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पड़ोसी देशों की सीमा को छूने वाले भारतीय राज्यभूटान सेTrick : आशिक आप भी आ - असम शि - सिक्किम आ - अरूणाचल प्रदेश प - प. बंगाल भी - भूटान पाकीस्तान सेTrick : पंगुराज प - पंजाब गु - गुजरात रा - राजस्थान ज - जम्मू-कश्मीर बंग्लादेश सेTrick : आ मित्र बगल में आ - असम मि - मिजोरम त्र - त्रिपुरा बगल - प. बंगाल में - मेघालय म्यांमार सेTrick : मामि म्यांमार आना म - मणिपुर मि - मिजोरम म्यांमार आ - अरूणाचल ना - नागालैण्ड चिन सेTrick : हिमांसी आ जाऊं हि - हिमाचल मां - सी - सिक्किम आ - अरूणाचल ज - जम्मू ऊं - उत्तराखंड नेपाल सेTrick : उपर बीस खण्डउ - उ.प्र.प - प. बंगालबी - बिहारस - सिक्किमखण्ड - उत्तराखण्डNote :- अफगानीस्तान से केवल जम्मू कश्मीरउत्तराखंड से लगे नेपाल की सीमा पर तेजी से हो रहा डेमोग्राफिक चेंज, सुरक्षा एजेंसियों ने बताया देश के लिए खतरानेपाली सीमा पर मूल निवासियों का पलायन हुआ है और समुदाय विशेष के लोगों ने संसाधनों पर कब्जा कर वर्चस्व बना लिया है। 2012 से 22 के मध्य के वर्षों में नेपाल का पूरा समीकरण बदला है। गोरखा की आबादी में तो 18860 की कमी आई है। अभिषेक राज, हल्द्वानी : उत्तराखंड से लगते नेपाल के सीमावर्ती जिलों में तेजी से जनसांख्यिकीय बदलाव (डेमोग्राफिक चेंज) हो रहा है। 26 जनवरी 2022 को जारी नेपाल की जनगणना में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। यह बदलाव अचानक नहीं हुआ है। सुरक्षा एजेंसियां इसे सुनियोजित साजिश बताती हैं। इसे लेकर नेपाल के साथ ही भारत की भी चिंता बढ़ी है। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार 2012 से 22 के मध्य के वर्षों में नेपाल का पूरा समीकरण बदला है। गोरखा की आबादी में तो 18,860 की कमी आई है। वहीं, भारत से लगते नेपाली जिले कैलाली और कंचनपुर की जनसंख्या वृद्धि दर सामान्य पहाड़ी जिलों के 0.93 के सापेक्ष 1.54 प्रतिशत अधिक है। इसी प्रकार कंचनपुर की वार्षिक वृद्धि दर 1.32 प्रतिशत दर्ज की गई है। नेपाल के केंद्रीय सांख्यिकी विभाग के अनुसार 2012 में कैलाली की जनसंख्या सात लाख 75 हजार 709 थी। अब यह बढ़कर नौ लाख 11 हजार 155 तक पहुंच गई है। यानी कुल एक लाख 35 हजार 446 आबादी बढ़ी। ठीक इसी प्रकार कंचनपुर की जनसंख्या चार लाख 51 हजार 248 से बढ़कर पांच लाख 17 हजार 645 हो गई है। 10 साल में इस प्रमुख सीमांत जिले की आबादी में 66 हजार 397 की वृद्धि दर्ज की गई है। नेपालियों का पलायन, संसाधनों पर समुदाय विशेष का कब्जा सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार भारत से लगते नेपाली जिलों में आए जनसांख्यिकीय बदलाव में अहम वजह पलायन है। नेपाल के मूल निवासी पलायन कर दूसरे शहरों में काम के लिए गए। लेकिन एक समुदाय विशेष ने पहाड़ का रुख कर वहां के संसाधनों पर कब्जा जमा लिया। बीते 10 वर्षों में इन्होंने खुद को इतना सक्षम बना लिया कि सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक व्यवस्था को भी प्रभावित करने लगे हैं। नेपाल बार्डर पर आइएसआइ की सक्रियता सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ नेपाल के रास्ते उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में सक्रिय है। जून 2000 में भी भारत-नेपाल सीमा पर तेजी से बन रहे धर्म विशेष के स्थलों से सावधान रहने की चेतावनी जारी गई थी। अब नेपाली जिलों में तेजी से आए बदलाव सतर्क करने वाले हैं। विशेष गलियारे का भी जिक्र भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार बांग्लादेश, बिहार, नेपाल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के मध्य सुनियोजित तरीके से धर्म विशेष के लिए गलियारा तैयार किया जा रहा है। साजिश पाकिस्तान को इस गलियारे से जोडऩे की है। इसमें बीते 10 वर्षों में शरणाॢथयों के नाम पर बड़ी आबादी इस गलियारे में शिफ्ट भी की गई है। सामरिक महत्व वाले क्षेत्रों में ज्यादा सक्रियता सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, योजना के तहत धर्म विशेष के शिक्षण संस्थानों को उन्हीं क्षेत्रों में ज्यादातर खोला जा रहा है जो सामरिक रूप से अहम हैं। इसी श्रेणी में उत्तराखंड के पिथौरागढ़, ऊधम सिंह नगर व चंपावत भी आते हैं। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर व बस्ती मंडल को भी इसी क्रम में चुना गया है। रिटायर्ड मेजर बीएस रौतेला का कहना है कि नेपाल हमारा मित्र राष्ट्र है। उससे रोटी-बेटी के मधुर संबंध हैं। लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर अब हमें अलर्ट होना होगा। नेपाल को भारत से बेहतर सहयोगी और दोस्त कहीं नहीं मिलेगा। लेकिन ओली सरकार में वहां जिस तरह से चीन व पाकिस्तान की दखल बढ़ी वह आने वाले दिनों में कई गंभीर समस्या बनेगी। Edited By: Prashant Mishra हिंदी न्यूज़ उत्तराखंडउत्तराखंड : चीन और नेपाल सीमा पर खाली होते गांवों से सामरिक चिंताएं बढ़ी उत्तराखंड : चीन और नेपाल सीमा पर खाली होते गांवों से सामरिक चिंताएं बढ़ीचीन के साथ भारत के रिश्तों में तल्खी के बीच उत्तराखंड से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा की संवेदनशीलता बढ़ गई है। उत्तराखंड चीन और नेपाल के साथ सैकडों किमी की सीमा साझा करता है। चिंता की बात यह है कि...Shivendra Singh संजीव कंडवाल, देहरादून।Fri, 19 Jun 2020 07:42 AM चीन के साथ भारत के रिश्तों में तल्खी के बीच उत्तराखंड से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा की संवेदनशीलता बढ़ गई है। उत्तराखंड चीन और नेपाल के साथ सैकडों किमी की सीमा साझा करता है। चिंता की बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगते उत्तराखंड के गांवों में पलायन तेजी से बढ़ रहा है। पलायन आयोग के मुताबिक पिछली जनगणना के बाद से अंतरराष्ट्रीय सीमा के निकट वाले उत्तराखंड के 14 गांव पूरी तरह निर्जन हो चुके हैं। सामारिक विशेषज्ञ इस पर चिंता जता रहे हैं। उत्तराखंड स्थित भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा के निकट पलायन की स्थिति जानने के लिए पिछले साल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद ने उत्तराखंड पलायन आयोग से रिपोर्ट मांगी थी। पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी ने बताया कि गत वर्ष सितंबर में नई दिल्ली स्थित परिषद के सचिवालय में आयोजित बैठक में उन्होंने अपनी रिपोर्ट पेश की। बकौल नेगी 2011 की जनगणना के बाद से अब तक चीन सीमा से पांच किमी के दायरे में स्थित चार और नेपाल बॉर्डर से लगते 10 गांव पूरी तरह आबादी विहीन हो गए हैं। यानि अब वहां कोई भी नहीं रहता। जबकि छह गांव ऐसे और थे, जहां इसी दौरान आबादी में 50 प्रतिशत तक कमी आई है। यानि सीमा पर इंसानी बस्तियों के न होने से निगरानी की सारी जिम्मेदारी सिर्फ सेना के कंधों पर आ जाती है। दूसरी तरफ सामरिक विशेषज्ञ से चिंता की नजर से देख रहे हैं। लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) मोहन भंडारी के मुताबिक किसी भी बॉर्डर पर सेना की तैनाती सिर्फ सामरिक महत्व की पोस्ट पर ही हो सकती है। सरहद की असली निगरानी स्थानीय नागरिक ही करते हैं। स्थानीय लोग सूचना जुटाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। उनके मुताबिक उत्तराखंड में स्थिति गंभीर होती जा रही है, इसलिए सरकारों को सेवानिवृत्त सैनिकों को इन खाली गांवों में बसाने के लिए प्रयास करने होंगे। इधर, लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) जीएस नेगी के मुताबिक स्थानीय आबादी सेना का साजो सामान अग्रिम पोस्ट तक पहुंचाने में भी मदद पहुंचाती है। नेगी, एक और खतरे की तरह आगाह करते हैं कि बॉर्डर के खाली गांव दुश्मन को पनाह देने के काम भी आ सकते हैं। इन गावों में बुनियादी सुविधाएं तो उपलब्ध हैं ही। नेगी ने कहा कि 1962 के चीन युद्ध के बाद उत्तराखंड में ग्रामीणों को एसएसबी के माध्यम से गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया था, मौजूदा स्थिति में बॉर्डर एरिया में इस प्रशिक्षण को फिर बहाल किए जाने की जरूरत है। नेपाल सीमा पर बदल रही डेमोग्राफी खाली गांव (2011 के बाद) उत्तराखंड के कितने जिले अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगते हैं?उत्तराखंड के 3 जिले, पिथौरागढ़, चंपावत और उधमसिंह नगर, नेपाल के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं। और 3 जिले पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी तिब्बत (चीन) की अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं।
उत्तराखंड के कितने राज्य अंतरराष्ट्रीय सीमा बनाते हैं?राज्य की राजनैतिक सीमा पूर्व से नेपाल, उत्तर में तिब्बत (चीन), उत्तर-पश्चिम में हिमाचल प्रदेश तथा दक्षिण में उत्तर- प्रदेश से लगती है।
उत्तराखंड के कितने जिले नेपाल से लगते हैं?चीन (China) और नेपाल (Nepal) सीमा से लगे ये जिले देश की सुरक्षा के लिए खासे अहम है. राज्य के इन तीन सीमावर्ती जिलों एक वक्त सड़कों घोर अभाव था. लेकिन पिछले दो दशक में पिथौरागढ़ में लिपुलेख और दारमा घाटी, चमोली में नीति-माणा, उत्तरकाशी में नैलोंग घाटी रोड से जुड़ गई हैं.
उत्तराखंड का सबसे बड़ा जिला कौन सा है?क्षेत्रफल की द्र्ष्टि से उत्तराखंड का सबसे बड़ा जिला चमोली ( क्षेत्रफल 8,030 वर्ग किमी ) है। क्षेत्रफल की द्र्ष्टि से उत्तराखंड का सबसे छोटा जिला चम्पावत ( क्षेत्रफल 1,766 वर्ग किमी ) है। जनसंख्या की दृष्टि से उत्तराखंड का सबसे बड़ा जिला हरिद्वार ( कुल जनसंख्या 18,90,422 ) है।
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