आजकल तो कलियुग है न , कलियुग। यहां सारे काम उल्टे होते हैं। सभी उलटे-उलटे काम। सभी लोग ' गुरु ' बनना चाहते हैं। अब आजकल तो सभी को ' गुरु ' कहते हैं। हिंदुस्तान में जब हवाई-जहाज से उड़ते हैं और रेडियो पर वार्तालाप सुनते हैं , तो एक पायलट दूसरे पायलट से कहता है , ' गुरु कैसे हो ?' सबको गुरु बना दिया। और वह चीज कहां चली गई कि ' गु ' नाम अंधकार , ' रु ' नाम प्रकाश। जो अंधेरे से उजाले में लाए , वह गुरु कहां गया ? गुरु तो ऐसा हो जो कहे , ' खाली हाथ तुम आए जरूर थे , पर खाली हाथ जाने की जरूरत नहीं। कुछ लेकर जाओ। जाना तो है , पर कुछ लेकर जाओ। ' अपने इस जीवन को सफल बनाओ। मरने के बाद क्या होगा , यह सारे धर्म समझाते हैं। कहते हैं कि अच्छा काम करोगे तो मरने के बाद तुम ' वहां ' जाओगे। ' वहां ' जाओगे तो तुम्हारे साथ ' सह ' होगा , ' वह ' होगा। बड़े-बड़े फोटो बना रखे हैं कि जन्नत में , स्वर्ग में क्या है ? लड्डू हैं। परंतु दांत तो तुम यहीं छोड़ कर जाओगे। जो चखने की चीज है , वह भी सब यहीं छोड़कर जाओगे , तो लड्डू खाओगे तो किससे खाओगे ? इसलिए भाई , लड्डू खाने हैं तो अभी खा लो। अगर उस स्वर्ग में मिल भी जाएंगे , तो कोई फायदा नहीं होगा। तो यहां है जन्नत। यहीं है स्वर्ग और यहीं है नरक। और यहीं यह शरीर है। वह चीज भी है जिससे हंस सकते हैं। और यहां वह चीज भी है जिससे रो सकते हैं। यहीं है वह चीज जिससे सुन सकते हैं। यहीं है वह चीज जिससे बोल सकते हैं , यहां पैर हैं जिससे नाच सकते हैं। यहां हाथ हैं , यहां है वह गला जिससे गले मिल सकते हैं। अब हैं वे सारी चीजें। कल नहीं , परसों नहीं , जाने के बाद नहीं। अगर सुख और शांति तुमको चाहिए तो आज चाहिए , कल नहीं। कल तो बहुत दूर है। कल तो कभी आता ही नहीं। आज हमेशा आता है , पर कल कभी नहीं आता है और सारी जिंदगी तुम उसी कल पर लगाओगे- ' कल कर लेंगे जी , कल कर लेंगे जी। ' तो होगा क्या ? तुम्हारा हृदय तुमसे आज वह चीज मांग रहा है-आज! प्यास आज लगी है और पानी कल पिलाओगे ? अतिथि का सत्कार कैसा होना चाहिए ? यह तुम जानते हो। पर तुम यह बात भूल चुके हो कि तुम भी एक अतिथि हो ओर तुमको इस अतिथि का सत्कार कैसे करना है-यह तुम भूल चुके हो। यह हृदय भी एक अतिथि है। इसका भी आदर-सत्कार होना चाहिए। प्यास है तो इस अतिथि को भी पानी पिलाओ और कैसा जल ? अमृत जल , आनंद सरोवर का जल। भगवान के पास लोग जाते हैं , प्रार्थना करते हैं- ' हे भगवान , तू यह कर दे , मेरे लिए ये कर दे। मेरी नौकरी ठीक कर दे। मेरी तरक्की कर दे। ' एक बच्चा जाएगा , प्रार्थना में कहेगा , ' मेरा इम्तहान पास करा दे। ' यह नहीं कि उससे कहा जाए- ' अरे , पढ़ ले तू। अपनी पढ़ाई में ध्यान दे। पढ़ाई में ध्यान देगा तो तू अपने आप पास हो जाएगा। इसमें चमत्कार की जरूरत नहीं है। ' अरे , तू ईमानदारी से अपना काम कर , मन लगा करके अपना काम कर , तो तेरी तरक्की हो जाएगी। सचमुच हो जाएगी। परंतु भगवान से जो मांगने की चीज है , वह तो दुनिया मांगती नहीं। मैं क्या मांगूं ? सत-चित-आनंद से मैं क्या मांगूं ? क्या रोटी ? वह तो सारे संसार को रोटी देने वाला है। आज अगर कोई भूखा रह जाता है तो दो कारणों से रह जाता है। या तो प्रशासन की गड़बड़ी है या वह डायटिंग कर रहा है। तीसरा कारण तो है ही नहीं। क्या मांगना चाहिए ? सच्चिदानंद से क्या मांगोगे ? क्योंकि यह तो नाम में पहले ही बता दिया है। सत्-चित-आनंद। तो सत्-चित-आनंद से वह आनंद मांगो। जो आनंद एक घंटे के लिए नहीं , एक मिनट के लिए नहीं , दस मिनट के लिए नहीं , बल्कि जो दिन-रात बना रहे- चाहे आदमी कुछ भी कर रहा है। जैसे , भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि ' तू लड़ाई भी कर और मेरा ध्यान भी कर। ' जो चीज जहां लगनी चाहिए जो ध्यान जहां लगना चाहिए , वह वहां लगा रहे। जब नया-नया बच्चा होता है , तो मां का यही हाल होता है। घर-गृहस्थी के सभी काम करते हुए उसका ध्यान कहां है ? उस बच्चे में। उसका ध्यान किस आवाज पर है ? उस छोटे बच्चे की आवाज पर। थोड़ा सा भी उसने ' ऐं ' किया , तो सब कुछ छोड़कर मां अपने बच्चे के पास जाएगी। क्या तुम भी अपनी जिंदगी के अंदर यह नहीं कर सकते ? जो भी तुमको करना है , करो। ठाट से करो। शौक से करो। दिमाग का ध्यान तो अपने काम में लगाओ- पर जो अंदर का ध्यान है , उसे वहां जाने दो जहां वह जाना चाहता है। कहां जाना चाहता है ? उस जगह जाना चाहता है जहां उसको आनंद मिले। इसलिए भगवान से यदि कुछ मांगना ही है तो वह आनंद मांगो जिसके लिए हृदय प्यासा है। अपनी प्यास तृप्त करो- अंदर अपना ध्यान लगाकर , जहां परमानंद पहले से ही मौजूद है। जिस चीज की तुम्हें तलाश है , जिस आनंद की तुम्हें तलाश है वह आनंद पहले से ही तुम्हारे अंदर है , बाहर भटकने की जरूरत नहीं। गुरु महाराज अंदर के उस आनंद के स्त्रोत का ज्ञान कराते हैं और इससे जीवन सफल होता है। प्रस्तुति : आर.डी. अग्रवाल Show
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Times Point और जानें भगवान से हमें क्या माँगना चाहिए?भगवान से माँगना नहीं चाहिए और अगर माँगना ही है तो माँगना आना चाहिए। “हे प्रभु मैं यह माँगता हूँ कि मेरी माँगने की इच्छा ही ख़त्म हो जाए।” “हे प्रभु मुझे बार बार विपत्ति दो ताकि आपका स्मरण होता रहे।” “हे प्रभु मुझे दस हज़ार कान दीजिये ताकि में आपकी पावन लीला गुणानुवाद का अधिक से अधिक रसास्वादन कर सकूँ।”
पूजा करते समय भगवान से क्या मांगना चाहिए?हालांकि ज्यादातर लोग पूजा के समय भगवान से अपनी गलतियों की क्षमा मांगते हैं लेकिन इस क्षमायाचना के लिए कुछ मंत्र भी बताए गये हैं। किसी से अपनी गलती की क्षमा मांगना सबसे बड़ा प्रायशचित होता है इससे इंसान के अंदर का अहंकार मिट जाता है।
हम भगवान से कैसे मिले?भगवान तो सच्ची साधना से ही मिलते है। भगवान ने स्वयं कहा है कि इंद्रिय, मन और बुद्धि से वे परे हैं। उनका चिंतन और मनन नहीं किया जा सकता है। अगर चिंतन करने से वे मिलते तो अब तक भक्तों को उनका दिव्य दर्शन हो जाता।
क्या भगवान हमारी मदद करता है?शिक्षा: ऐसे ही हमारे जीवन में भगवान कई रूप में हमारी मदद करते हैं और मुसीबत में किसी न किसी रूप में हमारी रक्षा को पहुंच जाते हैं लेकिन अक्सर हम उन्हें पहचान नहीं पाते।
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