तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का वर्णन कीजिए - tibbat kee bhaugolik sthiti ka varnan keejie

तिब्बत
तिब्बत बौद्ध देश
Tibet Autonomous state
तिब्बत स्वायत्त
तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का वर्णन कीजिए - tibbat kee bhaugolik sthiti ka varnan keejie

ध्वज
तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का वर्णन कीजिए - tibbat kee bhaugolik sthiti ka varnan keejie

सील
तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का वर्णन कीजिए - tibbat kee bhaugolik sthiti ka varnan keejie
निर्देशांक: 30°09′12″N 88°47′02″E / 30.1534°N 88.7839°Eनिर्देशांक: 30°09′12″N 88°47′02″E / 30.1534°N 88.7839°E
देश
तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का वर्णन कीजिए - tibbat kee bhaugolik sthiti ka varnan keejie
 
तिब्बत
राजधानील्हासा
प्रभागों5 प्रीफेक्चर स्तर के शहर, 2 प्रान्त, 6 जिले, 68 काउंटी, 692 टाउनशिप
क्षेत्रफल
 • कुल1228400 किमी2 (4,74,300 वर्गमील)
अधिकतम ऊँचाई (माउंट एवरेस्ट)8,848 मी (29,029 फीट)
जनसंख्या (2014)
 • कुल31,80,000
 • घनत्व2.59 किमी2 (6.7 वर्गमील)
भाषाएँ
 • आधिकारिकतिब्बती
समय मण्डलतिब्बत
मुख्य नगरल्हासा
धर्मबौद्ध (तिब्बती बौद्ध)
वेबसाइटhttp://tibbet.nic.in/

तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का वर्णन कीजिए - tibbat kee bhaugolik sthiti ka varnan keejie

तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का वर्णन कीजिए - tibbat kee bhaugolik sthiti ka varnan keejie

तिब्बत का भूक्षेत्र (पीले व नारंगी रंगों में)

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तिब्बत के खम प्रदेश में बच्चे

तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्रीय स्वायत्त क्षेत्र है, और इसकी भूमि मुख्य रूप से पठारी है। इसे पारंपरिक रूप से बोड या भोट भी कहा जाता है।

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स्थिति व भूगोल[संपादित करें]

32 अंश 30 मिनट उत्तर अक्षांश (लैटीट्यूड) तथा 86 अंश शून्य मिनट पूर्वी देशान्तर (लॉन्गीट्यूड)। तिब्बत मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेंणियों के मध्य कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित है। इसकी ऊँचाई 16,000 फुट तक है। यहाँ का क्षेत्रफल 47,000 वर्ग मील है। तिब्बत का पठार पूर्व में शीकांग से, पशिचम में कश्मीर से दक्षिण में हिमालय पर्वत से तथा उत्तर में कुनलुन पर्वत से घिरा हुआ है। यह पठार पूर्वी एशिया की बृहत्तर नदियों हवांगहो, मेकांग आदि का उद्गम स्थल है, जो पूर्वी क्षेत्र से निकलती हैं। पूर्वी क्षेत्र में कुछ वर्षा होती है एवं 1200 फुट की ऊँचाई तक वन पाए जाते है। यहाँ कुछ घाटियाँ 5,000 फुट ऊँची हैं, जहाँ किसान कृषि करते हैं। जलवायु की शुष्कता उत्तर की ओर बढ़ती जाती है एवं जंगलों के स्थान पर घास के मैदान अधिक पाए जाते है। जनसंख्या का घनत्व धीरे-धीरे कम होता जाता है। कृषि के स्थान पर पशुपालन बढ़ता जाता है। साइदान घाटी एवें कीकोनीर जनपद पशुपालन के लिये विशेष प्रसिद्ध है।

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बाह्य तिब्बत की ऊबड़-खाबड़ भूमि की मुख्य नदी यरलुंग त्संगपो (ब्रह्मपुत्र) है, जो मानसरोवर झील से निकल कर पूर्व दिशा की ओर प्रवाहित होती है और फिर दक्षिण की ओर मुड़कर भारत एवं बांग्लादेश में होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। इसकी घाटी के उत्तर में खारे पानी की छोटी - छोटी अनेक झीलें हैं, जिनमें नम त्सो (उर्फ़ तेन्ग्री नोर) मुख्य है। इस अल्प वर्षा एवं स्वल्प कृषि योग्य है। त्संगपो की घाटी में वहाँ के प्रमुख नगर ल्हासा, ग्यान्त्से एवं शिगात्से आदि स्थित है। बाह्य तिब्बत का अधिकांश भाग शुष्क जलवायु के कारण केवल पशुचारण के योग्य है और यही यहाँ के निवासियों का मुख्य व्यवसाय हो गया है। कठोर शीत सहन करनेवाले पशुओं में याक(Yak: a wooly animal) मुख्य है जो दूध देने के साथ बोझा ढोने का भी कार्य करता है। इसके अतिरिक्त भेड़, बकरियाँ भी पाली जाती है। इस विशाल भूखंड में नमक के अतिरिक्त स्वर्ण एवं रेडियमधर्मी खनिजों के संचित भंडार प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। ऊबड़ खाबड़ पठार में रेलमार्ग बनाना अत्यंत दुष्कर और व्ययसाध्य है अत: पर्वतीय रास्ते एवं कुछ राजमार्ग (सड़कें) ही आवागमन के मुख्य साधन है, हालांकि चिंगहई-तिब्बत रेलमार्ग तैयार हो चुका है। सड़के त्संगपो नदी की घाटी में स्थित नगरों को आपस में मिलाती है। पीकिंग-ल्हासा राजमार्ग एवं ल्हासा काठमांडू राजमार्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने की अवस्था में है। इनके पूर्ण हो जोने पर इसका सीधा संबंध पड़ोसी देशों से हो जायेगा। चीन और भारत ही तिब्बत के साथ व्यापार में रत देश पहले थे। यहाँ के निवासी नमक, चमड़े तथा ऊन आदि के बदले में चीन से चाय एवं भारत से वस्त्र तथा खाद्य सामग्री प्राप्त करते थे। तिब्बत एवं शिंजियांग को मिलानेवाले तिब्बत-शिंजियांग राजमार्ग का निर्माण जो लद्दाख़ के अक्साई चिन इलाक़े से होकर जाती है पूर्ण हो चुका है।[1] ल्हासा - पीकिंग वायुसेवा भी प्रारंभ हो गई है।

इतिहास[संपादित करें]

मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित 16000 फुट की ऊँचाई पर स्थित इस राज्य का ऐतिहासिक वृतांत लगभग 7 वी शताब्दी से मिलता है। 8वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हुआ। 1013 ई0 में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। 1042 ई0 में दीपंकर श्रीज्ञान अतिशा तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। शाक्यवंशियों का शासनकाल 1207 ई0 में प्रांरभ हुआ। मंगोलों का अंत 1720 ई0 में चीन के माँछु प्रशासन द्वारा हुआ। तत्कालीन साम्राज्यवादी अंग्रेंजों ने, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त करते जा रहे थे, यहाँ भी अपनी सत्ता स्थापित करनी चाही, पर 1788-1792 ई0 के गुरखों के युद्ध के कारण उनके पैर यहाँ नहीं जम सके। परिणाम स्वरूप 19 वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थिर रखी यद्यपि इसी बीच लद्दाख़ पर कश्मीर के शासक ने तथा सिक्किम पर अंग्रेंजों ने आधिपत्य जमा लिया। अंग्रेंजों ने अपनी व्यापारिक चौकियों की स्थापना के लिये कई असफल प्रयत्न किया। इतिहास के मुताबिक तिब्बत को दक्षिण में नेपाल से भी कई बार युद्ध करना पड़ा और नेपाल ने इसको हराया। नेपाल और तिब्बत की सन्धि के मुताबिक तिब्बत को हर साल नेपाल को ५००० नेपाली रुपये हरज़ाना भरना पड़ा। इससे आजित होकर नेपाल से युद्ध करने के लिये चीन से मदद माँगी चीन के मदद से उसने नेपाल से छुटकारा तो पा लिया लेकिन इसके बाद 1906-07 ई0 में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार कर लिया और याटुंग ग्याड्से एवं गरटोक में अपनी चौकियाँ स्थापित की। 1912 ई0 में चीन से मांछु शासन अंत होने के साथ तिब्बत ने अपने को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। सन् 1913-14 में चीन, भारत एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों की बैठक शिमला में हुई जिसमें इस विशाल पठारी राज्य को भी भागों में विभाजित कर दिया गया:

  • (1) पूर्वी भाग जिसमें वर्तमान चीन के चिंगहई एवं सिचुआन प्रांत हैं। इसे 'अंतर्वर्ती तिब्बत' (Inner Tibet) कहा गया।
  • (2) पश्चिमी भाग जो बौद्ध धर्मानुयायी शासक लामा के हाथ में रहा। इसे 'बाह्य तिब्बत' (Outer Tibet) कहा गया।

सन् 1933 ई0 में 13वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद से बाह्य तिब्बत भी धीरे-धीरे चीनी घेरे में आने लगा। चीनी भूमि पर लालित पालित 14 वें दलाई लामा ने 1940 ई0 में शासन भार सँभाला। 1950 ई0 में जब ये सार्वभौम सत्ता में आए तो पंछेण लामा के चुनाव में दोनों देशों में शक्तिप्रदर्शन की नौबत तक आ गई एवं चीन को आक्रमण करने का बहाना मिल गया। 1951 की संधि के अनुसार यह साम्यवादी चीन के प्रशासन में एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। इसी समय से भूमिसुधार कानून एवं दलाई लामा के अधिकारों में हस्तक्षेप एवं कटौती होने के कारण असंतोष की आग सुलगने लगी जो क्रमश: 1956 एवं 1959 ई0 में जोरों से भड़क उठी। परतुं बलप्रयोग द्वारा चीन ने इसे दबा दिया। अत्याचारों, हत्याओं आदि से किसी प्रकार बचकर दलाई लामा नेपाल पहुँच सके। अभी वे भारत में बैठकर चीन से तिब्बत को अलग करने की कोशिश कर रहे हैं। अब सर्वतोभावेन चीन के अनुगत पंछेण लामा यहाँ के नाममात्र के प्रशासक हैं।

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८ सितम्बर १९५० को तिब्बत का एक प्रतिनिधिमण्डल तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ

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इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • तिब्बत का इतिहास
  • तिब्बत का पठार
  • दलाई लामा
  • चिंगहई
  • अकसाई चिन
  • तिब्बती भाषा
  • तिब्बती लिपि
  • तिब्बती साहित्य
  • तिब्बती बौद्ध धर्म
  • तिब्बती पंचांग
  • तिब्बत विवाद

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • तिब्बत की आजादी का संघर्ष (राजकिशोर)
  • मानसरोवर की भूमि तिब्बत (जागरण)
  • तिब्बत पर चीन के खूनी अत्याचारों के पचास वर्ष (डा. सतीश चन्द्र मित्तल)

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Xinjiang-Tibet Highway (Yecheng-Burang)". मूल से 28 मई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 जुलाई 2013.

तिब्बत की विशेषता क्या है?

तिब्बत मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेंणियों के मध्य कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित है। इसकी ऊँचाई 16,000 फुट तक है। यहाँ का क्षेत्रफल 47,000 वर्ग मील है। तिब्बत का पठार पूर्व में शीकांग से, पशिचम में कश्मीर से दक्षिण में हिमालय पर्वत से तथा उत्तर में कुनलुन पर्वत से घिरा हुआ है।

तिब्बत का दूसरा नाम क्या है?

प्राचीन काल में इसे त्रिविष्टप कहते थे : प्राचीनकाल में तिब्बत को त्रिविष्टप कहते थे। भारत के बहुत से विद्वान मानते हैं कि तिब्बत ही प्राचीन आर्यों की भूमि है।

तिब्बत पर किस देश का कब्जा है?

आज के दिन 23 मई 1951 को चीन ने तिब्‍बत पर कब्‍जा कर लिया था. भारत और तिब्‍बत में इसे काला दिन कहा जाता है. वहीं चीन मानता है कि यह उसकी शांति की पहल थी. दरअलस आज ही के दिन तिब्बत ने चीन के दबाव में आकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था, जिसके बाद तिब्बत पर चीन का कब्जा हो गया.

तिब्बत का प्राचीन नाम क्या है?

तिब्बत का सबसे पुराना नाम त्रिपिष्टप एवं त्रिविष्टप है। त्रिविष्टप शब्द संस्कृत भाषा का है। संस्कृत में त्रिविष्टपम् नपुसंक लिंग में है। तिब्बत नाम उसी का तद्भव रूप है।