गद्यांशों पर आधारित अतिलघु/लघु उत्तरीय प्रश्न निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- 1. ‘बालगोबिन भगत’ मँझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। साठ से उपर के ही होंगे। बाल पक गए थे। लम्बी दाढ़ी या जटाजूट तो नहीं रखते थे, किन्तु हमेशा उनका चेहरा सफेद बालों से ही जगमग किए रहता। कपड़े बिलकुल कम पहनते। कमर में एक लंगोटी-मात्र और सिर में कबीरपंथियों की-सी कनफटी टोपी। जब जाड़ा आता, एक काली कमली उपर से ओढ़े रहते। मस्तक पर हमेशा चमकता हुआ रामानंदी चंदन, जो नाक के एक छोर से ही, औरतों के टीके की तरह शुरू होता। गले में तुलसी की जड़ों की एक बेडौल माला बाँधे रहते। प्रश्न (क)-बालगोबिन भगत की आयु कितनी थी ? प्रश्न (ख)-‘उनका चेहरा सफेद बालों से ही जगमग किए रहता’-से लेखक का क्या आशय है? प्रश्न (ग)-बालगोबिन कौन थे, वह कैसे वस्त्र पहनते थे? 2. खेतीबारी करते, परिवार रखते भी, बालगोबिन भगत साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे उतरने वाले। कबीर को ‘साहब’ मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदेशों पर चलते। कभी झूठ नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता! -कभी वह दूसरे के खेत में शौच के लिये भी नहीं बैठते! प्रश्न (क)-गृहस्थ होते हुये भी भगत को साधु क्यों कहा जाता था ? प्रश्न (ख) यह किस आधार पर कहा जा सकता है कि बालगोबिन भगत कबीर को ‘साहब’ मानते थे ? प्रश्न (ग)-भगत के किस व्यवहार पर लोगों को हैरानी होती थी ? 3. आषाढ़ की रिमझिम है। समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ा है। कहीं हल चल रहे हैं कहीं रोपनी हो रही है। धान के पानी भरे खेतों में बच्चे उछल रहे हैं। औरतें कलेवा लेकर मेंड़ पर बैठी हैं। आसमान बादलों से घिराऋ धूप का नाम नहीं। ठंडी पुरवाई चल रही। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी। यह क्या है-यह कौन है! यह पूछना न पड़ेगा। बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े, अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अँगुली एक-एक धान के पौधे को, पंक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर! बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं, मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं वे गुनगुनाने लगती हैं हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं रोपनी करने वालों की अँगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं! बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जाूद! प्रश्न (क)-आषाढ़ की रिमझिम में समूचा गाँव खेतों में क्यों उतर पड़ा ? प्रश्न (ख)-‘एक स्वर तरंग झंकार-सी कर उठी’ का तात्पर्य क्या
है ? प्रश्न (ग)-साधु-सा जीवन व्यतीत करने वाले भगतजी खेत में क्या कर रहे थे ? 4. गर्मियों में उनकी ‘संझा’ कितनी उमस भरी शाम को न शीतल करती! अपने घर के आँगन में आसन जमा बैठते। गाँव के उनके कुछ प्रेमी भी जुट जाते। खँजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती। एक पद बालगोबिन भगत कह जाते, उनकी प्रेमी-मंडली उसे दुहराती-तिहराती। धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता-एक निश्चित ताल, एक निश्चित गति से। उस ताल-स्वर के चढ़ाव के साथ श्रोताओं के मन भी ऊपर उठने लगते। धीरे-धीरे मन-तन पर हावी हो जाता। होते-होते, एक क्षण ऐसा आता कि बीच में खँजड़ी लिए बालगोबिन भगत नाच रहे हैं और उनके साथ ही सबके तन और मन नृत्यशील हो उठे हैं। सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत है! प्रश्न (क)-उनके गायन तथा वादन
का श्रोताओं पर कैसा प्रभाव पड़ता था और वे बालगोबिन भगत के साथ क्या करने लगते थे? व्याख्यात्मक हल: प्रश्न (ख)-संगीत के कार्यक्रम में भगत और उनकी मंडली किन-किन वाद्यों को बजाया करती थी और उनके वादन-गायन की गति
कैसी होती थी? व्याख्यात्मक हल: प्रश्न (ग)-बालगोबिन भगत की संझा उमस भरी शाम को किस तरह
