जंतुओं में श्वसन कैसे होता है - jantuon mein shvasan kaise hota hai

हेलो टूडेंट आपके सामने ही प्रसन्न दिया है कि जंतुओं में श्वसन के विभिन्न तरीकों का वर्णन कीजिए तो देखिए अगर हम बात करें सब तन की तो हम कह सकते हैं कि शोषण की छोकरिया होती है उस क्रिया में वातावरण से ऑक्सीजन ग्रहण की जाती है तथा वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त किया जाता है अब यहां पर आपको

पूछा गया है इस पर सन में की जंतुओं में संस्थान के तरीके पूछे हैं आपसे प्रोग्राम बात करें अलग-अलग जो जंतु होते हैं उनमें उनमें जो शासन और जो गैसों के आदान-प्रदान का तरीका अलग अलग होता है अगर हम बात करें जैसी मां लेते हैं हम अभी बाकी बात करते हैं तो आपको पता है कि अमीबा एक कोशिकीय जीव होता है तो अमीबा में हम कह सकते हैं गैसों का आदान प्रदान या हम कहीं सैमसंग जो है वह कोशिका झिल्ली के द्वारा होता है क्योंकि इनके चारों एक कोशिकीय आवन होता है और यह कोशिका झिल्ली जो है इससे गैसों का आदान प्रदान होता है तो इस प्रकार से आप कह सकते हो कि अमीबा में जो सेशन है वह कोशिका झिल्ली से होता है उसी प्रकार

आपने कैंसर देखा होगा किंतु आज होता है उसमें ताऊ जी यह सब होता है यानी है त्वचा के द्वारा श्वसन करता है उसी प्रकार अगर हम बात करें मछलियों की तो मछली में श्वसन अंग होते हैं कलम जिसे हम कल पड़े या दिल से भी कहते हैं अगर हम बात करें मनुष्य की तो मनुष्य में श्वसन किससे होता है फेफड़ों के द्वारा होता है तो इस प्रकार अलग-अलग जंतुओं में श्वसन के तरीके या हम कहीं गैसों के आदान-प्रदान का जो तरीका है वह अलग अलग होता है

श्वसन (Respiration): श्वसन एक जैविक क्रिया है जिसमें शर्करा तथा वसा का ऑक्सीकरण होता है तथा ऊर्जा मुक्त होती है। यह ऊर्जा शरीर के विभिन्न कार्यों को करने में सहायता करती है। इस प्रक्रिया में ATP तथा CO2 निकलती है। अतः वृहत रूप में श्वसन उन सभी प्रक्रियाओं का सम्मिलित रूप है, जिनके द्वारा शरीर में ऊर्जा का उत्पादन होता है।

श्वसन वैसी क्रियाओं के सम्मिलित रूप को कहते हैं जिसमें बाहरी वातावरण से ऑक्सीजन ग्रहण कर शरीर की कोशिकाओं में पहुँचाया जाता है, जहाँ इसका उपयोग कोशिकीय ईंधन (ग्लूकोज) का ऑक्सीकरण कई चरणों में विशिष्ट एन्जाइमों की उपस्थिति में करके जैव ऊर्जा (ATP) का उत्पादन किया जाता है तथा इस क्रिया से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड को फिर कोशिकाओं से शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है।

श्वसन क्रिया में ग्लूकोज अणुओं का ऑक्सीकरण कोशिकाओं में होता है। इसीलिए इसे कोशिकीय श्वसन कहते हैं। सम्पूर्ण कोशिकीय श्वसन को दो अवस्थाओं- 1. अवायवीय श्वसन तथा 2. वायवीय श्वसन- में विभाजित किया जा सकता है।

  1. अवायवीय श्वसन (Anaerobic respiration): यह श्वसन का प्रथम चरण है, जिसके अन्तर्गत ग्लूकोज का आंशिक विखण्डन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है। इस क्रिया द्वारा एक अणु ग्लूकोज से दो अणु पायरुवेट का निर्माण होता है। यह क्रिया कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) में होती है तथा इसका प्रत्येक चरण विशिष्ट एन्जाइम के द्वारा उत्प्रेरित होता है। इस क्रिया में चूंकि ग्लूकोज अणु का आंशिक विखण्डन होता है, अतः उसमें निहित ऊर्जा का बहुत छोटा भाग ही मुक्त हो पाता है। शेष ऊर्जा पायरुवेट (Pyruvate) के बंधनों में ही संचित रह जाती है। पायरुवेट के आगे की स्थिति निम्नांकित तीन प्रकार की हो सकती है-

(i) पायरुवेट ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में इथेनॉल एवं कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है। यह क्रिया किण्वन (Fermentation) कहलाती है, जो यीस्ट (Yeast) में होता है।

(ii) ऑक्सीजन के अभाव में पेशियों में पायरुवेट से लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है। पेशी कोशिकाओं में अधिक मात्रा में लैक्टिक अम्ल के संचय से दर्द होने लगता है। बहुत ज्यादा चलने या दौड़ने के पश्चात् मांसपेशियों में इसी कारण क्रैम्प (Cramp) होती है।

(iii) ऑक्सीजन की उपस्थिति में पायरुवेट का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है एवं CO2 तथा जल का निर्माण होता है। चूंकि यह क्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होती है, अतः इसे वायवीय शवसन कहते हैं।

  1. वायवीय श्वसन (Aerobic respiration): श्वसन के प्रथम चरण में बना पायरुवेट पूर्ण ऑक्सीकरण के लिए माइटोकोण्ड्रिया में चला जाता है। यहाँ ऑक्सीजन की उपस्थिति में पायरुवेट का विखण्डन होता है। तीन कार्बन वाले पायरुवेट अणु विखंडित होकर कार्बन डाइऑक्साइड के तीन अणु बनाते हैं। इसके साथ-साथ जल तथा रासायनिक ऊर्जा भी मुक्त होती है, जो ATP अणुओं में संचित हो जाती है। ATP के विखण्डन से जो ऊर्जा मिलती है, उससे कोशिका के अंदर होनेवाली विभिन्न जैव क्रियाएँ संचालित होती हैं।
वायवीय श्वसन एवं अवायवीय श्वसन में अंतर
1. वायवीय श्वसन ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है। 1. अवायवीय श्वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है।
2. वायवीय श्वसन का प्रथम चरण कोशिकाद्रव्य में तथा द्वितीय चरण माइटोकोण्ड्रिया में होता है। 2. अवायवीय श्वसन की पूरी क्रिया कोशिकाद्रव्य सम्पन्न में सम्पन्न होती है।
3. वायवीय श्वसन में ग्लूकोज का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है तथा CO2 एवं जल का निर्माण होता है । 3. अवायवीय श्वसन में ग्लूकोज का आंशिक ऑक्सीकरण होता है एवं पायरुवेट, इथेनॉल या लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है।
4. वायवीय शवसन में अवायवीय श्वसन की तुलना में अधिक ऊर्जा मुक्त होती है। 4. अवायवीय श्वसन में वायवीय शवसन की तुलना में कम ऊर्जा मुक्त होती है।

पौधों में श्वसन (Respiration in plants): पौधों में श्वसन-गैसों का आदान-प्रदान शरीर की सतह द्वारा विसरण (Diffusion) क्रिया से होता है। इसके लिए ऑक्सीजन युक्त वायुवायुमंडल से पतियों के रंध्रों (stornatas), पुराने वृक्षों के तनों की कड़ी त्वचा (bark) पर स्थित वातरंध्रों (Lenticels) और अंतर कोशिकीय स्थानों (Intercellular spaces) द्वारा पौधों में प्रवेश करती है। पौधों की जड़ें मृदा के कणों के बीच के स्थानों में स्थित हवा से ऑक्सीजन ग्रहण करती है। जड़ों से निकले मूल रोम (Root hairs) जो एपिडर्मल कोशिकाओं से विकसित होती है, मिट्टी के कणों के बीच फैली रहती है। इन्हीं मूल रोमों की सहायता से जड़ें ऑक्सीजन ग्रहण करती हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड बाहर छोड़ देते हैं। पुरानी जड़ों में ऐसे मूल रोमों का अभाव होता है। ऐसे जड़ों में तने की कड़ी त्वचा की तरह वातरंध्र (Lenticels) पाये जाते हैं। इन्हीं वातरंध्रों के माध्यम से श्वसन गैसों का आदान-प्रदान होता है। इसी कारण से पौधों की जड़ों में लम्बे अवधि तक जल जमाव होने से पौधा मर जाता है। जलीय पौधे भी विसरण क्रिया द्वारा जल से ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं एवं श्वसन क्रिया के पश्चात् CO2 गैस मुक्त करते हैं। पौधों में गैसों के विनिमय की क्रिया-विधि बहुत ही सरल है। पौधों में गैसों के आदान-प्रदान (विसरण) की दिशा इनकी आवश्यकताओं तथा पर्यावरणीय अवस्थाओं पर निर्भर करती है। दिन में श्वसन से निकली CO2 गैस का उपयोग पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में करते हैं। अतः CO2 गैस की जगह ऑक्सीजन रंध्रों से निकलती है। रात्रि में चूंकि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया सम्पन्न नहीं होती है, अतः श्वसन से CO2 गैस रंध्रों से बाहर निकलती है।

