भाषाई विविधता का क्या अभिप्राय है? - bhaashaee vividhata ka kya abhipraay hai?

भाषाई विविधता का क्या अभिप्राय है? - bhaashaee vividhata ka kya abhipraay hai?
भाषायी विविधता क्या है ? भाषायी विविधता के स्वरूप

भाषायी विविधता क्या है ? भाषायी विविधता के स्वरूपों का वर्णन कीजिए।

भाषायी विविधता (Language Diversities)

भारत एक बहुभाषी देश है। भारत में जनसंख्या, प्रजाति, धर्म तथा संस्कृति के आधार पर ही विभिन्नता नहीं पाई जाती बल्कि भाषा की दृष्टि से भी अनेक भिन्नतायें विद्यमान हैं। भाषायी सर्वेक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि यहाँ लगभग 179 भाषायें एवं 544 बोलियाँ (dilects) प्रचलित हैं। भारतीय भाषाओं एवं बोलियों के अध्ययन में जार्ज ग्रियर्सन का नाम उल्लेखनीय है। कुछ विद्वानों का मत है कि भारत 1.650 भाषायें एवं बोलियाँ पाई जाती हैं। प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र या उपक्षेत्र की अपनी एक भाषा या बोली है। भारत के ग्रामीण क्षेत्र में भाषा की विविधता को प्रकट करने वाली एक कहावत प्रचलित है- ‘पाँच कोस में बदले पानी, दस कोस में बानी। प्रत्येक दस कोस के बाद भाषा में बदलाव आ जाता है। भाषा के साथ-साथ सांस्कृतिक विशेषताओं में भी अन्तर देखने को मिलता है। भाषायी क्षेत्र में भारतीयों के सामाजिक जीवन को भी प्रभावित किया है और एक भाषा का प्रयोग करने वालों ने अपने सम्बन्ध अपने भाषायी क्षेत्र तक ही सीमित रखे हैं। श्रीमती कर्वे का विचार है कि यदि हम भारतीय संस्कृति को समझना चाहते हैं तो हमें जाति एवं परिवार के साथ-साथ यहाँ के भाषायी क्षेत्र का भी अध्ययन करना होगा। भाषा के साथ संस्कृति एवं धर्म भी जुड़े हुए हैं, विभिन्न धर्मावलम्बी अपनी-अपनी अलग-अलग भाषा मानते हैं, जैसे हिन्दू संस्कृत एवं हिन्दी भाषा को, मुसलमान अरबी एवं उर्दू को, सिख गुरुमुखी को और बौद्ध प्राकृत एवं पाली भाषा को ।

भारत की कुछ प्रमुख भाषाओं और उनके संक्षिप्त विवरण का उल्लेख निम्नलिखित है-

(1) हिन्दी – हिन्दी भाषा इण्डो-आर्यन भाषा परिवार की एक प्रमुख भाषा है जिसकी लिपि है देवनागरी। इसे बोलने वाले लोग 33.72 करोड़ अर्थात् कुल जनसंख्या का लगभग 39.85 प्रतिशत भाग है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार तथा झारखण्ड प्रान्तों में हिन्दी का प्रचलन प्रमुख रूप से पाया जाता है, इसलिये इसे हिन्दी भाषी क्षेत्र भी कहते हैं। हिन्दी के हमें कई रूप देखने को मिलते हैं जिनमें से दो रूप प्रमुख हैं। उत्तरी भारत के पश्चिमी भागों में हिन्दी के हिन्दुस्तानी ब्रजभाषा, खड़ी बोली, कन्नौजी, बुन्देली और बॉगरन रूप देखने को मिलते हैं जबकि पूर्वी भाग में अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी बोलियाँ मुख्य हैं। हिन्दी को राष्ट्रभाषा (National Language) का दर्जा प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 243 (1) में हिन्दी को भारत की राजभाषा स्वीकार किया गया है जिसकी लिपि देवनागरी होगी। उत्तरी क्षेत्र के अलावा दक्षिणी भारत एवं अन्य भाषायी क्षेत्रों के लोग भी थोड़ी बहुत हिन्दी समझते एवं बोलते हैं। यही सभी प्रान्तों की संचार एवं सम्पर्क भाषा की क्षमता रखती है किन्तु दुर्भाग्य है कि आजादी के 70 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी हमने अंग्रेजी को चिपटा रखा है और हिन्दी को वह स्थान नहीं दिया है जो उसे मिलना चाहिए।

