हिंदी भाषा और प्रौद्योगिकी पर निबंध - hindee bhaasha aur praudyogikee par nibandh

सारांश
प्रौद्योगिकी के सभी क्षेत्र जैसे भाषा प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, अनुवाद प्रौद्योगिकी आदि पूरा विश्व समेटे हुए हैं । इनसे दूरदराज़ दुनिया बहुत सन्निकट हुई है । व्यापार सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बना । विश्व में फैले व्यापारी और विविध देशों के यात्री भारत में आए । चीन द्वारा मंगोल शासनकाल की खोजें – बारूद, रेशम की मशीनें, बर्तन, हर तरह की जीवन – यापन के लिए प्रयुक्त होने वाली चीजें, बाजार और व्यापार के माध्यम से यूरोपादि देशों में पहुँची । व्यापार में वृद्धि हुई और इन व्यापारिक सम्बन्धों ने वैश्वीकरण को जन्म दिया । इसका व्यापक स्तर पर अर्थ है बाजारीकरण । भारत के बाजार में अपनी बनी वस्तुएँ भी हैं और वे विश्व बाजार में भेजी जा रही हैं । साथ में अनेक वस्तुएँ खरीदी भी जा रही हैं । बहुत कुछ बदल गया है । संस्कृति, उद्योग – धंधे, रहन – सहनादि सब इससे प्रभावित हुए हैं अर्थात् कुछ क्षेत्र जैसे विज्ञापनादि को लेकर जो बदलाव हुए हैं, वे बहुत ही चिन्ताजनक हैं, परन्तु प्रौद्योगिकी के कारण सभी क्षेत्रों में गति से विकास हुआ ।भाषा प्रौद्योगिकी भी ऐसा ही एक क्षेत्र है जो अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है । इसने बाजार की अनेक संभावनाएँ दुनिया के सामने रखी हैं ।

मूल शब्द
भाषा ,विज्ञान,प्रौद्योगिकी, संगणक और उसका कार्यान्वयन , कम्पूटर की मशीनी भाषा,निम्नस्तरीय भाषाएँ,मध्यस्तरीय भाषाएँ- असेम्बली भाषा या कोड ,उच्चस्तरीय भाषाएँ – बैसिक, कोबोल, सी – प्लस आदि । फोंट आधारित पैकेज्स,शब्द संसाधन,डाटा संसाधन,भाषा प्रौद्योगिकी अंत:संबंध,हिन्दी, भारतीय भाषाएँ और प्रौद्योगिकी, साहित्य और प्रौद्योगिकी

भाषा की आवश्यकता
मानव सभ्यता के विकास में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का बड़ा योगदान है । यह विकास प्रक्रिया काफी परिवर्तनशील रही है । यह परिवर्तन और विकास का माध्यम प्राय: भाषा ही रहती है । मानव जीवन के विविध क्रियाकलाप भाषा से जुड़े रहते हैं । भाषा के विवेकपूर्ण ढंग के प्रयोजन के कारण जर्जर रूढ़ियाँ, कुसंस्कार और आपसी मतभेद नष्ट होने में वह सहायक होती है । साथ ही वह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव जागृत करने का सशक्त माध्यम होती है । भाषा का सामाजिक स्वरूप आधुनिक युग में अधिक समृद्ध और व्यापक बना है ।इसे समृद्ध तथा व्यापक बनाने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का बड़ा योगदान रहा है।

भाषा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ भाषा का गहरा सम्बन्ध है । जिस देश और जाति का विज्ञान सम्बन्धी ज्ञान उन्नत होता है, उतनी ही भाषा भी उन्नत रहती है । भारत में पारम्परिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी का क्षेत्र बड़ा विकसित है । उसी तरह भाषा के अध्ययन की एक समृद्ध परम्परा रही है । अभिजात्य भाषाओं में जागतिक स्तर पर संस्कृत भाषा सबसे अधिक व्यवस्थित, समुन्नत और वैज्ञानिक भाषा रही है । आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत में अभी बहुत संभावनाएँ शेष हैं । 1995 ई. के बाद भारतीय भाषाएँ सभी स्तरों पर ज्ञान – विज्ञान के प्रचार – प्रसार में सक्रिय सहभागिता दर्ज कर रही रही हैं । प्रशासनिक कार्यभाषा, जनसम्पर्क की भाषा और शिक्षण माध्यम की भाषा में असमानता व्याप्त है, परन्तु भारत सरकार के सूचना तथा प्रसारण मंत्रालय के अन्तर्गत सी-डैक, आई.आई.टी, कानपुर आदि अनेक संस्थाओं द्वारा इन्हें दूर करने के प्रयास भी हो रहे हैं । अब हिन्दी इंटरनेट की द्वितीय भाषा बन चुकी है । अब सभी भारतीय भाषाओं में भी अनेक सर्च इंजनों द्वारा कार्य किया जा रहा है जैसे गुजराती, मराठी, तेलगू, तमिल, मलयालम, कन्नड आदि ।

