परिवार का क्या अर्थ है इसके कार्य पर प्रकाश डालिए? - parivaar ka kya arth hai isake kaary par prakaash daalie?

परिवार एक विश्वव्यापी संस्था है। यह समाज की वह केन्द्रीय इकाई है, जिसमें माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री, ताऊ-ताई, चाचा-चाची, भतीजे-भतीजी, आदि सम्मिलित होते हैं और जो पारस्परिक उत्तरदायित्व स्रेह और सहयोग की भावना से परिपूर्ण भी होते हैं। किन्तु परिवार का यह स्वरूप मात्र भारतीय समाज में ही दृष्टव्य है। पाश्चात्य समाज में परिवार से अभिप्राय समाज की उस इकाई से होता है, जिसमें केवल पति-पत्नी/माता-पिता और उनके अविवाहित बच्चे या पुत्र-पुत्रियाँ सम्मिलित होते हैं। परिवार विवाह या किसी ऐसे संस्थागत सम्बन्ध की स्थापना द्वारा निर्मित होता है, जो स्त्री-पुरुष के यौन सम्बन्ध की स्थापना करती है तथा उसे स्थिर रखती है परिवार व्यक्ति को सामाजिक अस्तित्व प्रदान करता है तथा उसकी भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इसी समूह के द्वारा मनुष्य का वंश भी निश्चित होता है।

Show

मैकाइवर एवं पेज ने परिवार को एक प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट करते हए परिभाषिता किया है। उन्होंने लिखा है, “परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्धों के द्वारा परिभाषित एक ऐसा समूह है, जो कि सन्तानोत्पादन करने और बच्चों के पालन-पोषण की व्यवस्था करता है।”

जी. पी. मुरडॉक ने परिवार की अत्यन्त विस्तृत परिभाषा देते हुए लिखा है कि “परिवार सामान्य निवास, आर्थिक सहयोग और सन्तानोत्पत्ति के लक्षणों से युक्त, एक सामाजिक समूह है। इसमें दोनों लिंगों के व्यस्क सम्मिलित होते हैं, जिनमें कम से कम दो व्यक्ति समाज के द्वारा स्वीकृत यौन सम्बन्ध रखते हैं और सम्भोग करने वाले वयस्क को एक या अधिक बच्चे अथवा गोद लिए हुए बच्चे होते हैं।

स्पष्ट है कि परिवार वह सामाजिक संस्था/संघ/समिति है, जिसकी स्थापना पुरुष स्त्री के समाज स्वीकृति यौन सम्बन्धों (विवाह) के आधार पर होती है। परिवार में पति-पत्नी केअतिरिक्त उनके माता-पिता और सन्तानें भी निवास कर सकती हैं, अर्थात परिवार में मात्र माता-पिता और बच्चे ही नहीं बल्कि वे सभी व्यक्ति आते हैं, जो रक्त सम्बन्धी हो, गोद ना हों और जिन्हें परिवार या समाज ने परिवार में रहने की अनुमति दी हो। विभिन्न रिभाषाओं की विवेचना से स्पष्ट होता है कि मैकाइवर एवं पेज द्वारा प्रस्तुत परिवार की परिभाषा ही अत्यधिक उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने परिवार के जिन कार्यो की विवेचना की है, वे आधुनिक युग के प्रत्येक परिवार के मूलभूत आधार है, यथा –

1. यौन सम्बन्ध (Sex Relationship)

2. सन्तानोत्पत्ति (Procreation) एवं

3. बच्चों का पालन-पोषण (Upbringing of the Children)

परिवार का क्या अर्थ है इसके कार्य पर प्रकाश डालिए? - parivaar ka kya arth hai isake kaary par prakaash daalie?

भारतीय ग्रामीण परिवारों की मुख्य विशेषताएँ

भारतीय ग्रामीण परिवारों की मुख्य सामान्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

संयुक्त परिवार की बहुलता –

भारतीय गांवों में अधिकांशतः संयुक्त माता-पिता, पुत्र-पुत्रियाँ, ताऊ-ताई, चाचा-चाची एवं अन्य नातेदार एक साथ मिलकर रहते हैं। परिवार का प्रबन्ध संचालन परिवार का सबसे बड़ा वयोवद्ध करता है, जिसको ‘मुखिया‘ कहते हैं। ग्रामीण परिवार का आकार बड़ा होता है। फिर भी सभी सदस्य एक ही मकान में रहते हुए एक था खाते-पीते, पहनते-ओढ़ते हैं। प्रत्येक घरेलू और सामाजिक कार्य में परस्पर सहयोग करते हैं। परिवार की सम्पत्ति पर सबका अधिकार माना जाता है।।