(2) बंगला- बंगला भाषा प्रमुख रूप से बंगाल में बोली जाती है। इस भाषा का प्रयोग करने वाले लोगों की संख्या 6.95 करोड़ अर्थात् 8.22 प्रतिशत है। इस भाषा में संस्कृत एवं मागधी भाषा के अपभ्रंश शब्दों की बहुलता पाई जाती है। भाषा की दृष्टि से यह बहुत ही मधुर एवं सरस भाषा है। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी महान ‘गीतांजलि’ बंगला भाषा में ही लिखी है। इस भाषा को विकसित करने एवं समृद्ध बनाने में शरत्चन्द्र राय, बंकिमचन्द्र चटर्जी, राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर आदि का विशेष योगदान रहा है। शरतू बाबू के बंगला उपन्यासों का हिन्दी में अनुवाद किया गया। वर्तमान में विमल मित्रा के कई उपन्यास बंगला एवं हिन्दी में प्रकाशित हुए। बंगला भाषा में भी क्षेत्रीयता एवं ग्रामीण तथा नगरीय आधार पर भिन्नता पाई जाती है। शहरी क्षेत्र के पढ़े-लिखे व्यक्ति संस्कृत बहुल बंगला भाषा का प्रयोग करते हैं।

(3) तेलुगू – तेलुगू भाषा परिवार की एक प्रमुख भाषा है। इसका प्रचलन उत्तरी तमिलनाडु, दक्षिणी, हैदराबाद, आन्ध्र एवं मैसूर के कुछ भागों में पाया जाता है। इसके बोलने वालों की संख्या 6.60 करोड़ (7.80 प्रतिशत) है। आन्ध्रप्रदेश में ही इस भाषा का सर्वाधिक प्रयोग होता है। इस भाषा को ‘पूर्व की इटैलियन’ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। इस भाषा में संस्कृत शब्दों की बहुतायत है। वर्तमान में तेलुगू भाषा का साहित्य बहुत समृद्ध हुआ है।

(4) मराठी – मराठी भाषा का प्रयोग प्रमुखतः महाराष्ट्र प्रान्त, मध्य प्रदेश एवं उसके आस-पास के क्षेत्रों में होता है। इस भाषा को बोलने वाले लोगों की संख्या 6.2 करोड़ अर्थात् 7.38 प्रतिशत है। यह एक समृद्ध भाषा है। इसमें दो बोलियाँ कोंकड़ी तथा हलबी प्रमुख हैं। कोंकणी बोली महाराष्ट्र एवं गोवा में बोली जाती है जबकि हलबी का प्रयोग छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में अधिक होता है हलबी व्याकरण की दृष्टि से मराठी के नजदीक है तथा इस पर पूर्वी हिन्दी, भोजपुरी और उड़िया भाषा का प्रभाव है। शिवाजी के शासनकाल में मराठी भाषा का सम्पर्क उत्तरी और दक्षिणी भारत के कई भागों से हुआ जिसके परिणामस्वरूप मराठी साहित्य पर विभिन्न भाषाओं का प्रभाव देखने को मिलता है।

(5) तमिल- तमिल भाषा का प्रचलन प्रमुख रूप से तमिलनाडु एवं दक्षिणी भारत के कुछ प्रान्तों में पाया जाता है। इसके बोलने वालों की संख्या लगभग 5.3 करोड़ (6.26 प्रतिशत) है। इस भाषा में हमें प्राचीन द्रविड़ भाषा के शब्द भी देखने को मिलते हैं। यह द्रविड़ संस्कृति की प्रतीक मानी जाती है। वैष्णव, शैव और शाक्त भक्तों ने अपनी भक्ति-साहित्य की रचना तमिल भाषा में करके इसे समृद्ध बनाने का प्रयास किया है। इसमें अनेक वीरगाथायें और प्रेमकाव्य भी पाये जाते हैं।

(6) उर्दू– उर्दू भाषा अरबी, फारसी एवं हिन्दी तीनों के मिश्रण से बनी है। उर्दू भाषा का प्रचलन मुस्लिम शासकों के दौरान भारत में हुआ और उन्होंने इसे राजकाज की भाषा बनाया। अंग्रेजी शासन काल में भी यह भाषा पनपती रही। यद्यपि इसका प्रचलन सर्वप्रथम दक्षिणी भारत में हुआ किन्तु वर्तमान में इसका प्रयोग करने वाले अधिकांश व्यक्ति उत्तरी भारत में ही पाये जाते हैं। उर्दू भाषा के तमीज और तहजीब के शब्द बहुत लोकप्रिय हैं तथा शेर और शायरी कहने के लिए उर्दू भाषा का प्रयोग किया जाता है। उर्दू कोई विदेशी भाषा न होकर हिन्दुस्तानी भाषा की ही एक शाखा मानी जाती है।

(7) गुजराती- गुजरात एवं काठियावाड़ में इस भाषा का प्रचलन है। लगभग 4 करोड़ (4.81 प्रतिशत) लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं। इस भाषा पर हिन्दी और राजस्थानी का प्रभाव देखने को मिलता है। विगत कुछ वर्षों में गुजराती साहित्य का बहुत विकास हुआ है।

