2. संचारी भाव – स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए जो भाव उत्पन्न होकर पुनः लुप्त हो जाते हैं उन्हें संचारी भाव कहते हैं। इनकी संख्या 33 मानी गई है। निर्वेद, शंका, ग्लानि, हर्ष, आवेग आदि प्रमुख संचारी भाव हैं। Show इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। 3. विभाव– स्थायी भावों को जाग्रत करने वाले कारक विभाव कहलाते हैं। रस की निष्पत्ति–हृदय में स्थित स्थायी भाव का जब अनुभाव, विभाव और संचारी भाव से संयोग होता है तब रस की निष्पत्ति होती है। उपर्युक्त उदाहरण में रस के चारों अंगों की निष्पत्ति इस प्रकार हुई है– इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। वात्सल्य रसजिन पंक्तियों को पढ़कर मन में ममता के भाव, वात्सल्य के भाव आएँ वहाँ वात्सल्य रस होता है। इसका स्थायी भाव वत्सल है। इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। श्रृंगार रस की उत्पत्तिसहृदय के हृदय में विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट हुआ 'रति' स्थायी भाव जब अपनी परिपक्वता को प्राप्त कर लेता है तब श्रृंगार रस की उत्पत्ति होती है। इसे 'रसराज' भी कहा जाता है। इसके दो भेद हैं– उक्त पंक्तियों में– इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। आशा है, उपरोक्त जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी। I hope the above information will be useful and important. Watch video for related information Watch related information below
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