व्यक्तित्व का प्रमुख तत्व क्या है? - vyaktitv ka pramukh tatv kya hai?

इसे सुनेंरोकेंवह विशेष लक्षणों का योगमात्र न होकर उनका एक विशिष्ट संगठन होता है। वह व्यक्ति के व्यवहार का समग्र गुण होता है। व्यक्तित्व दूसरों पर अपना प्रभाव डाले बिना नहीं रहता। अतः हम कह सकते हैं कि व्यक्तित्व के अन्दर व्यक्ति के लक्षण, योग्यताएँ, रुचियाँ, अभिवृत्तियाँ, मूल्य, प्रेरक तथा समायोजन करने के स्वाभाविक ढंग सम्मिलित हैं।

व्यक्ति और व्यक्तित्व में क्या अंतर है?

इसे सुनेंरोकेंव्यक्ति का समस्त व्यवहार उसके वातावरण या परिवेश में समायोजन करने के लिए होता है। जनसाधारण में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के वाह्य रूप से लिया जाता है, परंतु मनोविज्ञान में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के गुणों से है। मनुष्य के व्यक्तित्व की पहचान उसके बातचीत करने के ढंग से होती है।

व्यक्तित्व विकास से आप क्या समझते है?

इसे सुनेंरोकेंव्यक्तित्व विकास- व्यक्तित्व के विकास में वंशानुक्रमगत एवं वातावरणगत सभी घटकों का प्रभाव पड़ता है। व्यक्तित्व किसी व्यक्ति का व्यवहार है। व्यक्तित्व एक कलाकृति के समान होना चाहिए। जिस प्रकार एक कलाकृति में किसी भी प्रकार की कमी होने से वह पूर्ण नहीं मानी जाती उसी प्रकार व्यक्तित्त्व का सर्वांगीण विकास भी अपेक्षित है।

व्यक्तित्व शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Personality’ शब्द का हिंदी रूपांतरण है। Personality शब्द लैटिन भाषा के Persona से बना है, जिसका अर्थ-नकली चेहरा, वेशभूषा या नकाब से है जिस नाटक करते समय उसके पात्र पहनते हैं।

व्यक्तित्व के शाब्दिक अर्थ के अतिरिक्त कुछ अन्य दृष्टिकोण भी है जिनसे व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों की व्याख्या होती है। यह दृष्टिकोण निम्न है-

  1. सामान्य दृष्टिकोण ( General Approach )- सामान्य दृष्टिकोण से व्यक्तित्व सर्वांगीण विकास का स्वरूप है।
  2. दार्शनिक दृष्टिकोण( Philosophical approach )- दार्शनिक दृष्टिकोण से व्यक्तित्व संपूर्ण रूप में एक आदर्श रूप है।
  3. समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण ( Sociological approach )- समाजशास्त्रीय दृष्टि से व्यक्तित्व सामाजिक क्षेत्र में कुछ गुणों का एक संगठन मात्र है।
  4. मनो विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण ( Psychoanalytic approach )- मनोविश्लेषणत्मक व्याख्या के अनुसार व्यक्तित्व इदम्, अहम्, परम अहम् का स्वरूप है।
  5. मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण ( Psychological approach )- मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण में व्यक्तित्व वंश परंपरा तथा वातावरण की देन है।

व्यक्तित्व की परिभाषाएं ( Definitions of personality )

म्यूरहेड के शब्दों में – “व्यक्तित्व संपूर्ण व्यक्ति का समावेश है। यह व्यक्ति के गठन, रुचि, अभिरुचि, क्षमता तथा योग्यता और अभिवृत्तियों का विशेष संगठन है।”

वैरन के शब्दों में-“ ‘ज्ञानात्मक, भावात्मक, क्रियात्मक तथा शारीरिक विशेषताओं का एक व्यक्ति का संगठित स्वरुप जो दूसरों से बिल्कुल भिन्न होता है।”

वुडवर्थ के अनुसार – ” व्यक्तित्व व्यक्ति के संपूर्णता की विशेषता है जिसका प्रदर्शन उसके विचारों की आदत, व्यक्त करने के ढंग, अभिवृत्ति तथा रुचि, कार्य करने के ढंग तथा जीवन के प्रति उसकी दार्शनिक विचारधारा के रूप में परिभाषित किया जाता है।”

वैलेंटाइन के अनुसार- “ व्यक्तित्व जन्मजात तथा अर्जित गुणों का योग मात्र है। “

ऑलपोर्ट के अनुसार–  “व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनोशारीरिक तंत्रों का प्रगतिशील संगठन है,जो वातावरण में उसके अपूर्व समायोजन को निर्धारित करता है।

