पादप के विभिन्न भागों के चित्र बनाकर बताएं - paadap ke vibhinn bhaagon ke chitr banaakar bataen

प्रश्न एक पौधे का चित्र बनाकर उसके भागों के नाम लिखिए तो हमें इस प्रश्न में पौधे के चित्र के बारे में पूछा और उसके भागों के नाम हमें बताने हैं एक सामान्य पादप जो होता है उसका चित्र इस प्रकार से होता है मिट्टी में इसके पाई जाती है जेडी इस प्रकार से यह जड़े पाई जाती हैं और यह तनाव होता है इस प्रकार से यह तना है और चने के ऊपर यहां शाखाएं लगी भी होती है इस प्रकार से यह सफाई होती है और शाखाओं पर पत्तियां पाई जाती है यह पत्तियां है और पत्तियों के साथ-साथ इन पर फूल पाए जाते हैं फूल या फिर कुछ तो प्रतीत होते हैं इस प्रकार से और यह पुस्तक जो है यह फलों में रूपांतरित हो जाते हैं इस प्रकार से फल पाए जाते हैं तो यह एक पादप की होती है बाकी की शाखाओं में भी प्रकार से पत्तियां पुष्प फल लगे हुए होते हैं उनका नामांकन कर लेते हो पाई जाती

है यह मिट्टी में उपस्थित होती है जिनका काम क्या होता है यह पादप का पानी और पानी के साथ-साथ खनिज लवणों का शोषण करती है खनिज लवण अवशोषित करती है अवशोषण का काम होता है इसके अलावा मिट्टी में पादप को बनाए रखती है दूसरा जो होता है पादप का वह होता है तनु जो है यह पादप को आकृति प्रदान करता है और स्थायित्व प्रदान करने का काम करता है साहित्य के अलावा यह पानी खनिज लवण खनिज लवण और इसके अलावा भोजन का संवहन करने का काम करता है भोजन का संवहन और खनिज लवण है वह जड़ के द्वारा तने से होकर पाठक के अन्य भागों में जाते हैं और भोजन

से वह पत्तियों में बनता है और पत्तियों से तने के द्वारा जड़ों या फिर अन्य भागों में जाता है तीसरे प्रकार का जो हमें पा द भाग देखते हैं वह होता है उस यहां पर कुछ तो है कुछ तो है यह जननांग होता है जननांग और इसमें पाए जाते हैं 4 भाग होते हैं पूछ के मुख्यता होता है इसमें 22 दिन भाइयों दल जिसको केलिक्स बोलते हैं दल या दलपुंज और दो जनरल पाए जाते हैं एक होता है पुंकेसर जो नर जननांग होता है और दूसरा होता है श्री कैसर या फिर हम इसको जायांग बोलते हैं इस प्रकार से यह पोस्ट होता है इसके अलावा इसमें जो और पादप भाग होते हैं वह होता है फल फल पाया जाता है और फल से बनता है यह बनता है पुष्प से फल का निर्माण होता है पुस्तकें और फल के अंदर उपस्थित होते हैं

जिस प्रकार से यहां पर पादम पादम ने पहला हमने पादप भाग देखा वह था जब दूसरा तीसरा यहां पर हमने देखा पुष्प चौथा हमने देखा फल फल और भी और एक का दबाव और है वहां पर है पत्तियां पत्तियां या फिर लिख बोलते हैं इनको पत्तियों पत्तियों का काम क्या होता है पत्तियां जो है यह प्रकाश संश्लेषण का काम करती है प्रकाश संश्लेषण या फिर फोटोसिंथेसिस का काम करती है और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के द्वारा भोजन का निर्माण होता है भोजन का निर्माण होता है और उसके गैसों के आदान-प्रदान में भी सहायक होती है सरकार से हमने कुल 5 पदकों के नाम देखे हैं पर

हेलो स्टूडेंट हमें क्यूशन दिया गया है फूल के विभिन्न भागों का वर्णन चित्र बनाकर करें इसका आंसर देखें फूल फूल पादपों के फूल पादपों के जनन अंग होते हैं जनन अंग होते हैं उसकी यदि हम सिरेंस ना देखें सबसे नीचे पादप का वह भाग जहां पर पोस्ट जिस पर पुष्प लगा होता है

पाचन कहलाता है क्या कहलाता है पुष्पा सन उत्पादन पर पुष्प के सभी चारों भाग 11 होते हैं उस पाचन पर उसके सभी चारों भाग के होते हैं उसके सबसे दो भाइयों चक्कर होता है साहित्यकार वह कहलाता है वह दलपुंज जो कि हरीश रंजना होती है उसके बाद रंगीन पंखुड़ियों का तो चक्कर होता है उसे कहते हैं दलपुंज

