सामाजिक प्रतिबंधों से क्या आशय है क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक हैं ?`? - saamaajik pratibandhon se kya aashay hai kya kisee bhee prakaar ke pratibandh svatantrata ke lie aavashyak hain ?`?

Haryana State Board HBSE 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 स्वतंत्रता Textbook Exercise Questions and Answers.

HBSE 11th Class Political Science स्वतंत्रता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता से क्या आशय है? क्या व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता और राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता में कोई संबंध है?
उत्तर:
स्वतंत्रता ‘अंग्रेजी भाषा’ के शब्द लिबर्टी (Liberty) का हिंदी रूपांतर है। अंग्रेज़ी भाषा के इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के लिबर (Liber) शब्द से हुई है। ‘लिबर’ शब्द का अर्थ ‘बंधनों का अभाव’ (Lack of Controls) या ‘बंधनों से मुक्ति ‘ (Free from controls) तथा प्रतिबंधों की अनुपस्थिति (Absence of Restraints) से होता है।

इस तरह शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से स्वतंत्रता (Liberty)शब्द का अर्थ बंधनों का पूरी तरह न होना या बंधनों का पूरा अभाव ही कहा जाएगा। साधारण आदमी इस शब्द का अर्थ पूर्ण स्वतंत्रता से लेता है जो बिल्कुल प्रतिबंध-रहित हो, परंतु राजनीति-शास्त्र में प्रतिबंध-रहित स्वतंत्रता का अर्थ स्वेच्छाचारिता (Licence) है, स्वतंत्रता नहीं। इस शास्त्र में स्वतंत्रता का अर्थ उस हद तक स्वतंत्रता है, जिस हद तक वह दूसरों के रास्ते में रोड़ा नहीं बनती।

इसलिए स्वतंत्रता पर कुछ प्रतिबंध लगाने पड़ते हैं, ताकि प्रत्येक व्यक्ति की समान स्वतंत्रता सुरक्षित रहे। इसी कारण से मैक्नी (Mckechnie) ने कहा है, “स्वतंत्रता सभी प्रतिबंधों की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि युक्ति-रहित प्रतिबंधों के स्थान पर युक्ति-युक्त प्रतिबंधों को लगाना है।” इसकी पुष्टि करते हुए जे०एस०मिल (J.S. Mill) ने कहा है, “स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ यह है कि हम अपने हित के अनुसार अपने ढंग से उस समय तक चल सकें जब तक कि हम दूसरों को उनके हिस्से से वंचित न करें और उनके प्रयत्नों को न रोकें।”

अतः राजनीति विज्ञान के आधुनिक विचारक स्वतंत्रता को केवल बंधनों का अभाव नहीं मानते, बल्कि उनके अनुसार स्वतंत्रता सामाजिक बंधनों में जकड़ा हुआ अधिकार है। स्वतंत्रता के अर्थ के साथ यहाँ यह भी स्पष्ट है कि व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता और राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता में बहुत गहरा संबंध है क्योंकि व्यक्ति की स्वतंत्रता शत-प्रतिशत राष्ट्र की स्वतंत्रता पर निर्भर है। यदि कोई देश स्वतंत्र नहीं होगा तो फिर उस देश का व्यक्ति स्वतंत्रता का आनंद कैसे उठा सकेगा।

एक स्वतंत्र राष्ट्र ही अपने नागरिकों को स्वतंत्र वातावरण एवं परिस्थितियाँ दे सकता है, जिसमें वे अपने व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। एक परतंत्र राष्ट्र में दूसरे का हस्तक्षेप होता है इसलिए वहाँ के नागरिक अपनी इच्छानुसार काम करने की स्थिति में नहीं होते। वास्तव में उन्हें वही करना होता है, जो उन्हें करने की स्वतंत्रता प्रदान की जाती है। ऐसे राष्ट्र में रहने वाले लोगों के लिए स्वतंत्र जीवन जीना केवल एक कल्पना या स्वपन जैसा होता है। इस प्रकार यह स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है कि व्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्र की स्वतंत्रता एक-दूसरे के पूरक हैं। अतः एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं हो सकता।

सामाजिक प्रतिबंधों से क्या आशय है क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक हैं ?`? - saamaajik pratibandhon se kya aashay hai kya kisee bhee prakaar ke pratibandh svatantrata ke lie aavashyak hain ?`?

प्रश्न 2.
स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में क्या अंतर है?
उत्तर:
स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में मुख्य अंतर निम्नलिखित प्रकार से हैं
(1) नकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव है; जबकि सकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव नहीं है, बल्कि उचित प्रतिबंधों को स्वीकार करना है।

(2) नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा के अनुसार वह सरकार सबसे अच्छी है जो कम-से-कम शासन एवं हस्तक्षेप करती है; जबकि सकारात्मक स्वतंत्रता के दृष्टिकोण के अनुसार राज्य को नागरिकों के कल्याण के लिए सभी क्षेत्रों में कानून बनाकर हस्तक्षेप करने का अधिकार है।

(3) नकारात्मक स्वतंत्रता में राज्य का व्यक्ति पर बहुत कम नियंत्रण होता है; जबकि सकारात्मक स्वतंत्रता में राज्य व्यक्ति के सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक विकास के लिए हस्तक्षेप कर कानूनों का निर्माण कर सकती है।

(4) नकारात्मक स्वतंत्रता के दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्ति के जीवन व संपत्ति के अधिकार असीमित हैं; जबकि सकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार राज्य व्यक्ति के संपत्ति के अधिकार को सीमित कर सकता है।

(5) नकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार, कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करता है; जबकि सकारात्मक अवधारणा के अनुसार कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता में वृद्धि करता है। कानून स्वतन्त्रता की पहली शर्त है।

प्रश्न 3.
सामाजिक प्रतिबंधों से क्या आशय है? क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक हैं?
उत्तर:
समाज में जब किसी समुदाय या जाति को वह सब करने की स्वतंत्रता नहीं होती जो शेष लोगों को होती है, तो ऐसी स्थिति में हम कहते हैं कि उस पर सामाजिक प्रतिबंध लगे हुए हैं। भारत के कई हिस्सों में आज भी कुछ जातियों या समुदायों का मंदिरों में प्रवेश करना वर्जित है। इस प्रकार के सामाजिक प्रतिबंधों से उन समुदायों की कानून द्वारा प्राप्त स्वतंत्रता अवरुद्ध हो जाती है और वे देश और समाज की मुख्यधारा में नहीं रह पाते।

यद्यपि समाज में व्यक्ति स्वतंत्रता के लिए कुछ प्रतिबंधों की आवश्यकता होती है क्योंकि स्वतंत्रता की प्रकृति में ही प्रतिबंध हैं और ये प्रतिबंध इसलिए आवश्यक हैं, ताकि प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर व सुविधाएं प्राप्त हो सकें और एक व्यक्ति की स्वतंत्रता किसी अन्य व्यक्ति की स्वतंत्रता या सामाजिक हित में बाधक न बन सके।

स्वतंत्रता को वास्तविक रूप देने के लिए आवश्यक है कि उसे सीमित किया जाए। समाज में रहते हुए शांतिमय जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति के व्यवहार पर कुछ नियंत्रण लगाए जाएं। नियंत्रणों से मर्यादित व्यक्ति ही अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकता है और समाज की एक लाभदायक इकाई सिद्ध हो सकता है। अरस्तू (Aristotle) ने ठीक ही कहा है, “मनुष्य अपनी पूर्णता में सभी प्राणियों से श्रेष्ठ है, लेकिन जब वह कानून व न्याय से पृथक् हो जाता है तब वह सबसे निकृष्ट प्राणी बन जाता है।” अतः स्वतंत्रता के लिए कुछ प्रतिबन्धों का होना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
नागरिकों की स्वतंत्रता को बनाए रखने में राज्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
सकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा इस तथ्य का समर्थन करती है कि नागरिकों की स्वतंत्रताएं राज्य में ही सुरक्षित रहती हैं। राज्य ही नागरिकों की स्वतंत्रताओं की रक्षा की व्यवस्था करता है। इस प्रकार राज्य को अधिकार है कि सभी नागरिकों को स्वतंत्रताएं प्रदान करने के लिए आवश्यक और उचित कदम उठाए।

नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थकों ने राज्य को एक आवश्यक बुराई मानकर जो आलोचना की है, वह गलत है। वर्तमान कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के अनुसार सकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा को ही मान्यता दी जाती है। आलोचकों ने इस अवधारणा की सैद्धांतिक और व्यावहारिक आधारों पर आलोचना की है, परंतु वह आलोचना

इसलिए स्वीकार नहीं की जा सकती, क्योंकि सरकार की दुर्बलताओं को दूर करने की शक्ति केवल सरकार में ही निहित है। जैसे यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को किसी भी तरह की हानि पहुँचाता है या उसकी स्वतंत्रता का अतिक्रमण करता है तो पीड़ित व्यक्ति न्यायालय की शरण ले सकता है।

न्यायालय दोषी व्यक्ति को उचित दंड देकर पीड़ित व्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। यह राज्य का दायित्व होता है कि वह अपने नागरिकों को वैसा वातावरण एवं व्यवस्था प्रदान करे, जिसके अंतर्गत वे एक-दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए अपना सर्वांगीण विकास कर सकें। ऐसी व्यवस्था तैयार करने के लिए राज्य द्वारा लोगों पर कुछ प्रतिबंध लगाए जाते हैं जिनका उद्देश्य उनकी भलाई करना है, बुराई नहीं।

सामाजिक प्रतिबंधों से क्या आशय है क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक हैं ?`? - saamaajik pratibandhon se kya aashay hai kya kisee bhee prakaar ke pratibandh svatantrata ke lie aavashyak hain ?`?