प्रौद्योगिकी
‘चीजों अथवा कार्यों के बनाने अथवा करने का तरीका’ प्रौद्योगिकी है।(Pathak R.C.,1990 ) यह अर्थ दो सन्दर्भों में प्रयुक्त किया जाता है । संकुचित अर्थ केवल औद्योगिकी प्रक्रियाओं से जुड़ा है । विस्तृत अर्थ सभी पदार्थों के साथ होने वाली सभी प्रक्रियाओं से जुड़ा है । प्रौद्योगिकी का ज्ञान व्यावहारिक ज्ञान होता है। यही ‘प्रायोगिक विज्ञान’ अथवा ‘हस्तचालित कौशल’ कहा जा सकता है । प्रौद्योगिकी का अर्थ है, ‘विशिष्ट सैद्धान्तिक ज्ञान का व्यावहारिक ज्ञान में रूपान्तरण’ । इस ज्ञान शाखा का सम्बन्ध यांत्रिकीय कला अथवा प्रयोजनमूलक विज्ञान अथवा दोनों के समन्वित रूप में होता है । प्रौद्योगिकी का शाब्दिक अर्थ कला अथवा हस्तकला है । अपने समस्त रूप में प्रौद्योगिकी वह साधन है जिसके माध्यम से मनुष्य अपने परिवेश पर अपना अधिकार रख सकता है । प्रौद्योगिकी मानव को अपने परिवेश के प्रति सजगता बरतने का पाठ सिखाती है । किसी आवर्ती कार्यकलाप पर लागू औद्योगिक प्रक्रियाओं के योजनाबद्ध ज्ञान अथवा कार्य को प्रौद्योगिकी कहते हैं । प्रौद्योगिकी, विज्ञान और अभियांत्रिकी सम्बद्ध होती है। विज्ञान के माध्यम से मनुष्य को दुनिया, अन्तरिक्ष, पदार्थ, ऊर्जा तथा तद्जन्य क्रियाओं का वास्तविक ज्ञान मिलने की सहायता होती है । अभियांत्रिकी से तात्पर्य है, वस्तुनिष्ठ ज्ञान का उपयोग करके आयोजन, अभिकल्पना और अपेक्षित वस्तुओं के अभिकल्पन माध्यमों का निर्माण करना । प्रौद्योगिकी से तात्पर्य है,योजनाओं को परिचालित करने के लिए औजारों अथवा अधुनातन तकनीकों का व्यवहार करना । मनुष्य जीवन सुखमय, परिष्कृत बनाने में जितनी चीजों का उपयोग किया जाता है, वे सभी प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत आ सकती हैं जैसे संगणक, परिकलित्र, विविध यन्त्र, आरामदायी चीजें, टीवी, फ्रिज आदि ।

प्रौद्योगिकी की उपयोगिता
भौतिक जगत् और जीवन में प्रौद्योगिकी मानव की सहायता करती है। कारीगरी, शिल्पकारी आदि के रूप में प्राचीन काल में प्रौद्योगिकी मनुष्य के जीवन का अभिन्न भाग रह चुकी है । आधुनिक युग में इसका अर्थ तथा सन्दर्भ बदलते गए । आज विशिष्ट ज्ञान, विविध प्रकार के परीक्षणों और अन्वेषणों के माध्यम से पहले प्रयोगशाला में सम्पन्न होता है । फिर उसका विपणन हो जाता है और तब वह प्रौद्योगिकी का रूप धारण करता है । यह 18 वीं सदी की देन है । शोध और अध्ययन के माध्यम से प्राप्त विशेष ज्ञान, अभियांत्रिकी के माध्यम से प्रौद्योगिकी का स्वरूप धारण करते हैं । 18 वीं सदी के उत्तरार्ध में प्रौद्योगिकी प्रायोगिक विज्ञान का रूप ले रही है । 19 – 20 वीं सदी में काफी परिवर्तन हुए । आज प्रौद्योगिकी मानव जीवन की प्रत्येक गतिविधियों पर अपना प्रभाव डाल चुकी है । मानव जीवन प्रौद्योगिकी के प्रभाव से अनछुआ नहीं है । आज प्रौद्योगिकी विविध रूपों में उभर रही है । मनुष्य जीवन की ऐसी कोई गतिविधि नहीं है कि वहाँ प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं होता हो जैसे भाषा प्रौद्योगिकी, ग्राम प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, शिक्षण प्रौद्योगिकी आदि ।

