समझना आवश्यक होगा । हालांकि समुदाय एक मूर्त अवधारणा है,तथापि समाजवेतों के द्वारा समुदाय की अनेक परिभाषाएं इस प्रकार से दी गई है। उन विद्वानों के नाम इस तरह से है ।

1 प्रो डेविस

2 बोगार्ड

3 ग्रीन

4 मेंजर

5 आगबर्न

6 जार्ज लुंडवर्ग

अब हम इन समाजवेताओ और विद्वानों के द्वारा दी गई परिभाषा का विश्लेषण करते है।

प्रो डेविस 

डेविस ने समुदाय की परिभाषा देते हुए कहा है कि “समुदाय एक SOCIAL या सामाजिक समूह है जिसमे कुछ अंशों में हम या WE की भावना है और साथ ही वह एक विशेष क्षेत्र में रहता है “

बोगर्ड

बोगार्ड ने COMMUNITY की परिभाषा कुछ इस तरह से दी है “समुदाय एक छोटा सा क्षेत्रीय समूह होता है जिसमे सामाजिक जीवन से सम्बन्धित सभी पहलू दृष्टिगोचर होते है।”

ग्रीन 

ग्रीन ने समुदाय की परिभाषा इन शब्दों में व्यक्त की है। “COMMUNITY सीमित प्रादेशिक घेरे में रहने वाले उन व्यक्तियों का एक ग्रुप है जो लाइफ या जीवन के सामान्य ढंग को अपनाते है। तथा एक समुदाय का अपना एक स्थानीय क्षेत्र होता है।”

 मैंजर 

मेंजर ने COMMUNITY को इस प्रकार परिभाषित किया है, “यह एक प्रकार का समाज जो एक निश्चित भू भाग में रहता है ,वह समुदाय कहलाता है।”

आगबर्न और निमकाफ 

उन्होंने अपनी परिभाषा में समुदाय को एक सीमित क्षेत्र में सामाजिक या SOCIAL  जीवन के सम्पूर्ण संगठन को समुदाय कहा है।

जार्ज लुंडवर्ग

जार्ज लुंडवर्ग ने COMMUNITY की परिभाषा देते हुए कहा है कि,”यह एक मानव जनसंख्या जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करती है,और जो सामान्य एवम आश्रित जीवन व्यतीत करते है।”

 

उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण कर समुदाय के कुछ तत्वों का उल्लेख हो जाता है जो की इस प्रकार से है।

1-व्यक्तियों का एक ग्रुप होता है। 

2-एक सीमित व् निश्चित भू-खंड होता है जहां पे वे निवास करते है।

3-सामाजिक जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं का समावेश होता है या ये कहना समिचित होगा कि, एक निश्चित भोगौलिक खंड में अपने सामान्य लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए संगठित मानवीय समूहों को समुदाय कहते है ।

समुदाय के लिए प्रमुख आधार या तत्व

उपर्युक्त परिभाषाओं की विवेचना के पश्चात सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि, एक समुदाय होने के लिए निम्न तीन आधारभूत आधारों या तत्त्वों का होना नितांत आवश्यक है,जो इस तरह से है ।

1-व्यक्तियों का एक समूह हो 

2-एक निश्चित भोगौलिक क्षेत्र हो 

3-समूह के व्यक्तियों में सामुदायिक एकता का विकास हो 

मानवों का एक समूह हों। 

किसी भी COMMUNITY का सबसे पहला आधार मानव है,और मानव भी एक समूह में हो,बिना मानव के सामान्य सामुदायिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। और न ही सामुदायिक भावना की।

किसी समुदाय का महत्व मानवीय समूहों से ही है।बिना मानवीय उपस्तिथि के किन सामुदायिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु हाथ बंटाया जायेगा।और जो हम की भावना होती है वह भी उत्पन नही हो पाएगी ।

 एक निश्चित भू भाग। 

 एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होना सामुदायिक ऊर्जा के लिए बहुत आवशयक होता है। इसीलिए जो समूह या संघ जिसका अपना एक निश्चित भोगौलिक क्षेत्र नही होता है।

तब तक कोई भी व्यक्तियों का समूह समुदाय नही कहलाएगा । एक निश्चित भोगौलिक क्षेत्र में एक साथ रहकर अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सामुदायिक कार्य करते है। इससे सामुदायिक जीवन में हम का भाव उत्पन होता है।

प्रो सेंपिल ने कहा है कि “मानव पृथ्वी के धरातल की एक उपज है।”  हालांकि यह सच है कि वर्तमान समय में जन संचार के संसाधनों की उन्नति से सम्पूर्ण विश्व एक गांव में तब्दिल हो गया है। फिर भी निश्चित भोगौलिक क्षेत्र किसी भी समुदाय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।  इसीलिए भू-भाग समुदाय का दूसरा आधार स्तंभ है।

सामुदायिक एकता या भावना

वास्तव में मानवीय समूहों का एक निश्चित भू-खंड होने के अलावा भी समुदाय का एक तीसरा आधार तत्व भी है।  जो कि,सामुदायिक एकता है। प्रायः COMMUNITY दूसरे समुदाय के दृष्टिकोण से संगठित यूनिट के रूप में कार्य करता है ।

यह सच है कि लंबे वक्त तक जब कुछ व्यक्ति या लोग एक साथ रह कर, एक दुसरे के सुख दुख में साथ रहते है,तथा अपनी आवश्यकताओं की खातिर एक साथ ही सामुदायिक कार्य करते है , एसी परस्तिथि में सामुदायिक भावना का जागरूक होना स्वाभाविक है । तथा बाहरी लोगों की अपेक्षा अपने सामूहिक हितों के लिए प्रतिबद्ध होते है।

इसको एक उदाहरण से समझ सकते है, “यदि कोई व्यक्ति जो आपको किसी बड़े नगर में अचानक मिल जाता है जो की आपके क्षेत्र या गांव का होता है ।तो आप उसके साथ बहुत कम्फर्ट महसूस करते है ।

तब चाहे आप अपने गांव में उससे बात भी न करते हों । यही सामुदायिक ऊर्जा है जो हम की भावना का पारस्परिक रूप से बढ़ाती है। सामुदायिक भावना के तहत तीन बातें आती है, जो इस तरह से हैं।

1 हम की भावना (we feelings) का विकास

2 जिमेदारियों या योगदान की भावना  

3 निर्भरता या आश्रित की भावना

सामुदायिक एकता की भावना

सामुदायिक एकता सामुदायिक भावना का अति आवश्यक स्वरूप है। जिससे COMMUNITY के सदस्य एक साथ मिलकर सामुदायिक विकास के कार्यों को करते है ।

