श्री कृष्ण द्वारा राक्षसों का वध - shree krshn dvaara raakshason ka vadh

देवकी और वसुदेव के विवाह के समय आकाशवाणी हुई थी कि देवकी के गर्भ से जन्म लेने वाली आठवीं संतान कंस का वध करेगी। इसके बाद कंस ने देवकी और वसुदेव को मथुरा के कारागृह में बंद कर दिया था।

कारागृह में कंस ने देवकी और वसुदेव की सात संतानों का वध कर दिया। आठवीं संतान के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और भगवान की माया से वसुदेव ने बालगोपाल को यशोदा के घर पहुंचा दिया।

कुछ समय बाद ही कंस को मालूम हो गया कि देवकी की आठवीं संतान का जन्म हो चुका है और वह गोकुल में है। इसके बाद कंस ने कई राक्षसों को बालक कृष्ण को मारने के लिए भेजा, लेकिन कान्हा ने उन सभी राक्षसों का वध कर दिया। यहां जानिए बाल अबस्था  में ही श्रीकृष्णने किन राक्षसों का वध कैसे किया था

भगवान् कृष्ण ने किया पुतना का वध

  • भगवान् कृष्ण ने किया पुतना का वध
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  • FAQs
    • पूतना किसकी पुत्री थी
    • कृष्ण भगवान ने पूतना का वध कैसे किया?
    • पूतना ब्रज में क्या करने आई थी?

बालकृष्ण ने सबसे पहले पुतना का वध किया। पुतना के विषय में काफी लोग जानते हैं। वह कंस द्वारा भेजी गई एक राक्षसी थी और श्रीकृष्ण को स्तनपान के जरिए विष देकर मार देना चाहती थी।

पुतना कृष्ण को विषपान कराने के लिए एक सुंदर स्त्री का रूप धारण कर वृंदावन में पहुंची थी। मौका पाकर पुतना ने बालकृष्ण को उठा लिया और स्तनपान कराने लगी। श्रीकृष्ण ने स्तनपान करते-करते ही पुतना का वध कर दिया।

पूतना नाम की एक बड़ी क्रूर राक्षसी थी। उसका एक ही काम था- बच्चों को मारना। कंस की आज्ञा से वह नगर, ग्राम और अहीरों की बस्तियों में बच्चों को मारने के लिए घूमा करती थी। जहाँ के लोग अपने प्रतिदिन के कामों में राक्षसों के भय को दूर भगाने वाले भक्तवत्सल भगवान के नाम, गुण और लीलाओं का श्रवण, कीर्तन और स्मरण नहीं करते, वहीं ऐसी राक्षसियों का बल चलता है।

वह पूतना आकाशमार्ग से चल सकती थी और अपनी इच्छा के अनुसार रूप भी बना लेती थी। एक दिन नन्दबाबा के गोकुल के पास आकर उसने माया से अपने को एक सुन्दर युवती बना लिया और गोकुल के भीतर घुस गयी।

उसने बड़ा सुन्दर रूप बनाया था। उसकी चोटियों में बेले के फूल गुँथे हुए थे। सुन्दर वस्त्र पहने हुए थी। जब उसके कर्णफूल हिलते थे, तब उनकी चमक से मुख की ओर लटकी हुई अलकें और भी शोभायमान हो जाती थीं। उसके नितम्ब और कुच-कलश ऊँचे-ऊँचे थे और कमर पतली थी। वह अपनी मधुर मुस्कान और कटाक्षपूर्ण चितवन से ब्रजवासियों का चित्त चुरा रही थी।

उस रूपवती रमणी को हाथ में कमल लेकर आते देख गोपियाँ ऐसी उत्प्रेक्षा करने लगीं, मानो स्वयं लक्ष्मीजी अपने पति का दर्शन करने के लिए आ रही हैं। पूतना बालकों के लिए ग्रह के समान थी।

