विक्रमशिला विश्वविद्यालय Vikramshila University विक्रमशिला विश्वविद्यालय Vikramshila University विक्रमशिला प्राचीन भारत का एक प्रमुख उच्च शिक्षा का केंद्र था। यह शिक्षा केंद्र उत्तरी मगध में गंगा तट पर एक सुरम्य पहाड़ी पर बसा था। वर्तमान में बिहार राज्य के भागलपुर जिले में स्थित था। Show
विक्रमशिला विश्वविद्यालय Vikramshila Universityविक्रमशिला विश्वविद्यालय Vikramshila University विक्रमशिला प्राचीन भारत का एक प्रमुख उच्च शिक्षा का केंद्र था। यह शिक्षा केंद्र उत्तरी मगध में गंगा तट पर एक सुरम्य पहाड़ी पर बसा था। वर्तमान में बिहार राज्य के भागलपुर जिले में स्थित था।इसके चारों ओर एक विशाल और सुदृढ़ दिवार थी और मध्य में एक विशाल मंदिर था।इस विश्वविद्यालय की स्थापना पालवंश के प्रसिद्ध सम्राट धर्मपाल ने ८ वीं शताब्दी में की थी। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में प्रवेशविक्रमशिला विश्वविद्यालय शिक्षा केंद्र में छात्रों का प्रवेश कठिन था। प्रवेश के पूर्व छात्रों की परीक्षा नालंदा विक्रमशिला विश्वविद्यालयविश्वविद्यालय के समान ,द्वार पंडितों द्वारा होती थी।अतः सुयोग्य विद्यार्थी ही इस शिक्षा केंद्र में प्रवेश पाते थे। शिक्षा की व्यवस्था उत्तम थी।शिक्षा का प्रबंध एक समिति के अधीन था।कार्य कुशलता की दृष्टि से भिन्न -भिन्न विभाग अधिकारियों के अधीन थे। शिक्षा केंद्र के शिक्षक अत्यंत उच्चकोटि के विद्वान और दार्शनिक थे। इसकी प्रसिद्धि तिब्बत तक पहुँच चुकी थी। तिब्बत के लोग कई वर्षों तक हिन्दू पंडितों के चरणों में शिक्षा ग्रहण करते रहे। तिब्बत के साहित्य से पता चलता है कि विक्रमशिला के विद्वानों ने सैकड़ों संस्कृत की पुस्तकें लिखी और हजारों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया।विक्रमशिला विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रमनालंदा विश्वविद्यालय की भाँति ,विक्रमशिला का पाठ्यक्रम अधिक व्यापक नहीं था ,फिर भी अन्य शिक्षा केन्द्रों की अपेक्षा यह अधिक सुव्यवस्थित था। पाठ्यक्रम के प्रमुख विषय थे - व्याकरण ,तर्कशास्त्र ,अध्यात्मविद्या ,तंत्र ,कर्मकांड इत्यादि। १२ वीं शताब्दी में लगभग तीन हज़ार छात्र यहाँ विभिन्न विषयों की शिक्षा प्राप्त करते रहे।अध्ययन की समाप्ति पर बंगाल के सम्राटों द्वारा विद्यार्थियों को उपाधियों तथा प्रमाण पत्र देने की भी यहाँ व्यवस्था थी।विभिन्न विषयों के लिए छात्रों के हित में एक विशाल पुस्तकालय की व्यवस्था थी। विद्या का महान केंद्रविद्या का एक महान केंद्र अनेक वर्षों तक अपने ज्ञान प्रकाश से विश्व को आलोकित करता रहा। १२०३ ई में बख्तियार खिलजी ने आक्रमण किया और इसको युद्ध सम्बन्धी गढ़ समझ कर आग लगवा दी।इस प्रकार शिक्षा का एक केंद्र सदा के लिए समाप्त हो गया। आज इस आर्टिकल में हम आपको बिहार के प्राचीन शिक्षा केंद्र के बारे में बता रहे है जिसकी मदद से आप न सिर्फ BPSC की बल्कि Anganwadi, AIIMS Patna, BPSC, BRDS, BSPHCL, Bihar Education Project Council, IIT Patna, RMRIMS, Bihar Agricultural University, District Health Society Arwal, Bihar Police, Bihar Steno, Bihar Constable, BSSC के एग्जाम की तैयारी आसानी से कर सकते है. Contents show 1 More Important Article 2 बिहार के प्राचीन शिक्षा केंद्र 2.1 नालंदा विश्वविद्यालय 2.2 ओदंतपुरी विश्वविद्यालय 2.3 विक्रमशिला विश्वविद्यालय 2.4 तिलधक महाविद्यालय More Important Article
