सांख्य दर्शन परिचय, सांख्य दर्शन में वर्णित 25 तत्व Show सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल है यहाँ पर सांख्य शब्द का अर्थ ज्ञान के अर्थ में लिया गया सांख्य दर्शन में प्रकृति पुरूष सृष्टि क्रम बन्धनों व मोक्ष कार्य - कारण सिद्धान्त का सविस्तार वर्णन किया गया है इसका संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है। सांख्य दर्शन में वर्णित 25 तत्व
सांख्य दर्शन में योग का स्वरूप-योग का अर्थ परमतत्व (परमात्मा ) को प्राप्त करना है इसलिए दर्शनों में भिन्न-भिन्न मार्गों का उल्लेख किया गया है सांख्य दर्शन में पुरूष का उद्देश्य इसी परमतत्व को प्राप्त करना कहा गया है तथा परमात्मा प्राप्ति की अवस्था को मोक्ष, मुक्ति एवं कैवल्य की संज्ञा दी गयी है जिस प्रकार योग दर्शन में पंचक्लेशो का वर्णन किया गया है तथा अविद्या, अस्मिता, राग,द्वेष व अभिनिवेश नामक इन पाँच क्लेशों को मुक्ति के मार्ग में बाधक माना गया है ठीक उसी प्रकार अज्ञानता को सांख्य दर्शन में मुक्ति में बाधक माना गया तथा इसके विपरित ज्ञान को साँख्य दर्शन में मुक्ति का साधन माना गया अज्ञानता के कारण मनुष्य इस प्रकृति के साथ इस प्रकार जुड जाता है कि वह स्वयं में एवं प्रकृति में भेद ना कर पाना ही इसके बंधन का कारण है सांख्य दर्शन का मत है कि यद्पि पुरूष नित्य मुक्त है अर्थात स्वतन्त्र है। परन्तु वह अज्ञानता के कारण स्वयं को अचेतन प्रकृति ये युक्त समझने लगता है इस कारण वह दुःखी होता है तथा भिन्न-भिन्न प्रकार की समस्याओं से घिरता है बन्धनों से युक्त होता है किन्तु आगे चलकर जब यह पुरूष ज्ञान प्राप्त करता हो तब वह अपने स्वरूप को पहचानने में सक्षम होता है तभी वह इस बंधन से मुक्त होता है। यह मैं नही हूँ अर्थात मैं अचेतन विषय नही हूँ मैं जड नही हूँ, मैं अन्त: करण नही हूँ, यह मेरा नही है, मै अहंकार से रहित हूँ, मैं अहकार भी नही हूँ, जब साधक साधना के माध्यम से इस ज्ञान की प्राप्ति करता है तब से उसकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्थ होता है तथा इसी के माध्यम सक
वह कैवल्य की प्राप्ति करता है। योग के साधक तत्व योग के बाधक तत्व ज्ञानयोगसांख्य दर्शन के 25 तत्व कौन से हैं?सांख्य दर्शन में क्रमशः 25 तत्त्व माने गए हैं। पच्चीस तत्त्व हैं- प्रकृति, पुरुष, महत् (बुद्धि), अहंकार, पंच ज्ञानेन्द्रिय (चक्षु, श्रोत, रसना, घ्राण, त्वक्), पंच कर्मेन्द्रिय (वाक्, पाद, पाणि, पायु, उपस्थ), मन, पंच- तंमात्र (रूप, रस, गंध, शब्द, स्पर्श) पंच-महाभूत (पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश)।
सांख्य दर्शन में कितने तत्व है?सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति और पुरुष दो मूल तत्व हैं और प्रकृति की 23 विकृतियाँ हैं और इस प्रकार कुल 25 तत्व हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार तत्वों की संख्या बताने के कारण ही इस दर्शन को सांख्य दर्शन कहा जाता है।
सांख्य के अनुसार सृष्टि कितने प्रकार की होती है?पुरुष या आत्मा :- सांख्य दर्शन के अनुसार दो परम तत्त्व हैं। पुरुष और प्रकृति दोनों एक दूसरे से नितान्त भिन्न हैं। पुरुष या आत्मा चेतन 80 Page 5 तत्त्व है तथा प्रकृति अचेतन या जड़ तत्त्व है। इन दोनों के संयोग से ही सृष्टि होती है।
सांख्य दर्शन के अनुसार गुण क्या है?तात्पर्य यह है कि सत्त्व, रजस् और तमस् द्रव्य रूप हैं। ये इसलिए भी द्रव्य है, क्योंकि सांख्य दर्शन में इनके भी गुणों का विवेचन प्राप्त होता है। सांख्यप्रवचनभाष्य के अनुसार सत्त्व रजस् और तमस इस अर्थ में गुण हैं कि ये रस्सी के तीनों गुणों (रेशों) के समान पुरुष को बाँधने का काम करते हैं।
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