दलपुंज और नर जननांग उनके सर और मादा जननांग मंडप कहलाते हैं यह दूसरे ना होती हैं यह चिरंतना पुंकेसर की होती हैं यदि इसके हम इसका नामकरण करें तो सबसे भाई यह जो यह रचना होती हैं इसे कहते हैं भाई यह दल पुंज भाई यह तो दलपुंज होते हैं उसकी सुरक्षा का कार्य करते हैं इसे इस रचना को कहते हैं पुष्पा सन यह सरना कहलाती हैं दलपुंज जो की रंगीन हो

प्रांगण में सहायक होती हैं यस रचना होती है अंडा भी आप कह सकते हो कि स्त्री केसर और यह संतरा कहलाती हैं पुंकेसर पुष्प में 4:00 तक कर पाए जाते हैं पोस्ट की संरचना में चार चक्कर पाए जाते हैं चार चक्कर पाए जाते हैं सबसे भाई यह जो होता है जाकर उसे कहते हैं भाई अदलपुर बाह्य दल पुंज यह भूत की सुरक्षा का कार्य करता है कार्य

करता है सेकंड जो साहित्यकर होता है उसे कहते हैं दलपुंज यह रंगीन पंखुड़ियों का रंगीन पंखुड़ियों का चक्कर होता है जो प्रांगण में सहायक होता है जो प्रांगण में सहायक होता है तीसरा चक्कर होता है पुमंग पुष्प के नर जननांग उमंग कहलाते हैं

लास्ट चक्र होता है जायांग चौथा चक्कर जायांग पुष्प का मादा जननांग मादा जननांग जयन कहलाता है

Biology Biology November 28, 2020

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(structure of flower in hindi) पुष्प की संरचना को समझाइए पादप पुष्प का नामांकित चित्र सचित्र वर्णन कीजिये ?

पुष्प की संरचना (structure of flower) : इस तथ्य से हम भलीभांति परिचित हो गए है कि पुष्प पौधे की जनन संरचना है और लैंगिक जनन से सम्बन्धित सभी प्रक्रियाएँ पुष्प में ही संपन्न होती है। इस प्रकार पुष्प की अनुपस्थिति में भ्रूण , बीज और फल का विकास सम्भव नहीं है। आकारिकी दृष्टि से पुष्प एक रूपांतरित प्ररोह है जिसमें पर्व और पर्वसन्धियां सुसंहत रूप से व्यवस्थित होती है। पर्वसन्धियों पर बन्ध्य और उर्वर उपांग अर्थात पुष्पी पत्र उपस्थित होते है।

पुष्प सामान्यतया एक सामान्य अक्ष पर व्यवस्थित होते है और इनके व्यवस्था क्रम को पुष्पक्रम कहते है। अक्ष पर प्रत्येक पुष्प एक वृंत द्वारा संलग्न रहता है और इस प्रकार के (वृंतयुक्त) पुष्प सवृंत कहलाते है। अनेक पुष्पों में वृंत का अभाव होता है , जिन्हें अवृंत कहते है।

प्रारूपिक पुष्प में उपांगों के चार चक्र उपस्थित होते है , जिन्हें क्रमशः बाह्यदलपुंज , दलपुंज , पुमंग और जायांग कहते है। सभी उपांग पात्र पर एक निश्चित क्रम में व्यवस्थित होते है। उपांगों की पुष्पासन पर स्थिति के आधार पर पुष्प निम्नलिखित प्रकार के हो सकते है –

(i) जायांगधर : इसमें उपांग जायांग के आधार पर निविष्ट होते है अर्थात अण्डाशय उधर्ववर्ती होता है।

(ii) जायागोंपरीक : इनमें उपांग जायांग के ऊपर अर्थात शीर्ष पर निविष्ट होते है। ऐसी स्थिति में अंडाशय अधोवर्ती होता है।

(iii) परिजायांगी : यह जायांगधर और जायांगोपारिक के मध्य की स्थिति है , जिसमें पुष्पासन अवतल अथवा प्यालेनुमा होता है। इसमें जायांग प्याले के केंद्र पर और अन्य उपांग प्याले की परिधि पर संलग्न होते है।

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1. बाह्यदलपुंज : यह पुष्पीय उपांगों का सबसे बाह्य चक्र है। यह सामान्यतया अनेक पत्तीनुमा हरी संरचनाओं से बना होता है , जिन्हें बाह्यदल कहते है। बाह्यदलपुंज का प्राथमिक कार्य कलिका अवस्था में पुष्प की सुरक्षा करना है। अपवाद स्वरूप कुछ पादपों के पुष्पों जैसे – आइरिस , ग्लेडियोलस और ट्यूलिप आदि में यह दलपत्रों के समान रंगीन होते है , जो पुष्प कलिका की रक्षा के अतिरिक्त कीटों को आकर्षित कर परागण में भी सहायक होते है।

2. दलपुंज : यह पुष्पी उपांगों का दूसरा चक्र है जो बाह्यदलपुंज के अन्दर की तरफ स्थित होता है। यह अनेक दलपत्रों से बना होता है जो बड़े , आकर्षक और रंगीन होते है। दलपुंज का प्रमुख कार्य परागण क्रिया के लिए कीटों और पक्षियों को आकर्षित करना है। वायु परागित पुष्पों में दलपत्र सामान्यतया छोटे और सफ़ेद और अनाकर्षक होते है। पुष्प की कलिका अवस्था में दलपुंज पुष्प के आवश्यक अंगों (पुंकेसर और जायांग) को परिबद्ध किये रहता है और सूर्य और वर्षा से सुरक्षा करता है।

दलपत्रों का आकार और व्यवस्था पुष्प को विशिष्ट आकार प्रदान करते है। सामान्यतया एक पुष्प के सभी दलपत्र समान होते है और इस प्रकार का दलपुंज नियमित कहलाता है। लेकिन कुछ पौधों के पुष्पों में दलपत्रों की आकृति और आमाप समान नहीं होता ऐसा दलपुंज अनियमित कहलाता है। जब किसी पुष्प के बाह्यदलपुंज और दलपुंज परस्पर विभेदित न होकर एक समान दिखाई देते है तो इनको सामूहिक रूप से परिदल कहा जाता है।

3. पुमंग : यह पुष्पी उपांगों का तृतीय चक्र है और पुष्प के नर जननांग को निरुपित करता है। यह अनेक पुंकेसरों या लघुबीजाणुपर्ण से बना होता है।

विभिन्न जातियों में पुंकेसरों की संख्या अलग अलग होती है। पुष्प में पुंकेसरों की संख्या सामान्यतया दलपत्रों की संख्या के बराबर या दुगुनी होती है। प्रत्येक पुंकेसर के दो भाग होते है – पुतन्तु और परागकोष। प्रत्येक परागकोष में सामान्यतया दो पराग पालियां होती है , जो योजी द्वारा जुडी रहती है। प्रत्येक परागकोष में अनेक परागकणों का निर्माण होता है।

4. जायांग : यह पुष्पी उपांगों का चतुर्थ और अंतिम चक्र है और पुष्प के स्त्री जननांग को निरुपित करता है। जायांग एक अथवा अधिक अंडपों या गुरुबीजाणुपर्ण से मिलकर बना होता है। एक प्रारूपिक जायांग में तीन भाग – वर्तिकाग्र वर्तिका और अंडाशय विभेदित होते है। वर्तिकाग्र जायांग का शीर्षस्थ भाग है जो परागकणों को ग्रहण करता है। वर्तिका बेलनाकार सूत्रवत भाग है जो वर्तिकाग्र को समुचित ऊँचाई तक दर्शित करता है। अंडाशय जायांग का आधारी फूला हुआ भाग है , जिसमें एक या अनेक बीजाण्ड होते है।

सामान्यतया पुष्प के सभी अंडप मिलकर एक संयुक्त अंडाशय बनाते है और ऐसे जायांग को संयुक्ताण्डपी कहते है। उदाहरण पिटुनिया , हिबिस्कस आदि। यदि प्रत्येक अंडप एक पृथक अंडाशय बनाता है तो जायांग की यह स्थिति वियुक्तांडपी कहलाती है। उदाहरण रेननकुलस मैग्नोलिया आदि।

इस प्रकार पौधे के जीवन चक्र को अग्रसर करने और वंश वृद्धि के लिए पुष्प एक महत्वपूर्ण संरचना है। इस सन्दर्भ में एक प्रारूपिक पुष्प के विभिन्न उपांगों अथवा भागों को दो भागों में विभेदित किया जा सकता है –

1. वर्धी अंग / सहायक अंग (accessory organs) : इसके अंतर्गत बाह्यदल पुंज और दलपुंज सम्मिलित किये गए है। बाह्यदल और दलपुंज को समग्र रूप से परिदल पुंज कहते है। पुष्प के ये भाग पौधे के लिए दो प्रमुख उत्तरदायित्वों का निर्वहन करते है –