प्रश्न 5.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या अर्थ है? आपकी राय में इस स्वतंत्रता पर समुचित प्रतिबंध क्या होंगे? उदाहरण सहित बताइये।
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1) क के अनुसार देश के सभी नागरिकों को वाक् अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति भाषण देने, लेखन कार्य करने, चलचित्र अथवा अन्य किसी स्रोतों के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त संविधान के 44वें संशोधन के द्वारा इसमें अनुच्छेद 364-A को जोड़ा गया है।

इस अनुच्छेद के माध्यम से समाचारपत्रों को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वे संसद अथवा विधानमंडल की कार्रवाई को प्रकाशित कर सकते हैं। यद्यपि संविधान द्वारा इस स्वतंत्रता पर भी कुछ प्रतिबंध लगाने की व्यवस्था की गई है; जैसे देश की संप्रभुता राज्य की सरक्षा विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में, न्यायालय अवमानना आदि के आधार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, जोकि सर्वथा उचित है। वास्तव में उचित प्रतिबंधों के अधीन ही वास्तविक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सम्भव है।

स्वतंत्रता HBSE 11th Class Political Science Notes

→ स्वतंत्रता शब्द की उत्पत्ति मानव जाति के साथ ही हुई है। स्वतंत्रता मानव जीवन के लिए ऑक्सीजन है। इसके अभाव में मनुष्य का जीवन कठिन है। जब भी मनुष्य की स्वतंत्रता पर आघात किया गया है, जनता ने क्रान्ति पैदा की है।

→ इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति (1688), अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम (1776), फ्रांस की राज्य क्रांति (1789) तथा भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम इसके ज्वलंत उदाहरण हैं।

→ रूसो ने स्वतंत्रता, समानता एवं भ्रातृत्व (Liberty, Equality and Fraternity) का नारा दिया जो फ्रांसीसी-क्रांति का मुख्य आधार बना। भारत में तिलक ने कहा, “स्वराज मेरा जन्म-सिद्ध अधिकार है।”

→ विश्व का इतिहास स्वतंत्रता के प्रेम के बलिदान में बहे रक्त से रंजित है। प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान तक मनुष्य ने सब कुछ न्योछावर करने में जरा-सा भी संकोच नहीं किया। स्वतंत्रता के लिए मंडेला ने अपने जीवन के 28 वर्ष जेल की कोठरियों के अंधेरे में बिताए।

→ उन्होंने अपने यौवन को स्वतंत्रता के आदर्श के लिए होम कर दिया। स्वतंत्रता के लिए मंडेला ने व्यक्तिगत रूप से बहुत ही भारी कीमत चुकाई । वास्तव में व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास तथा उसकी प्रसन्नता के लिए स्वतंत्रता आवश्यक है।

→ वही मनुष्य, मनुष्य है जो स्वतंत्र है, जिसने अपनी स्वतंत्रता खो दी, उसके जीवन का अंत हो जाता है। अतः स्वतंत्रता मनुष्य और राज्य दोनों के लिए आवश्यक है। इसलिए आज संपूर्ण संसार में स्वतंत्रता को सभ्य मानवीय जीवन की एक आवश्यक और अनिवार्य शर्त माना जाता है।

सामाजिक प्रतिबंधों से क्या आशय है क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रता आवश्यक हैं?

राजनीतिक सिद्धांत में स्वतंत्रता के बारे में अधिकतर चर्चा ऐसे नियमों को विकसित करने पर केंद्रित रही है, जो सामाजिक रूप से आवश्यक सीमाओं और बाकी प्रतिबंधों के बीच अंतर स्पष्ट करती है। इस पर भी वाद-विवाद रहा है कि स्वतंत्रता की क्या सीमाएँ होनी चाहिए, जिसके फलस्वरूप किसी समाज की आर्थिक और सामाजिक संरचनाएँ प्रभावित होती ।

सामाजिक प्रबंधन से क्या आशय है?

किसी भी संगठन के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैं तथा प्रबंध को इन सभी उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं दक्षता से पाना होता है। उद्देश्यों को संगठनात्मक उद्देश्य, सामाजिक उद्देश्य एवं व्यक्तिगत उद्देश्यों में वर्गीकृत किया जा सकता है। व्यवसाय की लागत एवं जोखिमों को पूरा करने के लिए आवश्यक होता है ।

स्वतंत्रता के लिए प्रतिबंधों का होना क्यों आवश्यक है?

इस प्रकार, यह समझा जा सकता है कि यद्यपि मिल भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामले में पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करते हैं, साथ ही साथ उन्होंने व्यक्ति द्वारा किए जा रहे कार्यों पर कुछ सीमाएं लगाने का समर्थन किया ताकि समाज में व्यवस्था बनी रहे ।

न्यायोचित प्रतिबंध का क्या अर्थ है?

अनुच्छेद-19 (2) के तहत सरकार कानूनी दायरे में न्यायोचित प्रतिबंध लगा सकता है। देश की संप्रभुता की रक्षा, देश की निष्ठा की रक्षा, देश हित को बनाए रखने के लिए, विदेशी रिलेशन को प्रोटेक्ट करने के लिए और पब्लिक ऑर्डर बरकरार रखने के लिए कानून का इस्तेमाल कर अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगा सकता है।