एक सामूहिक जीवन यापन करते है। जिससे सामुदायिक ऊर्जा उत्पन्न होती है जो एक दूसरों के सुख दुख में सहयोग हेतु प्रेरित करती है । जो सम्पूर्ण समुदाय को सामुदायिकता के बंधन में बांधे रखता है ।

जिमेदारियो या योगदान की भावना 

सामुदायिक भावना का एक आवश्यक तत्व यह भी है कि, समुदाय का प्रतियेक सदस्य सामुदायिक कार्यों के निर्वहन में अपनी जिमेदारी मानता है । तथा यथोचित रूप से COMMUNITY के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन वह प्राथमिकता के आधार पर करता है।

निर्भरता या आश्रित की भावना

सामुदायिक भावना का आवश्यक स्वरूप के रूप में निर्भरता का अपना एक महत्त्व है।  इस भावना के कारण व्यक्ति अपने आप को समुदाय के प्रति समर्पण की भावना रखता है ।

तथा COMMUNITY पर ही अपने को आश्रित समझता है, तथा ऐसा महसूस करता है कि, समुदाय से बाहर उसका अपना कोई अस्तित्व ही नहीं है।

यही कारण है कि व्यक्ति समुदाय से बाहर या अलग नहीं हो पाता है। क्योंकि वह अपने आप को समुदाय में सुरक्षित महसूस करता है। तथा समुदाय के साथ चलने को प्रतिबद्ध होता है। इसीलिए ये भावना सामुदायिक भावना की अभिव्यक्ति है ।

समुदाय की विशेषता या लक्षण 

उपर्युक्त विवरणों से COMMUNITY (समुदाय) के अर्थ से अवगत हो गए है।अधिक स्पष्ट के लिए इसकी विशेषताओं पर फोकस करते है। जो को इस प्रकार है।

विशिष्ट नाम 

समुदाय की पहली प्रमुख विशेषता उसका एक विशिष्ट नाम का होना है। इसका मतलब ये है कि,किसी भी समुदाय का एक नाम अवश्य ही होता है। जिससे उसकी पहचान होती है। और इसी से ही सामुदायिक एकता का उदगम होता है।

लुप्ले नामक समाजवेत्ता ने इस और फोकस करते हुए लिखा है कि, “नाम समानता की ओर इसारा करता है,क्यूंकि नाम यथार्थ को प्रदर्शित करता है । वह विशिष्टता को बताता है, जो अक्सर व्यक्तित्व की व्याख्या करता है। और लगभग सभी COMMUNITY (समुदाय) में किसी न किसी रूप में एक व्यक्तित्व है।”

स्थायित्व

समुदाय की दूसरी विशेषता है। स्थाईपन इसका तात्पर्य है कि, प्रत्येक समुदाय एक निश्चित भू-खंड में लंबे समय से रहता है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि,जो समूह स्थाई नहीं रह सकता वह समुदाय भी नही हो सकता है।

COMMUNITY (समुदाय)  के जो सदस्य होते है वह एक ही स्थान पर रहते हुए देखे गए है। यही कारण है की जन समूह जिसे हम भीड़ भी कहते कह सकते है। या पशुचारण करने वाले लोग जो एक स्थान से दूसरे स्थान में जाते रहते है। उनको समुदाय की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।

स्वतः उत्पति

समुदाय मानव निर्मित समूह नही है, वरन समुदाय प्राकृतिक रूप से विकसित होते है,यह भी सत्य है कि मानव एक परिवार में जन्मता है । परन्तु साथ में वह किसी समुदाय का सदस्य भी बन जाता है ।

आमूमन अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए जब मानव मिलकर एक स्थान पर रहते है। तो उनमें सामुदायिक भावना का विकास हो जाता है । और धीरे-धीरे वह एक समुदाय के रूप में जाना जाने लगता है।

सामान्य नियम व्यवस्था 

गिंसवर्ग नामक समाजवेता ने सामान्य व्यवस्था को समुदाय की एक विशेषता के रूप में स्वीकार किया है। सामान्य व्यवस्था के द्वारा ही मानवीय व्यवहार को नियंत्रित व निर्देशित किया जा सकता है। परिणाम स्वरूप समुदाय विषेश के लोगों के व्यवहार में एक रुपता पाई जाती है।

आत्मनिर्भरता

यह सच है कि समुदाय की प्रमुख विशेषताओं में से आत्मनिर्भरता भी एक है । परन्तु वर्तमान समुदाय में आत्मनिर्भरता का होना आवश्यक नही है। इसका मुख्य कारण यह है कि,आज के मानव की जरूरत पहले की अपेक्षा बढ़ गई है।

जबकि प्राचीनकाल में मानव की आवश्यकता सीमित थी। जो समुदाय के द्वारा ही पूरी हो सकती थी । परन्तु वर्तमान में जन संचार के साधनों एवम नई तकनीकों के कारण एक दूसरे पर निर्भरता बढ़ गई है। आज ऐसा कोई भी समुदाय मौजूद नही है जो आत्मनिर्भर हो। 

सामान्य जीवन क्रम

सामान्य जीवन का मतलब होता है कि,किसी एक समुदाय में जीवन यापन सरलता के साथ किया जा सके। जेसे की समुदाय की परिभाषाओं में भी दर्शाया गया है ।

यही तो समुदाय का सरल जीवन का सामान्य उद्देश्य होता है।  परिणाम स्वरूप किसी समुदाय विशेष का खान-पान,रहन-सहन,भाषा, धर्म आदि लगभग सभी एक समान ही होते है।

समुदाय और समिति में अंतर

समुदाय समिति सदस्यता जरुरी है।सदस्यता इच्छा पर आधारित।COMMUNITY में सामान्य उदेश्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।यहाँ पर उदेश्य निशिचत होते है।स्थाईत्व पाया जाता है।यह अस्थाई है।निश्चित भू-खंड होना बहुत जरुरी है।समिति में कोई अलग से कोई आवश्यकता नहीं होती है।सामुदायिक एकता या भावना जरुरी है।समिति में आवश्यक नहीं।एक बार में एक COMMUNITY का सदस्यक हो सकते है।दो से अधिक समितियों का सदस्य भी हो सकता है।COMMUNITY में अपने समान्य कुछ नियम होते है।इसमें नियमों का होना अजरुरी नहीं है।

क्या वर्तमान में समुदाय के स्वरूप में कोई बदलाव हो रहा है ।

वर्तमान परस्तिथियों को मध्य नजर रखते हुए ऐसा प्रतीत होने लगा है कि, जैसे समुदाय का स्वरूप वैश्विक परस्तिथियों के साथ बदलता जा रहा है।

