प्रथम सवैये में सीता की दशा से उनके बारे में क्या पता चलता है? - pratham savaiye mein seeta kee dasha se unake baare mein kya pata chalata hai?

Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 2 वन-मार्ग में The answer to each chapter is provided in the list so that you can easily browse throughout different chapter Assam Board Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 2 वन-मार्ग में and select needs one.

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Class 10 Hindi Ambar Bhag 2 Chapter 2 वन-मार्ग में

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वन-मार्ग में

पाठ – 2

पद्य खंड

कवि – परिचय:

हिन्दी साहित्य जगत में गोस्वामी तुलसीदास सगुणमार्गी रामभक्ति – काव्यधारा के साथ-साथ सम्पूर्ण हिन्दी काव्यधारा के सबसे प्रतिभाशाली एवं लोकप्रिय कवि हैं। उनकी रचनाएँ भारतीय एवं विशव साहित्य में प्रमुख स्थान रखती हैं। उनकी अमर कृति ‘रामचरितमानस’ का विशव की अनेक भाषाओं में अनुवाद होना प्रत्येक भारतीय के लिए गौरव की बात है।

ऐसा माना जाता है कि महाकवि तुलसीदास का जन्म सन् 1532 की श्रावण शुक्ला सप्तमी तिथि को बाँदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था। जन्म के कुछ वर्षों बाद ही माता-पिता के द्वारा छोड़ दिए जाने के कारण तुलसीदास का बचपन दुःख और गरीबी में बीता। बाद में उन्होंने बाबा नरहरि दास का आश्रय पाकर ज्ञान और भक्ति की शिक्षा ग्रहण की और यहीं पर वेद, पुराण, वेदान्त, उपनिषद् आदि प्राचीन भारतीय वाङमय का अध्ययन भी किया। उनका विवाह दीनबंधु पाठक की कन्या रत्नावली से हुआ था। अपनी पत्नी से अत्यधिक आसक्ति होने के कारण एक दिन उन्हें भर्त्सना सुननी पड़ी। अपनी पत्नी से मिली इस भर्त्सना ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। वे संसार से विमुख होकर राम-भक्ति में डूब गए। उनकी मृत्यु सन् 1623 में हुई।

भक्तशिरोमणि तुलसीदास ने अनेक काव्यों की रचनाएँ को हैं, जिनमें ‘रामचरितमानस’, ‘विनय-पत्रिका’ और ‘कवितावली’ प्रमुख हैं।’रामचरितमानस’ तुलसीदास की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। यह हिन्दी साहित्य का एक अद्वितीय महाकाव्य है। तुलसीदास अयोध्यापति दशरथ के पुत्र श्री रामचन्द्र को अपना आराध्य प्रभु मानते थे और उन्हीं की जीवन-गाथा को आधार बनाकर इस महाकाव्य की रचना की है। इस महाकाव्य की रचना हिन्दी की एक प्रमुख बोली अवधी के दोहा-चौपाई और छंदों में हुई है। ‘विनय-पत्रिका’ और ‘कवितावली’ की रचना ब्रजभाषा में हुई है। ‘विनय-पत्रिका’ में प्रार्थनापरक पर्दों का संग्रह किया गया है। तुलसीदास ने इन पदों के माध्यम से अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के पास अपना निवेदन (विनय- पत्रिका) भेजा है। ‘कवितावली’ में राम-कथा संबंधी गेय मुक्तक छन्दों का संकलन हुआ है।

‘रामचरितमानस’, ‘विनय-पत्रिका’ और ‘कवितावली’ के अतिरिक्त तुलसीदास की अन्य रचनाओं में’ दोहावली’, ‘कवित्त रामायण’, ‘गीतावली’, ‘रामाज्ञा प्रशनावली’, ‘रामललानहछू’, ‘पार्वतीमंगल’, ‘जानकीमंगल’, ‘बरवै रामायण’, ‘वैराग्य संदीपनी’, ‘कृष्ण गीतावली’ आदि का नाम आता है। समन्वय और लोक-मंगल की भावना से प्रेरित होकर जीवन भर राम–भक्ति की शीतल चाँदनी बिखेरने के कारण तुलसीदास जो साहित्य जगत् में ‘शशि’ की आख्या से विभूषित हुए।

कवि–संबंधी प्रशन एवं उत्तर

1. गोस्वामी तुलसीदास किस मार्ग तथा किस काव्यधारा के सबसे प्रतिभाशाली एवं लोकप्रिय कवि हैं? 

उत्तर: गोस्वामी तुलसीदास सगुणमार्ग तथा रामभक्ति–काव्यधारा के साथ–साथ सम्पूर्ण ‘हिन्दी काव्यधारा के सबसे प्रतिभाशाली एवं लोकप्रिय कवि हैं। 

2. हिन्दी साहित्य जगत् में किस कवि को ‘भक्त– शिरोमणि’ की उपाधि से विभूषित किया गया है? 

उत्तर: हिन्दी साहित्य जगत् में गोस्वामी तुलसीदास को ‘भक्त–शिरोमणि’ की उपाधि से विभूषित किया गया है।

3. तुलसीदास की किस रचना को उनकी कीर्ति के आलोक-स्तंभ स्वरूप माना जाता है?

उत्तरः तुलसीदास की रचना ‘रामचरितमानस’ को उनकी कीर्ति के आलोक-स्तंभ स्वरूप माना जाता है। 

4. तुलसीदास की किस रचना का संसार की प्रमुख भाषाओं में अनुवाद किया गया है?

उत्तरः तुलसीदास की रचना ‘रामचरितमानस’ का संसार की प्रमुख भाषाओं में अनुवाद किया गया है।

5. तुलसीदास का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तरः ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास का जन्म सन् 1532 की श्रावण शुक्ला सप्तमी तिथि को बाँदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था।

6. तुलसीदास के माता-पिता का नाम क्या था?

उत्तरः तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था।

7. तुलसीदास का बचपन किस प्रकार बोता?

उत्तरः तुलसीदास का बचपन दुःख और गरीबी में भीता।

8. तुलसीदास के गुरु कौन थे? 

उत्तरः तुलसीदास के गुरु बाबा नरहरि दास थे।

9. तुलसीदास का पालन-पोषण कैसे हुआ था?

उत्तरः तुलसीदास का पालन-पोषण बाबा नरहरि दास के द्वारा हुआ था। 

10. बाबा नरहरि दास के आश्रय में रहकर तुलसीदास ने क्या-क्या किया?

उत्तर: बाबा नरहरि दास के आश्रय में रहकर तुलसीदास ने ज्ञान–भक्ति को शिक्षा ग्रहण की और प्राचीन भारतीय वाड्मय वेद, उपनिषद्, वेदान्त, पुराण आदि का अध्ययन किया।

11. तुलसीदास की पत्नी का नाम क्या था?

उत्तरः तुलसीदास की पत्नी का नाम ‘रत्नावली था। 

12. ‘रत्नावली’ कौन थी?

उत्तर: ‘रत्नावली’ दीनबंधु पाठक को कन्या थी।

13. किस कारण तुलसीदास के जीवन की दिशा बदल गयी? 

उत्तर: अपनी पत्नी से मिली भर्तीना के कारण तुलसीदास के जीवन की दिशा बदल गयी।

14. तुलसीदास ने किसे अपना आराध्य प्रभु माना है?

उत्तरः तुलसीदास ने अयोध्यापति दशरथ के पुत्र श्रीरामचंद्र को अपना आराध्य प्रभु माना है।

15. तुलसीदास की मृत्यु कब हुई थी?

उत्तरः ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास की मृत्यु सन् 1623 में हुई थी।

16. तुलसीदास की प्रमुख काव्य रचनाएँ कौन-कौन-सी हैं? 

उत्तरः तुलसीदास की प्रमुख काव्य रचनाएँ क्रमश: ‘रामचरितमानस’, ‘विनय–पत्रिका’ और ‘कवितावली’ हैं।

17. तुलसीदास की किस रचना को हिन्दी साहित्य जगत् में एक अनुपम महाकाव्य की संज्ञा दी जाती है? 

उत्तरः तुलसीदास की रचना ‘रामचरितमानस’ को हिन्दी साहित्य जगत् में एक अनुपम महाकाव्य की संज्ञा दी जाती है।

18. तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ की रचना किसकी जीवन–गाथा को आधार बनाकर की है? 

उत्तरः तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ को रचना अपने आराध्य प्रभु श्रीरामचंद्र की जीवन-गाथा को आधार बनाकर की है।

19. ‘रामचरितमानस’ की रचना किस भाषा में हुई है?  

उत्तरः ‘रामचरितमानस’ की रचना हिन्दी की एक प्रमुख बोली अवधी के दोहा–चौपाई और छंदों में हुई है।

20. ‘विनय–पत्रिका’ और ‘कवितावली’ की रचना किस भाषा में हुई है? 

उत्तर: ‘विनय–पत्रिका’ और’ कवितावली’ की रचना ब्रजभाषा में हुई है।

21. ‘विनय–पत्रिका’ की विषय-वस्तु क्या है?

उत्तर: ‘विनय–पत्रिका’ की विषय-वस्तु प्रार्थनापरक पदों का संग्रह है। 

22. ‘कवितावली’ की विषय–वस्तु क्या है?

उत्तर: ‘कवितावली’ की विषय–वस्तु पावन राम–कथा संबंधी गेय मुक्तक छन्दों का संकलन है।

23. ‘रामचरितमानस’, ‘विनय–पत्रिका’ और ‘कवितावली’ के अतिरिक्त तुलसीदास की अन्य रचनाओं में कौन-कौन से नाम आते हैं? 

उत्तरः ‘रामचरितमानस’, ‘विनय–पत्रिका’ और’ कवितावलों’ के अतिरिक्त तुलसीदास की अन्य रचनाओं में क्रमशः ‘दोहावली’, ‘कवित्त रामायण’, ‘गीतावली’, ‘रामाज्ञा प्रशनावली’, ‘रामललानहछू’, ‘पार्वतोमंगल’, ‘जानकीमंगल’, ‘बरवै रामायण’, ‘वैराग्य संदीपनी’, ‘कृष्ण गीतावली’ आदि के नाम आते हैं।

24. किस कारण तुलसीदास को साहित्य जगत् में ‘शशि’ की आख्या मिली है?