भाषा का प्रौद्योगिकी संदर्भित अध्ययन :
भारत की अधिकतम भाषाएँ एक ही स्रोत से प्रवाहित हुई है ।हम जानते हैं कि उनका उद्भव ब्राह्मी वर्णमाला से हुआ है । हिन्दी, बंगला, असमिया, उड़िया,मराठी, गुजराती और गुरुमुखी लिपियाँ एक दूसरे से बहुत मिलती -जुलती हैं । इन्हें एक ही लिपि की भिन्न -भिन्न प्रणालियाँ कहा जा सकता है । दक्षिण भारत की लिपियाँ तमिल, कन्नड, तेलगू और मलयालम परस्पर समान और एक जैसे सिद्धान्तों पर आधारित हैं परन्तु ये देवनागरी से अलग हैं । उर्दू अपवाद स्वरूप है । इसमें फारसी,अरबी लिपि अपनाई गई है । हिन्दी, मराठी, नेपाली और संस्कृत लिखने के लिए देवनागरी लिपि को अपनाया गया है । तात्पर्य देवनागरी लिपि का भारत की सभ्यता और इतिहास से बहुत पुराना सम्बन्ध है । आधुनिक प्रौद्योगिकी के विकास में संगणक की खोज अनन्य साधारण घटना है । आज संगणक प्रौद्योगिकी का उपयोग जीवन के सभी क्षेत्रों में किया जा सकता है । इसके उपयोग के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं – भाषिक अध्ययन और विश्लेषण । पहले संगणक साधित भाषा संसाधन का कार्य अंग्रेजी में ही होता था, परन्तु आज अरबी, चीनी, हिब्रू, जापानी, कोरियन जैसी अनेक जटिल लिपियों के लिए भी किया जा रहा है । संगणक केवल एक तकनीकी उपकरण है । इसकी दो संकेतों की अपनी एक स्वतन्त्र गणितीय भाषा है।इसीमें कम्प्यूटर हमारी भाषाओं को ग्रहण करके अपने सभी कार्य करता है । अब प्रमाणित हुआ है कि कम्प्यूटर को किसी भी भाषा और लिपि को अपनाने में कोई ठोस और तकनीकी बाधा नहीं आती है ।
भाषागत अध्ययन और विश्लेषण के लिए संगणक प्रौद्योगिकी का उपयोग बहुत सरलता से किया जा सकता है । आज ‘अभिकलनात्मक भाषिकी’ भाषा विज्ञान की एक शाखा बन गई है ।(Ralph Grishman,1986) कम्प्यूटरीकृत सांख्यिकीय अध्ययन, विश्लेषण, शब्द, विश्लेषण, उपसर्ग, निपात विश्लेषण जैसे व्याकरणिक अध्ययन, लेखन शैली का विश्लेषण और विविध भाषाओं के शब्दों के आपसी सम्बन्ध व्याकरणिक संरचनाओं की जानकारी लेने जैसे साहित्यिक और भाषा वैज्ञानिक अध्ययन के लिए संगणक प्रौद्योगिकी का व्यापक रूप में उपयोग किया जा रहा है ।भाषा का विज्ञान से अटूट रिश्ता है । संगणक के साथ संवाद स्थापित करने के लिए भाषाओं के प्रयोग की आवश्यकता रहती है । कृत्रिम बुद्धिवाले पाँचवीं पीढ़ी के संगणक के साथ प्राकृतिक भाषा के साथ संवाद स्थापित करने के प्रयोग भी प्रारम्भ हो चुके हैं । भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थाओं में भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया जा सकता है । संगणक साधित हिन्दी तथा भारतीय भाषा शिक्षण में प्रौद्योगिकी के साथ गंभीरता तथा गहराई से सही मायने में जुड़ना है,तो व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और संगणक शास्त्र उसके तकनीक, विविध अनुप्रयोग, विविध हिन्दी सॉफ्टवेयर्स आदि का ज्ञान हासिल करना अनिवार्य रहेगा। पहले हम संगणक शास्त्र से परिचय करते हैं ।

संगणक
प्राचीन काल में चीन, भारत और अन्य देशों में प्रचलित गिनतारे को कम्प्यूटर का पूर्वज कहा जाता है । इसके आधार पर गणितीय गिनतियाँ की जाती हैं । 17 वीं सदी के आरम्भ में स्कॉटलैण्ड के गणितज्ञ जॉन नेपियर ने लघुगणक टेबल का आविष्कार किया जिससे गणना की जाती है । 1620 ई. में जर्मन के विलियम अधिट्रेड ने स्लाइड रूल की खोज की । 1641 ई. में ब्लेज़ पास्कल ने पास्कलिन मशीन तैयार की ।यह मशीन यांत्रिक कम्प्यूटर था। ब्रिटिश गणितज्ञ तथा वैज्ञानिक चार्ल्स बावेज ने सम्पूर्ण कम्प्यूटर की कल्पना की । 1921 ई. में इन्होंने एक मशीन तैयार की जिसका नाम रखा डिफ्रेशियल मशीन । फ्रांस के बुनाई विशेषज्ञ जोसफ जैकर्ड ने छिद्रित कार्डों का आविष्कार किया था । इससे कपड़ों में बुनते समय अलग – अलग पैटर्न बुने जा सकते थे । इसी मशीन से हटमैन हलरिथ ने जनगणना की प्रश्नावलियों को सुलझाया था । 1930 ई. में ब्रिटिश अध्यापक डॉलर ट्यूरिंग ने पहली बार इलेक्ट्रोनिक परियन्त्र की रूपरेखा बनाई । 20 वीं सदी के तीसरे और चौथे दशक में विविध देशों द्वारा कम्प्यूटर बनाने के प्रयोग किए गए । इन्हीं दशकों में प्रौद्योगिकी में बहुत प्रगति हुई । जर्मन अभियंता जॉन कोनराइड ज्यूस ने 1934 में जेड प्रथा नाम से यांत्रिक कम्प्यूटर बनाया जो द्विआधारी पद्धति पर निर्भर था । पहला इलेक्ट्रोनिक कम्प्यूटर आकार में बड़ा था । कम्प्यूटर के आकार और गति में परिवर्तन होता गया और फिर आधुनिक कम्प्यूटर बना । पहली पीढ़ी का कम्प्यूटर वैक्यूम ट्यूब टेक्नोलॉजी पर आधारित था । दूसरी पीढ़ी का ट्रांज़िस्टर और सर्किट तकनीक पर, तीसरी पीढ़ी का इंटीग्रेड तकनीक,चौथी पीढ़ी का वैरीलॉजी स्केल इंटीग्रेटेड तकनीक पर और पाँचवीं पीढ़ी के कम्प्यूटर कृत्रिमबुद्धि वाले हो गए । (Smith J. ,1978)

संगणक संरचना
कम्प्यूटर के कुंजीपटल, माउस, मॉनीटर और प्रिंटर्स को यस्थावस्तु कहा जाता है । कम्प्यूटर को चलाने और नियंत्रित करने के लिए आवश्यक साधनों को परावस्तु कहा जाता है। कम्प्यूटर को दिए जाने वाले निर्देश सही क्रम में होने चाहिए । ऐसे निर्देशों के समुच्चय को ही प्रोग्राम या क्रमादेश कहा जाता है । निश्चित काम को सम्पन्न करने के लिए तैयार किए गए प्रोग्राम को ही सॉफ्टवेयर कहा जाता है ।

संगणक – कार्य पद्धति
परिकलन की दो पद्धतियाँ हैं – गिनना और मापना । अंकों के आधार पर गणना करनेवाले संगणकों को अंकीय अथवा डिजीटल संगणक कहा जाता है । इनमें शत – प्रतिशत शुद्धता रहती है । अन्दाजे से माप के आधार पर परिकलना अथवा आकलन करने वाले कम्प्यूटर्स को एनालॉग कम्प्यूटर कहा जाता है । दोनों प्रकार के परिकलन की व्यवस्था करनेवाले कम्प्यूटर्स को हाइब्रिड कम्प्यूटर कहा जाता है । कम्प्यूटर की गणना का आधार द्विआधारी पद्धति है । सभी डिजीटल कम्प्यूटर इसी प्रणाली पर कार्य करते हैं । कम्प्यूटर की भाषा में 0 और 1 के संयोजन को बिट कहते हैं । सामान्यत: 7 बिट के कोड में अंग्रेजी के सभी अक्षर, संख्या और प्रतीक संकेत निहित होते हैं । इस कोड को ASCII (American Standard Code for Information Intercharge) नाम से अभिहित किया जाता है । हिन्दी और भारतीय भाषाओं की वर्णमाला के लिए 8 बिट कोड की आवश्यकता होती है । भारत सरकार के इलेक्ट्रोनिक विभाग ने ब्राह्मी लिपि पर आधारित भारत की सभी लिपियों का ISCIL (Indian Standard Code For Indian Language) नाम का समान कोड बनाया है । परिकलन का कार्य कैलक्यूलेटर द्वारा भी किया जा सकता है, परंतु डिजीटल कम्प्यूटर्स के पास विशेष स्मृति क्षमता होती है । इसलिए वह जटिल से जटिल समस्या का समाधान कर सकते हैं । इसलिए डिजीटल कम्प्यूटर को आज मानक शब्दावली में अभिकलित्र कहा जाता है । अभिकलन प्रक्रिया अधिक व्यापक होती है । इसे समझने के लिए संगणक की आन्तरिक संरचना समझना आवश्यक है । संगणक के मुख्यत: चार भाग होते हैं –
1. निवेश (Input) -कुंजीपटल के माध्यम से डाटा भरा जाता है । यह डाटा शब्दों या अंको के रूप में हो सकता है ।
2. संसाधन (Processing) – संसाधन एक प्रक्रिया होती है । इससे समस्या का हल निकाला जाता है । कम्प्यूटर का यह भाग परिकलित्र जैसा होता है, परन्तु अभिकलित्र के माध्यम से तार्किक गणनाएँ सम्भव होती हैं । इसी कारण संसाधन का यह यूनिट कम्प्यूटर का ह्रदय माना जाता है । संसाधक मॉनीटर अथवा स्क्रीन के नीचे के बक्से में एक छोटी – सी चिप में होता है । बक्से को कैबिनेट भी कहा जा सकता है । कैबिनेट में एक मदरबोर्ड होता है जिसमें संसाधक होता है ।
3. स्मृति कोष (Memory)- कम्पूटर के स्मृति कोष की इकाई बाइट होती है । एक बाइट में 8 बिट होते हैं । इस स्मृति कोष के दो भाग होते हैं। 1. पठन मात्र स्मृति (ROM- Read Only Memory) और 2. यादृच्छिक अभिगम स्मृति (RAM- Random Access Memory) रॉम के अन्तर्गत सॉफ्टवेयर निर्माताओं द्वारा स्थायी रूप से निर्देश होते हैं । उन्हें मिटाया नहीं जा सकता, केवल पढ़ा जा सकता है । रैम में कम्प्यूटर प्रयोक्ता अथवा ऑपरेटर अपना डाटा संचित करता है । रैम की क्षमता पर स्मृति संचय की क्षमता निर्भर होती है । फ्लॉपी डिस्क, सीडी तथा पेन ड्राइव ये भी स्मृति संचय का कार्य करते हैं ।
4. निर्गम (Output)- कम्पूटर पर संसाधित कार्यों का परिणाम स्क्रीन अथवा कागज पर प्राप्त किया जा सकता
है ।यही निर्गम है ।कम्प्यूटर की शब्दावली में मुद्रित कागज को हार्ड कॉपी कहते हैं । विविध प्रिंटर्स के माध्यम से यह प्राप्त किया जा सकता है ।
कम्पूटर के साथ संवाद स्थापित करने के लिए अत्यन्त स्पष्ट तथा सुबोध भाषा होनी चाहिए । उसका स्वरूप केवल अभिधापरक होना चाहिए । मानव प्रोग्रामर कम्प्यूटर के साथ संवाद स्थापित करने के लिए जिस भाषा का प्रयोग करता है, उसे कम्पूटर की भाषा कहा जाता है ।

हिन्दी, भारतीय भाषाएँ और प्रौद्योगिकी
विश्व में हो रहे अनेक प्रकार के बदलावों के कारण सामाजिक, सांस्कृतिक आदान – प्रदान काफी प्रभावित हो रहा है । भारतीय संस्कृति भी इससे अछूती नहीं रही है, अत: हिन्दी भाषा में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सामग्री, विविध प्रकार के अन्वेषण अथवा विषयों की अभिव्यक्ति करना अनिवार्य हो गया है।जनभाषा द्वारा इन विषयों की जानकारी उपलब्ध करवा देना आवश्यक हो गया है।1986 में भारत सरकार ने आदेश जारी किए थे कि केंद्र सरकार के सभी कार्यालयों और उपक्रमों में सभी प्रकार के यांत्रिक और इलेक्ट्रानिक उपकरण द्विभाषिक रूप में खरीदे जाएँ । मानसिक तथा तकनीकी अज्ञान के कारण इसमें तब गति नहीं आई थी, परंतु अब काफी परिवर्तन हुए हैं। आधुनिक प्रौद्योगिकी के विकास में कम्प्यूटर का विकास युगांतरकारी घटना मानी जाती है। अमेरिकन विद्वान रिक ब्रिग्ज के अनुसार कम्प्यूटर प्रोग्राम की सबसे वैज्ञानिक भाषा संस्कृत है, अत: देवनागरी में संगणकीय काम कठिन नहीं रहा | 1965 के बाद ही हिन्दी सॉफ्टवेयर बनाए गए | फिर यह काम आसान हो गया | भारत सरकार के राजभाषा विभाग ने सीडैक, पुणे (प्रगत संगणन विकास केंद्र, पुणे – Center for Development of Advance Computing, Pune) के माध्यम से कम्प्यूटर पर हिन्दी प्रयोग को सरल और कुशल बनाया | विविध सॉफ्टवेयरों के निर्माण से हिन्दी भाषा को तकनीकी से जोडने का प्रयास किया | सी – डैक ने विविध भारतीय भाषाओं के माध्यम से हिन्दी सीखने के लिए लीला सॉफ्टवेयर विकसित किया है | आज हिन्दी भौगोलिक सीमाओं कों पर कर चुकी है | भाषा प्रौद्योगिकी के माध्यम से यह संभव हुआ है |भारतीय भाषा कम्प्यूटिंग तथा हिन्दी भाषा कम्प्यूटिंग का लक्ष्य है | भाषा प्रौद्योगिकी जनमानस तक अपनी अपनी प्रादेशिक भाषा में पहुँचे | सभी भारतीय भाषाओं में नवीन टेक्नोलॉजी से काम करना आसान हो जाए | भारत में सूचना प्रौद्योगिकी की दो भूमिकाएँ हैं -विकासात्मक और दूसरी सामाजिक | विकासात्मक भूमिका में इसका संबंध विविध अनुप्रयोगों के लिए नवीन प्रौद्योगिकी का डिजाइन बनाने तथा विकास करने से है | सामाजिक भूमिका में यह भाषिक अवरोध को तोड़ती है और हिन्दी भाषा तथा भारतीय भाषाओं के प्रयोग से समाज के विभिन्न वर्गों के बीच के अंतर को कम करती है | इस दिशा में शोध कार्य सम्पन्न हुए हैं तथा हो रहे है |संगणक जैसे मशीन के माध्यम से यह संभव हो रहा है | यूनिकोड के आने से हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं में बड़ी क्रांति हुई है | टंकण हेतु अनेक फोनेटिक उपकरण उपलब्ध हैं | आज यूनिकोड हिन्दी प्रचलन में है | सामान्य अनुप्रयोगों जैसे वर्डपैड, इन्टरनेट एक्सप्लोरर, पेजमेकर आदि में हिन्दी टंकण करने हेतु यूनिकोड फोंट का होना काफी होता है, परंतु विंडोज में हर जगह हिन्दी और भारतीय भाषाओं को लिखने, टंकण करने हेतु सपोर्ट इनेबल किया जाना जरूरी होता है| इसके लिए तीन प्रणालियों का उपयोग किया जाता है | रेमिंटन, इनस्क्रिप्ट तथा फोनेटिक | इसमें सबसे आसान प्रणाली है फोनेटिक टंकण प्रणाली | इन्टरनेट पर अधिकतर हिन्दी प्रयोगकर्ता इस पद्धति का प्रयोग करते है | सभी भारतीय भाषाओं के की- बोर्ड भी उपलब्ध है, जिन्हें डाऊनलोड किया जा सकता है | हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं का कार्य विंडोज -7, लिनक्स, विस्टा, एक्सपी जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम में बहुत ही आसानी से किया जा सकता है | कम्प्यूटर के आंतरिक कार्यों को सम्पन्न करने के लिए आवश्यक प्रोग्राम को परिचालन प्रणाली कहा जाता है | परिचालन प्रणाली विविध प्रकार के क्रमादेशों या प्रोग्रामों का संग्रह है | यह एक साथ प्रणाली के रूप में कार्य करता है | भाषा अनुवादित्र, डिस्क परिचालन प्रणाली, पाठ सम्पादन के माध्यम से यह प्रणाली कार्य करती है | स्पष्ट है कि डॉस, विंडोज, यूनिक्स, लिनक्स, मैक आदि सभी परिचालन प्रणाली में भारतीय भाषाओं के संसाधन की सुविधा मौजूद है | पुणे के सी – डैक ने इस दिशा में काफी काम किया है | डॉस परिवेश वातावरण के अंतर्गत भारत सरकार की अनेक संस्थाओं ने शब्द संसाधन के अनेक पैकेज विकसित किए हैं जैसे एएलपी मल्टीवर्ड, शब्द रत्न, शब्दमाला, अक्षर, बाइस्क्रिप्ट, आदि | डाटा संसाधन का कार्य हिन्दी में करने के लिए सी-डैक ने जिस्ट कार्ड, आर.के. कम्प्यूटर से सुलिपि और सॉफ्टबेस कंपनी ने देवबेस विकसित किया है | सुलिपि और देवबेस में केवल हिन्दी को समाहित किया है और जिस्ट कार्ड में भारतीय भाषाओं की भी भाषाओं के साथ साथ दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप की कुछ लिपियों को भी लिया गया है | उर्दू भाषाओं को भी | ये सभी सॉफ्टवेयर्स आईबीएम पीसी के लिए योग्य है | आईबीएम, टाटा कंपनी ने आर. के. कम्प्यूटर्स की मदद से हिन्दी डॉस नाम से एक ऐसी परिचालन प्रणाली का विकास किया है जिसके अंतर्गत कमांड और मैन्यू भी हिन्दी में दिये गए है | फाइल का नाम भी हिन्दी में दिया जा सकता है |सी- डैक के यूनिक्स परिवेश में शब्द संसाधन में स्पैलचेकर आदि सुविधाएँ मौजूद हैं | आज आम आदमी के लिए सर्वाधिक मैत्रीपूर्ण प्लेटफॉर्म है- विण्डोज़ | इस प्लेटफॉर्म पर भारतीय भाषाओं में विभिन्न प्रकार के इंटरफेस विकसित किए गए हैं | प्रमुख है – लीप ऑफिस, सुविण्डोज़, आकृति ऑफिस, आदि | एमएस ऑफिस में समाविष्ट सभी सॉफ्टवेयर्स में विभिन्न भारतीय लिपियों में फोंट, एमएस ऑफिस के साथ ही देने लगे हैं | लगभग सभी कंपनियों ने हिन्दी के साथ भारतीय भाषाओं को भाषा प्रौद्योगिकी के रूप में अपनी परिचालन प्रणालियों में समाहित किया है |भारतीय भाषाओं में कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी, भाषा प्रौद्योगिकी के विकास के कारण जटिल से जटिल अनुप्रयोगों में हिन्दी और भारतीय भाषाओं का व्यापक रूप से प्रयोग हो रहा है | रेल अथवा हवाई यात्रा आरक्षण व्यवस्था एक विशेष प्रौद्योगिकी के माध्यम से हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में सुलभ करवा दी गई है | चुनाव के लिए करोड़ों मतदाताओं की सूचियाँ संगणक के माध्यम से हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में तैयार की गई है | इसी प्रकार परीक्षा के नतीजे, बिजली की रसीदें आदि भी | अब प्रत्येक भारतीय प्रादेशिक भाषा में जमीन से संबंधित रिकॉर्ड भी तैयार करना संभव हुआ है । आन्ध्रप्रदेश और तमिलनाडु में अनेक सरकारी कार्य तेलगु और तमिल में सम्पन्न किए जा रहे हैं ।

साहित्य और प्रौद्योगिकी
प्रौद्योगिकी और हिन्दी साहित्य का भी गहरा रिश्ता है | जब कोई भाषा संगणक प्रौद्योगिकी से गहराई से जुड़ जाती है तब उस भाषा में लिखा साहित्य भी दूर नहीं रह सकता| भाषा, साहित्य और प्रौद्योगिकी का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है |संगणक की अपनी भाषा के साथ वह अन्य भाषाओं के साथ जुड़ गया है | उन भाषाओं में लिखा साहित्य समृद्ध है | हिन्दी साहित्य हो अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में लिखा साहित्य क्यों न हों उसकी प्रस्तुति में प्रौद्योगिकी माध्यम से अधिकाधिक रंजकता आ सकती है और इस तरह की प्रस्तुति के कारण पैसा भी अधिक मिल सकता है |यानि किसी साहित्यिक रचना को अधुनातन तकनीक के आधार पर ऐसा रूप दिया जा सकता है, उसे प्रेक्षक पाठक पसंद करते हैं |
स्पष्ट है कि दुनिया बहुत ही तीव्र गति से अत्यंत नजदीक आ चुकी है | इसकी बुनियाद में प्रौद्योगिकी है | इस प्रक्रिया में इन्टरनेट की भूमिका महत्त्वपूर्ण है | इलेक्ट्रोनिक मशीनी तकनीक में इन्टरनेट एक ऐसा माध्यम है जहाँ साहित्यिक तथा साहित्येतर रचनाएँ उपलब्ध हो सकती हैं | इससे पाठक विविध साहित्यिक तथा वैचारिक पुस्तकों से जुड़ेंगे | माइक्रोफिल्म आदि के रूप में नवीन तकनीक के माध्यम से पुस्तके उपलब्ध होने लगी हैं | 15वीं सदी में पुस्तकों का प्रसार होने लगा था | आज प्रौद्योगिकी के कारण साहित्य का प्रचार- प्रसार तथा प्रस्तुति – मंचनादि अत्यंत प्रभावशाली ढंग से होने लगे हैं |
आज अनेक हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं की पत्र – पत्रिकाएँ संगणक जैसी मशीन के कारण यानि प्रौद्योगिकी के कारण इन्टरनेट के जरिये प्रारम्भ हो चुकी हैं | टाइम्स ऑफ इण्डिया, हिंदुस्तान टाइम्स, नवभारत टाइम्स, इण्डिया टुडे जैसी अनेक वेब पत्रिकाओं के संस्करण प्रकाशित हो रहे हैं । इसी तरह अनेक पुस्तकों ने जगह पा ली हैं । साथ ही नाटक, उपन्यास, कहानी, एकांकी, कविता, लम्बी कविता आदि का अभिनेताओं द्वारा प्रस्तुतिकरण प्रौद्योगिकी के कारण अधिक रंजक बनता जा रहा है । इसके माध्यम से विश्व सिमटकर सामाजिक, सांस्कृतिक दृष्टि से अधिक नजदीक आ गया है । बाजार और मीडिया में हिन्दी को ही नहीं भारतीय अन्य भाषाओं को भी विस्तार दिया गया है । प्रौद्योगिकी ने इसे आसान बनाया है । भाषा अत्यंत निर्णायक रूप में बदल रही है । हम सभी संक्रमण से गुजर रहे हैं । भाषा की मूल ताकत को समझकर चलना आसान होता जा रहा है । मीडिया द्वारा तथा भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है । नवीन तकनीकी उपकरणों से दिन – ब – दिन यह क्षेत्र और विकास करता जा रहा है ।
आज हम 21 वीं सदी के दूसरे दशक में खड़े हैं, अत: यह आवश्यक है कि हम हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ने के अवसर नहीं गँवाएँ । अधिकाधिक रूप में प्रौद्योगिकी से जुड जाएँ । हमें हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी से जुडते समय आने वाली चुनौतियों का सामना करना चाहिए ।आवश्यक उपाय ढूँढने चाहिए । हम इन बातों पर ध्यान दे सकते हैं –
– भारत की अधिकतम भाषाएँ एक ही स्रोत से प्रवाहित हुई हैं । उद्भव ब्राह्मी वर्णमाला से ।
– हिन्दी, बंगला, असमिया, उड़िया, मराठी, गुजराती और गुरुमुखी लिपियों का एक – दूसरे से बहुत मिलता – जुलता होना । इन्हीं एक ही लिपि की विभिन्न प्रणालियाँ कहा जा सकता है ।
– दक्षिण भारत की लिपियाँ – तमिल, तेलगू, कन्नड और मलयालम परस्पर समान और एक जैसे सिद्धान्तों पर आधारित परन्तु ये देवनागरी से अलग है । उर्दू अपवाद स्वरूप
है। इसमें फारसी, अरबी लिपि अपनाई गई है । हिन्दी, मराठी, नेपाली और संस्कृत लिखने के लिए देवनागरी को अपनाया गया है । तात्पर्य देवनागरी लिपि का भारत की सभ्यता और इतिहास से बहुत पुराना सम्बन्ध है ।
– आधुनिक प्रौद्योगिकी के विकास में कम्प्यूटर की खोज अनन्य साधारण घटना । आज संगणक प्रौद्योगिकी का उपयोग जीवन के सभी क्षेत्रों में है । इसके उपयोग के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं – भाषिक अध्ययन और विश्लेषण ।
– पहले कम्प्यूटर साधित भाषा संसाधन का कार्य अंग्रेजी भाषा में ही होता था, परन्तु आज अरबी, चीनी, हिब्रू, जापानी, कोरियन जैसी अनेक जटिल लिपियों के लिए भी किया जा रहा है ।
– कम्प्यूटर केवल एक तकनीकी उपकरण है । इसकी दो संकेतों की अपनी एक स्वतन्त्र गणितीय भाषा है । इसीमें कम्प्यूटर हमारी भाषा को ग्रहण करके अपने सभी कार्य करता है । आज प्रमाणित हुआ है कि कम्प्यूटर को किसी भी भाषा और लिपि को अपनाने में कोई बुनियादी और तकनीकी बाधा नहीं आती है ।
– आज ‘अभिकलनात्मक भाषिकी’ भाषा विज्ञान की एक शाखा ।
– कम्प्यूटरीकृत सांख्यिकीय अध्ययन, विश्लेषण, शब्द विश्लेषण, उपसर्ग, निपात, विश्लेष जैसे व्याकरणिक अध्ययन, लेखन शैली का विश्लेषण और विविध भाषाओं के शब्दों के आपसी सम्बन्ध व्याकरणिक संरचनाओं की जानकारी लेने जैसे साहित्यिक और भाषा वैज्ञानिक अध्ययन के लिए संगणक टेक्नोलॉजी का व्यापक रूप से उपयोग ।
– भाषा का विज्ञान से अटूट रिश्ता। संगणक के साथ संवाद स्थापित करने के लिए भाषाओं के प्रयोग की आवश्यकता । कृत्रिम बुद्धिवाले पाँचवीं पीढ़ी के संगणक के साथ प्राकृतिक भाषा के साथ संवाद स्थापित करने के प्रयोग भी प्रारम्भ ।
– भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थाओं में भारतीय भाषाओं में भी यह कार्य जारी । प्रौद्योगिकी के माध्यम से हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं का अध्ययन सम्भव ।
– हिन्दी भाषा के माध्यम से अनेक संगणक पाठ्यक्रम प्रारम्भ । गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग द्वारा ऐसे पाठ्यक्रम जारी । शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर के हिन्दी विभाग में एम.ए. की सत्र पद्धति तथा क्रेडिट परीक्षा पाठ्यक्रम के भाषा प्रौद्योगिकी के चार प्रश्न- पत्रों का अध्यापन विगत तीन वर्षों से जारी । संगणक साधित हिन्दी तथा भारतीय भाषा शिक्षण में प्रौद्योगिकी का उपयोग ।
– हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं की अभिजात्य रचनाओं को प्रौद्योगिकी के आधार पर मंचन योग्य बनाना ।
– वेब ठिकानों, ब्लॉग, फेसबुक, सर्च इंजन्स में अधिकाधिक सामग्री हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराना । कम्प्यूटर साधित मशीनी अनुवाद प्रणाली का विकास कराना ।
– भाषा के प्रौद्योगिकी संदर्भित अध्ययन का भविष्य बहुत उज्ज्वल ।