(8) मलयालम – लगभग डेढ़ हजार वर्ष पूर्व मलयालम भाषा प्राचीन तमिल भाषा की ही एक उप-शाखा के रूप में विकसित हुई। इस भाषा का प्रचलन क्षेत्र केरल प्रान्त है। मलयालम बोलने वाले लगभग 3 करोड़ (3.59 प्रतिशत) लोग हैं। इस भाषा पर संस्कृत का पूरा पूरा प्रभाव है। वर्तमान में इस भाषा में साहित्य-सृजन का कार्य हो रहा है।

(9) उड़िया- उड़िया भाषा का प्रयोग प्रमुखतः उड़ीसा प्रान्त में होता है। इसे बोलने वालों की संख्या 2.8 करोड़ अर्थात् 3.22 प्रतिशत है। यह एक परम्परावादी भाषा है जिसका व्याकरण और उच्चारण अधिक विकसित नहीं है। इस भाषा में बंगला और असमिया शब्दों का मिश्रण होने के साथ-साथ मागधी भाषा के अपभ्रंश शब्द भी पाये जाते हैं। जिस क्षेत्र में यह भाषा बोली जाती है, उसे उत्कल भी कहते हैं।

(10) पंजाबी – पंजाबी भाषा का प्रयोग पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के उत्तरी भागों में पाया जात है। इसके बोलने वालों की संख्या 2.3 करोड़ अर्थात् 2.76 प्रतिशत है। इस भाषा को भी पूर्वी एवं पश्चिमी क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है। पश्चिमी पंजाबी भाषा पर संस्कृत का प्रभाव है और उसे ‘लण्डा’ अथवा ‘लण्डा दी बोली’ अर्थात् पश्चिम की भाषा कहा जाता था। इसे ‘हिन्दुकी’ भी कहा जाता था। पूर्वी पंजाबी भाषा लाहौर तथा अमृतसर के आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती है। पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी है। पिछले कुछ वर्षों में पंजाबी भाषा में लेखन कार्य हुआ है जिससे उसकी समृद्धि बढ़ी है। पंजाबी भाषा बोलने वाले पंजाबी के साथ-साथ अंग्रेजी, हिन्दू, उर्दू एवं संस्कृत भाषा के शब्दों का प्रयोग भी करते हैं।

(11) असमिया – असमिया भाषा का प्रयोग असम प्रान्त में किया जाता है। इसके बोलने वालों की संख्या 1.30 करोड़ अर्थात् 1.55 प्रतिशत है। बंगाल और असम चूँकि पड़ोसी प्रान्त हैं, अतः असमी और बंगाली भाषायें परस्पर एक-दूसरे से बहुत मिलती-जुलती हैं, यहाँ तक कि असमी भाषा के कई लेखक बंगाली ही हैं, किन्तु वर्तमान में असम के लोग अपनी भाषा को बंगाली से पृथक भाषा के रूप में स्वीकार करते हैं। इन दोनों भाषाओं के उच्चारण एवं व्याकरण में भी पर्याप्त भेद है। ऐसा माना जाता है कि असमिया भाषा के साहित्य का विकास वहाँ के राजाओं ने किया। संविधान में असमिया भाषा को बंगला से पृथक् स्थान दिया गया है।

(12) सिन्धी – सिन्धी भाषा का प्रयोग अविभाजित भारत के सिन्ध प्रान्त के निवासी करते थे जो अब पाकिस्तान में है। भारत विभाजन के समय सिन्ध से भारत आने वाले इस भाषा का प्रयोग करते हैं। वर्तमान में इसका प्रयोग करने वालों की संख्या 21 लाख अर्थात् 0.25 प्रतिशत है। सिन्धी को भी संविधान में प्रमुख भाषा के रूप में मान्यता दी गई है और आकाशवाणी से भी इसके कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं। इस भाषा के अन्तर्गत छः बोलियाँ हैं- सिरैकी, विकोली, थरेली, लासी, लाड़ी और कच्छी।

(13) राजस्थानी – राजस्थानी भाषा का प्रयोग राजस्थान में पाया जाता है। यद्यपि यह हिन्दी की ही एक उप-शाखा है परन्तु पिछले कुछ वर्षों से इसे एक पृथक् भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास चल रहा है। जोधपुर विश्वविद्यालय में राजस्थानी का एक पृथक् विभाग स्थापित किया गया है तथा आकाशवाणी जयपुर में राजस्थानी में समाचार भी प्रसारित किये जाते हैं। राजस्थानी भाषा में मालबी, जयपुरी, मारवाड़ी और मेवाती बोलियों का मिश्रण पाया जाता है। जयपुर के आस-पास जयपुरी बोली का, जोधपुर के आस-पास मारवाड़ी बोली का प्रयोग किया जाता है। मारवाड़ी साहित्य काफी समृद्ध है। इसके प्रारम्भिक रूप को डिंगल भाषा भी कहा जाता है। दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बागड़ी भाषा का प्रयोग करते हैं जिसमें राजस्थानी, हिन्दी एवं गुजराती भाषा के शब्द हैं। राजस्थान की कुछ बोलियों पर ब्रजभाषा एवं पश्चिमी हिन्दी का प्रभाव पाया जाता है।

(14) बिहारी – बिहारी भाषा का प्रचलन बिहार राज्य में पाया जाता है। इसकी उत्पत्ति मागधी भाषा के अपभ्रंशों के कारण हुई। इसमें भोजपुरी, मैथिली तथा मगही तीन बोलियाँ प्रमुख हैं। भोजपुरी उत्तरी भारत की एक प्रमुख भाषा है। मैथिली भाषा का प्रयोग उत्तरी बिहार में किया जाता है तथा दक्षिणी बिहार में मागधी भाषा बोली जाती है। उत्तर प्रदेश में बनारस के आस-पास भी भोजपुरी भाषा का प्रयोग किया जाता है। मैथिली भाषा का साहित्य भी काफी समृद्ध है। इसकी तुलना में मागधी कम विकसित है। विद्यापति मैथिली भाषा के प्रमुख लेखक हुए हैं जिन्होंने गीत एवं नाटकों की रचना की जो बहुत ही लोकप्रिय हुए

(15) संस्कृत – संस्कृत भाषा को देववाणी भी कहा जाता है। भारत के प्राचीन धर्मग्रन्थों एवं वेदों की रचना इस भाषा में की गई। संस्कृत ही कई भाषाओं की जननी है तथा बंगाली, तमिल, कन्नड़, तेलुगू, मलयालम, मराठी हिन्दी व अन्य कई भाषाओं पर संस्कृत का गहरा प्रभाव पाया जाता है। यद्यपि इसके बोलने वालों की संख्या नगण्य है फिर भी इससे हमारा मानसिक लगाव है तथा संविधान में इसे प्रमुख भाषा का दर्जा दिया गया है। आकाशवाणी में संस्कृत में भी समाचार एवं अन्य छुट-पुछ कार्यक्रम प्रसारित किया जाता

कुछ अन्य भाषाएँ- उपर्युक्त भाषाओं के अतिरिक्त भारत में अनेक छोटी-बड़ी भाषायें और भी हैं। नीलगिरि पर्वत पर रहने वाले टोडा लोग टोडी भाषा बोलते हैं। छोटा नागपुर, उड़ीसा, मध्य प्रदेश एवं बंगाल में मुण्डा और कोल भाषा बोली जाती है। मुण्डा भाषा में भी भारत की एक प्रमुख भाषा है जिसके अन्तर्गत मुण्डरी, सन्थाली, हो, खंरिया, बिरहोर, भूमिज, कोरवा एवं कोरकू भाषायें प्रमुख हैं जिनका प्रयोग आदिवासी लोगों द्वारा किया जाता है। उत्तर-पूर्वी भारत में मोनखमेर भाषा की उपशाखायें खासी और जयन्तिया भी इन्हीं नाम की जनजातियों द्वारा बोली जाती है।

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भाषायी विविधता का क्या अभिप्राय है?

के अनुसार-विविधता का अर्थ योग्यता, लिंग, जाति, प्रजाति, भाषा, चिंतन स्तर, विकलांगता, व्यवहार और धर्म से संबंधित होता है।" इनके अलावा मनुष्य की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं भूगौलिक स्थिति भी विविधता की मुख्य कारक हैं।

भारत में भाषागत विविधता से क्या?

एथनेलाग की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में 7139 भाषाएं बोली जाती है जिनमें से 2300 भाषाएं केवल एशिया में है। वहीं अफ्रीका में भी 2144 और पैसिफिक रीजन में 1313 भाषा बोली जाती हैं।

भाषाई विविधता और बहुभाषिकता क्या है?

भाषाई विविधता और बहुभाषिकता से आप क्या समझते हैं? ब्लूम फील्ड के अनुसार – ”बहुभाषिकता की स्थिति तब पैदा होती है जब व्यक्ति किसी ऐसे समाज में रहता है जो उसकी मातृभाषा से अलग भाषा बोलता है और उस समाज में रहते हुए वह उस अन्य भाषा में इतना पारंगत हो जाता है कि उस भाषा का प्रयोग मातृभाषा की तरह कर सकता है।”

भारत की भाषाई विविधता का एकता पर क्या प्रभाव पड़ा है?

अगर अलग-अलग क्षेत्रों का इतिहास देखें तो हमें पता चलेगा कि किस तरह विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों ने वहां के जीवन और संस्कृति को आकार देने में योगदान किया है। इस तरह से कई क्षेत्र अपने विशिष्ट इतिहास के कारण विविधता संपन्न हो जाते थे।