उत्तरः समन्वय और लोक–मंगल की भावना से प्रेरित होकर जीवन भर राम-भक्ति की शीतल चाँदनी बिखेरने के कारण तुलसीदास को साहित्य जगत् में ‘शशि’ की आख्या मिली है।

सारांश

‘वन–मार्ग में’ शीर्षक कविता के अंतर्गत संकलित चारों छन्द गोस्वामी तुलसीदास की रचना ‘कवितावली’ से लिए गए हैं। इन छन्दों में कवि ने वन-गमन करते समय राम, लक्ष्मण और सीता की शारीरिक एवं मानसिक दशा के साथ–साथ उनको ने देखकर ग्रामीण महिलाओं में होनेवाले विस्मय–विमुग्धता और भावात्मक प्रतिक्रियाओं का सुन्दर चित्रण किया है।

प्रथम छन्द में महाकवि तुलसीदास ने वन–मार्ग में चलते हुए सीता जी की शारीरिक एवं मानसिक दशा पर प्रकाश डाला है। कोमलांगी सीता अपने पति श्रीराम और देवर लक्ष्मण के साथ अयोध्या नगरी से निकलकर बड़ी कठिनाई से दो कदम चलती है कि उनका चेहरा पसीने से भींग जाता है और दोनों होंठ सूख जाते हैं। वह व्याकुल होकर अपने पति से पूछने लगती हैं कि अब और कितनी दूर चलना होगा और पर्णकुटी कहाँ बनाई जाएगी?

द्वितीय छन्द में कवि ने वन–मार्ग में चलते हुए राम, लक्ष्मण और सीता के अनुपम सौंदर्य से विस्मित एक ग्रामीण महिला की भावात्मक प्रतिक्रिया का वर्णन किया है। वह ग्रामीण महिला शिकायत के स्वर में अपनी सहेली से प्रतिक्रिया व्यक्त करती हुई कहती है कि मैं समझ गई कि रानी (कैकेयी) महा अज्ञानी हैं, जिनका हृदय पत्थर से भी अधिक कठोर है। राजा (दशरथ) को भी अपने कर्तव्य–अकर्तव्य का ज्ञान नहीं है, जिन्होंने रानी की बातों में आकर इतना बड़ा अन्याय किया है। ऐसी सुन्दर छवि वाले तो आँखों में रहते हैं, फिर इन्हें वनवास क्यों दिया गया है।

तृतीय छन्द में कवि ने ग्रामीण महिलाओं के माध्यम से श्रीराम की सुन्दर छवि पर प्रकाश डाला है। ग्रामीण महिलाएँ सीता जी से पूछ रही हैं कि जिनके सिर पर जटाएँ हैं, जिनकी छाती चौड़ी, भुजाएँ लम्बी, आँखें लाल एवं भौंहे तिरछी हैं तथा जो धनुष–वाण के साथ वन–मार्ग में अत्यन्त सुन्दर दिख रहे हैं और जो आदर के साथ बार–बार तुम्हारी ओर देखकर हमारा मन मोह रहे हैं, वे साँवले–से राजकुमार आपके कौन हैं?

चतुर्थ छन्द में कवि ने चतुर ग्रामीण महिलाओं के वचनामृतों का उत्तर सीता जी ने जिस हाव–भाव से दिया है, उसका वर्णन किया है। इसके साथ ही उन्होंने राम–भक्ति में डूबी उन ग्रामीण महिलाओं की शोभा का भी वर्णन किया है।

शब्दार्थ:

पुरतें : पुर से, नगर से (यहाँ ‘नगर’ का तात्पर्य अयोध्या से है)

निकसी : निकली

रघुबीरबधु : भगवान श्रीराम की पत्नी सीता

धरि : धारण कर  

धीर : धैर्य

मगमें : रास्ते में

डग : कदम, पग

झलकीं : जलाने लगती हैं 

भाल : कपाल, ललाट 

कनीं : बूँदे

मधुराधर : मधुर होंठ

बूझति : पूछती

केतिक : कितना

पर्नकुटी : पर्णकुटी, झोपड़ी

करिहाँ : बनाई जाएगी

कित : कहाँ

तियकी : पत्नी की

लखि : देखकर

आतुरता : व्याकुलता

पियकी : पति की

अँखियाँ : आँखें

चारु : मनोहर, सुंदर

अयानी : मूर्ख, अज्ञानी

पबि : वज्र

पाहनहू तें : पत्थरों से भी

हियो : हृदय

राजहुँ : राजा को भी

काजु-अकाजु : कर्तव्य-अकर्तव्य

कहयौ : कहने पर

मनोहर : सुंदर 

मूरति : मूर्ति

बिछुरें : बिछुड़कट

प्रीतम : प्रिय

लोगु : लोग  

आँखिन : आँखों में

राखिये : रखने

जोगु : योग्य

किमि कै : क्योंकर, कैसे

बनबासु : वनवास

सीस : मस्तक, सिर

जटा : लट के रूप में गुथे हुए सिर के बड़े-बड़े बाल

उर : हृदय, दिल

बाहु : भुजाएविस

बिसाल : विशाल

बिलोचन : आँखें

तून : तूणीर, तरकश

सरासन : धनुष

बान : वाण, तोर

मारग : मार्ग

सुठि : सुंदर

सोहैं : शोभित हो रहे हैं

बारहिं बार : बार-बार

सुभायँ : स्वभाव

चितै : देखते हैं

त्यों : ओर

मनु : मन

ग्रामवधू : गाँव की स्त्रिय

साँवरे : साँवले

रावरे : आपके

बैन : वचन

सुधारस-साने : अमृत से सना हुआ

सयानी : चालाक

तिरछे : टेढ़ी

सैन : इशारा

कछू : कुछ

मुसुकाइ : मुस्कराकर

तेहि : उस

औसर : अवसर

अवलोकति : देखती हुई

लोचनलाहु : आँख के सौभाग्य स्वरूप

अलों : सखियाँ

अनुराग : प्रेम-भक्ति

तड़ाग : तालाब

भानु : सूर्य

उदैं : उदय होने से

बिगसीं : विकसित हो गई हैं

मनो : मानो

मंजुल : सुंदर

कंजकली : कमल की कली

द्वै : दो

तुम्ह त्यों : तुम्हारी ओर

मनु : मन

सिय सों : सीता से

को : कौन

दै सैन : संकेत देकर इशारि                                                    

तिन्हैं : उन्हें

कीर्ति : यश

भर्त्सना : उलाहना

उन्मुख : अग्रसर 

पग : कदम

मनोहारी : मन को हरने वाला

ग्राम-वधुएँ : गाँव की महिलाएँ 

तरकश : जिसमें तीर रखा जाता है।

पाठ् यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर

बोध एवं विचार:

1. सही विकल्प का चयन कीजिए:

(क) ग्राम-वधुएँ सीता को वन-मार्ग पर चलने योग्य इसलिए नहीं मानती थीं, क्योंकि —

(i) सौता बड़े घर की बहु थी। 

(ii)वे कोमलांगी थीं।

(iii) वे थको-थकी-सी लगती थीं। 

(iv) उन्हें चलने में संकोच होता था।

उत्तर: (ii)वे कोमलांगी।

(ख) ग्राम-वधू ने रानी को महा अज्ञानी इसलिए कहा, क्योंकि —

(i) रानी ने राम, सोता और लक्ष्मण को नहीं समझा था। 

(ii) उन्होंने अपने स्वार्थ को ही जाना था।

(iii) उन्होंने आँखों में रखने योग्य राम-सीता-लक्ष्मण को बनवास में भेज दिया था।

(iv) वे स्वामी राजा दशरथ को कर्तव्य-अकर्तव्य के बारे में समझाने में विफल रही थीं। 

उत्तरः (iii) उन्होंने आँखों में रखने योग्य राम-सीता- लक्ष्मण को वनवास में भेज दिया था।

2. निम्नलिखित पशनों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

(क) ‘चलनों अब केतिक’—यह प्रशन सीता जी की किस दशा का द्योतक है? 

उत्तर: ‘चलनों अब केतिक’—यह प्रशन सीता जी की आतुर दशा का द्योतक है।

(ख) किस परिस्थिति में रामचंद्र की आँखों से आँसू बह निकले थे? 

उत्तर: वनमार्ग में चलते हुए अपनी पत्नी सीता को आतुर परिस्थिति में देखकर रामचन्द्र की आँखों से आँसू बह निकले थे।

(ग) ग्राम-वधू ने किन शब्दों में राजा-रानी को भला-बुरा कहा था? 

उत्तरः ग्राम-वधू ने राजा-रानी को भला-बुरा इन शब्दों में कहा था कि रानी महा अज्ञानी हैं और उसका हृदय पत्थर से भी अधिक कठोर है। राजा को भी अपने कर्तव्य – अकर्तव्य का ज्ञान नहीं है, जिन्होंने रानी की बातों में आकर इतना बड़ा अन्याय किया है।

(प) वन-मार्ग पर चलते हुए श्री रामचंद्र के मधुर रूप का वर्णन कीजिए। 

उत्तर: वन-मार्ग पर चलते हुए श्री रामचंद्र के सिर पर जटाएँ सुशोभित हैं। उनको चौड़ी छाती और लम्बी भुजाएँ उनके व्यक्तित्व का आकर्षण हैं। उनकी लाल आँखें और तिरछी भैंहे मनोहारिणो हैं। उनके कंधे पर धनुष और पीठ पर वाणों से भरा तरकश उनको वीरता का परिचय दे रहे हैं।

(ङ) ग्राम-वधुओं ने सीता से क्या पूछा था? 

उत्तर: ग्राम वधुओं ने सीता से पूछा था कि जिनके सिर पर जटाएँ हैं, छाती चौड़ी और भुजाएँ लम्बी है, आँखें लाल और भौंहे तिरछी है, जो धनुष- वाण और तरकरा के साथ वन—मार्ग में अत्यन्त सुन्दर दिख रहे हैं तथा जो आदर के साथ चार बार– बार तुम्हारी ओर देखकर हमारा मन मोह रहे हैं, वे साँवले-से राजकुमार आपके कौन लगते हैं?

(च) सीता ने ग्राम-वधुओं के पशन का उत्तर किस प्रकार दिया था? 

उत्तरः सीता ने ग्राम-वधुओं के प्रशन का उत्तर मुस्कराकर तिरछे नेत्रों के इशारे से दिया था।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

(क) वन-मार्ग पर जाती सीता की दशा का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए। 

उत्तरः वन-मार्ग पर जाती सीता की दशा अत्यन्त दयनीय है। वह अपने पति श्रीराम और देवर लक्ष्मण के साथ वन-मार्ग में बड़ी कठिनाई से दो कदम ही चल पाती है कि शारीरिक कोमलता के कारण उनका ललाट पसीने की बूँदों से भींग जाता है और दोनों होंठ सूख जाते हैं। वह बार-बार बेचैन होकर अपने पति से पूछने लगती हैं कि अब और कितनी दूर चलना होगा और पर्णकुटी कहाँ बनाई जाएगी? वह शारीरिक और मानसिक रूप से अत्यन्त व्याकुल हैं।

(ख) राम, सीता और लक्ष्मण को वन-मार्ग पर चलते देखकर ग्राम-वधुओं के मन में कैसी प्रतिक्रियाएँ हुई थीं?

उत्तरः राम, सीता और लक्ष्मण को वन-मार्ग पर चलते देखकर ग्राम-वधुओं के मन में प्रेममय, विस्मय-विमुग्ध और भाव-विहवल प्रतिक्रियाएँ हुई थीं। तीनों के मनोहारी रूप से विस्मित होकर एक ग्राम-वधू राजा दशरथ और रानी कैकेयी की आलोचना करती हुई अपनी सहेली से कहती है – मुझे यह ज्ञात हो गया है कि रानी महा अज्ञानी हैं और उनका हृदय भी कठोर है। राजा को भी अपने कर्तव्य–अकर्तव्य का ज्ञान नहीं है, जिन्होंने राजधर्म की अपेक्षा अपनी रानी को अधिक महत्त्व दिया और उसकी बातों में आकर आँखों में रखने योग्य ऐसी मनोहर मूर्तियों को वनवास भेज दिया है। 

(ग) पठित छंदों के आधार पर श्री रामचंद्र की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए। 

उत्तरः पठित छंदों में हमें श्री रामचंद्र के भावक व्यक्तित्व का परिचय मिलता है। श्रीरामचंद्र एक आज्ञाकारी पुत्र थे। वे अपने पिता से आज्ञा लेकर अपनी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ वन–मार्ग पर निकल पड़ते है। एक धीर और गंभीर पुरुष की भाँति वे निरन्तर अपने पथ पर आगे बढ़ते जा रहे हैं। उनके कंधे पर धनुष और पीठ पर वाणों से भरा हुआ तरकश उनकी वीरता का परिचय दे रहे हैं। परन्तु अपनी पत्नी सीता की व्याकुलता का अनुभव कर वे भावुक हो जाते हैं और उनको आँखों से आँसू बहने लगते हैं।

(घ) गोस्वामी तुलसीदास का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय दीजिए। 

उत्तर: गोस्वामी तुलसीदास सगुणमार्गी रामभक्ति– काव्यधारा के साथ-साथ सम्पूर्ण हिन्दी काव्यधारा के सबसे प्रतिभाशाली एवं लोकप्रिय कवि हैं। उन्होंने अयोध्यापति दशरथ के पुत्र श्रीराम को अपना आराध्य प्रभु माना है और उनके द्वारा स्थापित आदर्श को आधार बनाकर अपने काव्यों की रचना की है। उनकी रचनाएँ भारतीय एवं विशव साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। उनकी रचना ‘रामचरितमानस’ का संसार कौ प्रमुख भाषाओं में अनुवाद होना प्रत्येक भारतीय के लिए गौरव की बात है।

महाकवि तुलसीदास ने अनेक काव्यों की रचनाएँ की हैं, जिनमें ‘रामचरितमानस’, ‘विनय–पत्रिका’ और ‘कवितावली’ प्रमुख हैं। ‘रामचरितमानस’ उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। यह दशरथ–पुत्र श्रीराम को जीवन–गाथा पर आधारित एक अनुपम महाकाव्य है। इसकी रचना हिन्दी की एक प्रमुख बोली अवधी के दोहा–चौपाई और छंदों में हुई है। ‘विनय–पत्रिका’ और ‘कवितावली’ की रचना ब्रजभाषा में हुई है। उक्त तीनों काव्यों के अतिरिक्त तुलसीदास की अन्य रचनाओं में ‘दोहावली’, ‘कवित्त रामायण’, ‘गीतावली’, ‘रामाज्ञा प्रश्नावली’, ‘रामललानहछू’, ‘पार्वतीमंगल’, ‘जानकीमंगल’, ‘बरवै रामायण’, ‘वैराग्य संदीपनी’, ‘कृष्ण गीतावली’ आदि का नाम आता है। विनय-पत्रिका में प्रार्थनापरक पदों तथा ‘कवितावली’ में रामकथा संबंधी गेय मुक्तक छंदों का सुंदर संग्रह किया गया है। समन्वय और लोक–मंगल की भावना से प्रेरित होकर जीवन–भर राम-भक्ति की शीतल चाँदनी, बिखेरने के कारण तुलसीदास को साहित्य जगत् में ‘शशि’ की आख्या मिली है।

4. आशय स्पष्ट कीजिए—

(क) तियकी लखि आतुरता पियकी अँखियाँ अति चारु चलीं जल च्वै। 

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठय–पुस्तक’ अंबर भाग-2′ के ‘वन–मार्ग में’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं।

उक्त पंक्ति में कवि का आशय यह है कि वन–मार्ग में चलते समय अपनी पत्नी सीता की व्याकुल दशा को भाँप कर उनके पति श्रीराम की आँखों में आँसू भर आते हैं। सीता वन–मार्ग में बड़ी मुश्किल से दो कदम चलती है कि शारीरिक कोमलता के कारण उसके ललाट पर पसीने की बूँदें चमकने लगती हैं और दोनों होंठ सूख जाते हैं। पीछे की ओर मुड़कर अपने पति से पूछने लगती है कि अब और कितनी दूर चलना है और हमारी पर्णकुटी कहाँ बनाई जाएगी? सीता की इस शारीरिक एवं मानसिक व्याकुलता का अनुभव कर श्रीराम भावुक हो जाते हैं।

(ख) ऐसी मनोहर मूरति ए, बिछुरें कैसे प्रीतम लोग जियो है। 

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठय–पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के ‘वन–मार्ग में’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं।

उक्त पंक्ति में कवि का आशय यह है कि वनमार्ग में चलते हुए सीता, राम और लक्ष्मण की छवि अति मनोहारिणी है। कवि कहते हैं कि जो भी इन्हें एक बार देख लेता है, वह इनके अनुपम सौंदर्य पर मुग्ध हो जाता है, जिन प्रियजनों को छोड़कर ये लोग वन में जा रहे हैं, उनकी हालत क्या होगी? जो लोग हर पल इनके रूप–सौंदर्य और सान्निध्य का रसपान करते होंगे, वे इनके वियोग में किस प्रकार जीते होंगे?

(ग) सादर बारहिं बार सुभायँ चितै तुम्ह त्यों हमरो मनु मोहैं। 

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठय–पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के ‘वन–मार्ग में’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं।

उक्त पंक्ति में कवि का आशय यह है कि वन–मार्ग में चलते समय श्रीराम जिस आदर और प्रेम से बार–बार अपनी पत्नी की ओर देखते हैं, उससे सबको मुग्ध कर देते हैं। यहाँ कवि का तात्पर्य यह है कि श्रीराम अपने निश्छल पत्नी–प्रेम के स्वभाव से सबका मन मोहित कर लेते हैं।

(घ) तिरछे करि नैन, दै सैन, तिन्हें समुझाइ कछू, मुसुकाइ चली। 

उत्तरः प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठय–पुस्तक ‘अंधर भाग-2′ के वन–मार्ग में’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं।

उक्त पंक्ति में कवि का आशय यह है कि सीता ग्राम–वधुओं द्वारा श्रीराम के मधुर रूप का वर्णन सुनकर मन–ही–मन प्रसन्न होती हैं तथा उनके इस प्रशन कि ‘श्रीराम उनके क्या लगते हैं? ‘का उत्तर नारोचित लज्जावश स्पष्ट शब्दों में नहीं बल्कि मुस्कराकर तिरछे नेत्रों के इशारे से देती हुई चलती हैं।

5. भावार्थ लिखिए:

(क) ऐसी मनोहर मूरति ए, बिछुरें कैसे प्रीतम लोगु जियो हैं। आँखिन में सखि! राखिबे जोगु, इन्हें किमि बनबासु दियो हैं।।

उत्तर: इनकी छवि इतनी मनोहारिणी है कि जो भी इन्हें एक बार देख लेता है, वह मुग्ध हो जाता है। उसकी आँखें बार–बार इनके सुन्दर छवि का रसपान करने को लालायित रहती हैं। पता नहीं, अपने जिन प्रियजनों को छोड़कर ये लोग वन में जा रहे हैं, उनकी हालत क्या होगी? इनके वियोग में वे लोग किस तरह जीते होंगे? हे सखी! ऐसे लोग तो आँखों में रहते हैं। क्षणभर के लिए भी नजरों से दूर नहीं होते, फिर इन्हें वनवास क्यों दिया गया है?

(ख) तुलसी तेही औसर सोहैं सबै अवलोकति लोचनलाहु अली। अनुराग–तड़ाग में भानु उदैं बिगसीं मनो मंजुल कंजकली॥

उत्तरः तुलसीदास कहते हैं कि ग्रामीण सखियाँ अपने आँखों के सौभाग्य स्वरूप श्रीरामचन्द्र जी को देखती हुई ऐसी सुशोभित हो रही हैं, मानो सूर्य के उदय होने से प्रेम–भक्ति रूपी तालाब में कमलों की मनोहर कलियाँ खिल गयी हैं। यहाँ कवि ने श्रीरामचन्द्र जी की तुलना सूर्य से और ग्रामीण सखियों की तुलना कमलों की कलियों से करते हुए कहा है कि जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश पाते ही किसी सरोवर में कमलों की कलियाँ खिलकर अपनी छटा बिखेरने लगती हैं, उसी प्रकार श्रीरामचन्द्र रूपी सूर्य के दर्शन मात्र से सखियाँ प्रेम–भक्ति रूपी सरोवर में कमलों की कलियों के समान विकसित होकर निखर गयी हैं।

6. सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

(क) पुरतें निकसी रघुबीरबधु…….. अति चारु चलीं जल च्वै। 

उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत छंद हमारी पाठय–पुस्तक ‘ अंबर भाग-2’ के ‘वन–मार्ग में’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं।इस छन्द में कवि ने वन–मार्ग में चलते समय श्रीराम की पत्नी सीता की व्याकुल दशा पर प्रकाश डाला है। 