बिहार के प्राचीन शिक्षा केंद्रनालंदा विश्वविद्यालयनालंदा विश्वविद्यालय भारत के सर्वश्रेष्ठ बौद्ध शिक्षा केंद्र के रूप में चर्चित रहा है. इसकी स्थापना गुप्त सम्राट शक्रादित्य, जिसकी पहचान कुमार गुप्त प्रथम (415-454 ई.) के रूप में की गई है, ने बौद्ध धर्म के प्रति अपनी गहरी आस्था को प्रदर्शित करने के लिए की थी. इस विश्वविद्यालय के बारे में अधिकतम जानकारी के मुख्य स्रोत चीनी यात्री हैनसांग के विवरण कन्नौज नरेश यशोवर्मन के नालंदा अभिलेख हैं. कुमार गुप्त के पुत्र बुद्धगुप्त ने भी वहां एक बौद्ध विहार का निर्माण करवाया. आगे चलकर सम्राट हर्षवर्धन ने भी यहां एक विहार बनवाया. हर्षवर्धन के समय नालंदा महाविहार एक अंतरराष्ट्रीय शिक्षण संस्थान के रूप में विख्यात हो गया. यहां अध्ययन के लिए भारत के अलावा जावा, तिब्बत, चीन, कोरिया और श्रीलंका के छात्र प्रवेश लेते थे. इस विश्वविद्यालय में सभी विषयों की शिक्षा दी जाती थी, लेकिन बौद्ध धर्म की महायान शाखा की शिक्षा विशेष रूप से उल्लेखनीय थी. नालंदा विश्वविद्यालय में रत्नोंदघी, रतन सागर, रतन राजपूत नामक 3 भवनों में धरमगंज नमक विशाल पुस्तकालय अवस्थित था. 9 मंजिला पुस्तकालय भवन एक दर्शनीय स्थापत्य कृति थी. शीलभद्र यहां के प्रख्यात कुलपति रहे हैं. धर्मपाल, चंद्र पाल, गुणमती, स्थिरमिति, प्रभा मित्र, जिनमित्र, दिगनाग, ज्ञान चंद्र, नागार्जुन, वसुबंधु, असंग, धर्मकीर्ति, आदि नालंदा विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध आचार्य थे. नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा का माध्यम पाली भाषा थी. पाली वंश शासक धर्मपाल ने नालंदा महाविहार को 200 ग्राम दान स्वरूप दिए थे. जावा और सुमात्रा के शैलेंद्र वंशीय शासक बालपुत्रदेवा ने वहां 1 मठ बनवाया, तथा उसके निर्वाह के लिए अपने मित्र बंगाल के पालवंशी शासक देवपाल से नालंदा में एक बौद्ध मंदिर, बनाने की अनुमति प्राप्त की. उस मंदिर की देखरेख के लिए देव पाल ने 5 गांव तथा आर्थिक सहायता (अनुदान के रूप में) दी, बख्तियार खिलजी के आक्रमण से 12वीं शताब्दी के अंतिम दशक में (प्रारंभिक मध्यकाल) नालंदा विश्वविद्यालय को विनष्ट हो गया. 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने नए राष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय स्थापित करने हेतु मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्रेरित किया. 2007 में बिहार विधानमंडल में इस वी. वी. की स्थापना संबंधी प्रस्ताव पारित हुआ तथा इसी वर्ष मेंटर ग्रुप का गठन हुआ. 2007 और 2009 में लाओस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम, जर्मनी, जापान ऑस्ट्रेलिया आदि अनेक देशों ने इसके निर्माण में सहयोग की इच्छा प्रकट की है. 2010 में संसद में इस यूनिवर्सिटी का बिल पास हुआ. 2012 में नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्यसेन को मेंटर ग्रुप का चीफ चूना गया. डॉ गोपाल को इस विश्वविद्यालय का पहला कुलपति बनाया गया. दो विषयों- हिस्टोरिकल स्टडीज और इकोलॉजी एवं इन्वायरमेंटल स्टडीज की पढ़ाई के साथ इसके प्रथम सत्र की शुरुआत है हालांकि 1 सितंबर, 2014 को हुई, किंतु इस विधिवत, उद्घाटन 19 सितंबर, 2014 को, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा किया गया. 12 अगस्त, 2016 को वी. वी. का पहला दीक्षांत समारोह आयोजित हुआ. ओदंतपुरी विश्वविद्यालयओदंतपुरी वर्तमान बिहार नामक नगर अथवा बिहार शरीफ का प्राचीन नाम था. ओउदंतपुरी विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के प्रथम शासक गोपाल (730-749 ई. ) ने की थी. महारक्षित, चंद्र कृति, धर्मरक्षित, शीलरक्षित ओदंतपुरी विश्वविद्यालय के प्रमुख विद्वान थे. इसके समृद्धि काल में यहां 1000 विद्यार्थी शिक्षा पाते थे. यहां के प्रमुख विद्यार्थियों में आतशा दीपंकर श्रीमान था, जिस ने बौद्ध धर्म का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया. यहां बुध द्वारा आविकृत भौक्षुकी लिपि प्रचलित थी. 13वीं सदी के आरंभ में बख्तियार खिलजी के पुत्र मुहम्मद ने इसे नष्ट कर दिया. विक्रमशिला विश्वविद्यालयविक्रमशिला विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म वज्रयान शाखा का प्रमुख केंद्र था. यहाँ न्याय तत्वज्ञान एवं व्याकरण की शिक्षा प्रदान की जाती थी. वर्तमान भागलपुर शहर से लगभग 24 मील पूर्व की ओर पत्थर घाट नामक पहाड़ी पर सचिन विक्रमशिला महाविहार की स्थापना पाल वंश के शासक धर्मपाल (775-800 ई.) ने की थी. इस विश्वविद्यालय के महान विद्वानों में रक्षित, विरोचन, ज्ञानभद्र, रत्नाकर, शांति ज्ञान श्रीमित्र, अभयंकर गुप्त, तथागत, रतनवज्र का नाम प्रमुख है. दीपंकर श्री ज्ञान यहां के प्रतिष्ठित विद्वान एवं विश्वविद्यालय के कुलपति थे. विक्रमशिला विश्वविद्यालय में 6 महाविद्यालय थे तथा प्रत्येक विश्वविद्यालय में प्रवेश हेतु द्वारपंडित द्वारा अभ्यार्थियों के परीक्षण किए जाने की परंपरा थी. इसी परीक्षण में सफलता के उपरांत ही किसी का विश्वविद्यालय में प्रवेश संभव था. इस विश्वविद्यालय को भी खिलजी ने नष्ट किया था. इस घटना का उल्लेख समकालीन इतिहासकार मिनहाज-उस-सिराज ने अपने ग्रंथ तबकात-ए-नासिरी में किया. तिलधक महाविद्यालयतिलधक मगध में प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था इस महाविद्यालय का उल्लेख चीनी यात्रियों हेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में किया है. यहां महायान संप्रदाय का केंद्र था. इसके प्रसिद्ध विद्वान प्रज्ञाभद्र थे. तिलधक महाविद्यालय की स्थापना का श्रेय हर्यक वंश के शासक को जाता है. विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना कब और किसने की?इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने आठवीं सदी के अंतिम वर्षों या नौवीं सदी की शुरुआत में की थी. करीब चार सदियों तक वजूद में रहने के बाद तेरहवीं सदी की शुरुआत में यह नष्ट हो गया था. एक मान्यता यह है कि महाविहार के संस्थापक राजा धर्मपाल को मिली उपाधि 'विक्रमशील' के कारण संभवतः इसका नाम विक्रमशिला पड़ा.
विक्रमशिला विश्वविद्यालय कहाँ स्थापित किया गया था?बिहार प्रांत के भागपलुर जिले में स्थित विक्रमशिला एक अन्तरराष्ट्रीय ख्याति का शिक्षा केन्द्र रहा है। विक्रमशिला के महाविहार की स्थापना नरेश धर्मपाल (775-800ई.) ने करवायी थी।
निम्नलिखित में से कौन विक्रमशिला विश्वविद्यालय के संस्थापक थे?धर्मपाल 'विक्रमशिला विश्वविद्यालय' के संस्थापक थे। तक्षशिला और नालंदा के साथ विक्रमशिला भारत के 3 सर्वश्रेष्ठ प्राचीन विश्वविद्यालय थे। यह बिहार के भागलपुर जिले में स्थित है। धर्मपाल पाल वंश का शासक था।
विक्रमशिला के पाठ्यक्रम में क्या क्या शामिल था?6. विक्रमशिला के पाठ्यक्रम में क्या – क्या शामिल था ? उत्तर:- विक्रमशिला के पाठ्यक्रम में तंत्र विद्या के अतिरिक्त व्याकरण , न्याय , सृष्टि – विज्ञान , शब्द – विद्या , शिल्प – विद्या , चिकित्सा विद्या , सांख्य , वैशेषिक , अध्यात्म विद्या , विज्ञान , जादू एवं चमत्कार विद्या शामिल था ।
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