4 पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहार ताते ये चाकी भली पीस खाय संसार - 4 paahan pooje hari mile to main poojoo pahaar taate ye chaakee bhalee pees khaay sansaar

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4 पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहार ताते ये चाकी भली पीस खाय संसार - 4 paahan pooje hari mile to main poojoo pahaar taate ye chaakee bhalee pees khaay sansaar
4 पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहार ताते ये चाकी भली पीस खाय संसार - 4 paahan pooje hari mile to main poojoo pahaar taate ye chaakee bhalee pees khaay sansaar

paahan pooje hari milen, to main poojaun pahaar | yaate ye chakkee bhalee, pees khaay sansaar || | पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार | याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार ||

  • एक दिन ऐसा होएगा, सब सूँ पड़े बिछोइ | राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होइ ||
  • जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान | मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ||
  • लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट | पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ||
  • साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय | मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ||
  • सुख में सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद | कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ||
  • कबिरा माला मनहि की, और संसारी भीख | माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ||
  • बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार | मानुष से देवत किया करत न लागी बार ||
  • गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय | बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ||
  • माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर | कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ||
  • तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय | कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय ||

पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पुंजू पहार । ताते यह चाकी भली,पीस खाए संसार ॥

Kabir Ke Dohe (in Hindi) , Kabira . शनिवार, जुलाई 31, 2021 . Rohit Views

अर्थ : कबीरदास कहते हैं कि पत्थर को पूजने से यदि हरि मिलते हैं, तो मैं पहाड़ की पूजा करना चाहूंगा क्यूँकि हो सकता है की पहाड़ की पूजा करने से हरि जल्दी मिल जाएं परन्तु उससे तो बेहतर यह चक्की होगी जो उतनी ही ऊर्जा में सारा संसार का भोजन करा सकती है ।

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पाहन पूजे हरि मिले दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या

4 पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहार ताते ये चाकी भली पीस खाय संसार - 4 paahan pooje hari mile to main poojoo pahaar taate ye chaakee bhalee pees khaay sansaar



पाहन पूजे हरि मिले , तो मैं पूजूं पहार 

याते चाकी भली जो पीस खाए संसार। ।

निहित शब्द – 

  • पाहन पत्थर
  • हरि भगवान , पहार पहाड़
  • चाकी अन्न पीसने वाली चक्की।

 पाहन पूजे हरि मिले दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या

कबीरदास का स्पष्ट मत है कि व्यर्थ के कर्मकांड ना किए जाएं। ईश्वर अपने हृदय में वास करते हैं लोगों को अपने हृदय में हरि को ढूंढना चाहिए , ना की विभिन्न प्रकार के आडंबर और कर्मकांड करके हरि को ढूंढना चाहिए। हिंदू लोगों के कर्मकांड पर विशेष प्रहार करते हैं और उनके मूर्ति पूजन पर अपने स्वर को मुखरित करते हैं। उनका कहना है कि पाहन अर्थात पत्थर को पूजने से यदि हरी मिलते हैं , यदि हिंदू लोगों को एक छोटे से पत्थर में प्रभु का वास मिलता है , उनका रूप दिखता है तो क्यों ना मैं पहाड़ को पूजूँ।

वह तो एक छोटे से पत्थर से भी विशाल है उसमें तो अवश्य ही ढेर सारे भगवान और प्रभु मिल सकते हैं। और यदि पत्थर पूजने से हरी नहीं मिलते हैं तो इससे तो चक्की भली है जिसमें अन्न को पीसा जाता है।

उस अन्य को ग्रहण करके मानव समाज का कल्याण होता है। उसके बिना जीवन असंभव है तो क्यों ना उस चक्की की पूजा की जाए।

पाहन पूजे हरि मिले पंक्ति द्वारा कबीर ने किसका विरोध किया है?

यह दोहा कबीर दास जी का है। इस दोहा के माध्यम से कबीर दास जी ने मूर्तिपूजन का विरोध किया है। उन्होंने कहा है की अगर पत्थर(मूर्ति) के पूजने से भगवान् की प्राप्ति होती है, तो मै उस पत्थर जहां से निकला है उसे ही पूजा करता हूं।

कबीर दास जी के 10 दोहे?

कबीर के 10 बेहतरीन दोहे : देते हैं जिंदगी का असली ज्ञान.
मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत | ... .
भक्त मरे क्या रोइये, जो अपने घर जाय | ... .
मैं मेरा घर जालिया, लिया पलीता हाथ | ... .
शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल | ... .
जब लग आश शरीर की, मिरतक हुआ न जाय | ... .
मन को मिरतक देखि के, मति माने विश्वास | ... .
कबीर मिरतक देखकर, मति धरो विश्वास |.

कबीरदास जी पहार पूजने की बातें क्यों करते है?

कबीरदास का स्पष्ट मत है कि व्यर्थ के कर्मकांड ना किए जाएं। ईश्वर अपने हृदय में वास करते हैं लोगों को अपने हृदय में हरि को ढूंढना चाहिए , ना की विभिन्न प्रकार के आडंबर और कर्मकांड करके हरि को ढूंढना चाहिए। हिंदू लोगों के कर्मकांड पर विशेष प्रहार करते हैं और उनके मूर्ति पूजन पर अपने स्वर को मुखरित करते हैं।

कबीर के दोहे पाखंड पर?

माथे तिलक हाथ जपमाला, जग ठगने कूं स्वांग बनाया। मारग छाड़ि कुमारग उहकै, सांची प्रीत बिनु राम न पाया॥ ईश्वर को पाने के लिए माथे पर तिलक लगाना और माला जपना केवल संसार को ठगने का स्वांग है। प्रेम का मार्ग छोड़कर स्वांग करने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी।