कबीर की काव्य कला का वर्णन करें? - kabeer kee kaavy kala ka varnan karen?

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कबीरदास की जीवनी | कृतियाँ | काव्यगत विशेषताएँ | स्मरणीय तथ्य

  • कबीरदास की जीवनी
    • कृतियाँ
    • काव्यगत विशेषताएँ
    • (क) भाव-पक्ष-
    • (ख) कला-पक्ष-
    • साहित्य में स्थान-
    • स्मरणीय तथ्य
    • काव्यगत विशेषताएँ
      • कवि-लेखक (poet-Writer) – महत्वपूर्ण लिंक

कबीरदास की जीवनी

कबीरदास के जीवन से सम्बन्धित विभिन्न तथ्यों की प्रामाणिकता सन्दिग्य हैं। स्वयं उनके द्वारा रचित काव्य एवं कुछ तत्कालीन कवियों द्वारा रचित काव्य-ग्रन्थों मे उनके जोवन से सम्बन्धित तथ्य प्राप्त हुए हैं। इन तथ्यों की प्रामाणिकता के सम्बन्ध में विद्वानों में अत्यधिक मतभेद हैं। उनके जीवन-वृत पर प्रकाश डालने वाले तथ्यों को ‘कबीर चरित-बोध’, ‘भक्तमाल, ‘कबीर परचै’ आदि जिन प्रन्यो के आधार पर संकलित किया गया है, अभी तक इन ग्रन्थों की प्रामाणिकता भी सिद्ध नहीं हुई है। इनसका जीोवन-वृत्त इस प्रकार है-

सन्त कबीर का जन्म संवत् 1455 (सन् 1398 ई० ) में एक जुलाहा परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नीरू एवं माता का नाम नीमा या। कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि कबीर किसी विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे, जिसने लोके-लाज के भय से जन्म देते ही इन्हें त्याग दिया था। नीरू एवं नीमा को ये कहीं पड़े हुए मिले और उन्होंने इनका पालन- पोषण किया। कबीर के गुरु प्रसिद्ध सन्त स्वामी रामानन्द थे।

जनश्रुतियों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि कबीर विवाहित थे। इनकी पत्नी का नाम लोई था। इनकी दो सन्ताने थी-एक पुत्र और एक पुत्री। पुत्र का नाम कमाल या और पुत्री का नाम कमाली। यहाँ यह स्मरणीय है कि अनेक विद्वान् कबीर के विवाहित होने का तथ्य स्वीकार नहीं करते। इन विद्वानों के अनुसार ‘कमाल’ नमक एक अन्य कवि हुए थे, जिन्होंने कबीर के अनेक दोहों का खण्डन किया था वे कबीर के पुत्र नहीं थे।

अधिकांश विद्वानों के अनुसार कबीर 1575 वि० (सन् 1518 ई०) में स्वर्गवासी हो गए। कुछ विद्वानों का मत है कि इन्होंने स्वेच्छा से मगहर में जाकर अपने प्राण त्यागे थे। इस प्रकार अपनी मृत्यु के समय में भी उन्होंने जनमानस में व्याप्त ठस अन्धविश्वास को आधारविहीन सिद्ध करने का प्रयत्न किया, जिसके आधार पर यह माना जाता था कि काशी में मरने पर स्वर्ग प्राप्त होता है और मगहर में मरने पर नरक।

कृतियाँ

कबीर की वाणियों का संग्रह ‘बीजक’ के नाम से प्रसिद्ध है, जिसके तीन भाग हैं-

साखी – कबीर की शिक्षा और उनके सिद्धांतों का निरूपण अधिकांशत: साखी मे हुआ है। इसमे दोहा छंद का प्रयोग हुआ है।

सबद – इसमें कबीर के गेय पद संगृहीत हैं। गेय पद होने के कारण इनमें संगीतात्मकता पूर्ण रूप से विधमान है। इन पदों मे कबीर के अलौकिक प्रेम और उनकी साधना पद्धति की अभिव्यक्ति हुई है।

रमैनी – इसमें कबीर के रहस्यवादी और दार्शनिक विचार व्यक्त हुये हैं। इनकी रचना चौपाई छंद में हुई है।

काव्यगत विशेषताएँ

(क) भाव-पक्ष-

(1) कवीर हिन्दी साहित्य की नि्गुण भक्ति शाखा के सर्वश्रेष्ठ ज्ञानमार्गी संत है, जिन्होंने जीवन के अद्भुत सत्य को साहरा और निर्भाकतापूर्वक अपनी सीधी-सादी भाषा में सर्वप्रथम रखने के प्रयास किया है।

(2) जनभाषा के माध्यम से भक्ति निरूपण के कार्य को प्रारम्भ करने का श्रेय कबीर को ही है।

(3) कबीर की साधुककड़ी भाषा में सूक्ष्म मनभावों और गहन विचारों की बड़ी ही सरलता से व्यक्त करते की अद्भुत क्षमता है।

(4) कबीर स्वभाव से सन्त, परिस्थिति से समाज-सुधारक और विवशता से कवि धा।

(ख) कला-पक्ष-

(।) भाषा-शैली – कवीर की भाषा पंचमेल या खिचड़ी है। इसमें हिन्दी के अतिरिक्त पंजाबी, राजस्थानी, भोजपुरी, बुन्देलखण्डी आदि भाषाओं के शब्द भी आ गये हैं। कबीर बहुश्रुत सत थे अत: सत्संग और भ्रमण के कारण इनकी भाषा का यह रूप सामने आया। कबीर की शैली पर उनके व्यक्तित्व का प्रभाव है। उसमे हदय को स्यश करने वाली अद्भुत शक्ति है।

(2 ) रस-छन्द-अलंकार – रस की दृष्टि से काव्य में शान्त, श्रिंगारऔर हास्य की प्रधानता है। उलटवॉंसियों का अद्भुत रस का प्रयोग हुआ है। कबीर की साखियाँ दोहे में, रमैनियाँ चौपाइयों में तथा सबद गेय शब्दों में लिखे गये हैं। कबीर के गेय पदों में कहरवा आदि लोक-छन्दौ का प्रयोग हुआ है। उनकी कविता में रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा दृष्टान्त, यमक आदि अलंकार स्वाभाविक रूप में आ गये हैं।

साहित्य में स्थान-

कबीर एक निर्भय, स्पष्टवादी, स्वच्छ हदय, उपदेशक एवं समाज-सुधारक थे। हिन्दी का प्रथम रहस्यवादी कवि हीने का गौरव उन्हें प्राप्त है। इनके सम्बन्ध में यह कथन बिल्कुल ही सत्य उतरता है-

“तत्त्व-तत्त्व कबिरा कही, तुलसी कही अनूठी।

बची-खुची सूरा कही, और कही सब झूठी ॥”

स्मरणीय तथ्य

जन्म- 1398 ई०, काशी।

मृत्यु- 1495 ई०, मगहर।

जन्म एवं माता- विधवा ब्राह्मणी से। पालन-पोषण नीरू तथा नीमा ने किया।

गुक्त- रामानन्द।

रचना- बीजक।

काव्यगत विशेषताएँ

भक्ति-भावना – प्रेम तथा श्रद्धा द्वारा निराकार ब्रह्म की भक्ति। रहस्य भावना, धार्र्मिक भावना, समाज सुधार, दार्शनिक विचार।

वर्ण्य विषय – वेदान्त, प्रेम-महिमा, गुरु महिमा, हिंसा का त्याग, आडम्बर का विरोध, जाति-पॉति का विरोध।

भाषा – राजस्थानी, पंजाबी, खड़ीबोली और ब्रजभाषा के शब्दों से बनी पंचमेल खिचड़ी तथा सधुक्कड़ी।

शैली – 1. भक्ति तथा प्रेम के चित्रण में सरल तथा सुबोध शैली। 2. रहस्यमय भावनाओं तथा उलटवॉँसियों में दुरूह तथा अस्पष्ट शैली।

छन्द – साखी, दोहा और गेय पद।

रस तथा अलंकार – कहीं-कहीं उपमा, रूपक अन्योक्ति अलंकार तथा भक्ति- भावना में शान्त रस पाये जाते हैं।

कवि-लेखक (poet-Writer) – महत्वपूर्ण लिंक
  • सोहनलाल द्विवेदी (Sohan Lal Dwivedi)
  • सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi)
  • मैथिलीशरण गुप्त (Maithili Sharan Gupt)
  • नागार्जुन (Nagarjun)
  • मीराबाई (Mirabai)
  • डॉ० धर्मवीर भारती (Dharamvir Bharati)
  • काका कालेलकर (Kaka Kalelkar)
  • श्रीराम शर्मा (Shriram Sharma)
  • रहीम (Abdul Rahim Khan-I-Khana)
  • मुंशी प्रेमचन्द (Premchand)
  • महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma)
  • पं० प्रतापनारायण मिश्र (Pratap Narayan Mishra)
  • महाकवि भूषण (Kavi Bhushan)
  • अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ (Ayodhya Prasad Upadhyay)
  • जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ (Jagannath Das Ratnakar)
  • कविवर बिहारी

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कबीर का काव्य कला?

कबीर की कविता के तीन रूप हैं- साखी, सबद और रमैनी । इन तीनों प्रकार की बानियों मैं मध्यकालीन धर्मसाधनाओं, भारतीय दर्शन, इस्लाम तथा सूफीमत के पारिभाषिक शब्दों की भरमार है । अनेक स्थलों पर कबीर की बानियों के अर्थ ग्रहण में इन शब्दों की वजह से आम पाठकों को बहुत कठिनाई का अनुभव होता है।

कबीर की काव्य कला की विशेषता?

कबीरदास के काव्य की विशेषता गुरु-भक्ति, ईश्वर के प्रति अथाह प्रेम, वैराग्य सत्संग, साधु महिमा, आत्म-बोध तथा जगत-बोध की अभिव्यक्ति है। उन्होंने समाज में फैले हुए सभी प्रकार के भेदभाव को दूर करने का प्रयास किया।

कबीर का काव्य?

कबीरदास या कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति के लिए एक महान प्रवर्तक के रूप में उभरे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिक्खों के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।

काव्यगत विशेषताएँ क्या है?

(3) देवदत्त ने प्रकृति चित्रण को विशेष महत्व दिया है। वे प्रकृति-चित्रण में बहुत ही परंपरागत कवि हैं। वे प्रकृति चित्रण में नई उपमाओं के माध्यम से उसमें रोचकता व सजीवता का रुप भर देते हैं।