पौधों में श्वसन की क्रिया जन्तुओं के श्वसन से भिन्न होती है।

  1. पौधों के प्रत्येक भाग अर्थात् जड़, तना एवं पत्तियों में अलग-अलग श्वसन होता है।
  2. जन्तुओं की तरह पौधों में श्वसन गैसों का परिवहन नहीं होता है।
  3. पौधों में जन्तुओं की अपेक्षा श्वसन की गति धीमी होती है।

श्वसन गुणांक (Respiratory Quotient): श्वसन क्रिया में निकली हुई CO2 तथा अवशोषित CO2, के अनुपात को श्वसन गुणांक (RQ) कहते हैं।

श्वसन गुणांक (RQ) = निष्कासित CO2 का आयतन/अवशोषित O2 का आयतन

शर्करा के लिए श्वसन गुणांक का मान 1 होता है। वसा या प्रोटीन के लिए श्वसन गुणांक का मान 1 से कम होता है। श्वसन गुणांक (RQ) का मापन गैनोंग श्वसनमापी (Ganong’s respirometer) द्वारा किया जाता है।

श्वसन क्रिया को प्रभावित करने वाले कारक: श्वसन क्रिया को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

  1. कार्बन डाइऑक्साइड: प्रकृति में CO2 की मात्रा बढ़ने पर श्वसन दर कम हो जाती है।
  2. प्रकाश (Light): प्रकाश की उपस्थिति में श्वसन दर बढ़ जाती है।
  3. ऑक्सीजन (O2): ऑक्सीजन के मात्रा के घटने अथवा बढ़ने पर श्वसन दर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है जब तक ऑक्सीजन की मात्रा 19% से ऊपर हो।
  4. तापक्रम (Temperature): 0°C से 30°C तक ताप बढ़ने पर श्वसन दर लगातार बढ़ती रहती है।

जंतु में श्वसन कैसे होता है?

सभी जीवों की कोशिकाओं में कोशिकीय श्वसन होता है। कोशिका के अंदर, भोजन (ग्लूकोस) ऑक्सीजन का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड और जल में विखंडित हो जाता है। जब ग्लूकोस का विखंडन ऑक्सीजन के उपयोग द्वारा होता है, तो यह वायवीय श्वसन कहलाता है। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में भी भोजन विखंडित हो सकता है।

जंतुओं में श्वसन कितने प्रकार का होता है?

Solution : जन्तुओं का श्वसन अंग तीन प्रकार के होते हैं <br> (i)श्वास नली, (ii) पैरोटिड और (iii). सबलिंगअल।

जलीय जंतुओं के श्वसन अंग क्या हैं?

गलफड़ा एक श्वसन अंग है जो कई जलीय जंतुओं में पाया जाता है, गलफड़ा पानी में घुले हुए ऑक्सीजन को निकालता है और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता है। मछलियों के गलफड़े से होने वाली श्वसन क्रिया को क्लोम श्वसन कहा जाता हैं

पौधों में श्वसन और जंतुओं में श्वसन में क्या अंतर है?

पौधों में श्वसन की क्रिया जन्तुओं के श्वसन से भिन्न होती है। पौधों के प्रत्येक भाग अर्थात् जड़, तना एवं पत्तियों में अलग-अलग श्वसन होता है। जन्तुओं की तरह पौधों में श्वसन गैसों का परिवहन नहीं होता है। पौधों में जन्तुओं की अपेक्षा श्वसन की गति धीमी होती है।