कृषि प्रमुख व्यवसाय –

ग्रामीण परिवार जीविका हेतु मुख्यतः कृषि पर निर्भर करते हैं। वे अपनी आवश्यकताओं से अधिक कृषि उत्पादन कर लेते हैं, क्योंकि परिवार के अधिकांश सदस्य खेती में सहयोगपूर्वक काम करते हैं।

धर्म और परम्पराओं का अधिक महत्व –

ग्रामीण परिवार में धर्म और परम्पराओं -रीति-रिवाजों, परिपाटियों का अधिक महत्व होता है। समय-समय पर परिवार में धार्मिक उत्सव नियोजित होते हैं। प्रत्येक सदस्य धर्म – कर्म और परम्परा का पालन करने का प्रयास करता है। धर्म की उपेक्षा को पाप माना जाता है। धार्मिक नियमों का पालन खियाँ बढ़-चढ करती है। धर्म के प्रभाव से परिवारों में कुछ रूढ़ियाँ और अन्धविश्वास भी पाये जाते हैं, फिर भी वे धर्म और परम्पराओं द्वारा अनुशासित और नियंत्रित होते हैं।

See also  पीयरे बाॅर्डियू का सांस्कृतिक संघर्ष सिद्धांत | Pierre Bourdieu in Hindi

अतिथि सत्कार पर बल –

ग्रामीण परिवार आज भी ‘अतिथि देवो भवः’ की भावना रखते हैं। यहां घर में आने वाले मेहमानों और आगन्तुकों का यथोचित आदर-सम्मान यकिया जाता है। वे स्वयं भखे रहकर भी अतिथि की आव-भगत करते हैं, उसके स्वागत में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते।

पारिवारिक सम्मान एवं प्रतिष्ठा के प्रति जागरुकता –

ग्रामीण परिवार प्रत्येक स्थिति में अपने पारिवारिक मान-सम्मान को बनाने रखने में सजग होते हैं। परिवार के सभी लोग अपनी पारिवारिक मान-मर्यादा एवं प्रतिष्ठा के लिए मर मिटने को तत्पर रहते हैं किन्त उस पर आंच नहीं आने देते। परिवार के बड़े-बुजुर्ग अपने घर के सदस्यों को सदैव ऐसे कार्य करने की प्रेरणा देते हैं, जिससे परिवार की इज्जत बढ़े, कम न हो सके।

सामाजिक जीवन की एक महत्वपूर्ण इकाई-

ग्रामीण समुदाय में परिवार एक मूल इकाई के रूप में होता है। भारतीय गांवों में सामाजिक सम्बन्ध मात्र व्यक्ति तक ही समित नहीं होते ,उसके परिवार से भी होते हैं। यहां परिवार की स्थान प्राथमिक और व्यक्ति को द्वितीयक/गौण माना जाता है। व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा काफी कुछ उसके परिवार की सामाजिक प्रस्थिति पर ही निर्भर करती है। प्रत्येक परिवार गांव में एक-दूसरे को जानते हो इसलिए प्रत्येक सामाजिक- सांस्कृतिक एवं मांगलिक, उत्सव, संस्कार, पर्व, विवाह, आदि के समय सम्पूर्ण परिवार को आमन्त्रित करते है।

सदस्यों में एकरूपता –

ग्रामीण परिवारों में सदस्यों के विचारों, भावनाओं, मल्यों आदर्शों. कार्यों में काफी कुछ समानता होती है। घर-परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपनी शारीरिक, भौतिक, सामाजिक तथा आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विचार पर ही निर्भय रहना पड़ता है। अतः वे अपने जीवन को बड़े बुजुर्गों के आदेसों के अनुरूप ढाल लेते है।।

अधिक अन्तःनिर्भरता –

ग्रामीण परिवार के सदस्यों में अन्योन्याश्रिता की प्रवृत्ति  शहरों की अपेक्षा अधिक पाई जाती है। ग्रामीण परिवार विभिन्न क्रियाओं का केन्द्र होता है। व्यक्ति की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन एकमात्र परिवार ही होता है। अतः सदस्य एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।

उत्पादन और सामाजिक जीवन की इकाई –

यद्यपि ग्रामीण परिवारों का प्रमुख व्यवसाय कृषि ही होता है, किन्तु इससे प्राप्त खाली समय में वे हथकरघे का काम, दरी-चटाई  बनाने का काम, रेशम का काम, गुड बनाने का काम आदि भी करते हैं। इन कार्यों में  परिवार के सभी सदस्य अपनी क्षमतानुसार उत्पादन में सहयोग देते हैं। परिवार के सदस्य सुख-दुःख में समान रूप से भागीदारी करते हैं। परिवार की समस्याओं और कठिनाइयों का मुकाबला सामूहिक रूप से करते हैं।

