उस समय की बाल मंडली द्वारा खेले जाने वाले खेलों में कौन सी महत्वपूर्ण बात छिपी होती थी? - us samay kee baal mandalee dvaara khele jaane vaale khelon mein kaun see mahatvapoorn baat chhipee hotee thee?

मित्र इस प्रश्न का उत्तर आपकी पाठ्य पुस्तक कृतिका भाग-2 की पृष्ठ संख्या (5) के तीसरे पैराग्राफ में दिया गया है। कृपया इसे स्वयं लिखने का प्रयास करें। हम आपको उन खेलों में छिपी बातें लिखकर दे रहे हैं। 
इन खेलों के माध्यम से ग्रामीण जीवन, कृषि के बारे में, अनाज साफ करने के तरीकों के बारे में पता चलता है। 

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हि पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का, , अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह, , पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से, , इसकी क्‍या वजह हो सकती है? छकषछ 2012,11, 10, , लेखक का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के, , समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है।, , मेरी समझ से इसकी निम्नलिखित वजह हो सकती हैं, , (89 बच्चा किसी भी परेशानी में अपनी माँ के साथ रहकर ही, सुरक्षित महसूस करता है। परेशानी में उसे पिता का, साथ नहीं सुहाता।, , (&) माँ के आँचल में उसे दुःखों का पता नहीं चल पाता और, बह आराम से रहता है।, , (##) कह भावनात्मक रूप से अपनी माँ से अधिक जुड़ाव, महसूस करता है, क्योंकि माँ बच्चे की भावनाओं को, अच्छी तरह से समझती है।, , (0) माँ जैसी कोमलता, आत्मीयता, ममत्व की भावना माँ से, ही प्राप्त होती है।, , (७) माँ से बच्चे का ममत्व का रिश्ता होता है। वह चाहे अपने, पिता से कितना प्रेम करता हो या पिता अपने बच्चे को, हक कितना भी प्रेम देता हो पर जो आत्मीय सुख बच्चे को, माँ की छाया में प्राप्त होता है वह पिता से प्राप्त नहीं, , शत होता।, . 9 आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना, क्यों भूल जाता है? (82012, 11, 10, , जतत भौलानाथ अपने साथियों को देखकर सरिसकना इसलिए भूल, .._ जात है, क्‍योंकि, ._() बच्चों का स्वभाव होता है कि वह अपनी उम्र के बच्चों के, साथ ही खेलना पसंद करता है और भोलानाथ को अपने, साथियों के साथ तरह-तरह के खेल खेलने को मिलते।, (४) यदि वह अपने साथियों के सामने रोना-सिसकना जारी, रखता, तो वे उसकी हँसी उड़ाते और उसे अपने साथ, लेकर खेलने के लिए नहीं जाते।, कक अपने मित्रों के साथ खेलने में भौलानाथ को बहुत आनंद, आता था तथा अपने मित्रों के साथ वह तरह-तरह की, , , , (कृतिका भाग-2) के प्रश्नोत्तर, , , , टी, , , , उल्र (0) रामजी की चिड़िया, रामजी का खेत,, , खाओ मेरी चिड़िया, भर-भर पेट।, , (6४) घोड़ा है जमाल साई, पीछे देखो मार खाई।, , (४) आलू कचालू बेटा कहाँ गए थे?, , (०) अक्कड़-बक्कड़ बंबे बौ, अस्सी नब्बे पूरे सौ,, सौ में लगा धागा, चोर निकलकर भागा।, , (०) पोशंपा भई पोशंपा, लाल किले में क्या किया?, सौ रुपये की घड़ी चुराई, आठ आने की रबड़ी खाई।