थके पथिक की पंथा में कौन सा अलंकार है? - thake pathik kee pantha mein kaun sa alankaar hai?

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

  • November 21, 2021
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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

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प्रश्न-अभ्यास

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(पाठ्यपुस्तक से)

प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ कृष्ण के लिए प्रयुक्त किया गया है। उन्हें ब्रजदूलह कह कर उनकी सर्वोत्कृष्टता स्वीकार की है। वे ऐसे महिमा-मंडित हैं कि उनका स्थान लेने में कोई भी समर्थ नहीं है। वे संसार रूपी मंदिर के दीपक हैं, क्योंकि वे ऐसे दैदीप्यमान हैं जिसके प्रकाश से संपूर्ण विश्व दीप्तमान हो रहा है। वे अलौकिक हैं। उनकी प्रकाश-रूपी सत्ता सर्वत्र व्याप्त है।

प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है?
उत्तर
इसके दो कारण हैं

  • कवि के अनुसार, अभी उसने ऐसी कोई महान उपलब्धि नहीं पाई है कि वह उसके बारे में सबको बताए और कुछ प्रेरणा दे।
  •  अभी कवि की व्यथाएँ मन में सोई हुई हैं। वह शांतचित्त है। वह आत्मकथा लिखकर अपनी व्यथाओं को फिर से ताजा नहीं करना चाहता।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।।
उत्तर
भाव-सौंदर्य-श्रीकृष्ण के पैरों में बजते हुए नूपुर अति सुंदर लग रहे हैं। कमर में बँधी कर्धनी की मंजुल ध्वनि प्रिय लग रही है। श्रीकृष्ण के श्याम-वर्ण के शरीर पर पीला-वस्त्र सुशोभित हो रहा है और हृदय पर बनमाला सुशोभित हो रही है। इस तरह उनका सौंदर्य मनोहारी है।
शिल्प-सौंदर्य-

  1. यहा ‘कटि किंकिनि’, पट-पीट, और ‘हिल हुलसै’ में अनुप्रास अलंकार की छटा छिटक रही है।
  2. नुपुर और कर्धनी की ध्वनि में नाद-सौंदर्य है।
  3. सवैया-छंद है।
  4. ब्रज-भाषा की मिठास है।

प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज बसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत बसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर
कवि कहता है-प्रेम के वे मधुर क्षण, जिनके वह सपने लेता रहा, उसे जीवन में कभी नहीं मिल पाए। उसकी पत्नी या प्रेमिका उसके आलिंगन में आते-आते रह गई। वह मानो मुसकरा कर उसकी ओर बढ़ी। कवि ने उसे गले से लगाना चाहा, किंतु वह उसकी पहुँच से दूर चली गई। आशय यह है कि उसका प्रेम कभी सफल न हो सका। उसका दांपत्य जीवन लंबा न चल सका।

कवि की प्रेमिका अतीव सुंदरी थी। उसके गाल इतने लाल, मतवाले और मनोरम थे कि प्रेममयी भोर वेला भी अपनी मधुर लालिमा उसके गालों से लिया करती थी। आशय यह है कि कवि की प्रेमिका का मुख-सौंदर्य ऊषाकालीन लालिमा से भी बढ़कर था।

प्रश्न 5.
“प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’ -इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
बसंत-ऋतु में गुलाब सूर्य-किरणों के स्पर्श से चटक उठता है अर्थात् खिल उठता है। गुलाब के चटकने (खिलने) में कवि ने कल्पना की है कि गुलाब चटक कर शिशु बसंत को जगाता है। इस प्रकार कवि ने गुलाब-पुष्प का मानवीकरण किया है।

प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
उत्तर
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैंसंस्कृतनिष्ठ भाषा- इसमें संस्कृत के शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। उदाहरणतया
इसे गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास। सांकेतिकता- इस कविता में संकेतों और प्रतीकों के माध्यम से भावनाएँ व्यक्त की गई हैं। उदाहरणतया
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे—यह गागर रीती।। यहाँ ‘रीती गागर’ असफल जीवन की प्रतीक है। कवि ने इस अस्पष्टता या छायावादी शैली का प्रयोग आगे भी किया है। देखिए-
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की। मानवीकरण शैली–छायावाद की प्रमुख विशेषता है-मानवीकरण। यहाँ मानवेतर पदार्थों को मानव की तरह सजीव बनाकर प्रस्तुत किया गया है। जैसे

  • थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
  • अरी सरलते तेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।

प्राकृतिक उपमान-छायावादी कवि प्रकृति के उपमानों के माध्यम से बात करते हैं। इस कविता में भी मधुप, पत्तियाँ, नीलिमा, चाँदनी रात आदि प्राकृतिक उपमानों का प्रयोग किया गया है।
गेयता और छंदबद्धता–अन्य छायावादी गीतों की भाँति यह गीत भी गेय और छंदबद्ध है। कवि ने सर्वत्र तुक, लय और मात्राओं का पूरा ध्यान रखा है। हर पंक्ति के अंत में दीर्घ स्वर और अंत्यानुप्रास का प्रयोग है। उदाहरणतया
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर
यद्यपि पूर्ण चंद्र की चंद्रिका से कवि ने आकाश के सौंदर्य का वर्णन किया है, तथापि चंद्र को राधा का प्रतिबिंब बताने से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यहाँ राधा के सौंदर्य का वर्णन किया गया है। यहाँ चंद्र का सौंदर्य राधा के सौंदर्य से फीका है।

यहाँ चंद्र की तुलना राधा से की गई है, किंतु चंद्र की तुलना में राधा को अधिक उज्ज्वल बताया गया है। चंद्र राधा का प्रतिबिंब मात्र है। अतः व्यतिरेक अलंकार है।