(i) पुष्प की आवश्यक संरचनाओं जैसे पुमंग और जायांग को सुरक्षा प्रदान करना।

(ii) पुष्प को कीट परागण के लिए सुन्दरता और आकर्षण प्रदान करना विशेष रूप से दलपुंज का कार्य है।

2. आवश्यक अंग अथवा जनन अंग (essential organs) : क्रमशः पुमंग और जायांग पुष्प की अत्यावश्यक और जनन संरचनाओं के रूप में परिलक्षित होते है। जब दोनों अर्थात पुमंग और जायांग एक ही पुष्प पर पाए जाए तो ऐसे पुष्प को द्विलिंगी पुष्प कहते है लेकिन जब दोनों अलग अलग पुष्पों में प्राप्त हो दोनों ऐसे पुष्पों को एकलिंगी पुष्प कहते है। जिस पुष्प पर केवल पुमंग पाया जाता है उसे नर पुष्प और जिस पुष्प में केवल जायांग मिले उसे मादा पुष्प कहते है।

पुमंग पुष्प की नर जनन संरचना होती है जिसकी एक इकाई को पुंकेसर कहते है। मोटे तौर पर एक प्रारूपिक पुंकेसर को तीन भागों में विभेदित किया जा सकता है। ये निम्नलिखित है –

1. पुन्तंतु

2. परागकोष

और

3. योजी

जायांग आवृतबीजी पुष्प की मादा जनन संरचना है। जायांग की एक इकाई को अंडप कहते है। इनकी संख्या एक से असंख्य तक हो सकती है। और ये पृथक अथवा संयुक्त रूप से पाए जाते है। एक प्रारुपिक स्त्री केसर भी तीन भागों में विभेदित होता है –

1. अंडाशय

2. वर्तिका

और

3.  वर्तिकाग्र

पुष्प एक रूपान्तरित प्ररोह (flower is a modified shoot)

अनेक वनस्पतिज्ञों द्वारा यह अवधारणा प्रस्तुत की गयी है कि पुष्प एक रूपांतरित प्ररोह है जो उच्चवर्गीय पौधों में लैंगिक जनन के लिए उत्तरदायी है। उपर्युक्त अवधारणा के अनुसार पुष्प संघनित और प्रजनन कार्य के लिए रूपान्तरित पर्णयुक्त प्ररोह है। यहाँ बाह्य दल और दलपत्रों को रूपांतरित पत्तियों के समकक्ष मान सकते है जबकि पुंकेसर और अंडपों को ऐसी विशेष पत्तियाँ माना गया है जिनमें जनन संरचनाएँ विकसित होती है। उपर्युक्त तथ्य की पुष्टि पुंकेसर और अंडपों की स्थिति , व्यवस्था क्रम , आंतरिक संरचना और परिवर्धन प्रक्रिया पत्तियों के समान होने के कारण भी होती है।

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पुष्प के रूपान्तरित प्ररोह होने के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किये गए है –

1. पुष्प कलिका की समजातता (homology of floral bud) : कायिक कलिका और पुष्प कलिका बाह्य आकृति में एक दुसरे से भिन्न दिखाई देती है लेकिन दोनों प्रकार की कलिकाएँ उत्पत्ति में समान होती है। इनकी समजातता निम्नलिखित तथ्यों द्वारा प्रमाणित होती है –

(अ) कलिकाओं की स्थिति : सामान्यतया कायिक अथवा वर्धी कलिका के समान ही पुष्प कलिका का विकास भी अन्तस्थ अथवा कक्षस्थ स्थिति में होता है।

(ब) कलिकाओं का रूपान्तरण : कुछ पौधों जैसे – अगेव , ग्लोबा बल्बीफेरा , एलियम सैटाइम आदि में कभी कभी पुष्प कलिका का रूपांतरण पत्रकलिका या कायिक कलिका में हो जाता है। यह पुष्प कलिका की कायिक प्रकृति को दर्शाता है।

2. पुष्पासन की अक्षीय प्रकृति (axis nature of thalamus) : पुष्पासन या पात्र को संघनित और छोटे केन्द्रीय अक्ष के समकक्ष माना जा सकता है , जिनमें पर्व की वृद्धि रुक गयी है। इसमें पर्व और पर्वसन्धियाँ स्पष्ट रूप से विभेदित नहीं होती है इसलिए पुष्पी उपांग एक ही स्तर से निकले प्रतीत होते है –

पुष्पासन की अक्षीय प्रकृति निम्नलिखित असामान्य स्थितियों से भी स्पष्ट होती है –

(अ) सुदीर्घित पर्व : सामान्यतया पुष्प का पुष्पासन एक संघनित अक्ष के रूप में होता है लेकिन कुछ पादपों के पुष्प में पर्व और पर्वसंधियाँ विभेदित होती है। केपेरिस , पेसीफ्लोरा और गायनेन्ड्रोप्सिस में पुष्पासन सुदिर्घित हो जाता है जिसमें सुस्पष्ट पर्व और पर्वसन्धियाँ विभेदित होती है। दलपुंज और पुमंग के मध्य सुदीर्घित पर्व को पुमंगधर और पुमंग और जायांग के मध्य सुदीर्घित पर्व को जायांगधर कहते है।

(ब) स्तम्भ विकास : सामान्यतया पुष्प अक्ष की वृद्धि पुष्पी अवयवों और अंडपों के निर्माण के पश्चात् रुक जाती है लेकिन कभी कभी पुष्प निर्माण के पश्चात् भी अक्ष की वृद्धि पुनः कायिक प्ररोह के रूप में हो जाती है। इस स्तम्भ अथवा प्ररोह में वर्धी स्तम्भ के समान ही पर्ण विकसित हो जाती है। पुष्प अक्ष की इस प्रकार की वृद्धि विकटरुपी विकास कहलाता है। गुलाब और नाशपाती आदि में ऐसी वृद्धि देखी जा सकती है।

(स) दीर्घित पुष्पासन : चम्पा , अडूसा और अन्नानास आदि के पुष्पों में पुष्पासन का अंडप धारणा करने वाला क्षेत्र स्तम्भ के समान दिर्घित होकर पुंजफल बनने में सहायक होता है।

3. पुष्पीय उपांगों की पर्णीत प्रकृति (leaf nature of floral appendages)

पुष्पी उपांग (बाह्यदल , दल , पुंकेसर और स्त्रीकेसर ) सामान्य पतियों के समजात होते है। इन उपांगों की सामान्य पत्तियों से समानता अग्र लक्षणों द्वारा प्रदर्शित होती है –

(अ) विन्यास : पुष्पासन पर पुष्पी उपांगों (बाह्यदल और दल) का विन्यास या व्यवस्था क्रम स्तम्भ पर पर्ण विन्यास के समान होता है।

(ब) बाह्यदलों की पर्णिल प्रकृति : कुछ पौधों में पुष्पों के एक अथवा अधिक बाह्यदल बड़े होकर कायिक पर्ण के समान हो जाते है। मुसेन्डा में प्रत्येक पुष्पक्रम के एक अथवा अधिक पुष्प का एक बाह्यदल पत्तियों के समान बड़ा और रंगीन होता है। पीओनिया में भी पत्तियों का पुष्पी पर्णों में रूपांतरण देखा जा सकता है।

(स) पुष्पीय पर्णों का रूपान्तरण : वाटरलिलि में बाह्यदलपत्र का दलपत्र में और दलपत्र का पुंकेसर और अंडपों में क्रमिक रुपान्तरण होता हुआ देखा गया है। इसी प्रकार गुलाब की उद्यान में उगाई जाने वाली किस्मों के पुष्पों में बाहरी चक्रों के पुंकेसर धीरे धीरे दलपत्रों में रूपांतरित होते हुए पाए जाते है। यही कारण है की जंगली प्रजातियों में केवल पाँच दलपत्र पाए जाते है जबकि उद्यान में उगाई जाने वाली किस्मों में अनेक दलपत्र होते है। इसी प्रकार गुडहल में भी पुंकेसरों का दलपत्रों में रुपान्तरण हुआ है।

उपर्युक्त उदाहरण पुन्केसरों और अंडपो की साधारण पत्तियों से उत्पत्ति और विकासीय प्रवृत्तियों में समानता परिलक्षित करने के लिए पर्याप्त है।

पुष्प के विभिन्न भाग कौन कौन से हैं?

फूल के भाग.
बाह्यदल.
दल (पंखुड़ी).
पुंकेसर.
स्त्रीकेसर.
बाह्यदल.

पौधे के कितने भाग होते हैं उनके नाम बताइए?

पौधों के पाँच भाग होते हैं – 1 जड़ 2 तना, 3. पत्ती 4. फूल, 5. फल।

पौधों के विभिन्न भागों के नाम क्या है?

पौधों को मुख्य रूप से तीन भागो में बाटा गया है- जड़, तना तथा पत्ती।

फूल के नीचे हरे भाग को क्या कहते हैं?

बाह्यदल पुंज बाह्यदल पुंज फूल की सबसे बाहरी कुंडली होती है और इसे बाह्यदल कहा जाता है। बाह्यदल हरे रंग की पत्तियों की तरह लगते हैं। इन्हें फूल के नीचे देखा जा सकता है।