अर्थात बड़े समुदायों यथा महानगरों, औद्योगिक वस्तियों का विश्लेषण करें तो समुदाय के जो आधार स्तंभ है। जैसे हम की भावना,सामुदायिक एकता,सामुदायिक ऊर्जा आदि का प्रभाव विकास की बयार के साथ कहीं कमजोर सी होती प्रतीत आ रही है। इसके कुछ कारण देखे जा सकते है। वे इस प्रकार है।

जनसंख्या की विभिन्नता

प्राय देखा जा रहा है कि औद्योगिकरण या नगरीकरण के कारण जो बड़े समुदाय में आधुनिक सुविधा में वृद्धि हो रही है। जिसके आकर्षण में विभिन्न जाति धर्म, संप्रदाय,वर्ग ,प्रांतों से लोग बस रहे है ।

जो कई तरह से एक दूसरे से भिन्न होते है परिणामस्वरूप उन सदस्यो में एकरूपता की भावना का विकास नहीं हो पाता है । इसका कारण यह है कि,एकरूपता या सामुदायिक भावना का विकास केवल समानता के आधार पर ही  होता है।

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व्यक्तिवादिता का विकास

वर्तमान युग में व्यक्ति PARTICULAR (विशेष) को अधिक तवजो दी जा रही है। जिसके कारण व्यक्ति अपने हितों को अधिक तव्जो देते है । और अपने ही PERSONALITY (व्यक्तित्व) के विकास में कार्य करता है।

ऐसा हालांकि बड़े समुदायों में ही प्रायः दृष्टिगोचर होता है। जिसके कारण बड़े समुदायों में सामुदायिक भावना तुलनात्मक रूप से कम पाई जाती है। हालांकि अब धीरे-धीरे छोटे समुदाय भी इससे अछूते नजर नहीं आते है।

व्यवसाहिक अधिकता

वर्तमान में जहां एक और रोजगार के साधनों का विकास किया जा रहा है।  जिसके लिए अनेक प्रकार की योजनाएं सरकार के द्वारा संचालित की जा रही है।

विषेश तौर से आर्थिक क्षेत्र में, जहां एक तरफ विभिन्न व्यावसाहिक प्रतिष्ठानों का बढ़ते आकार के साथ ही लोगों के मध्य व्यावसायिक और पूंजी का विभेद भी उत्पन्न हो गए है। परिणाम स्वरूप सामुदायिक भावनाओं में उतरोतर कमी दृष्टिगोचर हो रहा है, 

सामाजिक कानूनों की अधिकता

वर्तमान में बड़े समुदाय के आकार एवम व्यवसाय में उतरोतर वृद्धि होने के कारण विभिन्न प्रान्तों से अलग अलग धर्म,जाती,समुदाय,से लोगों का आना हो रहा है।  परिणामस्वरूप बड़े समुदाय में जनसंख्या का आकार भी बढ़ रहा है । चूंकि अलग-अलग लोगों के आजाने से सामाजिक नियमों एवम कानूनों की अधिकता होना स्वाभाविक है । हालांकि छोटे समुदाय में प्रायः ऐसा होता नहीं दिखता है।

सामाजिक गतिशीलता 

आज के परिप्रेक्ष में यदि देखें तो समुदाय के सदस्यों का life style बदल गया है। वह नई नई चीजें सिख रहे है साथ में अपने नफा नुकसान का विश्लेषण भी आसानी से करने लगे है । आधुनिक शिक्षा के कारण लागों के आचार-विचार में बदलाव होने लगे है।

जिससे समुदाय में गतिशीलता आती हुई प्रतीत होती हो रही है। साथ ही बढ़ती हुई टेक्नोलॉजी के कारण एक दूसरे पर निर्भरता बढ़ती जा रही है । जिससे श्रम विभाजन का प्रचलन बढ़ रहा है। ये सभी ऐसे कारण है जो किसी बड़े COMMUNITY के सामुदायिक भावना  को पनपने नहीं देते है।

समुदाय के प्रकार

समुदाय के प्रकारों के सम्बन्ध में अनेक समाजवेताओं ने अपनी अपनी राय व्यक्त की है। जिनमे से कुछ इस प्रकार से उल्लेखनीय है।

1 किंग्सले डेविस

2 प्रो ई बोगार्डस

3 मै काइवर तथा पेज 

किंग्सले डेविस

डेविस ने समुदाय के वर्गीकरण के आधारों की व्याख्या की जिनमे से प्रमुख इस प्रकार से है ।

1 जनसंख्या

2 भू-खंड 

3 पूंजी और लोकप्रियता 

4 सामुदायिक कार्य

किंग्सले डेविस के उपरोक्त आधारों पर आदिम सभ्य और ग्रामीण एवम नगरीय समुदाय में दृष्टिगोचर होने वाले भेदों को स्पष्ट करने में सहायक होते है।

आदमी समाज

सभ्यता के आधार पर समाजों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है । उनमें से प्रथम है,आदिम समाज और दूसरा है, सभ्य समाज।  जहां आदिम समुदाय जंगलों और पर्वतों में एवं पठारी क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक बसे होते है।

जिसके कारण ये लोग बहुत अधिक पिछड़े रहते है। इनका आकार भी अपेक्षाकृत कम होता है, तथा एक ही निश्चित भू खंड में ही बसे होते है ,संचार और परिवहन के साधनों के अभाव में इनका दूसरे समुदायों से सम्बन्ध नहीं स्थापित हो पाते है।

इन समुदाय में शैक्षिक स्तर बहुत कम होता है। इनकी अपनी कोई लिपि नही होती है। पढ़ने लिखने का अवसर नहीं के बराबर होता है। यह आदिम समाजों में की एक प्रमुख विशेषता है।

आदिम समाज के लोग किसी महापुरुष या टोटम से अपनी उत्पति हुई मानते है , कई ऐसे आदिम समुदाय है जो कम कपड़ों का उपयोग करते है। या कपड़ों के रूप में पेड़ों की छाल का उपयोग करते है, यह प्रकृति के साथ अच्छी तरह से घुले मिले होते है। इसके अलावा आदिम समाज में 