“व्यतिरेक-अलंकार-जहाँ प्रस्तुत (उपमेय) की तुलना अप्रस्तुत (उपमान) से की जाती है, किंतु उपमेय, उपमान से अपेक्षाकृत हीन हो तो व्यतिरेक अलंकार होता है।

प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर
इस कविता को पढ़कर प्रसाद जी के व्यक्तित्व की ये विशेषताएँ हमारे सामने आती हैं
विनयशील–प्रसाद जी अत्यंत विनम्र कवि थे। यद्यपि वे छायावाद के सबसे महान कवि थे, फिर भी उनमें बड़प्पन की बू नहीं थी। वे स्वयं को दुर्बलताओं से भरा सरल-भोला इनसान कहते हैं। इससे उनकी विनम्रता प्रकट होती है।

गंभीर और मर्यादित–प्रसाद जी गंभीर और मर्यादित कवि थे। वे अपने जीवन की एक-एक बात को साहित्य-संसार में प्रचारित नहीं करना चाहते थे। वे निजी जीवन की दुर्बलताओं, भूलों और प्रेम-क्रीड़ाओं को निजी जीवन तक ही सीमित रखना चाहते थे। वे कविता में निजी अनुभूति को नहीं, समाज के दुख-दर्द को स्थान देना चाहते थे। वे कहते भी हैं

छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ? क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता में मौन रहूँ?
सरल और भोले–प्रसाद जी स्वभाव से सरल और भोले थे। उन्होंने कभी अपनी सरलता नहीं छोड़ी। यद्यपि उनके मित्रों ने उनसे छल किया, धोखा दिया, फिर भी वे भोलेपन में जिए। न अपनी सरलता की हँसी उड़ाई।

प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर
पठित कविता के आधार पर स्पष्ट है कि नवीन कल्पनाओं के नए आयाम हैं। उसके आधार उनकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. कविताओं में रीतिकालीन कवियों की स्पष्ट छाप है। रीतिकालीन दरबारी कवियों की तरह कवि ने वैभव-सौंदर्य का वर्णन किया है।
  2. कवि ने प्रकृति-सौंदर्य वर्णन में नए-नए उपमान दिए हैं।
  3. उनके काव्य में ब्रज भाषा की मंजुलता है, उसमें परिमार्जित शब्दों का भी यथा-स्थान प्रयोग किया गया है।
  4. अनुप्रास, रूपक, उपमा अलंकारों का प्रयोग विशेष रूप से मनोहारी है।
  5. उनका काव्य सवैया, कवित्त में है, जिसमें स्वर प्रकट है।
  6. वर्णित नायिका के सौंदर्य पर उपमानों की बौछार करके भी कवि को लगता है। कि नायिका का वर्णन अभी अधूरा है, और जल्दी में भूल जाता है और व्यतिरेक कर बैठता है और वर्णित नायिका की तुलना में उपमान प्रभावी हो गया है। रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर
पूर्णिमा की रात, चंद्र पूरे यौवन पर, दिन की तपिस के बाद रात की शीतलता का अनुभव, एकांत, नीरव छत। समीप के सरोवर में किन्लोल करते पक्षी, खिलती हुई कुमुदिनी, तालाब के दो किनारों पर चीखते चकवा-चकवी पक्षी, पूर्ण चंद्र की चंद्रिका में टिमटिमाते तारे इन सबको निहारते-निहारते मनोहारी स्मृतियों ने स्थान ले लिया।

फूलों ने अपनी कलियाँ बंद कर ली हैं, फूलों और पौधों के ऊपर ओस बिंदु चंद्र की किरणों में झिलमिला रहे हैं। संपूर्ण प्रकृति चंद्रिका की चादर ओढ़े हुए बिल्कुल शांत दिखाई दे रही है–प्रकृति के सौंदर्य को निहारते-निहारते कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला। आँखें खुली तो चंद्र की किरणें फीकी पड़ती हुई दिखाई दीं और उषा ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 1.
भारतीय ऋतु चक्र में छह ऋतुएँ मानी गई हैं, वे कौन-कौन सी हैं?
उत्तर
छह ऋतुएँ क्रमशः इस प्रकार हैं

  1. ग्रीष्म
  2. पावस (वष)
  3. शरद
  4. शिशिर
  5. हेमंत
  6. वसंत।

प्रश्न 2.
‘ग्लोबल वार्मिंग’ के कारण ऋतुओं में क्या परिवर्तन आ रहे हैं? इस समस्या से निपटने के लिए आपकी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर
‘ग्लोबल-वार्मिंग’ के कारण ऋतु-चक्र में आता हुआ परिवर्तन और उससे होने वाली हानियाँ इस रूप में दिखाई दे रही हैं-वर्षा का कम होना, तापक्रम का बढ़ना, शीत ऋतु के शीत में कमी। इस सबके कारण फसल पर पड़ता हुआ प्रभाव, होती हुई हानियाँ स्पष्ट दृष्टगोचर हैं।

हम ग्लोबल वार्मिंग के प्रति लोगों को जागरूक कर सकते हैं। साथ ही यथा संभव पेड़-लगाकर अपने कर्तव्य का पालन कर सकते हैं।

इस बारे में लोगों में जागरूकता फैलानी होगी। जब तक जन चेतना सामूहिक रूप से नहीं जागेगी तब तक समाधान नहीं होगा। अतः स्वयं से ही शुरू करें और दूसरों को प्रेरित करें। ऐसा हम सब मिलकर कर सकते हैं।

थके पथिक की पंथ में कौन सा अलंकार है?

उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की। सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की? अलंकारों का उल्लेख कीजिए। व्यतिरेक - जिसके अरुण-कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में

उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?

उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की। सीवन की उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कथा की? छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ? क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ?