Students get through the MP Board Class 12th Hindi Important Questions General Hindi निबंध लेखन which are most likely to be asked in the exam. Show MP Board Class 12th General Hindi निबंध लेखन Important Questions1. आतंकवाद (म. प्र. 2009, 10, 13) रूपरेखा:
1. प्रस्तावना: (2) आतंकवाद से तात्पर्य: विश्व के समृद्धि देशों में इसकी जड़ें गहरी हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन. एफ. कैनेडी और हमारे देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी तथा राजीव गांधी की हत्या आतंकवाद का परिणाम है। अमेरिका वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला, भारतीय संसद पर पाकिस्तानी आतंकवादी का हमला तथा निर्दोष कश्मीरवासियों की हत्या भी आतंकवादी की घिनौनी चाल है। (3) आतंकवाद से छुटकारा: साथ ही यदि कुछ आर्थिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक हद तक कुछ माँगें हैं तो उन्हें समझा जा सकता है इसके लिये हिंसा का प्रयोग आवश्यक नहीं। दूसरा कदम यह है कि जब पहला तरीका काम न आये तो फिर काँटे को काँटे से ही निकाला जा सकता है। इसके लिए ईंट का जवाब पत्थर से देना होगा साथ ही ऐसा सबक सिखाना होगा कि कहीं भी इस प्रकार का दुःसाहसपूर्ण कदम न उठा सके। इस प्रकार साँप का फन कुचलना होगा। (4) उपसंहार: आतंकवाद को समाप्त करना मानवता की रक्षा के लिए बहुत ही आवश्यक है ताकि सभी मानव भय और तनाव रहित सुरक्षित जीवन जी सके। आतंक से नहीं वरन् शान्ति, प्रेम और भाईचारे की भावना से ही सुख और आनंदकी प्राप्ति कर सकते हैं। 2. विज्ञान एवं कम्प्यूटर (म. प्र. 2009, 10, 13) रूपरेखा:
प्रस्तावना: कम्प्यूटर का महत्व: इस कार्य के लिए सबसे पहले प्रयोग किया जाने वाला यन्त्र अबेकस (Abacus) प्रथम साधन था। आज वैज्ञानिक युग में अनेक प्रकार के गणना यन्त्र बना लिए हैं। पर इन सबमें अधिक तीव्र, शुद्ध, उपयोगी गणना करने वाला यन्त्र कम्प्यूटर है। चार्ल्स बैबेज पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कम्प्यूटर बनाया था। यह कम्प्यूटर लम्बी गणना करके उसके परिणामों को स्पष्ट कर देता था। कम्प्यूटर स्वयं गणना करके उसके परिणामों को स्पष्ट कर देता था। जटिल समस्याओं को मिनटों में हल कर देता था। कम्प्यूटर की गणना के लिए विशेष भाषा को तैयार किया जाता है। निर्देशों और सूचनाओं को कम्प्यूटर का प्रोग्राम कहा जाता है। कम्प्यूटर का उपयोग: 1. बैंकिंग क्षेत्र में: 2. सूचना वसमाचार प्रेषण के क्षेत्र में: 3. प्रकाशन के क्षेत्र में: 4. डिजाइनिंग के क्षेत्र में: 5. कला के क्षेत्र में: 6. वैज्ञानिक खोज के क्षेत्र में: 7. युद्ध के क्षेत्र में: जीवन का हर क्षेत्र कम्प्यूटर की परिधि में आ गया है। वायुयान या रेलयात्रा के आरक्षण की व्यवस्था कम्प्यूटर द्वारा की जाती है। रेल्वे तथा बस का टाइम भी आपको कम्प्यूटर ही बतलायेगा। इसके अतिरिक्त चिकित्सा के क्षेत्र में, परीक्षाफल निर्माण में, मौसम सम्बन्धी जानकारी में, चुनाव कार्य में कम्प्यूटर का महत्वपूर्ण योगदान है। दैनिक जीवन में कम्प्यूटर की क्षमताएँ एवं सम्भावनाएँ बढ़ गई हैं। छात्रों के लिए प्रिंटिंग के बाद कम्प्यूटर ही सबसे बड़ा आविष्कार है। इससे छात्रों और अध्यापकों का समय बचता है। भारत के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्व राजीव गाँधी का कम्प्यूटर के प्रति अत्यधिक रुझान था। भारत ने कम्प्यूटर टेक्नॉलाजी प्राप्त करने के लिए अमेरिका की ओर दोस्ताना कदम बढ़ाए हैं। अब सरकार ने कम्प्यूटर पर कर घटाया है ताकि भारत में भी विदेशी टेक्नालॉजी वाली कम्पनियाँ स्थापित हो सकें। भारत इस प्रकार के अनेक विषयों पर विदेशों से हाथ मिला रहा है। कम्प्यूटर और मानव मस्तिष्क-कम्प्यूटर एक मानव यन्त्र है। इसमें न मानवीय संवेदनायें हैं न रुचियाँ। पर यह मानव द्वारा निर्देशित ऐसा यन्त्र जो स्वयं निर्णय लेने में असमर्थ है। वास्तव में यह मानव मस्तिष्क की रचना है जो कम समय में समस्याओं को हल कर सकता है। उपसंहार: 3. स्वदेश प्रेम (म. प्र. 2012, 18) जिस देश में हमारा जन्म हुआ है, जिस धरती पर हम पलकर बड़े हुए हैं उसके प्रति हमारे हृदय में प्रेमभावना नहीं है तो वह हृदय नहीं है, पत्थर के समान है। इतना ही नहीं गुप्त जी ने देश-प्रेम से हीन व्यक्ति को पशु की संज्ञा दी है – जिनमें न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है। मनुष्य के हृदय में स्वदेश के प्रति प्रेम होना स्वाभाविक ही है। मनुष्य ही क्यों, पशु-पक्षियों तथा पेड़-पौधों में भी यह पावन प्रवृत्ति देखी जा सकती है। पक्षी पूरे दिन कोसों दूर तक घूमकर सायंकाल अपने नीड़ों में लौटते हैं। पेड़-पौधे भी अपनी प्रिय जन्म-भूमि में जितने फलते-फूलते हैं वैसे किसी अन्य स्थल पर नहीं, उदाहरण के लिए कश्मीर में उत्पन्न होने वाला सेब, विश्व में अन्यत्र कहीं वैसा उत्पन्न नहीं हो सकता। श्री रामनरेश त्रिपाठी ने देश के प्रति अनुराग को अपनी ‘देश-प्रेम’ नामक कविता में इस प्रकार अभिव्यक्त किया है – हिमवासी जो हिम में तम में, जीता है नित काँप-काँप कर। संसार के प्रत्येक देश में