सन्दर्भ :
1.Pathak R.C. Bhargav Book Depot, Chowk, Varanasi. 12th Edition, Revised & Enlarged with inclusion of latest technical words, 1090 Page 929.
2.Ralph Grishman, Computational Linguistics – An Introduction – Central Institute of Mathematical Science, New York University, NY: 1986.
3.Smith J. Computer Science,Orient Longman,1978 Pg.34– 38.
4.वेबसाइटस् – सी – डैक, पुणे, आई.आई.टी. कानपुर. राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार ।
5.सर्च इंजन – गूगल, याहू, वेबदुनिया ।
6.हिन्दी सॉफ्टवेयर्स – देवरत्न, लीला, आई.एस.एम. 6, श्रीलिपि ।
7.फोंट आधारित पैकेज्स और शब्द संसाधन – कृति देव, शुशा, चाणक्य, लीप ऑफिस, सुविंडोज़, आकृति, अक्षर फोर विण्डोज़ – एएलपी मल्टीवर्ड, शब्द रत्न, शब्द माला, अक्षर, बाईस्क्रिप्ट, सुवर्ड आदि ।
8.यूनीकोड Unicode – Hindi and Indian Language Tool.
‘अक्सर,’जनवरी -मार्च 2013 में प्रकाशित लेख :प्रासंगिक प्रकाशन हेतु प्राप्त
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प्रोफेसर एवं अध्यक्ष,हिन्दी विभाग ,शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर, महाराष्ट्र