शीतल करती थी ? उस समय उनके साथी लोग कौन होते थे ? व्याख्यात्मक हल: 5. बालगोबिन भगत की संगीत-साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया, जिस दिन उनका बेटा मरा। इकलौता बेटा था वह! कुछ सुस्त और बोदा-सा था, किन्तु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते। उनकी समझ में ऐसे आदमियों पर ही ज्यादा नजर रखनी चाहिए या प्यार करना चाहिए, क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं। बड़ी साध से उसकी शादी कराई थी, पतोहू बड़ी ही सुभग और सुशील मिली थी। घर की पूरी प्रबन्धिका बनकर भगत को बहुत कुछ दुनियादारी से निवृत्त कर दिया था उसने। उनका बेटा बीमार है, इसकी खबर रखने की लोगों को कहाँ फुर्सत! किन्तु मौत तो अपनी ओर सबका ध्यान खींचकर ही रहती है। प्रश्न
(क)-बालगोबिन भगत के अनुसार कैसे लोग निगरानी और मुहब्बत के ज़्यादा हकदार होते हैं ? प्रश्न (ख)-बीमारी और मृत्यु की खबर में क्या अन्तर देखा जाता है ? प्रश्न (ग)-बालगोबिन भगत की संगीत साधना का उत्कर्ष किस दिन देखा गया ? 6. बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं! हाँ गाते-गाते कभी-कभी पतोहू के
नजदीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। आत्मा, परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली, भला इससे बढ़कर आनन्द की कौन-सी बात ? मैं कभी-कभी सोचता, यह पागल तो नहीं हो गए। किन्तु नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे उसमें उनका विश्वास बोल रहा था-वह चरम विश्वास जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है। प्रश्न (ख)- भगत जी पुत्रवधू को अपने
पास क्यों नहीं रखना चाहते थे ? प्रश्न (ग)- श्राद्ध की अवधि पूर्ण होने पर भगत ने क्या किया ? 7. बेटे के क्रिया-कर्म में तूल नहीं कियाऋ पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किन्तु ज्योंही श्राद्ध की अवधि पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी शादी कर देना। इधर पतोहू रो-रोकर कहती-मैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन बनाएगा, बीमार पड़े तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा ? मैं पैर पड़ती हूँ, मुझे अपने चरणों से अलग नहीं कीजिए। लेकिन भगत का निर्णय अटल था। तू जा, नहीं तो मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूँगा-यह थी उनकी आखिरी दलील और इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती ? प्रश्न (क)-बालगोबिन भगत द्वारा पुत्र का दाह-संस्कार पतोहू से ही कराने तथा
विधवा बहू की दूसरी शादी रचाने के निर्देश में उनकी किस विचारधारा का परिचय मिलता है? प्रश्न (ख)-पुत्रवधू ने बालगोबिन भगत से घर छोड़ने से पहले क्या प्रार्थना की थी तथा भगत जी ने उसे क्या कहकर अनसुना कर दिया
था? प्रश्न (ग)-बालगोबिन भगत ने पुत्र की मृत्यु के बाद अपनी पुत्रवधू को कहाँ भेज दिया और किस उद्देश्य से? स्पष्ट कीजिए। प्रश्न (ख)-बालगोबिन भगत की पतोहू ने भाई के साथ उनसे घर से न जाने के लिए क्या प्रार्थना की थी? इस प्रसंग में बहू के व्यवहार को आप कैसा मानते हैं ? प्रश्न (ग)-श्राद्ध की अवधि पूरी होने पर बालगोबिन भगत ने पतोहू के साथ कैसा व्यवहार किया? आप इसे कहाँ तक उचित मानते हैं? 8. बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई। वह हर वर्ष गंगा-स्नान करने जाते। स्नान पर उतनी आस्था नहीं रखते, जितना संत-समागम और लोक-दर्शन पर। पैदल ही जाते। करीब तीस कोस पर गंगा थी। साधु को संबल लेने का क्या हक? और, गृहस्थ किसी से भिक्षा क्यों माँगे? अतः घर से खाकर चलते, तो फिर घर पर ही लौटकर खाते। रास्ते भर खँजड़ी बजाते, गाते जहाँ प्यास लगती, पानी पी लेते। चार-पाँच दिन आने-जाने में लगते, किंतु इस लंबे उपवास में भी
वही मस्ती! अब बुढ़ापा आ गया था, किंतु टेक वही जवानी वाली। इस बार लौटे तो तबीयत कुछ सुस्त थी। खाने-पीने के बाद भी तबीयत नहीं सुधरी, थोड़ा बुखार आने लगा। प्रश्न (क)- भगत के गंगा-स्नान का मुख्य उद्देश्य क्या होता था? प्रश्न (ख)- गंगा-स्नान को आते-जाते वे किसी से न सहारा लेते थे और न किसी से कुछ माँगते थे। इससे उनके किस गुण की अभिव्यक्ति होती
है? प्रश्न (ग)- इस बार का गंगा-स्नान पिछले गंगा-स्नानों से किस प्रकार भिन्न था? बालगोबिन भगत पाठ के सारांश को यहाँ पढ़ें। बालगोबिन भगत पाठ को इस वीडियो की मदद से पूरा समझें । |