1 आदिम समुदायों में धर्म, गोत्र, टोटम को अधिक तवजों दी जाती है।

2 रक्त सम्बन्धी होते है।

3 नातेदारी प्रथा का महत्व अपेक्षाकृत अधिक होता है।

4 औद्योगिक विकास प्राय नही होता है।

5 विशेषीकरण नही होता है क्यूंकि उनकी आवश्यकता सीमित होती है 

6 आदिम समाजों में सब लोग सभी कार्य करने में सक्षम होते है।

7 विवाह के अनेक प्रकार होते है जैसे हरण विवाह,विनिमय विवाह आदि।

8 यौन सम्बन्धों प्राय स्वतंत्रता होती है।

9 परिवार का महत्व अधिक होता है।

10 आर्थिक क्रिया सामूहिक आधार पर होती है।

11 सभी प्रतिभागी परिवारों को सम्मान रूप से लाभ वितरित किया जाता है।

12 आदिम समाज का मुखिया पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है।

13 जादू टोने का प्रभाव अधिक होता है।

सभ्य समाज 

CIVIL SOCIETY(सभ्य समुदायों) का आकार बहुत बड़ा होता है। तथा गतिशील होते है। सम्बन्धों में जटिलता पाई जाती है। हालांकि CIVIL (सभ्य) समुदाय एक बड़े भू-भाग में वास करते है। और इनकी पहचान भी एक निश्चित नाम से होती है । तथा यह लगभग हर देश परस्तिथि में पाए जाते है। तथा आधुनिक तकनीकी व यातायात के साधनों से अपेक्षाकृत सम्पन्न होते है।

सभ्य समुदाय में उत्पादक का कार्य मशीनों के माध्यम से भी किया जाने लगा है। कृषि कार्य भी आधुनिक तकनीकी आधार पर किया जाता है। तथा सामुदायिक भावना कम ही देखने को मिलती है। क्योंकि COMMUNITY (समुदाय)  की जनसंख्या अधिक पाई जाती है। जिसके कारण आपसे सम्बन्ध भी कम ही देखने को मिलते है।

इन समुदायों में शिक्षा का स्तर अधिक होता है। जिससे अंधविश्वास और तंत्र-मंत्रो पर कम विश्वास किया जाता है। श्रम विशेषिकरण भी पाया जाता है।क्योंकि इनकी आवश्यकताएं असीमित होती है। जिनकी पूर्ति के लिए विशेषीकरण का प्रचलन बढ़ गया है ।

इसके अलावा सभ्य समाजों में संपति तथा विवाह एवम यौन सम्बन्धों के नियम अधिक सुदृढ़ होते है। व्यक्ति की गरिमा स्वच्छंदता पर अधिक बल दिया जाता है। आधुनिक सुविधा होने के कारण सभ्य SOCIETIES या समाजों में MOBILITY (गतिशीलता) अधिक देखी जाती है। और नए नए अविष्कार का प्रतिपादन भी EXPECTED या अपेक्षित रहता है।

प्रो बोगार्ड्स के अनुसार 

प्रो बोगार्ड्स एक ऐसा समाजवेता था, जिन्होंने समुदायों के वर्गीकरण के लिए भू-भाग को या क्षेत्रीय विस्तार को अधिक तवजो दी है। जिसके आधार पर बोगार्ड्स ने COMMUNITY (समुदाय) को इस प्रकार से विभाजित किया है ।

1 ग्रामीण समुदाय

2 नगरीय समुदाय

3 क्षेत्रीय समुदाय

4 राष्टीय समुदाय

ग्रामीण समुदाय

मानव ने जबसे एक जगह रहना सीख है। अर्थात आखेटक अवस्था से जब मानव ने अपनी उस समय की आवश्यकता को ध्यान में रखकर साथ रहना सुरु किया होगा ।

प्रायः तभी से मानव गावों में रहने के साक्ष्य उपलब्ध है। अर्थात कहा जा सकता है कि, गांव का इतिहास भी उतना ही पुराना है जितना की खुद मानव के होश संभालने का इतिहास है।

इस प्रकार से ग्रामीण समुदाय मानव की प्राचीन सभ्यता व संस्कृति के द्योतक है। ग्रामीण जीवन को अच्छी तरह से समझने के लिए बहुत आवश्यक है कि,ग्रामीण समुदाय का अर्थ और परिभाषा और उसके स्वरूप या लक्ष्यों को भली भांति से परिचित होया जाए। 

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ग्रामीण समुदाय का अर्थ 

गांव को अक्सर कृषि कार्य कम जनसंख्या आदि  के रूप में प्रस्तुत किया जाता आ रहा है। जो कि प्रायः किसी के मुंह से सुनने में तो अच्छा लग सकता है।

परन्तु गांवों को या ग्रामीण समुदाय को समाजशास्त्रीय रूप से परिभाषित किया जाना मुश्किल है। आज जिस प्रकार से ग्रामीण समुदाय का स्वरूप में बदलाव हो रहा है, तथा एक नगरीय समुदाय की तरफ अग्रसर हो रहे है। इससे ग्रामीण समुदाय और नगरीय समुदाय के मध्य एक लाइन खींचना सम्भव नहीं रह गया है।

देखा जाए तो किसी गांव का बड़ा हुआ रूप ही नगर है। इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध ग्रामीण समाजवेता श्रीमान बैट्रेंड ने इसीलिए कहा है कि “ग्रामीण-नागरिक-निरंतरता” जबकि वहीं श्रीमान एंडरसन ने जीवन का ग्रामीण ढंग आदि शब्दों का उपयोग संभवतः ग्रामीण समुदाय के लिए किया है।

ग्रामीण समुदाय की परिभाषा 

RURAL(ग्रामीण) क्षेत्रों या ग्रामीण समुदाय को कई  LEADERS या समाजवेताओं के द्वारा समयानुसार परिभाषित  करने का प्रयास किया है जिनमे से कुछ LEADERS या समाजवेताओं का उल्लेख इस प्रकार से है।

1 सिम्स

2 पीके

3 सैमदर्सन

4 मेरिल एवम एल्ड्रिज 

5 श्री वास्तव

6 इनसाइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइंस 

7 फेयरचेल्ड

सिम्स 

सिम्स ने ग्रामीण समुदाय की परिभाषा देते हुए कहा है कि,

“ग्रामीण समुदाय को ऐसे बड़े क्षेत्र में रखे जाने की प्रवृति लगातार बढ़ रही है जिसमे अधिकांश एवम अधिकतम मुख्य मानवीय स्वार्थों की प्राप्ति होती है।”

सेंडरसन

इनके अनुसार एक “ग्रामीण समुदाय ऐसे क्षेत्र होते हैं जिसमे वहां पर जीविकोपार्जन कर रहे  व्यक्तियों का सामाजिक अंतरक्रियाओं एवम उनसे सम्बन्धित संस्थाएं आ जाती है। जहां पर वह अपने खेतों के मध्य बिखरे आवासों में वास करता है,और उनके गतिविधियों का केंद्र स्थल होता है।