बड़े-बुजुर्गों का नियंत्रण और अनुशासन –

अधिकांश भारतीय परिवारों में पितृसत्तात्मक सत्ता है, जिसमें परिवार की सम्पूर्ण शासन-सत्ता पिता के अधीन या उसके न होने पर ताऊ, चाचा या सबसे बड़े पुत्र के हाथों में होती है। उसे ही परिवार का ‘कर्ता‘ मुखिया माना जाता है। वही घर के सभी दायित्व वहन करता है। उसी पर परिवार की मान-मर्यादा निर्भर करती है। परिवार के सभी सदस्य उसका नियंत्रण और अनुशासन स्वीकार करते हैं।

 श्रम के विशेषीकरण का अभाव –

ग्रामीण परिवार के सदस्यों में श्रम का विशेषीकरण नहीं होता। एक व्यक्ति खेती तो करता है और आवश्यकता होने पर कृषि के यन्त्रों और उपकरणों, मकान, आदि की मरम्मत, पशुओं का पारा काटने, कुआं खोदने आदि के कार्य भी करता है। किन्तु इस प्रकार के श्रम में विशेषज्ञ नहीं होता है।

स्त्रियों की निम्न स्थिति –

अशिक्षा, बाल विवाह, परदा प्रथा, अन्धविश्वास आदि के फलस्वरूप ग्रामीण परिवार में स्त्रियों की दशा अत्यधिक गिरी हई होती है। ग्रामीण परिवारों में स्त्रियाँ आर्थिक मामलों में पुरुषों पर ही निर्भर रहती है, अतः बहुधा पुरुष वर्ग उन्हें अपनी दासी मानता है। स्त्रियों की इस निम्न स्थिति के लिए सम्पर्ण ग्रामीण समाज की संरचना, आदर्श, मूल्य व संस्थाएँ उत्तरदायी हैं।

See also  सामाजिक उद्विकास की अवधारणा, अर्थ, सिद्धान्त तथा विशेषताएं | Udvikas kya hai in hindi

ग्रामीण समाज में परिवार में हो रहे परिवर्तन

परिवर्तनों के प्रभाव से ग्रामीण समाज भी नहीं बचा है। भारतीय ग्रामीण समाज में परिवार संरचना या ढाँचे तथा कार्यों में अग्रलिखित परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं-

1. परिवार के आकार में ह्रास अर्थात् संयुक्त परिवार के स्थान पर सीमित(एकाकी) परिवार के प्रति झुकाव।

2. पति-पत्नी के सम्बन्धों में परिवर्तन अर्थात् पत्नी की स्थिति में सुधार।

3. मुखिया(पिता) के अधिकारों में कमी तथा अन्य सदस्यों के महत्व में वृद्धि।

4. विवाह सम्बन्धों और जीवन साथी के चुनाव में परिवर्तन।

5. पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति के प्रभाव से वय्क्तिवादिता, भौतिकतावाद एवं स्वतंत्रा के झुकाव में वृद्धि।

6. सामाजिक विधानों के कारण विवाह, तलाक, अन्तर्जातीय विवाह की छूट, स्त्रियों को सम्पत्ति अधिकारों की प्राप्ति होना।

7. परिवार के कार्यों का अन्य संस्थाओं को हस्तान्तरण।

8. जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न जीविकोपार्जन, शिक्षा आदि की समस्याओं का जन्म।

9. रेल, बस, मोटरसाइकिल, आदि यातायात साधनों से उत्पन्न जीविकोपार्जन में वृद्धि।

10. औद्योगीकरण एवं नगरीकरण से उत्पन्न समस्यायें एवं बेरोजगारी तथा निर्धनता में वृद्धि, आदि।

ग्रामीण भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम को अधिक प्रभावशाली बनाने का सुझाव-

1. उन क्षेत्रों में जहाँ की जनसंख्या इस कार्यक्रम से अनभिज्ञ है, लोगों कोइसका महत्व बताकर इसके प्रति जागृति उत्पन्न की जाए।

2. अन्धविश्वास और रुढिवादिता को दूर करके शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार किया जाए।

3. डाॅक्टरों एवं प्रशिक्षित नर्सों को नौकरी के दौरान कुछ वर्षों तक ग्रामीण क्षेत्रों में नियुक्त करेक अच्छी सेवाएं प्रदान की जाएं।

4. प्रशासनिक स्तर पर कार्यक्रम सम्बन्धी प्रचार प्रसार की गलत नीतियों को दूर किया जाए।

5. परिवार नियोजन के लिए महिलाओं को प्रेरित किया जाए।

6. परिवार नियोजन के साधनों की जानकारी दी जाए, उन्हें निःशुल्क उपलब्ध कराया जाए।

7. परिवार नियोजन सम्बन्धी भ्रान्तियों को दूर किया जाये, आदि।

 संयुक्त परिवार और एकाकी परिवार में अंतर

दोनो प्रकार के परिवारों में निम्नलिखित मुख्य अंतर देखे जा सकते है-

1. संयुक्त परिवार का आकार विशाल होता है, क्योंकि इसमें तीन या तीन से अधिक पीढ़ियों के सदस्यों एक साथ एक ही घर में सामूहिक रूप से रहते हैं, जबकि एकाकी परिवार का आकार छोटा होता है, क्योंकि केवल पति, पत्नी और उनकी अविवाहित सन्तानें ही रहती है।

2. संयुक्त परिवार ग्रामीण क्षेत्रों और एकाकी परिवार औद्योगिक तथा नगरीय समाज में अधिक पाये जाते है।

3. संयुक्त परिवार में परिवार का मुखिया कठोर अनुशान और नियंत्रण रखता है, किन्तु एकाकी परिवार के सदस्यों  पर माता-पिता का कठोर नियंत्रण नहीं रहता है।

4. संयुक्त परिवार में बच्चों के व्यक्तित्व के वकास पर एकाकी परिवार की अपेक्षा, विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है।

5. परिवार में पति एवं पत्नी के मध्य और संयुक्त परिवार में माता और बच्चों के प्रति घनिष्ट सम्बन्ध होते है।

 

इन्हे भी पढ़ें-

  • सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता का कारण

  • ग्रामदान आंदोलन किसने चलाया

  • ग्रामीण पुनर्निर्माण और नियोजन की परिभाषा,उद्देश्य

  • पंचायती राज व्यवस्था पर एक निबन्ध लिखिए।

  • भूदान यज्ञ का कार्यक्रम,महत्व तथा लाभ

  • भूमिहीन/कृषि मजदूर किसे कहते हैं,इनकी समस्याएँ

  • भूमि सुधार का क्या अर्थ है इसके उद्देश्य,महत्व

  • भूदान आंदोलन के प्रणेता कौन थे

  • संस्कृतिकरण का अर्थ | संस्कृतिकरण पर निबंध
  • आधुनिकीकरण की विशेषताओं की विवेचना कीजिए
  • जाति का अर्थ, परिभाषा तथा विशेषता
  • लोक संस्कृति का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं.
  • भारतीय ग्रामीण सामाजिक संरचना क्या है?
  • कृषक समाज तथा भारतीय कृषक समाज की विशेषता
  • कृषक समाज की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए
  • ग्रामीण समाजशास्त्र का महत्व और विकास
  • वैश्वीकरण क्या है? भारत में वैश्वीकरण का नकारात्मक प्रभाव
  • प्रदूषण क्या है,पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार
  • जल संसाधन क्या है जल संसाधन की आवश्यकता

Disclaimer -- Hindiguider.com does not own this book, PDF Materials, Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet or created by HindiGuider.com. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: [email protected]

परिवार का क्या अर्थ है इसके कार्यों पर प्रकाश डालिए?

परिवार का अर्थ अवधरणा एवं परिभाषाएं परिवार सामाजिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण आधार स्तंभ है, जिसका व्यक्ति के जीवन में प्राथमिक महत्व है। परिवार सामाजिक संगठन की एक सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक निर्माणक इकाई है। परिवार के द्वारा ही सामाजिक संबंधों का निर्माण होता है जो समाजशास्त्र की विषय वस्तु है।

परिवार क्या है परिवार के कार्य लिखिए?

परिवार द्वारा किये जाने वाले संतानोत्पत्ति के कार्य से ही समाज का अस्तित्व एवं निरंतरता बनी रहती है। परिवार संतानो को वैधता प्रदान करता है। परिवार अपने सदस्यों की शारीरिक रक्षा का कार्य भी संपन्न करता है। पालन-पोषण से लेकर बच्चे को सामाजिक प्राणी बनने तक संपूर्ण दायित्व परिवार द्वारा वहन किये जाते है।

परिवार क्या है परिवार का अर्थ एवं विशेषताएं बताइए?

बर्गेश और लॉक के अनुसार- “परिवार उन व्यक्तियों का समूह है जो विवाह या गोद लेने के बंधनों से जुड़े हुए होते हैं, और एक गृहस्ती का निर्माण करते हैं और पति-पत्नी माता पिता, पुत्र और पुत्री, भाई और बहन अपने अपने सामाजिक कार्य करते हैं और एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं , व्यवहार और संबंध रखते हैं और एक सामान्य संस्कृति का ...

परिवार किसे कहते हैं परिवार कितने प्रकार के होते हैं?

परिवार समाज की इकाई है जिसमें माता पिता, उनकी संतान और सगे संबंधी रहते हैं. यह दो प्रकार का होता है : संयुक्त परिवार और एकल परिवार.