समय-समय पर देश प्रेमी जन्म लेते हैं। भारत का इतिहास तो देश-प्रेम की कथाओं से भरा पड़ा है। भारतवासियों के हृदय में देश-प्रेम की भावना को कूट-कूट कर भरने वाले शिवाजी, राणा प्रताप, लक्ष्मीबाई, भगतसिंह, सुभाष चन्द्र बोस, रामप्रसाद बिस्मिल आदि देश प्रेमियों का नाम भारतीय इतिहास में सदैव स्वर्णाक्षरों में चमकता रहेगा। इन महान् आत्माओं की त्याग भावना के परिणामस्वरूप ही देश की स्थिति में परिवर्तन हो सका है। जिस देश के वासी स्वदेश की उन्नति में ही अपनी उन्नति देखते हैं, ऐसे देश की ही उन्नति सम्भव हो सकती है। वर्तमान समय में विदेशों में दृष्टिगोचर होने वाली उन्नति देश-प्रेम के परिणामस्वरूप ही दिखाई देती है, इसके विपरीत भारतवर्ष की अवनति का मूल कारण भारतवासियों में देश-प्रेम का अभाव है। हमारे देश के लिए यह लज्जा की बात है कि कोई व्यक्ति या कोई नेता देश-हित के लिए स्वहित की बलि नहीं दे सकता। माता और मातृ-भूमि तो स्वर्ग से भी बढ़कर होती हैं, उनके उद्धार के लिए मनुष्य को अपने आपको समर्पित कर देना चाहिए। कहा भी गया है – ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’। 4. समय का महत्व (म. प्र. 2012, 14) अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध कहावत है: समय तो ईश्वर की अतुलनीय देन है, जिसे न बढ़ाया जा सकता है और न कम किया जा सकता है। मानव के जीवन का प्रत्येक क्षण अनमोल है। यदि एक क्षण का भी दुरुपयोग होता है तो मानव सभ्यता का विकास-चक्र शिथिल हो जाता है। एक पल की शिथिलता जीवन भर के पश्चाताप का कारण बन जाती है। मानव जाति में अन्तरिक्ष के रहस्यों को खोज निकालने की होड़ लगी है। इनमें से वही सफलता प्राप्त करने का अधिकारी होगा, जो समय का उचित उपयोग करेगा। जीवन के प्रत्येक पल का उपयोग करने वाला ही सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुँच सकता है। विधाता की ओर से हर प्राणी के जीवन के क्षण निश्चित हैं। जीवन में कार्यों का बोझ इतना होता है कि उसे थोडे समय में ढो पाना कठिन हो जाता है। समय केवल उसका साथ देता है, जो उसके मूल्य को पहचान कर उसका उचित उपयोग करता है। कहा गया है: फिर तो वही बात होती है – आग लगने पर कुआँ खोदने वाला व्यक्ति कभी भी अपना घर नहीं बचा पाता। उसका सर्वनाश निश्चित होता है। जो विद्यार्थी परीक्षा के दिनों में भी अध्ययन नहीं करता, वह परीक्षा परिणाम घोषित होने पर आँसू ही बहाता है। जो समय नष्ट करता है, उसे समय नष्ट कर देता है। सिसरो ने समय को ‘सत्य का पथ-प्रदर्शक’ माना है। समय एक सम्पत्ति है। समय पर किया गया थोड़ा-सा कार्य मनुष्य को अनेक कठिनाइयों से बचा लेता है। मेसन का विचार है कि “स्वर्ण का प्रत्येक अंश जिस प्रकार मूल्यवान होता है, उसी प्रकार समय का सदुपयोग करना चाहिए। जो समय को बचाता है, उसे सम्मान देता है, समय भी उसकी रक्षा करता है।” वस्तुत: क्षणशः क्षणत्यागे कुतो विद्या, कण त्यागे कुतोधनम्। 5. जीवन में खेलों का महत्व (म. प्र. 1996, 03, 07, 09, 10, 11, 12, महत्वपूर्ण) रूपरेखा:
प्रस्तावना: खेलों के प्रकार: इनडोर गेम्स के अन्तर्गत टेबल टेनिस, बैडमिंटन, कैरम बोर्ड, शतरंज, टेनिस, वॉलीबाल, मुक्केबाजी, जिमनास्टिक आदि खेल गिने जाते हैं तथा मैदानी खेल के अन्तर्गत फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट, बेसबाल, बास्केटबाल, कबड्डी तथा विभिन्न दौड़ें आदि खेलों की गिनती होती है। खेलों का महत्व: ‘शरीरमाद्यम् खलु धर्मसाधनम्’ अर्थात् सभी प्रकार के कार्यों को सिद्ध करने के लिए शरीर सबसे पहला साधन है। खेलों के द्वारा लोगों से मैत्री बढ़ती है और दर-दर के देशों को देखने का अवसर मिलता है। नामी खिलाडी बनने पर धन भी ख है। नौकरी भी आसानी से मिल जाती है। खेल राष्ट्रीय सम्मान और अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का साधन है। भारत में खेलों की दशा-भारत में खेलों की दशा अत्यन्त दयनीय है। खेल के साधन अत्यन्त सीमित हैं। बहुत-से विद्यालयों और महाविद्यालयों में खेलों के सारे साधन तो कौन कहे, खेल के मैदान भी नहीं हैं। बच्चे गली-कूचों में खेलते रहते हैं। यही कारण है कि इतनी बड़ी जनसंख्या वाला देश होकर भी भारत अन्तर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में पिछड़ जाता है। यहाँ के बच्चों को गिल्ली-डण्डे तथा कबड्डी जैसे खेल ही सुलभ हो पाते हैं। हॉकी का सिरमौर भारत, आज इस खेल में भी भाई-भतीजावाद एवं गुटबाजी के कारण पिछड़ता जा रहा है। उपसंहार: बस आवश्यकता इस बात की शेष रह गयी है कि यह मंत्रालय राजनीतिक दाँव-पेंच से दूर रहे तथा गाँव-गाँव में खेलों के साधन प्रदान करे। छिपे प्रतिभावान खिलाड़ियों को खोज निकाले तथा उन्हें हर तरह से प्रश्रय प्रदान करे, तो निश्चित ही एक दिन भारत का मस्तक खेल जगत में भी ऊँचा होकर रहेगा। 6. बेरोजगारी की समस्या (म. प्र. 2014, 15, 17) “बेरोजगारी का हो नाश, तभी हो देश का विकास।” रूपरेखा:
प्रस्तावना: बेरोजगारी के कारणं: 1. जनसंख्या वृद्धि: 2. लघु एवं कुटीर उद्योग-धन्धों का अभाव: 3. औद्योगीकरण का अभाव: 4. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली: 5. पूँजी का अभाव: 6. कुशल एवं प्रशिक्षित श्रमिकों का अभाव: बेरोजगारी के प्रकार:
1. इस श्रेणी में अशिक्षित एवं निर्धन कृषक और ग्रामीण मजदूर आते हैं। जो प्रायः वर्ष में 5 माह से लेकर 9 माह तक बेकार रहते हैं। बेरोजगारी के परिणाम: समस्या के समाधान हेतु सुझाव: 1. जनसंख्या पर नियंत्रण: 2. लघु एवं कुटीर उद्योग का विकास: 3. बचत एवं विनियोग की दर में वृद्धि: “रोजगार सबको मिले, कोई न हो बेकार। 7. दहेज प्रथा और नारी (म. प्र. 2017) पंचतंत्र में लिखा है – पुत्रीति जाता महतीह, चिन्ताकस्मैप्रदैयोति महान वितकैः। अर्थात् पुत्री उत्पन्न हुई यह बड़ी चिंता है। किसको दी जाएगी और देने के बाद भी सुख पायेगी या नहीं यह बड़ा वितर्क रहता है। कन्या का पितृत्व निश्चय ही कष्टपूर्ण होता है। प्रस्तावना: दहेज का आशय: ‘कहि न जाइ कछु दाइज भूरी, रहा कनक मनि मंडप पूरी। लेकिन आज स्वेच्छा से दिये गये धन ने अनिवार्यता का रूप ग्रहण कर लिया है। आज के जमाने में वर पक्ष अनेक वस्तुओं की माँग करता है। आज दहेज रूपी दानव के कारण कितनी कन्याओं की माँग सूनी हो गयी तथा हँसती-खिलखिलाती जिन्दगी नरक के समान हो गयी। उनके स्वप्न चकनाचूर हो गये। उनकी इच्छाओं को कोमल कलियों के सदृश मसल दिया गया। दहेज प्रथा का प्रचलन एवं कारण: दहेज प्रथा एक अभिशाप: दहेज प्रथा के निराकरण के उपाय: उपसंहार: 8. समाचार-पत्र (म. प्र. 1991, 98 P, 2004 P, 07, संभावित) रूपरेखा:
प्रस्तावना: समाचार-पत्रों का इतिहास: समाचार-पत्र का जन्म इटली के वेनिस नगर में 13वीं शताब्दी में हुआ। इससे पूर्व लोगों में समाचार-पत्र की परिकल्पना भी नहीं थी। 17 वीं सदी में धीरे-धीरे अपनी उपयोगिता के कारण समाचार-पत्र इंग्लैण्ड पहुँचा। फिर धीरे-धीरे सारे संसार में फैला। भारत में सर्वप्रथम कलकत्ता में इसका जन्म और विकास हुआ। 19 जनवरी, सन् 1780 को ‘बंगाल गजट’ या ‘कैलकटा जनरल एडवरटाइजर’ के प्रकाशन के साथ ही भारतीय पत्रकारिता का जन्म हुआ। समाचार-पत्रों का महत्व: राजनीतिज्ञों के लिए, राजनीतिक प्रौढ़ता बढ़ाने के लिए, लोगों में साहित्यिक चेतना जगाने की दृष्टि से भी समाचार-पत्र महत्वपूर्ण हैं। व्यापारियों के लिए तो यह आवश्यक चीज बन गया है। यह युग विज्ञापन का युग है, प्रचार का युग है और समाचार-पत्र प्रचार का सरल एवं सस्ता माध्यम है। वैयक्तिक दृष्टि से भी विज्ञापनों का कम महत्व नहीं है। नौकरी का विज्ञापन, वर-वधु विज्ञापन, शुभकामनाएँ, आभार प्रदर्शन, निमन्त्रण आदि का काम समाचार-पत्र करता है। समाचार-पत्र तो प्रजातन्त्र की रीढ़ कहे जाते हैं। जनमत बनाने का काम ये ही करते हैं। वैचारिक स्वतन्त्रता को प्रश्रय समाचार-पत्र ही देते हैं। इस तरह समाचार-पत्र आज के संसार में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान बना चुके हैं। अच्छे समाचार-पत्रों के गुण: उपसंहार: 9. “जल ही जीवन है” (म. प्र. 2011, 15, 18) “जल ही जीवन है” यह कथन उचित है कि मनुष्य के जीवन में जल का महत्व अत्यधिक है। जल के महत्व को समझाते हुए कवि रहीम ने कहा है – “रहीमन पानी राखिए बिनु पानी सब सुन” जल के बिना यह संसार सूना है। हमें दैनिक जीवन की आवश्यकता की पूर्ति हेतु जल की आवश्यकता होती है यह जल वर्षा से प्राप्त होता है। एक कवि का कथन है – “अगर न नभ में बादल होते जग की चहल – पहल मर जाती है।” जल न होता न होता जीवन जागती नरक आग। पानी के बिना मनुष्य पशु-पक्षी सजीव उत्पन्न न होती। धरती में दरारें पड़ जाती सारी पृथ्वी वीरान हो जाती यह रंगीन संसार बेरंग हो जाता है। वर्षा का जल कृषि प्रधान भारत देश का भाग्य विधाता है, जल के अभाव में अकाल का सामना करना पड़ता हैं अगर बादल न होते तो बरसात का जल न होता तो सरिताएँ कहाँ से बहती? सरिताओं के न बहने से सभ्यता संस्कृति कैसे जन्म लेती। जल के अभाव में प्रकृति की सुंदरता देखने को न मिलती। कमलों से भरे तालाबों, कल-कल करते झरने, सरपट दौड़ती हुई सरिताएँ, उमड़ता हुआ सागर, सभी का चेतन सौंदर्य प्रायः नष्ट हो जाता है। वर्षा जल के बिना हँसती हुई कलियाँ खिलते, हुए फूल, वृक्ष और हरे-हरे खेत कहाँ दिखाई देते। सचमुच जल इस सृष्टि का सौभाग्य है। जीवन गंगा की गंगोत्री है। हमारे जीवन में जो कुछ सुंदर है, वह उसी का आशीर्वाद है। प्रकृति की करुणा का अनुपम उपहार है। यदि जीवनदायी जल न होता तो यह सुनहरा संसार एक ऐसा नाटक बन जाता, जिसका प्रत्येक भाव दुखमय होता है। 10. विज्ञान के बढ़ते चरण रूपरेखा:
प्रस्तावना: उसने मानव जीवन में अधिक आनन्द बढ़ाया है, अंधे को आँखें, बहरे को कान, पंगु को पैर दिये हैं और मनुष्य को पक्षियों के समान आकाश में उड़ने की सुविधा दी है। मनुष्य जल पर भी चल सकता है। वैज्ञानिक उपकरणों के सहारे आज हम सैकड़ों मील दूर बैठे हुए अपने किसी मित्र से बातचीत कर सकते हैं। मनोरंजन के क्षेत्र में: चिकित्सा के क्षेत्र में: शल्य चिकित्सा का भी अच्छा विकास हुआ है। अब तो विज्ञान मौत को भी जीतने का प्रयास कर रहा है। कृषि के क्षेत्र में कृषि और उद्योग-धन्धों के विकास में भी विज्ञान ने हमारी बड़ी मदद की है। उसने नलकूप, ट्रैक्टर, वैज्ञानिक खाद आदि ऐसे अनेक उपकरण निर्मित किये हैं जिनके कारण उत्पादन अनेक गुना बढ़ गया है। ट्रैक्टर, सिंचाई के पम्प, बीज बोने से लेकर काटने और साफ करने तक के यंत्र, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक औषधियाँ आदि विज्ञान के कारण सम्भव हो सकी हैं। आवागमन के क्षेत्र में: अन्य क्षेत्रों में: अन्तरिक्ष में विज्ञान: अभिशाप: ये अस्त्र-शस्त्र इतने घातक होते हैं कि देखते ही देखते लाखों व्यक्ति को मौत के घाट उतार सकते हैं। हिरोशिमा और नागासाकी में अणुबम का दुष्परिणाम हम देख ही चुके हैं। अब तो अणु बम से भी अधिक भयंकर, अधिक विनाशकारी शस्त्रास्त्र बन चुके हैं, जिनका कि अभी हाल ही में हुए युद्ध में ईराक तथा बहुराष्ट्रीय सेनाओं ने डटकर प्रयोग किया था। इस प्रकार इन अस्त्रों के कारण मानवता के लिए एक जबरदस्त खतरा पैदा हो गया है। विज्ञान ने बड़ी-बड़ी मशीनों और कारखानों के द्वारा उत्पादन अवश्य बढ़ाया है, लेकिन बेरोजगारी, स्पर्धा, शोषण, अस्वास्थ्य आदि की समस्याएँ भी पैदा की हैं। उद्योगों का बड़े पैमाने पर केन्द्रीयकरण हो गया है, समाज पूँजीपति और श्रमिक वर्ग में बँट गया है। इन्हीं कारखानों ने बड़े-बड़े देशों में स्पर्धा की भावना पैदा की जिसके परिणामस्वरूप युद्ध होते रहते हैं। उत्पादन वृद्धि के साथ बेकारी भी बढ़ रही है। भोपाल में दिसम्बर 1984 में यूनियन कार्बाइड कारखाने में गैस रिसने के कारण 2500 से अधिक लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। विज्ञान के कारण समाज में भौतिकवाद और विलासिता की भावना भी बढ़ी है। आज का मनुष्य भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे पागल है। जितनी सुविधाएँ बढ़ रही हैं मनुष्य उतना ही विलासी बनता जा रहा है। विलासिता के कारण शक्ति का क्षय होता जा रहा है। आज मनुष्य शारीरिक दृष्टि से पहले की अपेक्षा बहुत कमजोर हो गया है। विभिन्न प्रकार के बढ़ते हुए प्रदूषण ने भी मानव जीवन को बहुत प्रभावित किया है। उपसंहार: 11. अनुशासन-छात्र जीवन में बुनियाद (म. प्र. 2005, 12, 17, 18) प्रजातंत्र का आधार है सुशासन। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन आवश्यक है। अनुशासन जीवन में व्यवस्था लाता है। जीवन को व्यवस्थित बनाने के लिए परम्परागत नियमों एवं नीतियों का अनुसरण आवश्यक है। विद्यार्थी जीवन और अनुशासन: प्राचीन काल का विद्यार्थी जीवन: आज का विद्यार्थी जीवन: अनुशासनहीनता की समस्या: आधुनिकता और अनुशासन: सर्वप्रथम कारण है माता-पिता का अनुत्तरदायी दृष्टिकोण। बच्चों को स्वतंत्र छोड़ देने से वे दिशाहीन हो जाते हैं। दूसरा कारण है शिक्षा का जीवनोपयोगी न होना। विद्यार्थी का आज शिक्षा पर कोई विश्वास नहीं रह गया। विद्यार्थी और शिक्षक के बीच अलगाव सा आ गया है। शिक्षक छात्रों के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर रहे हैं और न ही विद्यार्थी उनके प्रति आदर या श्रद्धा व्यक्त करते हैं। विद्यार्थी गुरुओं के प्रति असम्मान, परीक्षा प्रणाली के प्रति असंतोष, राजनैतिक हथकंडों की गिरफ्त जैसी अनियमितताओं का शिकार बना हुआ है। विद्यार्थी जीवन कच्ची मिट्टी का ऐसा पिंड है जिसे चाहे जैसा रूप दिया जा सकता है। चरित्र-निर्माण का यही श्रेष्ठ अवसर है। इस अवस्था में विद्यार्थी आत्मनिर्भरता, उदारता, स्नेह, सौहार्द्र, श्रद्धा, आस्था, नम्रता आदि गुणों का विकास कर सकता है। समस्याओं का समाधान: आज का विद्यार्थी देश की वर्तमान स्थिति एवं समस्याओं से अप्रभावित नहीं रह सकता। घासलेट के लिये घंटों लाइन में खड़े रहने के बाद उससे स्वस्थ मानसिकता की आशा नहीं की जा सकती। अत: आवश्यक है कि छात्रों के सर्वांगीण विकास एवं समस्याओं को सदैव दृष्टि पथ में रखा जाये। उपसंहार: 12. प्रदूषण की समस्या और निदान (म. प्र. 1990, 91, 99, 02 R, 03, 06, 13, 17, 18) गंगा मैली हो गयी। गलियाँ गंधा रही हैं, आकाश विषैली धूलों और धुओं से भर उठा है। वायुमण्डल विषाक्त हो उठा है। प्रदूषण की समस्या इतनी जटिल हो गयी है कि लोगों का जीना दूभर हो गया है। यह प्रदूषण क्या है? जिसने लोगों का जीना हराम कर दिया है। प्रदूषण जल, वायु तथा भूमि के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन है, जो विकृति को जन्म देता है। प्रदूषण वे सभी पदार्थ या तत्व हैं, जो प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से वायुमंडल,जलमंडल तथा पृथ्वीमंडल को दूषित बनाकर, प्राणिमात्र के जीवन एवं संसाधनों पर बुरा प्रभाव डालते हैं। प्रदूषण की समस्या दिन: इस समस्या के कारणों पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि अणु-परमाणु विस्फोटों से फैलने वाली धूलों से वायुमंडल और पृथ्वीमंडल सभी विषाक्त हो रहे हैं जिससे रक्त कैंसर होता है। आज संपूर्ण विश्व तेजी से औद्योगीकरण की ओर बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप पग-पग पर, गाँव-गाँव, नगर-नगर में कल-कारखाने स्थापित होते जा रहे हैं। इन कारखानों से निकलने वाले सड़े-गले पदार्थ, रासायनिक पदार्थ एवं गैसें सभी मिलकर प्रदूषण की समस्या को भयानक बनाते जा रहे हैं। नदी, सरोवर, वायुमंडल