श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधार का अर्थ क्या है? - shree guru charan saroj raj nij man mukur sudhaar ka arth kya hai?

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आज हनुमान जयंती है. इस दिन हनुमान जी की विशेष रूप से पूजा की जाती है. हनुमान जयंती पर हनुमान जी की विशेष पूजा उपासना की जाती है. मान्यता है कि आज हनुमान जी की पूजा करने पर सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है.

श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधार का अर्थ क्या है? - shree guru charan saroj raj nij man mukur sudhaar ka arth kya hai?

Hanuman Jayanti 2021 Aarti, ChalisaPrabhat Khabar Graphics

Hanuman Jayanti 2021: आज हनुमान जयंती है. इस दिन हनुमान जी की विशेष रूप से पूजा की जाती है. हनुमान जयंती पर हनुमान जी की विशेष पूजा उपासना की जाती है. मान्यता है कि आज हनुमान जी की पूजा करने पर सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है. श्रीराम भक्त हनुमान का जन्म चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था.

।। दोहा ।।

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार ।

बरनौ रघुवर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानि के, सुमिरौ पवन कुमार।

बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहुं कलेश विकार।।

।।चौपाई।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिंहु लोक उजागर।

रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवन सुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी।

कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुंचित केसा ।।

हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे कांधे मूंज जनेऊ साजे ।

शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया रामलखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे रामचन्द्र के काज संवारे।।

लाये सजीवन लखन जियाये श्री रघुबीर हरषि उर लाये।

रघुपति कीन्हि बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरत सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावे अस कहि श्रीपति कंठ लगावें।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल कहां ते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा, राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना।

जुग सहस्र जोजन पर भानु लील्यो ताहि मधुर फल जानु।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख मांहि जलधि लांघ गये अचरज नाहिं।

दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुवारे तुम रखवारे होत न आज्ञा बिनु पैसारे।

सब सुख लहे तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना।।

आपन तेज सम्हारो आपे तीन्हू लोक हांक ते कांपे।

भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महाबीर जब नाम सुनावे।।

नासै रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा।

संकट ते हनुमान छुड़ावें मन क्रम बचन ध्यान जो लावें।।

सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा।

और मनोरथ जो कोई लावे सोई अमित जीवन फल पावे।।

चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा।

साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता।

राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावें जनम-जनम के दुख बिसरावें।

अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई।

संकट कटे, मिटे सब पीरा, जपत निरंतरहनुमत बलबीरा।।

जय जय जय हनुमान गोसाईं कृपा करो गुरुदेव की नाईं।

जो सत बार पाठ कर कोई छूटई बन्दि महासुख होई।।

जो पढ़े हनुमान चालीसा होय सिद्धि साखी गौरीसा।

तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।

।। दोहा।।

पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप।।

हनुमान जी की आरती

मनोजवं मारुत तुल्यवेगं ,जितेन्द्रियं,बुद्धिमतां वरिष्ठम्।।

वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं, श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे।।

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

जाके बल से गिरवर कांपे । रोग दोष जाके निकट ना झांके ॥

अंजनी पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ॥

दे वीरा रघुनाथ पठाये । लंका जाये सिया सुधी लाये ॥

लंका सी कोट संमदर सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ॥

लंका जारि असुर संहारे । सियाराम जी के काज संवारे ॥

लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे । आनि संजिवन प्राण उबारे ॥

पैठि पताल तोरि जम कारे। अहिरावन की भुजा उखारे ॥

बायें भुजा असुर दल मारे । दाहीने भुजा सब संत जन उबारे ॥

सुर नर मुनि जन आरती उतारे । जै जै जै हनुमान उचारे ॥

कंचल थाल कपूर लौ छाई । आरती करत अंजनी माई ॥

जो हनुमान जी की आरती गाये । बसहिं बैकुंठ परम पद पायै ॥

लंका विध्वंस किये रघुराई । तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥

आरती किजे हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

Posted by: Radheshyam Kushwaha

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Published Date Tue, Apr 27, 2021, 7:20 AM IST

हनुमान चालीसा का हिन्दी अर्थ

आध्यात्मिक डायरी में जोड़ें।

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1

श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुरु सुधारी, बरनौ रघुवर बिमल जसु जो दायकु फल चारी

श्री गुरू महाराज जी के चरण कमलों की धूली से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ| जो चारों फ़ल: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है|

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2

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार । बल बुद्धिविद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ॥