व्याख्या: यहाँ कवि का कहना है कि वन–मार्ग में चलते समय सीता की दशा अत्यन्त दयनीय है। वह अपने पति श्रीराम और देवर लक्ष्मण के साथ अयोध्या नगरी से निकलकर बहुत कठिनाई से दो कदम ही चलती हैं कि शारीरिक कोमलता के कारण उनके ललाट पर पसीने की बूँदें झलकने लगती हैं और दोनों मधुर होंठ सूख जाते हैं। वह बार–बार पीछे की ओर मुड़कर अपने पति से पूछने लगती हैं कि अब और कितनी दूर चलना होगा और हमारी पर्णकुटी कहाँ बनाई जाएगी? अपनी पत्नी की मानसिक एवं शारीरिक व्याकुलता का अनुभव कर श्रीराम की आँखें भर आती हैं।

(ख) सीस जटा, उर–बाहु बिसाल……. कहाै साँवरे से सखि रावरे को हैं। 

उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत छंद हमारी पाठय–पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के ‘वन–मार्ग में’ शीर्षक कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं। इस छन्द में कवि ने ग्राम–वधुओं के माध्यम से श्रीराम के मधुर रूप का वर्णन किया है तथा सीता के प्रति श्रीराम की आदर भावना से मोहित इन ग्राम–वधुओं का उनके बीच के संबंध को जानने की उत्सुकता पर प्रकाश डाला है। 

व्याख्या: यहाँ कवि ग्राम–वधुओं के माध्यम से श्रीराम के मधुर रूप का वर्णन करते हुए कहते हैं कि उनके सिर पर घनी जटाएँ सुशोभित हैं। उनकी चौड़ी छाती और लम्बी भुजाएँ उनके आकर्षण का केन्द्र हैं। उनकी लाल आँखें और तिरछी भौंहें मनोहारिणी हैं, जो धनुष-वाण और तरकश के साथ वन–मार्ग में अत्यंत सुन्दर दिख रहे हैं तथा आदर के साथ बार–बार अपनी पत्नी सीता की ओर देखकर सबको मुग्ध कर रहे हैं। यहाँ कवि का कहना है कि श्रीराम अपनी पत्नी के प्रति जिस आदर भावना का प्रदर्शन कर रहे हैं, उससे मोहित ग्राम वधुएँ उत्सुकतावश सीता जी से पूछती हैं कि वे आपके कौन हैं?

भाष एवं व्याकरण

(क) ‘ता’ प्रत्यय जोड़कर भाववाचक संज्ञा शब्द बनाया जाता है, जैसे–आतुर + ता = आतुरता, मानव + ता = मानवता। ऐसे पाँच शब्दों का निर्माण करके वाक्यों में प्रयोग कीजिए।

उत्तरः शिष्ट + ता = शिष्टता   = शिष्टता एक उत्तम मानवीय गुण है।

धृष्टता + तक = धृष्टता  = धृष्टता एक अवगुण है।

शत्रु + ता = शत्रुता   = किसी से शत्रुता रखना अच्छी बात नहीं है।

• सतर्क + ता = सतर्कता  = यह काम हमें सतर्कता के साथ करना चाहिए।

योग्य + ता = योग्यता  = योग्यता कभी किसी परिचय का मोहताज नहीं होती।

(ख) निम्नांकित अभिव्यक्तियों के खड़ीबोली रूप लिखिए — 

पुरतें, है, केतिक, तियकी, अयानी, आँखिन में, किमि, मनु, सिय सों, रावरे, बैन, सैन

उत्तर: 

अभिव्यक्तिखड़ीबोली रूपपुरतेंनगर सेद्वैदोकेतिककितनातियकीस्त्री कीअयानीअज्ञानीआँखिन मेंआँखों मेंकिमिक्योंमनुमनसिय सौंसीता सेरावरेआपकेबैनवचनसैनसंकेत

(ग) तीन-तीन पर्यायवाची शब्द लिखिए–

रघुवीर, सीता, आँख, राजा, मार्ग, कमल

उत्तर: 

शब्दपर्यायवाची शब्दरघुवीरराघव, श्रीरामचन्द्र, कमलनयनसीताजानकी, रघुवीरप्रिया, वैदेहीआँखनेत्र, नयन, लोचनराजानृप, राजन्, नरेशमार्गपथ, रास्ता, राहकमलनीरज, सरोज, जलज

योग्यता–विस्तार

(क) त्रावण शुक्ला सप्तमी तिथि को अपने विद्यालय में तुलसी जयंती मनाने हुए गोस्वामी तुलसीदास पर भाषण प्रतियोगिता का आयोजन कीजिए। 

उत्तर: छात्रगण शिक्षक की मदद लें।

(ख) ‘रामचरितमानस’ में वर्णित वन–गमन प्रसंग को पढ़िए और पठित छंदों के साथ उसकी तुलना कीजिए। 

उत्तरः छात्रगण शिक्षक की मदद लें।

(ग) वर्ण की आवृत्ति यानी एक से अधिक बार के प्रयोग को ‘अनुप्रास’ अलंकार कहते हैं। उदाहरणस्वरूप ‘रघुवीरवधु धरि धीर’ में ‘ध’ ध्वनि की आवृत्ति हुई है। पाठ में आए अनुप्रास अलंकार वाले ऐसे स्थलों का चयन कीजिए।

उत्तरः पाठ में निम्नलिखित स्थलों पर अनुप्रास अलंकार आए हैं। 

झलकी भरि भाल, मधुराधर वै 

पर्नकुटी करिहों कित है, चारु चलीं जल च्चै

पबि–पाहनहू तें कठोर हियो है। 

राजहुँ काजु अकाजु न जान्यो 

कहयौ तियको जेहिं कान कियो है 

ऐसी मनोहर मूरति ए

सादर बारहिं बार सुभायें चितै

तुम्ह त्यों हमरो मनु मोहैं ।

कहाँ साँवरे से सखि रावरे को हैं। 

सुनि सुन्दर बैन सुधारस–साने सयानी हैं। 

जानकीं जानी भली।

(घ) उपमेय (जिसकी तुलना की जाए) पर उपमान (जिसके साथ तुलना की जाए) का आरोप हो या उपमान और उपमेय में अभेद भाव व्यक्त हो तो उसे रूपक अलंकार कहा जाता है। फिर उपमेय में कल्पित उपमान की संभावना व्यक्त हो तो उसे उत्प्रेक्षा अलंकार कहते हैं। उत्प्रेक्षा में ‘मानो’, ‘मनो’, ‘जनु’ आदि शब्दों द्वारा संभावना पर जोर दिया जाता है। जैसे –

अनुराग–तड़ाग में भानु उदैं बिगसीं मनो मंजुल कंजकली।

प्रस्तुत काव्य पंक्ति के अनुराग–तढ़ाग’ में रूपक अलंकार और पूरी पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार को योजना हुई है। 

इस संदर्भ में अपने शिक्षक से अधिक जानकारी प्राप्त कीजिए। 

उत्तर: छात्रगण शिक्षक की मदद लें।

अतिरिक्त प्रशन एवं उत्तर

निम्नलिखित पशनों के उत्तर दीजिए

1. कवि ने ‘रघुवीरबधु’ संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है? 

उत्तर: कवि ने ‘रघुवीरबधु’ संबोधन का प्रयोग सीता के लिए किया है।

2. वन मार्ग पर चलते हुए श्रीरामचंद्र क्या धारण किए हैं? 

उत्तर: वन–मार्ग पर चलते हुए श्रीरामचंद्र अपने पीठ पर वाणों से भरा हुआ तरकश और कंधे पर धनुष धारण किए हैं।

सप्रसंग व्याख्या कीजिए 

(क) रानी मैं जानी अयानी महा….. कहयौ तियको जेहिं कान कियो है॥

उत्तरः प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठय-पुस्तक ‘अंबर भाग-2’ के ‘वन–मार्ग में ‘ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं, जिनके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हैं। यहाँ कवि ने राम, सोता और लक्ष्मण की मनोहर छवि से विस्मित होकर एक ग्राम–वधू के माध्यम से रानी (कैकेयी) के कठोर स्वभाव और राजा के कर्तव्य–ज्ञान के प्रति अपनी भावात्मक प्रतिक्रिया को व्यक्त किया है। 

व्याख्या: यहाँ एक ग्राम–वधू के माध्यम से कवि कहते हैं कि राम, सीता और लक्ष्मण की मधुर मूर्तियों को देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता है कि रानी कैकेयी कितनी अज्ञानी है तथा उनका हृदय पत्थर और बज्र के समान कठोर है। इसके साथ ही राजा को भी अपने कर्तव्य का ज्ञान नहीं है, जिन्होंने अपने राजधर्म के बजाय रानी की बातों में आकर इतना बड़ा अन्याय किया है।

सीता की क्या दशा हुई?

Solution : नगर से बाहर निकलकर दो पग चलने के बाद सीता के माथे से पसीना निकल आया। उनके मधुर होंठ सूख गये और उन्हें बहुत थकान लगने लगी। तब वे आराम करने और पर्णकुटी बनाने के सम्बन्ध में पूछने लगीं।

सीता की ऐसी दशा क्यों हुई?

उत्तर सीता जी की आतुरता राम जी से देखा नहीं जाता उनकी ऐसी हालत और आतुरता को देखकर वो व्याकुल हो उठते हैं। सीता जी की ऐसी दशा उनसे देखी नहीं जाती और उनके आँखों से भी आँसू बहने लगते हैं। वे पछताने लगते हैं कि उनके कारण ही सीता जी की यह अवस्था हुई है।

6 वन के मार्ग में सीता को कौनसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?

उत्तर: वन मार्गों में बहुत कांटे एवं पत्थर भी थे , और मौसम भी बहुत गर्म हो रहा था । वन के मार्ग में सीता जी को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा जैसे वे चलते – चलते थक गईं और उनके माथे पर पसीना आने लगा। प्यास से उनके होंठ भी सूखने लगे तथा नंगे पाँव होने के कारण उनके पैरों में काँटे भी चुभ गए थे।

वन मार्ग पर पर कुछ ही दूर जाते ही सीता की क्या दशा हुई?

सीता वन के मार्ग पर थोड़ी दूर चलने से ही थक गईं। उनके माथे पर पसीना दिखाई देने लगा। उनके होंठ सूख गए। वे बहुत बेचैन हो उठीं और पूछने लगीं कि अभी कितनी दूर जाना है।