, , < भोलानाथ और उसके साथियो के खेल और खेलने की सामग्री, , आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्‍न है?, (858 2012, 11, 10, , भोलानाथ और उसके साथियो के खेल और खेलने की सामग्री, , हमारे खेल और खेलने की सामग्री से निम्नलिखित प्रकार से, , मभिन्‍न है, , (४) भोलानाथ और उसके साथियों के खेल सामूहिक रूप से, , मिल-जुलकर खेले जाते थे। उनके खेलने की सामग्री, अधिकतर मिट्टी के खिलौने, लकड़ी, मिट्ठी के घड़े के, टुकड़े, धूल, पानी, पत्ते और कागज़ आदि होते थे, जबकि, आज प्लास्टिक आदि का प्रचलन है। इसी कारण हम, प्लास्टिक के आकर्षक खिलौनों से खेलते हैं, जो संगीत की, घुन और बोलने की आवाज़ भी निकालते हैं।, , (४४) टेलीविजन के आने से हम कार्टून नेटवर्क, पोगो, डिजनी,, निक आदि चैनल देखकर भी अपना मनोरंजन करते हैं।, , (४) आजकल डिजिटल प्रणाली पर आधारित इलेक्ट्रॉनिक, खिलौनों द्वारा हम उन्हीं खेल सामग्रियों से खेलते हैं।, , (४०) भोलानाथ जैसे बच्चों की खेलने की सामग्री आसानी से व, सुलभुता से बिना पैसे खर्च किए ही प्राप्त हो जाती हैं, जबकि आज के बच्चों की सामग्री बाज़ार से खरीदनी, पड़ती है।, , 5 पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का उल्लेख कौजिए जो आपके दिल को, छू गए हों।, 777 पाठ में आए ऐसे प्रसंग जो दिल को छू गए हैं, निम्नलिखित हैं, (४) पिताजी द्वारा अपनी मूँछें भोलानाथ के कोमल, गालों में चुभाने पर द्वारा झुँअलाकर उनकी, मूँछें नोचने लग जाना।, (४४) माँ द्वारा भोलानाथ को तोता, मैना, कबूतर, ही मोर, आदि के बनावटी नाम 227 कहते

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पा 417;#%9ा&6 हिंदी “अ' कक्षा |, कि ब३क०००थथक«०भा---- हे डक 3, , निकालने खेलते हुए समधी का बकरे पर (४४) पिताजी द्वारा भोलानाथ को अपने हाथ से, फूल के एक, न हर शविक सन के के भाता हे कटोरे में गोरस और भात सानकर खिलाना तथा माँ, द्वारा तोता, मैना, कबूतर, हंस, मोर आदि के बनावटी, , , , के कप की लए कर थ हम नाम से कौर बनाकर खिलाना, माँ द्वारा भोलानाथ की, दिखाई के चोटी गूँथना आदि।, ही रे हि व (०) साँप से डरकर भोलानाथ को कॉपते देखकर पिताजी का, उक्त लीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति में आपसी आचार, सहयोग तेज़ी से उसकी ओर आना तथा माँ का ज़ोर से रो, और आपसी प्रेम था। बच्चे अपने परिवार के सदस्यों से अत्यंत पड़ना।, , चुले-मिले में खेल में ही वैसी सभी |, छ्ञातों को 329 हर कार्य 9 'माता का अँचल' शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य, झेज् में प्रवीण हो सके और व्यावहारिक भी बन सकें। शीर्षक दीजिए।, , आज की आसीण संस्कृति में निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देते हैं उत्तर किसी भी उपन्यास या कहानी का शीर्षक किसी घटना, पात्र,, , स्ड देश, काल या वातावरण पर आधारित होता है। “माता का, लिया है आधारित, ७ वि मान 8582 का डे अँचल' शीर्षक भी उपन्यास की घटना पर ही आधारित है। इस, , कहानी में माँ के ऑँचल की सार्थकता को समझाने का प्रयास, , लता कप कप किया गया है। बालक भोलानाथ का अधिक जुड़ाव पिता के, (8 सुरू-दुःख में परिवार के सदस्य पहले की तरह एक साथ साथ दर्शाया गया है, परंतु जब वह सौंप को कर डर, एकत्र नहीं हो पाते हैं। अब संबंधों में अपनत्व नहीं रहा है, जाता है तब वह पिता की अपेक्षा माता की गोद में छिपकर ही, उसमें घन और स्वार्थ आ गया है। शांति व सुरक्षा का अनुभव करता है। माता से बच्चे का ममत्व, (७) उछरों में बच्चे अपने सगे-संबंधियों की जगह पर टेलीविजन का रिश्ता होता है। भोलानाथ का अपने पिता से अपार स्नेह, और वीडियो खेल को अधिक महत्त्वपूर्ण मानने लगे हैं। था, पर विपत्ति के समय जो शांति और प्रेम की छाया उसे, (5७) परिवार” की परिभाषा 'परिवार के सभी सदस्य' नहीं बल्कि अपनी माँ की गोद में जाकर मिली वह शायद उसे पिता से, “मैं, मेरी पत्नी और मेरे बच्चे” तक सीमित हो गई है। प्राप्त नहीं हो पाती। लेखक ने इसीलिए पिता-पुत्र के प्रेम को, , दर्शाते हुए भी इस कहानी का शीर्षक "माता का अँचल' रखा है, जो कि पूर्णतः उपयुक्त है। वैसे इस कहानी के अन्य शीर्षक इस |, प्रकार हो सकते हैं-'माँ की ममता” अथवा 'वात्सल्य (माता-पिता |, , ह_ छठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद, आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।, , , , , , , , , , जल्त मुझे बचपन के वो दिन याद आ रहे हैं, जब मैं पाँच-छ: साल का का अपने संतान के प्रति प्रेम) प्रेम।, , था। इतना बड़ा होने पर भी मैं यही कोशिश करता था कि मुझे, , माँ या पिताजी की गोद मिले। मुझे बचपन की वह घटना भुलाए 10 | बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते, नहीं मूलती, जब मैं अपने साथियों के साथ घूमता हुआ अपनी हैं? (858 2012, 11, 1, कॉलौनी से बाहर चला गया था और वापस आते समय अपने उत्तर बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को निम्न प्रकार से, साथियों से अलग होकर रास्ता भूल गया था। अभिव्यक्त करते हैं, , बहुत देर तक मैं अपने घर और माता-पिता को ढूँढता रहा। जब (0) बच्चे कई बार रूठकर दूर चले जाते हैं और पास नहीं, मुझे अपना घर नहीं मिला, तो मैं एक पेड़ के नीचे बैठकर रोने आते, तब माता-पिता को अनुनय-विनय कर उन्हें मनाना, लगा। बहुत देर बाद मुझे पिताजी दिखाई दिए, जो मुझे ढूँढ रहे पड़ता है।, , थे। पिताजी को देखते ही मैं उनकी ओर दौड़ा और उनकी गोद (४४) बच्चे अपनी माता की गोद में छिप जाते हैं और बाहर, मैं जाकर छिप गया। पिताजी की आँखों से भी खुशी के आँसू निकलने को तैयार ही नहीं होते।, , निकलने लगे। कुछ देर बाद मैं घर पर था और माँ मुझे प्यार (४४४) बच्चे पिताजी की गोद में चढ़ जाते हैं और उनकी, करती और रोती जा रही थीं। से इस प्रकार लिपट जाते हैं कि पिता का कठोर हृदय, , 8 यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है। भी द्रवित हो उठता है।, उसे अपने शब्दों में लिखिए। (४0) बच्चे अपने माता-पिता ह गाल पर प्यार करके भी प्रेम, उ7 निननलिखित प्रटनाएँ माता-शिता के वात्सल्य को व्यक्त करती हैं को अभिव्यक्त करते हैं।, (0 भोलानाथ के पिता का सुबह-सवेरे उठकर भोलानाथ को भी 1 इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है, वह आपके, नहलाकर अपने साथ पूजा पर बैठा लेना और उसके माथे बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्‍न है? 68582012,1॥, 1९ भभूत का तिलक लगा देना। उनका उसे प्यार से उत्तर छात्र स्वयं करें।, * कहकर पुकारना। फशीश्वरला नागार्जुन की आँचलिक, (8) पिताज़ी द्वारा उसे अपने कंधों पर बिठाकर को 12 थे रेणु और नागार्जुन की आँचलिक, मैं कुश्ती लड़ना। ४ शत, , उक्तर छात्र स्वयं करें।

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प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए, , .._॥ ओलानाथ का पिता से कुश्ती लड़ना किस प्रकार, , .._ होता था इस कुश्ती से किस प्रकार के संबंधों का पता चलता, , है? क्‍या इस प्रकार के संबंध आज भी कायम हैं?, , उक्त कभी-कभी बाबूजी और भोलानाथ के बीच कुश्ती होती थी।, , उस कुश्ती में बाबूजी कमज़ोर पड़कर भोलानाथ के बल को, _ डढ्धावा देते, जिससे भोलानाथ उन्हें हरा देता था। बाबूजी, जीठ के बल लेट जाते और भोलानाथ उनकी छांती पर चढ़, जजाता। जब वह उनकी लंबी-लंबी मूँछें उखाड़ने लगता, तो, “भक हँसते-हँसते मूँछें छुड़ाकर उसके हाथों को चूम लेते, , इस प्रकार की कुश्ती से पिता-पुत्र के बीच आत्मीय संबंधों, (सघुर संबंधों) का पता चलता है। आज समाज में अधिक धन, कमाने की अंधी दौड़ में पिता-पुत्र के बीच इस प्रकार के, , |. संबंध लुप्त होते जा रहे हैं। निर्धन वर्ग में तो इस प्रकार के, संबंध फिर भी देखे जा सकते हैं, किंतु उच्चवर्गीय समाज में, 'फिता के लिए इस प्रकार के खेलों हेतु समय निकालना बहुत, कठिन है।, , 9 जोलानाथ की मइया उसको थोड़ा और खिलाने की, हट क्यों करती थी? वह उसके बाबूजी को क्या कहती थी?, इससे माँ की कैसी छवि बनती है? 6858 2012, , उत्तर भोलानाथ के भरपेट खाना खाने के बाद भी उसकी माँ, , उसको थोड़ा और खिलाने का हठ करती थी। वह उसके, बाबूजी को कहती थी कि आप तो चार-चार दाने के कौर, बच्चे के मुँह में देते जाते हो, इससे वह थोड़ा खाने पर भी, यह समझ लेता है कि बहुत खा चुका। आप खिलाने का ढंग, नहीं जानते।, बच्चे को भर-मुँह कौर खिलाना चाहिए। माँ के हाथ से खाने, पर बच्चों का पेट भी भरता है। माँ के ऐसे व्यवहार से स्पष्ट, होता है कि वह अपने बच्चे के प्रति अत्यधिक ममत्व (ममता), के कारण चाहती है कि वह अधिक-से-अधिक खाए और वह, , । मानसिक एवं शारीरिक रूप से शक्तिशाली एवं ऊर्जावान बने।, , | इससे माँ का अपनत्व एवं अत्यधिक स्नेह झलकता है।, , . ह श्लोलानाथ के खाने के समय माता-पिता में नॉक-झोंक, है होती थी। आपको भी अपने बचपन का समय याद आता, , .. होगा, जब घर में माता-पिता के बीच नॉक-झोंक होती थी।, ऐसे कुछ आप-बीते प्रसंगों का वर्णन कीजिए। 0898 2016, 11, , १६, , हर 7 जिस प्रकार भोलानाथ के माता-पिता के बीच नोंक-झोंक होती, थी, वैसी ही हमारे बचपन में भी माता-पिता के बीच, , ॒ बे थी। पिताजी किसी कारण हमें डॉटते तो माँ, : हमारा पक्ष लेती थी और माँ डॉटती तो पिताजी हमें प्यार, , करते। खाने के अतिरिक्त अन्य कामों जैसे-खेलने-कूदने तथा, , , , , , , है (पाठ पर आधारित प्रश्नोत्तर), , स्कूल जाने को लेकर भी माता-पिता के बींच नोंक-झोंक, होती थी। माँ हमें पढ़ने के लिए बैठने को कहती, तो, पिताजी हमें घुमाने ले जाने के लिए कहते। वास्तव में उन, दोनों के बीच होने वाली नोंक-झोंक हमारे प्रति उनके प्यार, को ही प्रदर्शित करती थी। वे हमारी मानसिकता को, भौपकर उसी के अनुसार प्रतिक्रिया करते थे, जब दूसरा, (माता-पिता में से) अन्य कार्य के लिए कहता।, , 4, 'माता का अँचल' पाठ में बाल-सुलभ भोलेपन और सरलता, / को कैसे चित्रित किया गया है, दो उदाहरण दीजिए।, , अथवा (छ5४६ 2011, पाठ में आपको बाल स्वभाव की कौन-सी जानकारी, मिलती है? 6छ5६ 2012, , उत्तर 'माता का अँचल' पाठ में बाल-सुलभ भोलापन और सरल, स्वभाव का यथार्थ चित्रण किया गया है, उदाहरणार्थ, , (0) बालक भोलानाथ कितना भी रो रहा हो, अपने साथ, खेलने वाले साथियों को देखकर सिसकना भूलकर, उनके साथ खेलने लग जाता था।, , (४४) भोलानाथ एवं उसके मित्रों के खेल भी सरल होते, थे। वे विभिन्‍न खेल खेलते थे; जैसे-मिट्टी की, मिठाइयाँ बनाते, घरौंदा बनाते, खेती करने के खेल, खेलते तथा बारात के जुलूस में कनस्तर का तंबूरा, बजाते चलते। ये सब खेल बाल-सुलभ भोलापन और, सरलता के ही परिचायक हैं।, , (४४) भोलानाथ और उसकी मित्र मंडली का शरारते, करना; जैसे-मूसन तिवारी को चिढ़ाना, चूहे के बिल, में पानी डालने जैसी शरारतें करना बाल-सुलभ, स्वभाव को दर्शाता है।, , 5 लेखक के पिता का बच्चों के साथ खेल में शामिल होना, , क्या दर्शाता है? अपने शब्दों में स्पष्ट कौजिए।, , उत्तर लेखक अपने मित्रों के साथ अपनी रुचि और अपने ग्रामीण, परिवेश के अनुसार खेल खेला करता था। वे कभी हलवाई, का खेल खेलते, तो कभी घरौंदा बनाकर। कभी वे रसोई, बनाते, शादी का खेल खेलते, खाना बनाने एवं खाने का, खेल खेलते, तो कभी खेत-खलिहान में खेती करने का।, लेखक के पिता अपने बेटे को बहुत प्यार करते थे। उसकी, एक-एक गतिविधि को वे बड़े गौर से देखा करते थे। जब, उनका खेल पूरा होने लगता, तब वे बीच में ही पहुँच जाते, और खेल का अंग बन जाते। .., कुछ देर तक वे बच्चों के संग खेलते, उनके खेल की, सराहना करते, बच्चों की प्रशंसा कर इस तरह हे, अपना भी मनोरंजन करते थे। वास्तव में, बच्चों के खेल में

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अ7/ >> हिंदी “अ' कक्षा 101, , हिस्सेदारी करके वे उनका मनोबल बढ़ाते, उनके खेल की, प्रशंसा करके उनका आत्मविश्वास बढ़ाते तथा उनके, मनोरंजन को और बढ़ाने की कोशिश करते थे।, , & बच्चों द्वारा बारात कैसे निकाली जाती थी? उनके द्वारा सजाई, जाई बारात तथा शादी के कार्यक्रम का वर्णन करते हुए माता, का अचल' पाठ के आधार पर बताइए कि बाबू जी उनके, इस कार्यक्रम में किस तरह सम्मिलित होते थे? छोटों के प्रति, बाबू जी के प्रेम के इस उदाहरण से आप क्या प्रेरणा ग्रहण, करते हैं? 6858 2016, 15, , जल्क बच्चे कनस्तर का तंबूरा बजाकर, शहनाई बजाकर व टूटी, चूहेदानी की पालकी बनाकर बारात निकालते। बच्चे स्वयं, समधी बनकर बकरे पर चढ़कर चबूतरे के एक कोने से दूसरे, कोने तक जाते। आँगन तक जाकर बारात फिर लौट आती, थी। लौटते समय खटोली पर लाल कपड़ा डालकर, उसमें दुलहिन को चढ़ा लिया जाता था। लौट आने पर, बाबू जी भी इस कार्यक्रम में शामिल होते थे वह जैसे ही, लाल कपड़ा उठाकर दुलहिन का मुख निहारने लगते तब, सभी बच्चे हँसकर भाग जाते थे। बाबू जी का इस प्रकार, छोटों के प्रति प्रेम उनके असीम वात्सल्य को दर्शाता है। वह, भोले-भाले व स्नेही व्यक्ति थे, तभी वह बच्चों के नाटक में, सम्मिलित हो जाते थे तो कभी प्रसन्‍न होकर बच्चों के खेल, देखा करते थे।, है 'फसल' को काटने के बाद उसे बाल-मंडली किस, अकार ओसाती थी? बाद में बाबू जी आकर क्या प्रश्न करते, थे? इस प्रश्न में निहिंत भाव को स्पष्ट करते हुए बताइए कि, उस युग की बाल-मंडली द्वारा खेले जाने वाले खेलों में, कौन-सी महत्त्वपूर्ण बात छिपी होती थीं? €छ58 2016, 14, , उत्तर “फसल” को काटने के बाद बाल-मंडली उसे एक जगह पर, रखकर पैरों से रौंद डालती थी। इसके बाद बच्चे कसोरे, , , , की ततउीाीुीु......_, तिलनलिखित प्रो के उत्तर दीजिए, , 17. 'माता का अँचल' पाठ में लेखक और थयों को क्‍यों दंडित, तय उसके कुछ साथियों को क्यों दंडित किया गया? क्‍या बच्चों, , विपक्ष में तर्कपूर्ण, , का कटोरा) का सूप बनाकर फसल औसाते (अनाज, 22 में दबाकर दान को भूसे से अलग करना) और, मिट्टी के दीये के तराजू पर तौलकर राशि तैयार कर देते, थे। बाद में बाबू जी आकर प्रश्न करते कि इस साल की, खेती कैसी रही भोलानाथ? बाबू जी के आते ही सारे बच्चे, उनके प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही भाग खड़े होते थे।, प्रस्तुत पाठ में वर्णित बाल-मंडली द्वारा खेले जाने वाले, खेलों में उस युग की छवि स्पष्ट नज़र आती है। उस समय, बच्चों के खेल अपने बड़ों के क्रियाकलापों से प्रभावित होते, थे और अधिकांश खेल सामूहिक रूप से खेले जाते थे।, इससे बच्चे खेल-खेल में दैनिक जीवनोपयोगी कई बातें, सीख जाते थे। इसके अतिरिक्त, माता-पिता या अन्य व्यक्ति, भी बच्चों के खेल का हिस्सा बन जाते थे। इससे बड़ों और, बच्चों के मध्य आत्मीय एवं घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाते, थे, जिसका आधुनिक युग में नितांत अभाव नज़र आता है।, , "माता का अँचल' पाठ में ग्रामीण परिवेश का चित्रण किया, गया है। आप ग्रामीण जीवन व शहरी जीवन में क्‍या अंतर, पाते हैं?, , “माता का अँचल' पाठ में लेखक ने ग्रामीण परिवेश का, चित्रण करते हुए वहाँ की जीवन शैली का उल्लेख किया है।, जहाँ सामूहिक वातावरण है, लोगों के मध्य आत्मीयता की, भावना है, लोग प्राकृति के करीब हैं, बच्चों आधुनिक यंत्रों, मोबाइल फोन, कंप्यूटर इत्यादि पर समय व्यत्तीत करने की, जगह शारीरिक खेल खेलते हैं। इसके विपरीत शहरों में, लोग एकल जीवन यापन करने की प्रवृत्ति की ओर उन्मुख, हो रहे हैं, लोगों के बीच आत्मीयता की कमी है, माता-पिता, दोनों के रोजगार करने के कारण वे अपने बच्चों पर उतना, ध्यान नहीं दे पाते, जितना ग्रामीण माता-पिता। इस प्रकार, आमीण व शहरी जीवन में अत्यधिक अंतर दिखाई देता है।, , , , , , , प्रत्येक 2 अप, को दंड देना उचित है? इस विषय के पक्ष, , 2. भोलानाथ के माता-पिता उससे बहुत प्यार करते हैं। उदाहरण सहित इस कथन, में उल्लेख ॥, , मे आधुनिक जीवन: '-शैली में हम भोलाना। लानाथ के समान प्रकृति ति का आनंद नहीं रहे हैं। वर्तमान, ः 1 आन॑ | उठा पा रहे हैं। समय, कीजिए। ४ ी ॥, , लिए क्या उपाय कर सकते हैं? में, हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट की भय में हम प्रकृति का सामीष्य प्राप्त करने के