हे पवनकुमार! मैं अपने को शरीर और बुद्धि से हीं जान कर आपका ध्यान कर रहा हूँ| आप मुझे शारीरिक बल, सद्बुद्धि एंव विध्या देकर मेरे दु:खों व दोषों का नाश करने की कृपा कीजिए|

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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जै कपीस तिहुँलोक उजागर ॥

ज्ञान और गुणों के सागर श्री हनुमान जी की जय हो| आपका ज्ञान और गुण अथाह है| हे कपीश्वर! आपकी जय हो| तीनो लोकों (स्वर्ग लोक, भू लोक और पाताल लोक) में आपकी कीर्ति है|

श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधार का अर्थ क्या है? - shree guru charan saroj raj nij man mukur sudhaar ka arth kya hai?

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रामदूत अतुलित बलधामा । अंजनि-पुत्र पवन-सुत नामा ॥

हे पवनसुत अंजनीपुत्र श्री राम दूत हनुमान जी, आप अतुलित बल के भंडारघर हैं|

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महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥

हे महावीर बजरंग बली! आप अनन्त पराकर्मी हैं| आप दुर्बुद्धि को दूर करते हैं तथा सद्बुद्धि वालों के साथी हैं|

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6

कंचन बरण बिराज सुबेशा । कानन कुंडल कुंचित केशा ॥

आपकी स्वर्ण के समान अंग पर सुन्दर वस्त्र, कानों में कुंडल और घुँघराले बाल सुशोभित हो रहे हैं |

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7

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥

आपके हाथ में वज्र और ध्वजा विराजमान है तथा कंधों पर मूंश क़ा जनेऊ सुशोभित है |

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8

शंकर-सुवन केशरी-नन्दन । तेज प्रताप महा जग-वंदन ॥

आप भगवान शंकर के अवतार और केसरी नंदन के नाम से प्रसिद्ध हैं| आप अति तेजस्वी प्रतापी तथा सारे संसार के वन्दनीय हैं|

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9

विद्यावान गुणी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥

आप समस्त विधयाओं से परिपूर्ण हैं| आप गुणवान और अत्यंत चतुर हैं| आप श्रीराम क़ा कार्य करने के लिए लालाइत रहते हैं|

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10

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लषन सीता मन बसिया॥

आप श्रीराम कथा सुनने के प्रेमी हैं और आप श्रीराम, श्रीसीताजी और श्रीलक्ष्मण के ह्रदय में बसते हैं॥

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11

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा॥

आप सूक्ष्म रूप में श्रीसीताजी के दर्शन करते हैं, भयंकर रूप लेकर लंका का दहन करते हैं

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भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचंद्र के काज सँवारे॥

विशाल रूप लेकर राक्षसों का नाश करते हैं और श्रीरामजी के कार्य में सहयोग करते हैं॥

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13

लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥

आपने संजीवनी बूटी लाकर श्रीलक्ष्मण की प्राण रक्षा की, श्रीराम आपको हर्ष से हृदय से लगाते हैं।

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रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

श्रीराम आपकी बहुत प्रशंसा करते हैं और आपको श्रीभरत के समान अपना प्रिय भाई मानते हैं॥

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15

सहस बदन तुम्हरो जस गावै। अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥

आपका यश हजार मुखों से गाने योग्य है, ऐसा कहकर श्रीराम आपको गले से लगाते हैं।

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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥

सनक आदि ऋषि, ब्रह्मा आदि देव और मुनि, नारद, सरस्वती जी और शेष जी

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जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोविद कहि सके कहाँ ते॥

यम, कुबेर आदि दिग्पाल भी आपके यश का वर्णन नहीं कर सकते हैं, फिर कवि और विद्वान कैसे उसका वर्णन कर सकते हैं।

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18

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

आपने सुग्रीव का उपकार करते हुए उनको श्रीराम से मिलवाया जिससे उनको राज्य प्राप्त हुआ॥

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19

तुम्हरो मंत्र विभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

आपकी युक्ति विभीषण माना और उसने लंका का राज्य प्राप्त किया, यह सब संसार जानता है।

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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

आप सहस्त्र योजन दूर स्थित सूर्य को मीठा फल समझ कर खा लेते हैं॥

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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं॥

प्रभु श्रीराम की अंगूठी को मुख में रखकर आपने समुद्र को लाँघ लिया, आपके लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

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दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

इस संसार के सारे कठिन कार्य आपकी कृपा से आसान हो जाते हैं॥

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राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे

श्रीराम तक पहुँचने के द्वार की आप सुरक्षा करते हैं, आपके आदेश के बिना वहाँ प्रवेश नहीं होता है|

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सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डरना॥

आपकी शरण में सब सुख सुलभ हैं, जब आप रक्षक हैं तब किससे डरने की जरुरत है॥

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25

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥

अपने तेज को आप ही सँभाल सकते हैं, तीनों लोक आपकी ललकार से काँपते हैं।

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भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥

केवल आपका नाम सुनकर ही भूत और पिशाच पास नहीं आते हैं॥

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27

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

महावीर श्री हनुमान जी का निरंतर नाम जप करने से रोगों का नाश होता है और वे सारी पीड़ा को नष्ट कर देते हैं।

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संकट तें हनुमान छुडावैं। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

जो श्री हनुमान जी का मन, कर्म और वचन से स्मरण करता है, वे उसकी सभी संकटों से रक्षा करते हैं॥

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29

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥

सबसे पर, श्रीराम तपस्वी राजा हैं, आप उनके सभी कार्य बना देते हैं।

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और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥

उनसे कोई भी इच्छा रखने वाले, सभी लोग अनंत जीवन का फल प्राप्त करते हैं॥

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31

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥

आपका प्रताप चारों युगों में विद्यमान रहता है, आपका प्रकाश सारे जगत में प्रसिद्ध है।

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32

साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥

आप साधु- संतों की रक्षा करने वाले, असुरों का विनाश करने वाले और श्रीराम के प्रिय हैं॥

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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥

आप आठ सिद्धि और नौ निधियों के देने वाले हैं, आपको ऐसा वरदान माता सीताजी ने दिया है।

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34

राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥

आपके पास श्रीराम नाम का रसायन है, आप सदा श्रीराम के सेवक बने रहें॥

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तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥

आपके स्मरण से जन्म- जन्मान्तर के दुःख भूल कर भक्त श्रीराम को प्राप्त करता है |

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36

अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि – भक्त कहाई॥

अंतिम समय में श्रीराम धाम (वैकुण्ठ) में जाता है और वहाँ जन्म लेकर हरि का भक्त कहलाता है|

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37

और देवता चित न धरई। हनुमत से हि सर्व सुख करई॥

दूसरे देवताओं को मन में न रखते हुए, श्री हनुमान से ही सभी सुखों की प्राप्ति हो जाती है।

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संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जो महावीर श्रीहनुमान जी का नाम स्मरण करता है, उसके संकटों का नाश हो जाता है और सारी पीड़ा ख़त्म हो जाती है॥

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39

जै जै जै हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥

भक्तों की रक्षा करने वाले श्री हनुमान की जय हो, जय हो, जय हो, आप मुझ पर गुरु की तरह कृपा करें।

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जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥

जो कोई इसका सौ बार पाठ करता है वह जन्म-मृत्यु के बंधन से छूटकर महासुख को प्राप्त करता है|

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41

जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

जो इस श्री हनुमान चालीसा को पढ़ता है उसको सिद्धि प्राप्त होती है, इसके साक्षी भगवान शंकर है ।

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42

तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ ह्रदय महँ डेरा॥

श्री तुलसीदास जी कहते हैं, मैं सदा श्रीराम का सेवक हूँ, हे स्वामी! आप मेरे हृदय में निवास कीजिये॥

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43

पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप। राम लषन सीता सहित ह्रदय बसहु सुर भूप॥

पवनपुत्र, संकटमोचन, मंगलमूर्ति श्री हनुमान आप देवताओं के ईश्वर श्रीराम, श्रीसीता जी और श्रीलक्ष्मण के साथ मेरे हृदय में निवास कीजिये॥

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श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधार का अर्थ क्या होता है?

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि। बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि। अर्थ- श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है।

श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधार वर्णों रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चार कौन सा छंद है?

दोहा- श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार | बरनौ रघुवर बिमल जसु, जो दायक फल चारि | बुद्धिहीन तनु जानि के, सुमिरौ पवन कुमार | बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहुं कलेश विकार || ।। चौपाई।।

जो सत बार पाठ कर कोई इसका अर्थ क्या है?

'जो शत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई।। ' हनुमान चालीसा की इस चौपाई का सीधा-सा अर्थ है कि जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से मुक्त होकर परमानंद का भागी होगा।

श्री गुरु चरण सरोज रज किसका उदाहरण है?

Detailed Solution. दिए गए विकल्पों में से “श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकर सुधार” इन पंक्तियों में दोहा छंद है। अन्य विकल्प असंगत है। अतः सही विकल्प दोहा छंद है।