सभी दूषित होते जा रहे हैं। वृक्षों, वनों को काटकर बड़े-बड़े नगर बसाये जा रहे हैं, भवन और बाँध बनाये जा रहे हैं। ये सब प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। कारण है तो समस्या का समाधान भी है। सर्वप्रथम भारत सहित विकासशील राष्ट्रों को यह विचार करना होगा कि उसे कैसा विकास चाहिए। पाश्चात्य देशों का अन्धानुकरण छोड़कर इन देशों को अपने प्राकृतिक पर्यावरण तथा आवश्यकता के अनुकूल कल-कारखानों को लगाना चाहिये। कारखाने स्थापित करने से पूर्व उनसे निकलने वाली हानिकर धूल-गैसों को उचित दिशा व स्थानों की ओर स्थानान्तरित करने के लिए उपाय कर लिये जाने चाहिये। परमाणु परीक्षणों पर रोक लगायी जाये। वनों की निर्ममतापूर्वक कटायी न की जाये। जितने वृक्ष काटे जायें, उनसे अधिक लगाये जायें। नगरों की बढ़ती जनसंख्या को रोका जाये। समय रहते यदि प्रदूषण की समस्या का निराकरण नहीं किया गया तो भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व का विनाश निश्चित है। भोपाल गैसकाण्ड एक बड़ी चेतावनी है। सभी लोगों और देशों को चाहिए कि वह मनुष्यता को सर्वनाश से बचाने के लिए पर्यावरण को स्वच्छ बनायें तथा ऐसा कार्य न करें जिससे प्रदूषण की समस्या बढ़े और पावन गंगा भी मैली हो जाये। 13. परोपकार झारखण्ड राज्य के एक प्रमुख शहर का नाम राँची है। वहाँ एक बेल्जियन पादरी रहते थे। उनका नाम कामिल बुल्के था। हिन्दी के एक विद्वान लेखक ने जब उनसे धर्म की परिभाषा पूछी, तो उन्होंने एक कागज पर दोहा लिखकर दे दिया। “परहित सरिस धर्म नहीं भाई। यह गोस्वामी तुलसी दास द्वारा लिखा दोहा है। इसका अर्थ है-सबसे बड़ा धर्म दूसरे की भलाई करना है और सबसे बड़ा अधर्म दूसरे को हानि पहुँचाना है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने इतने सरल शब्दों में धर्म जैसे कठिन शब्द की परिभाषा दे दी है। इसे सामान्य से-सामान्य व्यक्ति भी सरलता से समझ सकता है कि परोपकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है। भारतीय विद्वानों के अनुसार: धृतिः क्षमा: दमोस्तेयंशोच: इन्द्रियनिग्रह। इस्लाम और ईसाई धर्म भी परोपकार को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं, क्योंकि परोपकार के अन्तर्गत धर्म के सभी तत्व आ जाते हैं। परोपकार वही व्यक्ति कर सकता है। जिसमें दया, उदारता, दान, संयम आदि सभी नैतिक गुणों का विकास हो गया हो। परोपकारी होना, कोई सरल काम नहीं है। इसके लिए मनुष्य को सबसे पहले राग, द्वेष, ईर्ष्या आदि बुरी प्रवृत्तियों से अपने को मुक्त करना होगा। परोपकारी की भावना उसी में जाग्रत होगी, जिसका मन निर्मल होता है और जो स्वार्थ की अपेक्षा त्याग को अधिक महत्व देता है। परोपकार की पहली शर्त स्वार्थ का त्याग है। सामान्यतः हर मनुष्य अपने लाभ को पहले देखता है। कहा भी गया है ‘स्वार्थ लाभ करहिं सब प्रीति। हमारे रिश्ते-नाते भी स्वार्थ पर ही आधारित होते हैं। किसी भी काम को शुरू करने के पहले हर मनुष्य यही सोचता है कि इससे मुझे क्या फायदा होगा? परोपकारी व्यक्ति वही है, जो अपना हित छोड़कर दूसरे का उपकार करे। लेकिन दूसरे का उपकार करना क्या सरल है? परोपकार के लिए बहुत बड़े नैतिक साहस की आवश्यकता होती है, क्योंकि परोपकार वही कर सकता है, जो आत्म-बलिदान देने को तैयार हो। महर्षि दधीचि के पास देवता अपनी समस्या लेकर गये। उन्हें वृत्रासुर को मारने के लिए वज्र बनाने हेतु उनकी हड्डियों की आवश्यकता थी। दधीचि ने अपने प्राण विसर्जित कर अपनी हड्डियाँ दान दे दी। कितना बड़ा त्याग था। इस प्रकार ‘दूसरा उदाहरण राजा शिवि का है, जिन्होंने कबूतर की रक्षा के लिए बाज को अपना मांस काट-काटकर खिला दिया। परोपकार के लिए व्यक्ति में सहिष्णुता अर्थात् सहनशीलता का होना भी आवश्यक है। भगवान शंकर के पास हलाहल (जहर) को सहन करने की शक्ति थी, इसलिए वे हलाहल का पान कर नीलकण्ठ कहलाये। जो व्यक्ति थोड़ी-सी तकलीफ या दुःख बर्दाश्त नहीं कर सकता वह भला परोपकार क्या करेगा। परोपकार के लिए कभी-कभी मनुष्य को अपने स्वाभिमान का भी त्याग करना पड़ता है। पं. मदन मोहन मालवीय जी ने घर-घर जाकर दान माँगा और हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। कविवर रहीम का कहना है – “तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहिं न पान। हम चाहें तो प्रतिदिन कोई-न-कोई परोपकार का कार्य कर सकते हैं। किसी अन्धे को रास्ता पार कराना, किसी बीमार को अस्पताल पहुँचाना, किसी गरीब साथी की पुस्तकों द्वारा मदद कर देना, राह चलते किसी प्यासे पथिक को पानी पिला देना आदि सैकड़ों छोटे-छोटे कार्य ऐसे हैं, जिन्हें बिना किसी खर्च के किया जा सकता है। यदि हम दूसरे की भलाई का कोई काम करेंगे तो इससे हमें समाज में यश तो मिलेगा ही साथ ही मानसिक शान्ति और आत्मिक सुख भी प्राप्त होगा। इसलिए तुलसीदास जी का यह कथन सत्य है – ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई।’ 14. स्वस्थ भारत, स्वच्छ भारत रूपरेखा:
प्रस्तावना: स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मानसिकता पनपती हैं। देश एवं समाज के विकास के लिए स्वच्छता अत्यन्त आवश्यक है। समाज की सड़ी-गली मान्यताओं, रुढ़ियों को समाप्त करना अत्यन्त आवश्यक है। देश का विकास तभी सम्भव है जब हम व्यापकता के धरातल पर सोचें एवं कार्य करें। यह तभी संभव है जब स्वस्थ मानसिकता के हों एवं स्वस्थता को बनाये रखें।
समाज एवं देश को स्वच्छ एवं स्वस्थ बनाये रखने में शिक्षा का अभूतपूर्व योगदान है। इसके द्वारा हम स्वच्छता एवं अस्वच्छता का पता लगाते हैं। दैनिक व्यवहार से हम अच्छी चीजें सीखते हैं। उच्चकोटि का साहित्य हमें सही मार्गदर्शन देता है, मानसिकता में मलिनता को दूर करता है। शारीरिक पुष्टता तथा योग आदि के द्वारा शरीर को स्वस्थ रखता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। व्यापक दृष्टिकोण: आत्मनिर्भरता भी स्वच्छता एवं स्वस्थता को बढ़ावा देती है, अकर्मण्यता एवं आलस्य को दूर करती है। भारत को सुदृढ़ बनाये रखने के लिए श्रेष्ठ मानसिकता का होना आवश्यक है। कुशल मानसिकता कभी संकुचित एवं संकीर्ण विचारों को जन्म नहीं देती। कुशल नेतृत्व ही देश का विकास कर सकता है, देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने यह अभियान चला कर देश को नयी दिशा दी। उपसंहार: 15. भारतीय समाज में नारी का स्थान रूपरेखा:
प्रस्तावना: वैदिक काल: प्राचीनकाल की नारी: पतन का युग: वीरांगनाएँ: नारी के विशेष गुण: पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव: जीवन का सुख समाप्त होने लगा है। नारी जागरण के नाम पर भारतीय नारी को उत्तरदायित्व से दूर ले जाया जा रहा है। संतान व परिवार के प्रति वह अपने कर्तव्यों का निर्वाह पूर्णतः नहीं कर पा रही है। यह किसी प्रकार शुभ नहीं है। वर्तमान स्वरूप: उपसंहार: भारतीय नारी ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह प्रत्येक युग में किया है। वह अपने विशिष्ट गुणों के कारण आधुनिक युग में भी पुरुषों से कन्धे से कन्धा मिलाए हर क्षेत्र में कार्य कर रही है। यह अवश्य हुआ है कि वह बाह्य क्षेत्रों में जितनी प्रगति कर रही है, उतनी कुशलतापूर्वक अपने पारिवारिक दायित्वों में पिछड़ रही है। भारतीय नारी को प्रगति के अनेक सोपानों पर चढ़ने के लिए अभी भी अथक प्रयत्न करना है। 16. प्राकृतिक आपदा-समस्या निवारण (म. प्र. 2014) रूपरेखा:
प्रस्तावना: 1. आपदा समाज की सामान्य कार्य: 2. आपदा के कारण जीवन तथा संपत्ति की बड़े पैमाने पर हानि होती है। 3. आपदा: 4. आपदा भोगवादी अर्थव्यवस्था और बढ़ती हुई आबादी का प्रकृति के साथ अनावश्यक हस्तक्षेप का परिणाम है। 5. सभी आपदाओं के अपने विशिष्ट प्रभाव होते हैं। अतः वे समस्त घटनायें जो प्रकृति में विस्तृत रूप से घटित होती हैं और मानव समुदाय को असुरक्षित एवं संकट में डालते हुए मानवीय दुर्बलताओं को दर्शाती है। आपदायें हैं जैसे – भूकंप, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूस्खलन, आग, आतंकवाद, नाभिकीय संकट, रासायनिक संकट आदि। प्राकृतिक आपदा का प्रभाव: प्राकृतिक आपदा के कारण: (1) प्रकृति का विदोहन: (2) जनसंख्या वृद्धि: उपाय: उपसंहार: “जब-जब प्रकृति को मानव ने नुकसान पहुँचाया है। 17. बेटी बचाओ अभियान (म. प्र. 2015) रूपरेखा:
प्रस्तावना: बेटी बचाओ अभियान का प्रभाव: चिकित्सालय की दिशा में ठोस कदम: शिक्षा को बढ़ावा: उपसंहार: “लड़के से लड़की भली, जो कुलवन्ती होय। 18. इन्टरनेट-आज के जीवन की आवश्यकता (म. प्र. 2010, 12, 15, 16) “इन्टरनेट का बढ़ता प्रयोग, सुख, समृद्धि, वैभव, उन्नति के शिखरों तक रूपरेखा:
प्रस्तावना: अनेक संस्थानों एवं उद्योग-धंधों में कम्प्यूटर का प्रयोग इसकी सफलता का मापदण्ड है। इन्टरनेट की सफलता को देखकर इसके सन्दर्भ में जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा मन-मस्तिष्क में पनपने लगती है। आज इसकी उपयोगिता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। आज देश के अनेक क्षेत्रों में जैसे-बैंक, उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा व दूरसंचार के साधनों आदि में भी इसका प्रयोग कुशलता से किया जा रहा है। कम्प्यूटर के प्रथम आविष्कारक: 1. बैंकिंग के क्षेत्र में: 2. शिक्षा के क्षेत्र में: 3. मनोरंजन के क्षेत्र में: 4. कला के क्षेत्र में: 5. पुस्तकों के क्षेत्र में: 6. डिजाइनिंग के क्षेत्र में: 7. वैज्ञानिक क्षेत्र में: 8. संगीत के क्षेत्र में: 9. कृषि के क्षेत्र में: 10. चिकित्सा के क्षेत्र में: 11. सूचना और संचार के क्षेत्र में: कम्प्यूटर के क्षेत्र में विकास:
उपसंहार: आज मानव पूर्णरूपेण इसके आश्रित हो जाएँ तो वह स्वतंत्र ढंग से कार्य नहीं कर पाता साथ ही इससे हमें तथा समाज, देश को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। आज हमारे अंदर इच्छा शक्ति तथा कार्यों के प्रति अदम्य उत्साह तथा प्रत्येक कार्य ईमानदारी से, दृढ़ संकल्प शक्ति से करें तब हम इन कमियों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। कहा भी गया है – “सुख सुविधाएँ जो हमें दी है विज्ञान ने 19. राष्ट्र निर्माण में युवकों का योगदान (म. प्र. 2018) रूपरेखा:
सैकड़ों वर्षों की परतन्त्रता के बाद हमारा देश स्वतन्त्र हुआ। पराधीनता की स्थिति में भारतवासियों को ‘स्वेच्छापूर्वक अपनी उन्नति करने का अवसर प्राप्त नहीं था। विदेशी सरकार के दबाव के कारण भारतीय अपनी योजना के अनुसार कार्य नहीं कर पाते थे। देश में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप में सरकार का दबाव अवश्य बना रहता था। उस समय युवकों का योग केवल उत्कृष्ट अधिकारी बनकर शासन को दृढ़ बनाये रखना था। आज की बदलती हुई परिस्थितियों में किसी भी देश का भविष्य उस देश के युवकों के ऊपर निर्भर है। युवा वर्ग ही एक ऐसा वर्ग है जो हर क्षेत्र में पहुँच सकता है। भारत का नव-निर्माण युवकों के उचित और पूर्ण सहयोग के बिना सफलतापूर्वक पूर्ण नहीं हो सकता। इस देश के नव-निर्माण में युवकों का योगदान आवश्यक है। मानव अपनी आवश्यक सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए उसी की खोज में लगा रहता है। वर्तमान समय वैज्ञानिक तथा पूँजीवादी युग के नाम से जाना जाता है। भारत में वैज्ञानिक तथा आर्थिक उन्नति अत्यन्त आवश्यक है। भारत में प्राकृतिक साधन तो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, पर वैज्ञानिक दोनों ही क्षेत्रों में पिछड़े हुए हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश में नव-निर्माण का कार्य आरम्भ हो गया है। पर इसकी अन्तिम सफलता युवा वर्ग पर निर्भर करती है, युवकों को पूरी लगन व श्रद्धा के साथ देश के नव-निर्माण का कार्य करना होगा, तभी देश उन्नति की ओर अग्रसर होगा। वर्तमान समय में कारखानों का निर्माण हो रहा है। विद्युत् शक्ति का उत्पादन हो रहा है। कृषि, व्यवसाय, यातायात तथा वैज्ञानिक अनुसन्धान स्थापित करने के लिए अनेक योजनाएँ बनायी जा रही हैं, पर इन सबके बाद इसकी अन्तिम सफलता युवकों पर ही निर्भर है। सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में भी परिवर्तन के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। समाज में कुछ दुर्गुण हैं। उन्हें दूर करना अत्यन्त आवश्यक है, जिससे समाज के ढाँचे को बिगड़ने से बचाया जा सके। कोई भी सुधार अन्धानुकरण के आधार पर नहीं होना चाहिए। सुधारों के भावी परिणामों को दृष्टि में रखकर बढ़ना आवश्यक है। भारतीय धर्म तथा संस्कृति की मूल विशेषताओं को ध्यान में रखकर उपयोगी सुधार होना चाहिए। इन सभी का अन्तिम परिणाम तो युवा वर्ग को पूर्णतया भोगना पड़ेगा। अत: उन्हें बुद्धि से कार्य करना चाहिए। युवा वर्ग ही सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में क्रान्ति ला सकते हैं। संसार की राजनैतिक मान्यताएँ बदल रही हैं। प्रजातान्त्रिक भावना का विकास हो रहा है। व्यक्तिवादी दृष्टिकोण बदलता जा रहा है। एक पक्ष साम्यवादी विचारधारा का है, जिसमें व्यक्ति नहीं राष्ट्र सर्वोपरि है। सारा विश्व इन्हीं विचारधाराओं से प्रभावित है। आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि आज का युवा और कल का नागरिक अपने देश की परिस्थितियों के अनुकूल राजनैतिक विचारों को अपनाये। उसका दृष्टिकोण समन्वयवादी होना चाहिए, जिसमें किसी विचारधारा का बहिष्कार केवल इसलिए न हो कि वह पुरानी है अथवा किसी विचारधारा को केवल इसलिए न स्वीकार किया जाय कि वह नई है। संसार की राजनीति इतनी तीव्रता से गतिशील है कि यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि कौन-सी बात सही है, इस उलझन की स्थिति से निकलने के लिए विवेकपूर्ण निर्णय की आवश्यकता है। आज युवाओं पर बड़ा उत्तरदायित्व है कि वह अपने विवेक से सही व गलत का निर्णय करे और देश के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयत्नशील हो। भारत एक ऐसा देश है जहाँ जनसंख्या का बड़ा भाग गाँव में रहता है। गाँव के विकास के बिना भारत के विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज के नवयुवक पर सबसे बड़ा उत्तरदायित्व गाँवों के विकास का है। इसके लिए उन्हें शहर के विलासितापूर्ण जीवन को छोड़कर ग्रामीण अंचल में जाना होगा, उनको आधुनिक विचारधारा एवं सहकारिता की भावना का प्रचार करना होगा। हमारे गाँवों को अन्धविश्वास और अवैज्ञानिक दृष्टिकोण से मुक्त करना होगा। उन्हें प्रगतिशील बनाना होगा। आज के युवाओं की पीढ़ी के हाथों में कल के देश की बागडोर आने वाली है, उन्हीं में से राजनीतिक नेता होंगे, अधिकारी होंगे, उद्योगपति होंगे और किसान, मजदूर भी होंगे। देश उनसे यह अपेक्षा करता है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वे नये उत्साह और नई विचारधारा के साथ प्रवेश करेंगे। देश को नई दिशा प्रदान करेंगे। सरकार ने देश के नवनिर्माण के लिए अनेक योजनाएँ बनाई हैं, उन कागजी योजनाओं का मूल्य नहीं यदि उनको पूरा जन-सहयोग न मिले। गाँवों की पिछड़ी जनता से अधिक आशाएँ नहीं की जा सकती। इन योजनाओं की सफलता के लिए देश की निगाहें युवाओं पर टिक जाती हैं। युवा वर्ग यदि विद्यार्जन के साथ-ही-साथ देश की प्रगति की दिशा में नहीं सोचता तो यह उसका अनुत्तरदायित्वपूर्ण कार्य ही कहा जायेगा। 20. भ्रष्टाचार-देश की प्रगति में बाधक (म. प्र. 2016) रूपरेखा:
प्रस्तावना: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह गोस्वामी तुलसीदास की यह चौपाई सौ प्रतिशत खरी उतरती है। आज प्रत्येक क्षेत्र में कहीं-न-कहीं भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। उपभोक्ता जागरुक न हो तो इस भ्रष्टाचार का शिकार होता रहेगा। शासन ने इस भ्रष्टाचार को रोकने का अथक प्रयास किया है। किन्तु यह रोकना ऊँट के मुँह में जीरा की तरह है जो विकास के स्तर को रेखांकित करता है। आज दुनिया के देशों में विकास के स्तर को देखा जाये तो भारत विकसित देशों की श्रेणी में पूर्णता को प्राप्त नहीं करता है। भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले कारक:
भ्रष्टाचार को रोकने के – उपाय:
उपसंहार: 21. पॉलिथीन के दुष्प्रभाव (म. प्र. 2015, 17) रूपरेखा:
प्रस्तावना: पॉलिथीन के प्रयोग के कारण: 1. बढ़ती प्रतिस्पर्धा: 2. पॉलिथीन के प्रयोग का दूसरा कारण एवं आसान तरीका यह है, इसके द्वारा सामग्री को आसानी से अपने घर में ले जाया जा सकता है चाहे वह पुस्तकें, खेल का सामान या अन्य सामान ही क्यों न हो। पॉलिथीन से हानियाँ: उपसंहार: 22. स्वावलंबन (म. प्र. 2018) रूपरेखा:
प्रस्तावना: आज भारत में गरीबी और बेकारीग्रस्त है। आश्चर्य का विषय है कि यहाँ के निवासी परिश्रम करने को अपमान समझते हैं। श्रम से गरीबी और बेकारी दोनों ही समाप्त हो जाते हैं। कवयित्री तारा पाण्डे ने भारत की जनता का आह्वान किया “संघर्षों से क्लान्त न होना, यही आज जन-जन की वाणी। भारत का उत्थान करो तुम, शिव सुंदर बन कल्याणी। अमर तुम्हारी गौरव गाथा नयन नीर शुचि छलक उठे। मुख पर श्रम कण झलक उठे।” स्वावलंबन प्रगति का आधार-प्रगति का मूल आधार स्वावलंबन है। इतिहास साक्षी है कि हमने परिश्रम से क्या-क्या कर दिखाया। हमारे देश के निवासी कर्मठ एवं श्रमशील हैं। उन्हें अपार प्राकृतिक संपदा प्राप्त है। भाग्य के भरोसे रहकर हाथ में हाथ रखकर बैठने से कुछ नहीं प्राप्त होता। कर्म से ही सब लक्ष्य संपन्न होते हैं। दिनकर ने ठीक ही कहा है – “श्रम होता सबसे अमूल्य धन सब धन खूब कमाते हैं। स्वावलंबन का फल: उपसंहार: 23. राष्ट्रीय एकता (म. प्र. 2017) रूपरेखा:
प्रस्तावना: “भारत माता का मंदिर ये, ममता का संवाद यहाँ है। राष्ट्रीय एकता: कवि नीरज के शब्दों में – “बाग है यह हर तरह की राष्ट्रीय एकता में कठिनाइयाँ: साम्प्रदायिकता की भावना के फलस्वरूप ही भारत के दो टुकड़े हुए हैं। रक्त की सरिताएँ प्रवाहित हुईं। साम्प्रदायिकता मेल, मोहब्बत तथा आपसी सद्भावना का अंत कर देती हैं। धुरंधर कुटनीतिज्ञ वोट की राजनीति को अपनाकर लोगों की भावनाओं को भड़काकर अपना उल्लू सीधा करने में संलग्न हैं। उन्हें देश तथा समाज के हित का तनिक भी ध्यान नहीं है। आपसी ईर्ष्या, द्वेष, ऊँच-नीच की भावना, जातीयता, धार्मिक उन्माद, भाषागत भेद, राष्ट्रीय एकता के लिए प्रश्न चिन्ह बनकर खड़े हुए हैं। क्षेत्रीयता की भावना भी वातावरण को कलुषित कर रही है। आज देश पर विनाश के बाहरी तथा आंतरिक बादल मँडरा रहे हैं। हमारे पड़ोसी तथा अन्य कई राष्ट्र भारत को फलता-फूलता देखना पसंद नहीं करते। राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक बातें: राजनेताओं को नैतिक मूल्यों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। समाज के प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह कृषक हो या मजदूर, सैनिक हो अथवा व्यापारी। सबको कर्तव्यों के प्रति सजग रहना है। राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाने के लिए भारतवासी में यह भाव होना चाहिए। निबंध लिखने का सही तरीका क्या है?जानिए निबंध क्या है, कैसे लिखा जाता है. निबंध लेखन के पूर्व विषय पर विचार कर- ... . भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए।. विचारों को क्रमबद्ध रूप से स्पष्ट करना चाहिए।. विचारों की पुनरावृत्ति से बचना चाहिए।. लिखने के बाद उसे पढ़िए, उसमें आवश्यक सुधार कीजिए।. भाषा संबंधी त्रुटियां दूर कीजिए।. निबंध लिखने की शुरुआत कैसे करें?विषय से संबंधित: जब कोई निबंध लिखना हो तो रफ लिख लेना चाहिए कि, पहले क्या बताना है, फिर प्वाइंट बना लो, इसके बाद उन्हें पैराग्राफ में लिखो। उपसंहार: इसमें निबंध का निष्कर्ष होता है, अर्थात इस विषय से तुम क्या सोचते हो, यह लिख डालो।
निबंध की रूपरेखा कैसे लिखते हैं?रूपरेखा संक्षिप्त और सरल हो। यह आवश्यक नहीं है कि यह पूर्णतः सुसंस्कृत लेखन हो; इसे बस मुद्दा समझाने योग्य होना है। जब आप अपने विषय पर अधिक शोध करते हैं और अपने लेखन को मुद्दे पर केन्द्रित कर संकुचित करते जाते हैं तब अप्रासंगिक सूचनाओं को हटाने में संकोच न करें। रूपरेखाओं को याद दिलाने के साधन के रूप में प्रयोग करें।
निबंध में प्रस्तावना में क्या लिखा जाता है?किसी निबंध की प्रस्तावना में निबंध के विषय का सार संक्षेप लिखा जाता है। निबंध के मूल भाग में जिस विषय पर चर्चा-विवेचना करनी होती है, उस निबंध के मुख्य तत्व तथा विषय का परिचय निबंध की प्रस्तावना में उल्लेखित किया जाता है ताकि पाठक निबंध के विषय-वस्तु को समझने के लिए स्वयं को तैयार कर सके।
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