Show
कोरिया के सिल्ला राज्य के काल से लौह-कवच जो कोरियाई राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा हुआ है लौह युग (अंग्रेजी: Iron Age) उस काल को कहते हैं जिसमें मनुष्य ने लोहे का इस्तेमाल किया। इतिहास में यह युग पाषाण युग तथा कांस्य युग के बाद का काल है। पाषाण युग में मनुष्य की किसी भी धातु का खनन कर पाने की असमर्थता थी। कांस्य युग में लोहे की खोज नहीं हो पाई थी लेकिन लौह युग में मनुष्यों ने तांबे, कांसे और लोहे के अलावा कुछ अन्य ठोस धातुओं की खोज तथा उनका उपयोग भी सीख गया था। विश्व के भिन्न भागों में लौह-प्रयोग का ज्ञान धीरे-धीरे फैलने या उतपन्न होने से यह युग अलग समयों पर शुरु हुआ माना जाता है लेकिन अनातोलिया से लेकर भारतीय उपमहाद्वीप में यह १३०० ईसापूर्व के आसपास आरम्भ हुआ था, हालांकि कुछ स्रोतों के अनुसार इस से पहले भी लोहे के प्रयोग के कुछ चिह्न मिलते हैं।[1][2] इस युग की विशेषता यह है कि इसमें मनुष्य ने विभिन्न भाषाओं की वर्णमालाओं का विकास किया जिसकी मदद से उस काल में साहित्य और इतिहास लिखे जा सके। संस्कृत और चीनी भाषाओं का साहित्य इस काल में फला-फूला। ऋग्वेद और अवस्ताई गाथाएँ इसी काल में लिखी गई थीं। कृषि, धार्मिक विश्वासों और कलाशैलियों में भी इस युग में भारी परिवर्तन हुए।[3][4] इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
लौह धातुकर्म (Ferrous Metallurgy) का आरम्भ प्रागैतिहासिक काल में ही हो गया था। इस्पात निर्माण (steelmaking) का ज्ञान भी प्रागैतिहासिक काल से ही है। इतिहास में लोहा और इस्पात एवं लौह युग[संपादित करें]यह माना जाता है कि प्रागैतिहासिक युग में लोहा उल्कापिण्ड के टुकड़े से प्राप्त हुआ था और कई सदियों से यह दुर्लभ धातु बना रहा। बाद में मानव ने इस्पात निर्माण की प्रक्रिया सीखी। उत्पाद संभवतः अपेक्षाकृत इतना चिकना और अनुमान न करने योग्य था कि हथियार हेतु कांस्य को तरजीह दिया गया। अंततः जब मानव लोहे को गलाने, फोजिंग करने, कठोर एवं टेमपरिंग करने के कठिन कला में सिद्धहस्त हो गया तो इन उद्देश्यों के लिये लोहे ने अलौह धातुओं का स्थान ले लिया। प्राचीन काल में मानव द्वारा प्रयोग किये गये लोहा का प्रमाण बेबिलोन, मिस्र, चीन, भारत, यूनान और रोम जैसे प्राचीन सभ्यतायें से प्राप्त अपूर्ण लेख और इभिलेख में धातु के संदर्भ में प्राप्त अपूर्ण लेख और अभिलेख में धातु के संदर्भ में प्रमाण मिला है। मेसीपोटामिया और मिस्र में पाये गये पुरावशेष से यह प्रमाण मिलता है कि लोहा और बाद का इस्पात का लगभग 6000 वर्षो तक मानव जाति इसका प्रयोग करता था। प्राचीन काल में लकड़ी से बने हुए काठ कोयला को प्रयोग कर लौहे को गलाया जाता था। बाद में कोयला का ताप का वृहत श्रोत के रूप में पता लगाया गया। तदनन्तर यह कोक में परिवर्तित हो गया जो लोह अयस्क को गलाने हेतु आदर्श पायाप्राचीन काल में मानव द्वारा प्रयोग किये गये लोहा का प्रमाण बेबिलोन, मिस्र, चाइना, भारत, यूनान और रोम जैसे प्राचीन सभ्यतायें से प्राप्त अपूर्ण लेख और इभिलेख में धातु के संदर्भ में प्राप्त अपूर्ण लेख और अभिलेख में धातु के संदर्भ में प्रमाण मिला है। मेसीपोटामिया और मिश्र में पाये गये पुरावशेष से यह प्रमाण मिलता है कि लोहा और बाद का इस्पात का लगभग 6000 वर्षो तक मानव जाति इसका प्रयोग करता था। प्राचीन काल में लकड़ी से बने हुए काठ कोयला को प्रयोग कर लौहे को गलाया जाता था। बाद में कोयला का ताप का वृहत श्रोत के रूप में पता लगाया गया। तदनन्तर यह कोक में परिवर्तित हो गया जो लोह अयस्क को गलाने हेतु आदर्श पाया गया अमेरिका में 1646 ईसवी में सफलतापूर्वक स्थापित आयरन वर्क्स “दी साउगस वर्क्स “ के पश्चात लगभग 200 या इससे अधिक वर्षो के लिए लोहा अपना प्रबल स्थान बनाये रखा। नये रेलगाड़ियों के आविष्कृत होने से लोहे की पटरियाँ बनीं। लड़ाकू जहाजों के साइड को लोहे के कवच से सुरक्षित रखने के लिए लोहे का प्रयोग होता था। लगभग 19 वीं शताब्दी के मध्य में 1856 में बेसेमर प्रक्रिया के आविष्कार से इस्पात के युग का आरंभ हुआ जो इस्पात को पर्याप्त मात्रा एवं उचित लागत में बनाने की अनुमति दे दी। प्राचीन भारत में लोहे का प्रयोग[संपादित करें]प्राचीन भारत में लोहा इस्पात का पूरा उल्लेख है। कुछ प्राचीन स्मारक जैसे नई दिल्ली में प्रसिद्ध लोह स्तम्भ या कोणार्क में सूर्य मंदिर में प्रयोग किया गया ठोस बीम में पर्याप्त साक्ष्य मिलता है जो प्राचीन भारतीय धातु विज्ञान का प्रौद्योगिकीय उत्कर्ष दिखाता है। भारत में लोहे का प्रयोग प्राचीन युग की ओर ले जाता है। वैदिक साहित्यिक स्रोत जैसा कि ऋग्वेद, अथर्ववेद, पुराण, महाकाब्य में शान्ति और युद्ध में लोहे के बारे में उल्लेख किया गया है। एक अध्ययन के अनुसार लोहा भारत में आदिकालीन लघु सुविधाओं में 3000 वर्षों से अधिक समय से भारत में उत्पन्न होता है। प्रमुख घटनाएँ[संपादित करें]बेसमर कन्वर्टर के प्रमुख भाग
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
लोहे की शुरुआत कब हुई?विश्व के भिन्न भागों में लौह-प्रयोग का ज्ञान धीरे-धीरे फैलने या उतपन्न होने से यह युग अलग समयों पर शुरु हुआ माना जाता है लेकिन अनातोलिया से लेकर भारतीय उपमहाद्वीप में यह १३०० ईसापूर्व के आसपास आरम्भ हुआ था, हालांकि कुछ स्रोतों के अनुसार इस से पहले भी लोहे के प्रयोग के कुछ चिह्न मिलते हैं।
लोहे की शुरुआत कैसे हुई?माना जाता है कि लौहे के रूप में मनुष्य ने जिस धातु का उपयोग किया था वो पृथ्वी से उत्पन्न लौहा नहीं था दरअसल वो पृथ्वी से टकराने वाले उल्कापिंडों से प्राप्त लोहा था। उल्कापिंड संबंधी लोहे से काम करना तुलनात्मक रूप से आसान था, और लोगों ने इससे आदिम उपकरण बनाना सीखा।
लोहे की खोज कहाँ हुई?लोहे को खान से निकालने तथा धातु-शोधन की प्रक्रिया का सर्वप्रथम प्रचलन संभवतः एशिया माइनर (तुर्की) अथवा कॉकेशस के क्षेत्र में हुआ। हित्ती साम्राज्य के कर्णधारों ने इसकी उपयोगिता को समझा और उन्होंने लोहे के ज्ञान के रहस्य को लगभग 1800-1200 ई. पू.
लोहा का आविष्कार किसने और कब किया?लोहा एक खनिज है जिसका आविष्कार नही किया गया लेकिन लोहे का सर्वप्रथम प्रयोग वैदिक काल मे हुआ था।
|