बहुत अद्भुत है यह संसार और मानव जीवन। कितना आश्चर्यजनक है कि मनुष्य जीवन जीता है, पर जीवन को जानता नहीं है। जीना एक बात है और उसे जानना दूसरी बात। जीवन को न जानने के कारण ही हम उस सूक्ष्म शरीर को, जो हमें निरंतर सक्रिय बनाए हुए है, नहीं जानते। जहां से हमें प्रकाश, गति और सक्रियता मिल रही है, श्वास का स्पंदन, हृदय की धड़कन जिसके माध्यम से हो रही है और मस्तिष्क की हर कोशिका जिसके कारण सक्रिय बनी हुई है, उसको हम नहीं जानते। परामनोविज्ञान के क्षेत्र में यह तथ्य स्पष्ट हो चुका है कि स्थूल शरीर बहुत कम शक्ति वाला है। मूल शक्ति का संचालन करने वाला है 'सूक्ष्म शरीर'। इसे 'तेजस शरीर' भी कहा गया है और इसे 'औरा' भी कहते है। 'औरा' वैदिक सिद्धांत का अद्वितीय विज्ञान है और इसका आध्यात्मिकता से सीधा संबंध है। यह शरीर के चारों ओर प्रकाशमय ऐसा अदृश्य आभावृत्त है जो व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व को परिभाषित करता है। Show सूक्ष्म शरीर 17 घटकों से मिलकर बना है। यह सूक्ष्म शरीर ही पुनर्जन्म का कारण है, क्योंकि सूक्ष्म शरीर मन प्रधान है, उसकी वासना नहीं मरती है। मनुष्य जन्म लेता है, मरता है फिर जन्म लेता है। इस प्रकार जन्म-मरण का यह चक्र चलता रहता है, क्योंकि न अविद्या मरती है और न ही मन अर्थात इन्द्रियजनित वासनाएं मरती है। इसी कारण वह हर जन्म में 'आशा-तृष्णा' में फंसा रहता है। वस्तुत: 'अविद्या' ही हमारे दु:ख का एकमात्र कारण है। अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश। 'पतंजलि योगसूत्र' में कहा गया है कि ये पंचक्लेश ही पांच बंधनों के समान हमें इस संसार में बांधे रखते है। इनमें से अविद्या ही कारण है और शेष चार क्लेश इसके कार्य है। आत्मा तो आनंदस्वरूप है। वह परमात्मा का अंश है, अत: प्रत्येक जीव ब्रह्म है। बाह्य एवं अंत: प्रकृति को वशीभूत करके अपने इस ब्रह्मभाव को व्यक्त करना ही जीव का चरम लक्ष्य है, जिसे वह अविद्या के कारण भूल गया है। अविद्या के बंधन से छूटकर ही हम जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा सकते है। [डॉ. सरोजनी पाण्डेय] मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर शरीर : हम सभी जीवात्मा इस तन को धारण करे हुए हैं। इस तन के बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं। हमारे जीवन का आधार ही यह तन है। यह तन भी शिव बाबा का दिया हुआ है तब हम इस तन की अनदेखी कैसे कर सकते हैं? यह तन परमात्मा की अमानत है। इस शरीर की पूरी देखरेख करना हमारा दायित्व बन जाता है इसकी अनदेखी करना भी पाप करने के समान है। इस तन के सभी अंग हमारे लिए आवश्यक है। आप सभी को इस शरीर का अल्प ज्ञान है ही पूरी तरह से से तो किसी को भी इस शरीर का ज्ञान नहीं है। इसी ज्ञान की श्रृंखला को
बढ़ाते हुए शरीर की संरचना का ज्ञान भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। आध्यात्मिक जीवन में यदि तीव्र प्रगति करनी है तो उसके लिए हमारा तन, मन और मस्तिष्क स्वस्थ रहना आवश्यक है यदि हमारा तन, मन और मस्तिष्क दूषित है, कमजोर है तो जीवन में कोई भी ऊंचाई प्राप्त करना बहुत मुश्किल हो जाता है चाहे वह साधारण प्राप्ति हो, विशेष लक्ष्य हो या आध्यात्मिक प्रगति। हम (आत्मा) इस शरीर में मस्तिष्क के द्वारा ही तन के सभी अंगों को संचालित करते हैं और शरीर के सभी अंग भी मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। उच्च पुरुषार्थ (कर्म) करने के लिए हमारे शरीर में मस्तिष्क समेत अन्य सभी अंगों का स्वस्थ्य रहना आवश्यक है। तभी हम (आत्मा) भी स्वस्थ्य पुरुषार्थ कर सकती है अन्यथा मस्तिष्क की कमजोरियां भी आत्मा को निरंतर प्रभावित करती रहेंगी जिससे हमारा
पुरुषार्थ भी निरंतर ढीला-ढाला और कमजोर होगा। मस्तिष्क की एकाग्रता भी लगातार भंग होती रहेगी और विचारों पर भी नियंत्रण नहीं रह सकता है। इसलिए तन को स्वस्थ रखने के लिए कोई भी रास्ता अपनाएं जिससे अधिक से अधिक तन स्वस्थ रख सकें और कोई भी बीमारी आपको अपना शिकार न बना सके। सूक्ष्म शरीर में कितने तत्व होते हैं?सूक्ष्म शरीर 17 घटकों से मिलकर बना है। यह सूक्ष्म शरीर ही पुनर्जन्म का कारण है, क्योंकि सूक्ष्म शरीर मन प्रधान है, उसकी वासना नहीं मरती है।
सूक्ष्म पोषक तत्व कौन से हैं?वैदिक दृष्टि के अनुसार मृत्यु के पश्चात भी न मरने वाला सूक्ष्म शरीर पांच ज्ञानेन्द्रियों, पांच कर्मेंद्रियों, पांच प्राण, एक मन और एक बुद्धि के योग से बना है। यही वह सूक्ष्म शरीर है जो कि प्रारब्ध और संचित कर्मों के कारण मृत्यु पश्चात बार बार जन्म लेता है।
सूक्ष्म शरीर के घटक क्या है?सूक्ष्म शरीर वो होता है जिसमे ज्ञानेंद्रिय, मन, बुद्धि, अहंकार आदि सब गुण होते है उसे ही सूक्ष्म शरीर कहते है। ये आत्मा को सृष्टि के आरंभ मे प्राप्त होता है और सृष्टि के अंत तक रहता है। अगर इसी बीच मे आत्मा उस सूक्ष्म शरीर से अलग हो जाए तो उसे मोक्ष कहते है।
सूक्ष्म शरीर कितने प्रकार के होते हैं?पहला अन्नमय कोष, दूसरा प्राणमय कोष, तीसरा मनोमय कोष, चौथा विज्ञानमय कोष और पांचवां आनंदमय कोष।
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