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प्रौद्योगिकी का क्या महत्व है?

प्रौद्योगिकी ज्ञान की वह शाखा है जो तकनीकी साधनों के निर्माण और पर्यावरण से उनके संबंध को पूरा करती है। प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन में जो बदलाव लाए हैं, वे समय की बचत कर रहे हैं, त्वरित संचार और बातचीत को सक्षम कर रहे हैं, जीवन की बेहतर गुणवत्ता, सूचना तक आसान पहुंच और सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं।

हमारे दैनिक जीवन में प्रौद्योगिकी का क्या महत्व है?

हम प्रौद्योगिकी के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। तकनीक के कार्यान्वयन ने हमें कई प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित अन्य ग्रहों की ओर देखना तक संभव बना दिया है। प्रौद्योगिकी ने हमारी अर्थव्यवस्था को भी गति दी है। लोग अपनी मर्जी से अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, दूर-नजदीक के लोगों के साथ आसानी से जुड़ सकते हैं।

प्रौद्योगिकी का अर्थ क्या होता है?

प्रौद्योगिकी, व्यावहारिक और औद्योगिक कलाओं और प्रयुक्त विज्ञानों से संबंधित अध्ययन या विज्ञान का समूह है। कई लोग तकनीकी और अभियान्त्रिकी शब्द एक दूसरे के लिये प्रयुक्त करते हैं। जो लोग प्रौद्योगिकी को व्यवसाय रूप में अपनाते है उन्हे अभियन्ता कहा जाता है। आदिकाल से मानव तकनीक का प्रयोग करता आ रहा है।

प्रौद्योगिकी विकास क्या है?

प्रौद्योगिकी विकास कार्यक्रम का लक्ष्य तकनीक/प्रक्रिया/उत्पाद के सम्बन्ध में नयी अवधारणाओं को अग्रिम प्रारूप में बदलना है ताकि वास्तविक क्षेत्र में प्रदर्शन के आधार पर इसे प्रमाणित किया जा सके।