आज के इस लेख में मैं आप सभी को "दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के बयान और संस्वीकृति से क्या मतलब है" इसके बारे में बताने जा रहा हु। Show
अक्सर आप लोगो ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के बारे में कई बार सुना होगा कि किसी अमुक अपराध की शिकार हुई पीड़त या पीड़िता का बयान अंतर्गत धारा 164 के तहत होना है या होगा गया है या होगा या होने वाला है। अब धारा 164 को लेकर आपके मन में कई प्रकार से सवाल भी उठ रहे होंगे कि :-
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 क्या है ?दंड प्रकिया संहिता 1973, की धारा 164 की उपधारा 1 में संस्वीकृति यानी स्वयं किसी बात को स्वीकार करना और कथनों यानी व्यक्ति के द्वारा बताई गयी जानकारी को अभिलिखित करने की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है। इस अधिनियम के तहत महानगर मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट, चाहे उसे उस अमुक मामले में अधिकारिता हो या न हो, इस अधिनियम के अधीन या उस समय लागु किसी अन्य विधि के अधीन किसी अन्वेषण यानी जाँच के दौरान या जाँच के बाद या विचारण यानी ट्रायल के शुरू होने से पहले किसी भी समय अपने से की गयी यानी मजिस्ट्रेट से की गयी संस्वीकृति या कथन को अभिलिखित कर सकता है। लेकिन जहाँ उपधारा 1 के अधीन किसी अपराध के अभियुक्त की संस्वीकृत और कथनो का अभिलेखन यानी दर्ज किया जा रहा है वहाँ ऐसी संस्वीकृति और कथन उस अभियुक्त के अधिवक्ता की हाजिरी में ऑडियो - वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनो के द्वारा भी किया जा सकेगा। लेकिन यह भी है कि किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा ऐसी कोई भी संस्वीकृति अभिलिखित नहीं की जाएगी जिसपर उसी समय लागु किसी विधि के अधीन मजिस्ट्रेट को शक्ति प्रदान की गयी है। धारा 164 में दो शब्द आये है :-
1. संस्वीकृत- संस्वीकृति का अर्थ स्वयं स्वीकार करना, जिसमे अभियुक्त स्वयं यह स्वीकार करता है कि अमुक अपराध उसके द्वारा ही किया गया है या वह अमुक अपराध के कारित किये जाने में शामिल था ऐसा बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष देता है, जिसको मजिस्ट्रेट द्वारा स्वयं अभिलिखित किया जाता है। तो इसे संस्वीकृति कहा जायेगा। 2. कथन - कथन का अर्थ उस बयान से है जो कि किसी अमुक अपराध की हुई शिकार पीड़िता द्वारा उस अपराध की आप बीती का मजिस्ट्रेट के समक्ष वर्णन करना जिसे मजिस्ट्रेट के द्वारा स्वयं अभिलिखित किया जाता है। तो इसे कथन कहा जायेगा। संस्वीकृति अभिलखित किये जाने की प्रक्रिया क्या है ?दंड प्रकिया संहिता की धारा 164 की उपधारा 2 में यह प्रावधान है कि मजिस्ट्रेट किसी अमुक अपराध के किये जाने की संस्वीकृति यानी स्वयं अपराध के किये जाने को स्वीकार करने वाले कथन को अभिलिखित करने से पहले उस व्यक्ति को, जो संस्वीकृति करने जा रहा है, यह समझायेगा कि वह ऐसी संस्वीकृति करने के लिए बाध्य नहीं हैजहाँ वह उस अमुक अपराध के किये जाने को स्वयं स्वीकारे, यदि वह ऐसा करेगा यानी अमुक अपराध के किये जाने को स्वीकारता है तो, उसके द्वारा की गयी संस्वीकृति न्यायालय में उसके ऊपर दायर किये गए वाद/मुक़दमे में उसके खिलाफ साक्ष्य के रूप में उपयोग में लाइ जा सकती है।
और मजिस्ट्रेट ऐसी कोई भी संस्वीकृति यानी स्वयं स्वीकार किये गए तथ्यों को तब तक अभिलिखित नहीं करेगा जब तक संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति से यह सवाल न कर लिया जाये की वह ऐसी संस्वीकृत क्या अपनी इच्छा से कर रहा है या नहीं ? यदि मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण हो यानी विश्वास हो जाता है की वह संस्वीकृति अपनी इच्छा से कर रहा है तब मजिस्ट्रेट ऐसी संस्वीकृत को लिखेगा। उपधारा 3 के तहत संस्वीकृति यानी स्वयं स्वीकार किये जाने वाले तथ्यों को अभिलिखित करने से पहले यदि मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने वाला व्यक्ति यह कहता है कि वह संस्वीकृति करने के लिए इच्छुक नहीं है ,तो मजिस्ट्रेट संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति को पुलिस की हिरासत में रहने के लिए पुलिस को अधिकृत नहीं करेगा। उपधारा 4 के तहत ऐसी संस्वीकृत किसी अभियुक्त व्यक्ति की परीक्षा को अभिलिखित करने के लिए अधिनियम की धारा 281 में उपबंधित रीती से अभिलिखित की जाएगी और संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति द्वारा उस अभिलिखित संस्वीकृति पर हस्ताक्षर किये जायेंगे और मजिस्ट्रेट ऐसे अभिलेख के निचे निम्नलिखित भाव का एक ज्ञापन लिखेगा : "मैंने ( संस्वीकृत करने वाले का नाम ) को यह समझा दिया है कि वह संस्वीकृत करने के लिए आबद्ध नहीं है और यदि वह ऐसी संस्वीकृति करता है, तो कोई संस्वीकृति, जो वह करेगा, वह संस्वीकृति उसके विरुद्ध साक्ष्य के रूप में उपयोग में लाइ जा सकती है और मुझे विश्वास है कि यह संस्वीकृति स्वेछा से की गयी है। यह मेरी उपस्थित में और मेरे सुनते हुए लिखी गयी है और जिस व्यक्ति ने यह संस्वीकृति की है उसे यह पढ़कर सुना दी गयी है और उसने उसके सही होना स्वीकार किया है और उसके द्वारा किये गए कथन का पूरा और सही वृतांत इसमें है। (हस्ताक्षर)
मजिस्ट्रेट 164 के बयान से क्या होता है?उन्होंने प्रस्तुत किया कि कानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज बयान या तो केवल गवाहों की अदालत में दिए गए बयान की पुष्टि या खंडन करने के लिए उपयोग किया जा सकता है और यह वास्तविक सबूत नहीं हो सकता है।
सेक्शन 164 क्या है?इस अधिनियम में बताया गया है कि महानगर मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट, अगर किसी मामले में अधिकारिता हो या न हो, इस अधिनियम के अधीन या उस समय लागू किसी अन्य विधि के अधीन किसी अन्वेषण के दौरान या जाँच के बाद या विचारण के शुरू होने से पहले किसी भी समय अपने से की गयी संस्वीकृति या कथन को अभिलिखित कर सकता है।
धारा में क्या होता है?IPC की धारा 50 के अनुसार 'धारा शब्द (Section Word) इस संहिता (Code) के किसी अध्याय (Chapter) के उन भागों में से किसी एक का द्योतक (denotes) है, जो सिरे पर लगे संख्यांकों (numeral figures) द्वारा सुभिन्न (distinct) किए गए हैं. '
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