वह इधर-उधर बालकों को ढूंढती हुई अनायास ही नन्दबाबा के घर में घुस गयी। वहाँ उसने देखा कि बालक श्रीकृष्ण दुष्टों के काल हैं। परन्तु जैसे आग राख की ढेरी में अपने को छिपाये हुए हो, वैसे ही उस समय उन्होंने अपने प्रचण्ड तेज को छिपा रखा था।

भगवान श्रीकृष्ण चर-अचर सभी प्राणियों की आत्मा हैं। इसलिए उन्होंने उसी क्षण जान लिया कि यह बच्चों को मार डालने वाला पूतना-ग्रह है और अपने नेत्र बंद कर लिये। जैसे कोई पुरुष भ्रमवश सोये हुए साँप को रस्सी समझकर उठा ले, वैसे ही अपने कालरूप भगवान श्रीकृष्ण को पूतना ने अपनी गोद में उठा लिया।

मखमली म्यान के भीतर छिपी हुई तीखी धार वाली तलवार के समान पूतना का हृदय तो बड़ा कुटिल था, किन्तु ऊपर से वह बहुत मधुर और सुन्दर व्यवहार कर रही थी। देखने में वह एक भद्र महिला के समान जान पड़ती थी।

इसलिए रोहिणी और यशोदा ने उसे घर के भीतर आयी देखकर भी उसकी सौन्दर्यप्रभा से हतप्रभ-सी होकर कोई रोक-टोक नहीं की, चुपचाप खड़ी-खड़ी देखतीं रहीं। इधर भयानक राक्षसी पूतना ने बालक श्रीकृष्ण को अपनी गोद में लेकर उनके मुँह में अपना स्तन दे दिया, जिसमें बड़ा भयंकर और किसी प्रकार भी पच न सकने वाला विष लगा हुआ था।

भगवान ने क्रोध को अपना साथी बनाया और दोनों हाथों से उसके स्तनों को जोर से दबाकर उसके प्राणों के साथ उसका दूध पीने लगे।अब तो पूतना के प्राणों के आश्रयभूत सभी मर्मस्थान फटने लगे। वह पुकारने लगी- ‘अरे छोड़ दे, छोड़ दे, अब बस कर।’ वह बार-बार अपने हाथ और पैर पटक-पटक कर रोने लगी। उसके नेत्र उलट गये।

उसका सारा शरीर पसीने से लथपथ हो गया। उसकी चिल्लाहट का वेग बड़ा भयंकर था। उसके प्रभाव से पहाड़ों के साथ पृथ्वी और ग्रहों के साथ अन्तरिक्ष डगमगा उठा। सातों पाताल और दिशाएँ गूँज उठीं। बहुत-से लोग वज्रपात की आशंका से पृथ्वी पर गिर पड़े।

इस प्रकार निशाचरी पूतना के स्तनों में इतनी पीड़ा हुई कि वह अपने को छिपा न सकी, राक्षसी रूप में प्रकट हो गयी। उसके शरीर से प्राण निकल गये, मुँह फट गया, बाल बिखर गये और हाथ-पाँव फ़ैल गये।

जैसे इन्द्र के वज्र से घायल होकर वृत्रासुर गिर पड़ा था, वैसे ही वह बाहर गोष्ठ में आकर गिर पड़ी। राजेन्द्र! पूतना के शरीर ने गिरते-गिरते भी छः कोस के भीतर के वृक्षों को कुचल डाला। यह बड़ी ही अद्भुत घटना हुई। पूतना का शरीर बड़ा भयानक था, उसका मुँह हल के समान तीखी और भयंकर दाढ़ों से युक्त था।

उसके नथुने पहाड़ की गुफ़ा के समान गहरे थे और स्तन पहाड़ से गिरी हुई चट्टानों की तरह बड़े-बड़े थे। लाल-लाल बाल चारों ओर बिखरे हुए थे। आँखें अंधे कुऐं के समान गहरी, नितम्ब नदी के करार की तरह भयंकर; भुजाऐं, जाँघें और पैर नदी के पुल के समान तथा पेट सूखे हुए सरोवर की भाँति जान पड़ता था।

पूतना के उस शरीर को देखकर सब-के-सब ग्वाल और गोपी डर गये। उसकी भयंकर चिल्लाहट सुनकर उनके हृदय, कान और सर तो पहले ही फट से रहे थे। जब गोपियों ने देखा कि बालक श्रीकृष्ण उसकी छाती पर निर्भय होकर खेल रहे हैं, तब वे बड़ी घबराहट और उतावली के साथ झटपट वहाँ पहुँच गयीं तथा श्रीकृष्ण को उठा लिया।

इसके बाद यशोदा और रोहिणी के साथ गोपियों ने गाय की पूँछ घुमाने आदि उपायों से बालक श्रीकृष्ण के अंगों की सब प्रकार से रक्षा की। उन्होंने पहले बालक श्रीकृष्ण को गोमूत्र से स्नान कराया, फिर सब अंगों में गो-रज लगायी और फिर बारहों अंगों में गोबर लगाकर भगवान के केशव आदि नामों से रक्षा की।

इसके बाद गोपियों ने आचमन करके ‘अज’ आदि ग्यारह बीज-मन्त्रों से अपने शरीर में अलग-अलग अंगन्यास एवं करन्यास किया और फिर बालक के अंगों में बीजन्यास किया। वे कहने लगीं- ‘अजन्मा भगवान तेरे पैरों की रक्षा करें, मणिमान घुटनों की, यज्ञपुरुष जाँघों की, अच्युत कमर की, हयग्रीव पेट की, केशव हृदय की, ईश वक्षःस्थल की, सूर्य कन्ठ की, विष्णु बाँहों की, उरुक्रम मुख की और ईश्वर सिर की रक्षा करें।

चक्रधर भगवान रक्षा के लिए तेरे आगे रहें, गदाधारी श्रीहरि पीछे, क्रमशः धनुष और खड्ग धारण करने वाले भगवान मधुसूदन और अजन दोनों बगल में, शंखधारी उरुगाय चारों कोनों में, उपेन्द्र ऊपर, हलधर पृथ्वी पर और भगवान परमपुरुष तेरे सब ओर रक्षा के लिये रहें। हृशीकेश भगवान इन्द्रियों की और नारायण प्राणों की रक्षा करें।

श्वेतद्वीप के अधिपति चित्त की और योगेश्वर मन की रक्षा करें। पृश्निगर्भ तेरी बुद्धि की और परमात्मा भगवान तेरे अहंकार की रक्षा करें। खेलते समय गोविन्द रक्षा करें, सोते समय माधव रक्षा करें। चलते समय श्रीपति तेरी रक्षा करें।

भोजन के समय समस्त ग्रहों को भयभीत करने वाले यज्ञभोक्ता भगवान तेरी रक्षा करें। डाकिनी, राक्षसी और कूष्माण्डा आदि बालग्रह; भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस और विनायक, कोटरा, रेवती, ज्येष्ठा, पूतना, मातृका आदि; शरीर, प्राण तथा इन्द्रियों का नाश करने वाले उन्माद एवं अपस्मार आदि रोग; स्वप्न में देखे हुए महान उत्पात, वृद्धग्रह और बालग्रह आदि, ये सभी अनिष्ट विष्णु का नामोच्चारण करने से भयभीत होकर नष्ट हो जायँ।।

श्री कृष्ण द्वारा राक्षसों का वध - shree krshn dvaara raakshason ka vadh

श्रीशुकदेवजी कहते हैं- “परीक्षित! इस प्रकार गोपियों ने प्रेमपाश में बँधकर भगवान श्रीकृष्ण की रक्षा की। माता यशोदा ने अपने पुत्र को स्तन पिलाया और फिर पालने पर सुला दिया।

इसी समय नन्दबाबा और उनके साथी गोप मथुरा से गोकुल में पहुँचे। जब उन्होंने पूतना का भयंकर शरीर देखा, तब वे आश्चर्यचकित हो गये। वे कहने लगे- “यह तो बड़े आश्चर्य की बात है, अवश्य ही वसुदेव के रूप में किसी ऋषि ने जन्म ग्रहण किया है अथवा सम्भव है वसुदेवजी पूर्वजन्म में कोई योगेश्वर रहे हों; क्योंकि उन्होंने जैसा कहा था, वैसा ही उत्पात यहाँ देखने में आ रहा है। तब तक ब्रजवासियों ने कुल्हाड़ी से पूतना के शरीर को टुकड़ें-टुकड़े कर डाला और गोकुल से दूर ले जाकर लकड़ियों पर रखकर जला दिया।

जब उसका शरीर जलने लगा, तब उसमें से ऐसा धुँआ निकला, जिसमें से अगरकी-सी सुगन्ध आ रही थी। क्यों न हो, भगवान ने जो उसका दूध पी लिया था, जिससे उसके सारे पाप तत्काल ही नष्ट हो गये थे।

पूतना एक राक्षसी थी। लोगों के बच्चों को मार डालना और उनका खून पी जाना, यही उसका काम था। भगवान को भी उसने मार डालने की इच्छा से ही स्तन पिलाया था। फिर भी उसे वह परम गति मिली, जो सत्पुरुषों को मिलती है। ऐसी स्थिति में जो परब्रह्मा परमात्मा भगवान श्रीकृष्ण को श्रद्धा और भक्ति से माता के समान अनुराग पूर्वक अपनी प्रिय-से-प्रिय वस्तु और उनको प्रिय लगने वाली वस्तु समर्पित करते हैं। उनके सम्बन्ध में तो कहना ही क्या।

भगवान के चरणकमल सबके वन्दनीय ब्रह्मा, शंकर आदि देवताओं के द्वारा भी वन्दित हैं। वे भक्तों के हृदय की पूँजी हैं। उन्हीं चरणों से भगवान ने पूतना का शरीर दबाकर उसका स्तनपान किया था। माना कि वह राक्षसी थी, परंतु उसे उत्तम-से-उत्तम गति जो माता को मिलनी चाहिए, प्राप्त हुई। फिर जिनके स्तन का दूध भगवान ने बड़े प्रेम से पिया, उन गौओं और माताओं की बात ही क्या है।

परीक्षित! देवकीनन्दन भगवान कैवल्य आदि सब प्रकार की मुक्ति और सब कुछ देने वाले हैं। उन्होंने ब्रज की गोपियों और गौओं का वह दूध, जो भगवान के प्रति पुत्र-भाव होने से वात्सल्य-स्नेह की अधिकता के कारण स्वयं ही झरता रहता था, भरपेट पान किया। राजन! वे गौएँ और गोपियाँ, जो नित्य-निरन्तर भगवान श्रीकृष्ण को अपने पुत्र के ही रूप में देखतीं थीं, फिर जन्म-मृत्युरूप संसार के चक्र में कभी नहीं पड़ सकतीं, क्योंकि यह संसार तो अज्ञान के कारण ही है।

नन्दबाबा के साथ आने वाले ब्रजवासियों की नाक में जब चिता के धुएँ की सुगन्ध पहुँची, तब ‘यह क्या है? कहाँ से ऐसी सुगन्ध आ रही है?’ इस प्रकार कहते हुए वे ब्रज में पहुँचे। वहाँ गोपों ने उन्हें पूतना के आने से लेकर, मरने तक का सारा वृतान्त कह सुनाया। वे लोग पूतना की मृत्यु और श्रीकृष्ण के कुशलपूर्वक बच जाने की बात सुनकर बड़े ही आश्चर्यचकित हुए।

परीक्षित! उदारशिरोमणि नन्दबाबा ने मृत्यु के मुख से बचे हुए अपने लाला को गोद में उठा लिया और बार-बार उसका सर सूँघकर मन-ही-मन बहुत आनन्दित हुए। 

भगवान् कृष्ण ने किया तृणावर्त राक्षश का वध

जब कंस को यह मालूम हुआ कि पुतना का वध हो गया है तो उसने श्रीकृष्ण को मारने के लिए तृणावर्त नामक राक्षस को भेजा। तृणावर्त बवंडर का रूप धारण करके बड़े-बड़े पेड़ों को भी उखाड़ सकता था।

तृणावर्त बवंडर बनकर गया और उसने बालकृष्ण को भी अपने साथ उड़ा लिया। इसके बाद श्रीकृष्ण ने अपना भार बहुत बड़ा लिया, जिसे तृणावर्त भी संभाल नहीं पाया। जब बवंडर शांत हुआ तो बाल कृष्ण ने राक्षस का गला पकड़कर उसका वध कर दिया।

श्री कृष्ण द्वारा राक्षसों का वध - shree krshn dvaara raakshason ka vadh

भगवान् कृष्ण ने किया वत्सासुर राक्षश का वध

जब कंसको मालूम हुआ कि कृष्ण ने पुतना के बाद तृणावर्त का भी वध कर दिया है, तब उसने वत्सासुर को भेजा। वत्सासुर एक बछड़े का रूप धारण करके श्रीकृष्ण की गायों के साथ मिल गया। कान्हा उस समय गायों का चरा रहे थे। बालकृष्ण ने उस बछड़े के रूप में दैत्य को पहचान लिया और उसकी पूंछ पकड़ घुमाया और एक वृक्ष पर पटक दिया। यहीं उस दैत्य का वध हो गया।

भगवान् कृष्ण ने किया बकासुर राक्षश का वध

वत्सासुर के बाद कंस ने बकासुर को भेजा। बकासुर एक बगुले का रूप धारण करके श्रीकृष्ण को मारने के लिए पहुंचा था। उस समय कान्हा और सभी बालक खेल रहे थे। तब बगुले ने कृष्ण को निगल लिया और कुछ ही देर बाद कान्हा ने उस बगुले को चीरकर उसका वध कर दिया।

भगवान कृष्ण ने कितने राक्षसों का वध किया?

बगुले के रूप में आया बकासुर कंस ने वत्सासुर के बाद बकासुर को कृष्ण को मारने के भेजा। बकासुर ने बगुले का रूप धारण किया और कृष्ण के गांव पहुंच गया। बगुले ने बाल कृष्ण को निगल लिया था। कृष्ण ने बगुले को चीरकर बकासुर का वध कर दिया।

कृष्ण ने कर्ण को क्यों मरवाया?

पल भर में आगबबूला होने वाले परशुराम ने शाप दिया कि तुमने मुझसे जो भी विद्या सीखी है वह झूठ बोलकर सीखी है इसलिए जब भी तुम्हें इस विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी, तभी तुम इसे भूल जाओगे। कोई भी दिव्यास्त्र का उपयोग नहीं कर पाओगे। आपको बता दें कि कृष्ण ने इसी शाप का इस्तेमाल कर कर्ण का अर्जुन के हाथों वध करवाया था।

श्री कृष्ण ने किसका वध किया था?

एकलव्य अकेले सैकड़ों यादववंशी योद्धाओं को रोकने में सक्षम था। इसी युद्ध में कृष्ण ने एकलव्य का वध किया था। उसका पुत्र केतुमान भीम के हाथ मारा गया था।

श्री कृष्ण ने बकासुर का वध कैसे किया?

एक दिन भीम ने खुद वहां खाना लेकर जाने और बकासुर का भोजन बनने की इच्छा प्रकट की और एक भयंकर लड़ाई में उसने बकासुर का वध कर दिया।