मैरिल एंड एल्ड्रिज 

इनके शब्दों में ग्रामीण क्षेत्र या समुदाय वे क्षेत्र होते है जिनमे संस्थाएं और वे लोग आ जाते है जो एक अपेक्षाकृत छोटे से केंद्र के हर दिशा की ओर संगठित होते है। तथा WE लोग आपस में पारस्परिक प्राथमिक हितों या स्वार्थों के द्वारा बंधे रहते है।

श्री वास्तव

श्रीवास्तव ने ग्रामीण समुदाय के लोग प्राथमिक उद्योगों में कार्यरत हो अर्थात प्रकृति से उत्पन्न संसाधनों का प्रथम बार उत्पादन करते है। 

पीके 

इनके अनुसार ग्रामीण समुदाय परस्पर सम्बन्धित तथा असंबन्धित उन व्यक्तियों के समूह है जो अकेले परिवार से अधिक। विस्तृत एक बहुत बड़े घर का परस्पर निकट स्थित घरों में कभी अनियमित रूप से तथा कभी एक गली में रहता है।

तथा मूलतः उनके कृषि योग्य खेतों में कृषि करता है । मैदानी भूमि को आपस में बांट लेता है और आस-पास की बेकार भूमि में पशु चराता है जिस पर निकटवर्ती समुदाय कि सीमाओं तक वह समुदाय अपने अधिकार का दावा करता है।

फियरचाइल्ड

फियरचाइल्ड ने ग्रामीण समुदाय की परिभाषा कुछ इस तरह से दी है। ग्रामीण समुदाय पड़ोस की अपेक्षा विस्तृत क्षेत्र में ,जिसमे आमने सामने के सम्बन्ध पाए जाते है जिसमे सामूहिक जीवन के लिए अधिकांशतः सामाजिक, शैक्षणिक,धार्मिक एवम सेवाओं के आवश्यकता होती है।और जिसमे मूल अभिवृति (attitudes) एवम व्यवहारों के प्रति सामान्य सहमति होती है।

इंसाइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइंस

ने ग्रामीण समुदाय की परिभाषा इस तरह से दी है।

“एकाकी परिवार से बड़ा सम्बन्धित एवम असंबंधित लोगों का समूह जो एक बड़े मकान अथवा निवास के अनेक स्थानों पर रहता है,घनिष्ठ सम्बन्धों में आबाद हो तथा कृषि करता हो ग्राम कहलाता है।’

उपर्युक्त परिभाषाओं को दृष्टव्य रखते हुए कहा जा सकता है कि, ग्रामीण समुदाय का चित्रण एक सुनिश्चित भू भाग में निवासरत व्यक्तियों जिनका व्यवसाय कृषि से सम्बन्धित हो तथा समुदाय के साथ एक सामान्य जीवन यापन कर रहे हों,तथा सामुदायिक भावनाओं को प्राथमिकता हो,को ग्रामीण क्षेत्र या समुदाय कहलाता है।

ग्रामीण समुदाय की विशेषता 

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो गया होगा कि ग्रामीण सामुदायिक जीवन के कुछ पहलू ऐसे है, जो अन्य समुदायों में नहीं पाए जाते है।अर्थात ग्रामीण जीवन के कुछ अपने प्रतिमान होते है। जो शहरी समुदायों में संभवतय न पाए जाते हों कुछ विशेषता इस प्रकार है।

कृषि ही मुख्य व्यवसाय

ग्रामीण सामुदायिक जीवन की मुख्य विशेषताओं में से एक है।  उनका कृषि या प्राथमिक क्षेत्र के कार्यों में संलगन पाया जाना। क्यूंकि ग्रामीण समुदाय की भूमिका प्रकृति के साथ अधिक सामंजस्वपूर्ण होती है। परिणामस्वरूप ग्रामीण सामुदायिक जीवन की कृषि एक मुख्य पहचान है

प्राकृतिक रूप से करीबी

ग्रामीण प्रकृति के आस पास ही होते है। इसी के कारण प्रकृति से ग्रामीण समुदाय की आवश्यकता की पूर्ति होती है अतः प्रकृति और ग्रामीण समुदाय की आवश्यकताओं का आपस में चोली दामन का साथ है। इसीलिए दूरस्थ क्षेत्र होने के कारण इनकी नजदीकियां प्रकृति के साथ अधिक होती है।

सरल एवम साधा जीवन 

अपेक्षाकृत छोटा ग्रामीण समुदाय का सामुदायिक जीवन बहुत सरल एवम समरस्तता से परिपूर्ण होता है। ग्रामीण समुदाय की अपनी समस्याओं का समाधान आपस में ही मिलकर समाधान कर लेने में ही विश्वास रखते है,इसीलिए ग्रामीण का जीवन का व्यक्तित्व बहुत ही सीधा होता है।

परिवार का अधिक महत्व 

ग्रामीण समुदाय का मुख्य केंद्र बिंदु ग्रामीण परिवार है अर्थात ग्रामीण जीवन में परिवार ही व्यक्ति है तथा व्यक्ति ही परिवार है,साथ ही बड़े बुजुर्गों का बोलबाला रहता है । जिसके कारण छोटे बच्चों के आचार विचार पर बड़े बुजुर्गों को नजर हमेसा रहती है।

सामाजिक जीवन में एकरुपता

ग्रामीण समुदाय अपने आप में एक छोटा समुदाय होता है। जहां कृषि को प्राथमिक व्यवसाय के रूप में अपनाया जाता है। जिसके कारण ग्रामीण समुदाय में बाहर विभिन्न जाति ,धर्म,प्रांत से कम ही लोग आकर बसते है। इसीलिए ग्रामीण समुदायों में सामाजिक जीवन में एकरुपता पाई जाती है।

 जनमत का अधिक महत्व

ग्रामीण समुदाय में व्यक्तियों के आपस में घनिष्ठ सामाजिक सम्बन्ध होते है। वे एक दूसरे के साथ कोई न कोई रिश्ता रखते ही हैं । जिससे समरसता की भावना का विकास होता है। रिश्ते में बड़े बुजुर्गों का समुदाय में हर कोई मान समान करता है। इसीलिए इनकी बातों को कोई अनसुनी  नहीं करता,उनके मतव्य को तवजो दी जाती है।

अशिक्षा 

प्राय सुदूरवर्ती ग्रामीण समुदायों में शिक्षा का स्तर निम्न पाया जाता है। जिसके कारण गांव के लोग भाग्यवादिता होते है। तथा विभिन्न अंधविश्वासों से जकड़े होते है। इसीलिए उनका जीवन स्तर निम्न रह जाता है।

धर्म एवम परंपरा का बोलबाला

छोटे ग्रामीण समुदायों में सामाजिक सम्बन्ध भी अपेक्षाकृत कम होते है । जबकि शिक्षा का स्तर तो पहले से ही निम्न होता है। ऐसी प्रिस्तिथ में ग्रामीण जीवन में लोग धर्मपरायण होते है। इन लोगों का बाहरी दुनिया से भी विभिन्न कारणों से संपर्क भी कम होता है अतः यह लोग सामुदायिक संस्कृति पर अधिक जोर देते है।

सामाजिक गतिशीलता में कमी

ग्रामीण जीवन में लोग परम्परागत परंपराओं को मानने वाले है। ऊपर से जन संचार के साधनों का भी प्राय अभाव देखा जाता है। जिसके कारण ग्रामीण प्रवेश में सामाजिक सोपान या व्यवसायों में बदलाव की गुंजाइश कम ही होती है।

इसीलिए ग्रामीण क्षेत्र में सामाजिक गतिशीलता भी नही पाई जाती है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र के लोग नए बदलावों को अपनाने में दिलचस्पी कम ही रखते है।

सामुदायिक भावना

सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र शहरों की अपेक्षा कम क्षेत्रफल में ही फैले हुए होते है। और उसी क्षेत्र में लंबे समय से लोग एक साथ जीवन यापन की सामान्य क्रियाओं में संलिप्त होते है। जिसके कारण ग्रामीण जनता में एक दूसरे के प्रति एक सामुदायिक एकता की भावना स्वतः ही विकसित हो जाती है।

तुलनात्मक अकेलापन

ग्रामीण सामुदायिक जीवन प्राय बाहरी दुनिया के संपर्क में कम ही आते है । क्योंकि एक तो वहां पर शिक्षा का स्तर कम पाया जाता है। दूसरा संचार के साधनों का उपयोग ग्रामीण लोग कम ही करते है।

जबकि उनकी आवश्यकता की पूर्ति ग्रामीण शहरों से ही हो जाती है ग्रामीण समुदाय का व्यवसाय भी प्राय कृषि कार्यों तक ही सीमित रहता है। अतः दुनियां में घटित घटनाओं से उनको कोई लेना देना नही होता है।  और न ही वे लोग इसमें रुचि रखते है।

संयुक्त परिवार 

ग्रामीण क्षेत्र में संयुक्त परिवार प्रणाली पाई जाती है। या यूं कहा जा सकता है की संयुक्त परिवार प्रणाली ग्रामीण समुदाय की एक पहचान है । जहा पर तीन से अधिक पीढ़ी के लोग एक साथ रहते है। घर का मुखिया सबसे बुजुर्ग सदस्य होता है। संयुक्त परिवार प्रणाली में आए और व्यवसाय भी संयुक्त होते है।

स्त्रियों की स्तिथि निम्न होना 

ग्रामीण जीवन में महिला अपेक्षाकृत अशिक्षित होती है। साथ ही विभिन्न रितिरिवाजों के कारण उनका व्यक्तित्व का विकास भी अपेक्षानुसार  नही हो पाता है। अतः ग्रामीण महिलाओं पर पुरुषों को तरजीह दी जाती है । जिससे सामाजिक स्तर पर महिलाओं की स्तिथि प्राय कमजोर हो जाती है। 

नगरीय समुदाय

अक्सर सभी लोग शहरों और नगरों के बारे में जानते होंगे परन्तु शहरी या नगरीय समुदाय की सटीक परिभाषा का आज भी अभाव देखा जा सकता है।  जनसंख्या की दृष्टि से भी देखें तो नगरों को जनसंख्या पूंज भी कहा जा सकता है।

इसीलिए नगरीय समुदाय में जनसंख्या घनत्व भी अधिक पाया जाता है।यहां के लोग जीवन यापन के लिए द्वितीय व तृतीय क्षेत्र की ओर गतिशील होते है। साथ ही नगरों में सामाजिक संस्थाओं का विकास अपने वास्तविक स्वरूप में नहीं होते है।

संवैधानिक दृष्टि से देखा जाए तो कह सकते हैं कि, ऐसा स्थान या नगर जिसे सर्वोच्च सत्ता के आदेशों के द्वारा नगर (शहर) घोषित किया हो , हालांकि ऐसा राजा और महाराजाओं के शासन के दौरान नही पाया जाता था।

शहर का शाब्दिक अर्थ

यदि शहर के शाब्दिक अर्थ की ओर देखें तो शहर शब्द की उत्पति अंग्रेजी भाषा के CITY नामक  शब्द से हुई बताई जाती है। जबकि खुद CITY नामक का शब्द लेटिन भाषा के CIVITAS नामक शब्द से बना है।

जिसका अर्थ नागरिकता से लिया जाता है। वहीं दूसरी ओर यदि अंग्रेजी भाषा का URBAN शब्द लेटिन भाषा के ही URBANUS नामक शब्द से बना है ।

जिसका अर्थ भी शहर ही होता है,जो की  लेटिन भाषा के URBS का अर्थ भी CITY अथवा शहर ही है। वहीं यदि नगर को जनसंख्या की दृष्टि से देखें तो इसके पैमाने अलग अलग राष्ट्रों में अलग अलग है, जो की इस प्रकार है। 

तालिका 1  

राष्ट्र का नाम जनसंख्या ग्रीनलैंड 300 अर्जेंटीना 1000 भारत 5000 इटली 10000 स्पेन 10000 अमेरिका 25000 

 

साथ ही नगर के भोगौलिक विस्तार के संबन्ध में भी भिन्न-भिन्न मत है जैसे हंगरी नामक राष्ट्र में नगर क्षेत्र के तहत कृषि भूमि का होना भी आवशयक है,आदि। 

नगर समुदाय की परिभाषा 

नगरीय समुदाय और ग्रामीण समुदाय किसी भी सामाजिक जीवन के  महत्वपूर्ण हिस्से होते है। जिसके कारण नगरीय समुदाय से संबन्धित सर्वमान्य परिभाषाओं का अभाव पाया जाता है। फिर भी कुछ समाजवेत्ताओं और विद्वानों ने नगरीय समुदाय की परिभाषा इस तरह से दी है। पहले उनके नामों का उल्लेख किया जाना उचित प्रतीत होगा। 

1 बर्गल 

2 लुइस वर्थ 

3 ममफोर्ड 

4 थियोडोरसन 

5 सोमबर्ट 

 बर्गल  

बार्गल ने  परिभाषा देते हुए कहा है कि “नगर एक संस्था है जहाँ पर अधिकांश लोग कृषि कार्यों के अलावा अन्य कार्यों में व्यस्त होते है।” 

लुईस वर्थ

आप लिखते है ऐसे व्यक्तियो का समूह है जिनमें सामाजिक भिन्नता दृष्टिगोचर होती है जो घने बने आवासों में स्थाई रूप से रहते है।

ममफोर्ड

ममफोर्ड  ने नगरीय समुदाय की परिभाषा देते हुए कहा है कि “नगर एक भौगोलिक ढांचा है। साथ ही नगर एक आर्थिक संगठन व संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले कार्यों का और सामाजिक PROCESSES या प्रक्रियाओं के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है,और सामूहिक एकता का SYMBOLIZED या प्रतीक है।

सोमबर्ट

सोमबर्ट ने नगरीय समुदाय के संदर्भ में अपनी परिभाषा में लिखा है कि,

“नगर अपेक्षाकृत एक बड़ा स्थान होता है, जहां पर लोग व्यक्तिगत रूप से एक दूसरे को नही पहचानते है।”

किंग्सले डेविस 

डेविस महोदय ने नगरीय समुदाय की परिभाषा देते हुए कहा है कि, “नगर एक ऐसा समुदाय है जिसमे सभी यथा राजनेतिक,सामाजिक और आर्थिक प्रतिबद्धता एवम जन घनत्व के कारण नियंत्रण के लिए औपचारिक साधनों द्वारा संगठित होता है

भारत में सर्वप्रथम 1991 की जनसंख्या के आधार पर नगरों को परिभाषित किया गया था, जो की इस प्रकार से है ।वे सारे स्थान जहां पर नगर महापालिका या अधिसूचित नगर या कैंट बोर्ड आदि हो । इसके अलावा वे सभी स्थान 

1 जहां पर न्यूनतम  5000 से अधिक की आबादी हो। 

2 कार्यशील जनसंख्या का तीन चौथाई हिस्सा गैर कृषि कार्यों में लगा हो। 

3 जनसंख्या का घनत्व प्रति मिल 400 हो।  

नगर कह लायेगा 

इस तरह से हम देखते है कि, नगरीय समुदाय सामाजिक भिन्नता को लिए हुए वे समुदाय होते है जहा पर द्वितीय और तृतीय क्षेत्र में अधिक लोग सलिप्त होते है।  साथ घनी जनसंख्या हो । तथा अवैयक्तिक सम्बन्धों की प्रधानता हो।

नगरीय समुदाय की विशेषता या सामाजिक असमानता ।

समाजशास्त्र विषय के तहत कई समाजवेताओं और विद्वानों ने नगरीय समुदाय की विशेषता के बारे में बताया है । जिनमे से प्रमुख है किंग्सले डेविस ,और रोनाल्ड फ्रीडमैन आदि। सामुदायिक रूप से नगरीय समुदाय की विशेषता इस प्रकार से है।

जनसंख्या की अधिकता 

नगरीय समुदाय की प्रमुख विशेषताओं में से एक है घनी POPULATION (जनसंख्या) का होना है। परिभाषा के आधार पर यह भी स्पष्ट है कि जनसंख्या की अधिकता वाले क्षेत्र ही नगरीय समुदाय कहलाते है। जनसंख्या के आधार पर ही नगरों को नगर और महानगरों में DIVIDED (विभाजित) किया जाता है।

सामाजिक जीवन में भिन्नता

नगर जनसंख्या के पुंज कहलाते है । इसका प्रमुख कारण है । नगरों में आधुनिक सुख सुविधा एवम रोजगार के अपेक्षाकृत अधिक साधन उपलब्ध है। जिसके कारण विभिन्न जाति धर्म, संप्रदाय के लोग नगरीय क्षेत्रों में बसते है, जिससे वहां सामाजिक UNIFORMITY या एकरूपता का अभाव पाया जाता है।

व्यवसायों में भिन्नता 

नगरों में रोजगार के अवसर अधिक होते है ,नगरों में उद्योगों और फेक्ट्रियो के विकास की सभी संभावनाएं मौजूद रहती है। जो रोजगार सृजन का का कार्य करते है। इसीलिए नगरों में व्यवसायों की अधिकता होती है।

व्यक्तिवादिता

अर्थात नगरों में व्यक्ति का महत्व उसकी योग्यता से होती है। और उसी से व्यक्ति की पहचाना भी की जाता है। नगरों की यही प्रवृत्ति है जो व्यक्तिवादिता  की तरफ अग्रसारित करती है।

धर्म का महत्व कम 

नगरों में शिक्षा का स्तर अधिक रहता है। क्योंकि यहां पर अनेक प्रकार के शिक्षण संस्थान रहते है । जिससे उनकी विचार धारा विज्ञानिकता पर धारित होती है। साथ ही नगरों में लोग एक साथ होटलों और रेस्टरों में खाना पीना खाते है,पशिचामी सभ्यता का बोलबाला रहता है । जिसके कारण नगरों में धर्म का महत्व कम होता है।

अधिक मानसिक संघर्ष

यह सच है कि नगरों में रोजगार एवम खाने पीने,धन कमाने के अनेक अवसर उपलब्ध है। परन्तु वहीं बेकरी,लुटमारी ,दुर्घटना ,महंगी लाइफ स्टाइल आदि के कारण व्यक्ति मानसिक रूप से उलझा हुआ रहता है।

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 श्रम विभाजन एवम विशेषीकरण

शहरों में व्यक्ति अनेक कार्य में लगे रहते है । परन्तु व्यक्ति विशेष जिस भी कार्य को करता है उसमे उसकी महारत हासिल होती है । अतः शहरों में पारस्परिक निर्भरता अधिक रहती है।

 द्वितीय सम्बन्धों की प्रधानता

नगरों में जनसंख्या घनत्व अधिक होता है इसलिए यहां पर आमने सामने वाले पारस्परिक सम्बन्धों का अभाव पाया जाता है । इसका मतलब यह कतई नहीं है कि नगरों में सम्बन्धों का अभाव पाया जाता है। वरन यहां पर जो भी सम्बन्ध स्थापित होते है वे द्वितीयक होते है।

सामाजिक अपराध एवम समस्याएं

जहां पर जनसंख्या अधिक होती है, वहां पर अपराध पनपने की संभावना भी उतनी ही बलवती होगी । चूंकि नगरों में जनाधिक्य पाया जाता है। अतः नगरीय सामुदायिक जीवन में बाल विवाह,बलात्कार,चोरी, वेश्यावृति, गंदी बस्तियां आदि कि आधिकता रहती है।

सुरक्षा 

नगरों में पोलिस,गुप्तचर,जेल,न्यायालय आदि के कारण ही नगरीय अपराधों में संरक्षण प्राप्त होता है। इसके अलावा भी सेवायोजित सम्बन्धी समस्या भी अधिक होती है। जिनकी सुरक्षा हेतु नगरीय कृतम संस्थाओं का ही दायित्व रहता है।

इसके अलावा सामाजिक गतिशीलता,आधुनिक सुविधाओं का विकास,मानव सभ्यताओं के पोषक के रूप में राजनेतिक कार्य कर्मों की अधिकता आदि विशेषता पाई जाती है।

अतः उपर्युक्त विवेचना के आधार पर कह सकते है कि, ग्रामीण समुदाय प्राचीन मानवीय सभ्यता और सस्कृति के द्योतक है। दूसरी तरफ जो नगरीय समुदाय होता है

वह ग्रामीण समुदाय का ही विकसित व जटिल रूप होता है। परन्तु वर्तमान में प्रायः यह देखने को मिल जाता है। की पूरे समाज या राष्ट्र या फिर भौगोलिक कारक एवम भाषा के आधार पर अनेक क्षेत्रों को एक दूसरे से विभाजित कर दिया जाता है।

उन विभाजित क्षेत्रों को प्रदेश कहा जाता है। उदाहरण के लिय उत्तराखंड, तेलंगाना,पंजाब,झारखंड,आदि। इनका सूक्ष्म अध्ययन कर देखा जाए तो यहां पर भौगोलिक, सांस्कृतिक,भाषा आदि के अलग अलग पैमाने प्रायः दृष्टिगोचर हो जाते  है।

इसीलिए प्रो बोगार्ड्स ने ऐसे प्रदेशों या क्षेत्रों को क्षेत्रीय समुदाय के नाम से संबोधित किया है। परन्तु किसी राष्ट्र का भी एक निश्चित नाम होता है। जिसकी अपनी अलग भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक पहचान होती है । इसीलिए बोगार्ड्स ने राष्ट्र को राष्ट्रीय समुदाय का नाम दिया ।

मेंकाइवर तथा पेज के द्वारा

यदि देखा जाए तो उपर्युक्त विद्वानों या समाजवेताओं ने यथा प्रो किंग्सले डेविस,बोगार्ड्स,और मेकाइवर तथा पेज ने तीन तरह के समुदाय का वर्णन किया है,जो कि से प्रकार से है।

1 ग्रामीण समुदाय

2 नगरीय समुदाय

3 क्षेत्रीय समुदाय

समुदाय और समाज में अन्तर 

समुदाय समाज  यह व्यक्तियों का एक ग्रुप होता है।यह समुदाय में स्थापित मानवीय संबन्धों का जाल है। समुदाय अपने में एक मूर्त आयाम है।जबकि समाज अमूर्त अवधारणा है। निशिचत भू-खंड का होना आवश्यक है। आवश्यक नही। समुदाय में एक ही समाज हो सकता है।जबकि समाज में अनेक समुदाय पाए जा सकते है। इसमें सदस्यों के सामूहिक हित पाए जाते है।समाज में जरुरी नहीं

निष्कर्ष

उपर्युक्त व्याख्यान या वर्णन से एक बात तो स्पष्ट समझ में आ जाति है। कि अनेक विद्वानों ने समुदाय के प्रकारों का वर्णन अपने सुविधानुसार किया है। परन्तु ग्रामीण व नगरीय समुदाय का जिक्र लगभग सभी विद्वानों के द्वारा किया गया है।

यदि हम सूक्ष्म रूप से देखें तो ग्रामीण समुदाय का विस्तार व विकसित रूप ही है नगरीय समुदाय है।और इन दोनो का विस्तारित रूप क्षेत्रीय समुदाय के रूप में स्थापित है।

जबकि विभिन क्षेत्रीय समुदायों को मिलकर हो राष्ट्रीय समुदाय का जिक्र भी किया जा सकता है।और मुझे लगता है कि इसी आधार आने वाले समय में अनेक अन्य समुदायों के ऊपर अनुसंधान किए जा सकते है।

 

समुदाय से आप क्या समझते हैं ?

जैसा की COMMUNITY के शाब्दिक अर्थ का विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि,समुदाय कुछ व्यक्तियों का एक समूह है।  वे जब अपने एक समान उदेश्यों या लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक ही क्षेत्र में जीविकोपार्जन करते है। तो उसको एक समुदाय के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। और समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से भी समुदाय को इसी अर्थ में उपयोग किया जाने लगा है।

समुदाय से आप क्या समझते हैं समुदाय के प्रकार बताइए?

एच0 मजूमदार के अनुसार, ''समुदाय किसी निश्चित भू-क्षेत्र, क्षेत्र की सीमा कुछ भी हो पर रहने वाले व्यक्तियों के समूह है जो सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं''। डेविस के अनुसार ''समुदाय एक सबसे छोटा क्षेत्रीय समूह है जिसके अन्तगर्त सामााजिक जीवन के समस्त पहलुओं का समावेश हो सकता हैं''।

समुदाय कितने प्रकार के होते हैं?

जैसे संपूर्ण विश्व में मानव की जनसंख्या तथा उसके क्षेत्र की अवस्थिति में भिन्नता है ठीक उसी प्रकार समुदाय के विभिन्न प्रकार हमे सामाजिक संरचना के अंतर्गत दिखाई देते है यथा; ग्रामीण समुदाय, नगरीय समुदाय, क़स्बा, क्षेत्र इत्यादि इसका विस्तार दुनिया के संपूर्ण समाजों में पाया जाता है अतः इसनकी व्याख्या अत्यंत ही आवश्यक है ...

समुदाय क्या है समुदाय की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?

समुदाय एक निश्चित स्थान या भूभाग में रहने वाले व्यक्तियों का एेसा समूह है, जिसकी एक संस्कृति होती है, एक जैसी जीवन प्रणाली होती है, जो अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति समुदाय के भीतर ही पूरी कर लेते हैं। इस प्रकार उनमें वयं भावना होती है और समुदाय के प्रति वफादारी का भाव होता है।

समूह क्या है इसके मुख्य प्रकारों का वर्णन कीजिए?

इस प्रकार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के संगठन को सामाजिक समूह कहते हैं। समाजशास्त्र मे समूह से आशय दो या अधिक व्यक्तियों के मात्र संग्रह से ही नही होता। जैसा कि मैकाइवर व पेज का कहना है कि समूह से हमारा आशय व्यक्तियों के किसी भी ऐसे संग्रह से है जो एक दूसरे के साथ सामाजिक संबंधों मे लाये गये हो।