  1. व्यक्तित्व को गतिशील माना है। अर्थात् स्थिर नहीं। इसमें निरंतर परिवर्तन होता रहता।
  2. इसके अनुसार व्यक्तित्व एक ऐसा तंत्र है,जिसमें मानसिक एवं शारीरिक दोनों पक्षों का ज्ञान होता है। इस तंत्र के प्रमुख तत्व-शीलगुण,आदत,चित प्रकृति, संवेग, ज्ञान शक्ति,चरित्र अभिप्रेरक। ये सभी मानसिक गुण है,परंतु इनका सबका आधार शारीरिक है। अतः स्पष्ट है,कि व्यक्तित्व ना तो पूर्णतः शारिरिक है,ना ही मानसिक है। व्यक्तित्व इन दोनों पक्षों का सम्मिश्रण है।
  3. आलपोर्ट ने अपनी परिभाषा में व्यक्तित्व को वातावरण के साथ समायोजन करने के लिए उत्तरदाई माना है।

मन के अनुसार- ” व्यक्तित्व किसी व्यक्ति की बनावट, व्यवहार के ढंग, रुचि, अभिवृत्ति, शक्ति, योग्यता तथा अभिरुचियों के एक विशेष संगठन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। “

व्यक्तित्व का मनोविश्लेषण सिद्धांत ( Psychoanalysis theory of personality )

व्यक्तित्व का अध्ययन करने वाला सबसे पहला सिद्धांत मनोविश्लेषण सिद्धांत था। जिस का प्रतिपादन सिगमंड फ्रायड ने किया। इस सिद्धांत में मानव प्रकृति के निराशावादी तथा निश्चय वादी छवि पर बल डाला गया है।

इसमें व्यक्तित्व की व्याख्या करने के लिए अचेतन की इच्छाओं, यौन एवं आक्रामकता के जैविक आधारों, आरंभिक बाल्यावस्था के मानसिक संघर्षों को महत्वपूर्ण समझा गया है और इन्हें व्यक्तित्व का प्रमुख निर्धारक माना गया है। मनोविश्लेषण सिद्धांत मानव प्रकृति या स्वभाव के बारे में कुछ मूल पूर्व कल्पनाओं पर आधारित है जो निम्नांकित है-

  • मानव व्यवहार बाह्य कारकों द्वारा निर्धारित होता है तथा ऐसे व्यवहार अविवेकपूर्ण, अपरिवर्तनशील, समस्थितिक तथा ज्ञेय होते हैं।
  • मानव प्रकृति पूर्णता, शरीरगठनी तथा अप्रक्षलता जैसी पूर्व कल्पनाओं से हल्के फुल्के ढंग से प्रभावित होती है।
  • मानव प्रकृति आत्म निष्ठ पूर्व कल्पना से बहुत कम प्रभावित होती है।

इन पूर्व कल्पनाओं पर आधारित मनोविश्लेषण सिद्धांत की व्याख्या निम्नांकित चार मुख्य भागों में बांट कर की जाती है –

  1. व्यक्तित्व का संगठन ( Organization of personality )
  2. व्यक्तित्व की संरचना ( Structure of personality )
  3. व्यक्तित्व की गतिकी ( Personality dynamics )
  4. व्यक्तित्व का विकास ( Personality development )

1. व्यक्तित्व का संगठन ( Organization of personality ) – फ्रायड ने ने व्यक्तित्व के संगठन को चेतना के तीन स्तरों के आधार पर उल्लेखित किया है-

  1. चेतन-  चेतन से तात्पर्य मन के वैसे भाग से होता है जिसमें वे सभी अनुभूतियाँ एवं संवेदनाएं होती है जिनका संबंध वर्तमान से होता है। दूसरे शब्दों में चेतन क्रियाओं का संबंध तात्कालिक अनुभवों से होता है।
  2. अर्द्धचेतन – अर्द्धचेतन से तात्पर्य मानसिक स्तर से होता है, जो सचमुच में न तो पूर्णतः चेतन में होता है और ना ही पूर्णतः अचेतन में होता है। इसमें वैसी इच्छाएं, विचार, भाव आदि होते हैं जो हमारे वर्तमान चेतन या अनुभव में नहीं होते हैं परंतु प्रयास करने पर वह हमारे चेतन मन में आ जाते हैं।
  3. अचेतन- अचेतन का शाब्दिक अर्थ है जो चेतन या चेतना से परे हो। हमारे कुछ अनुभव इस प्रकार के होते हैं जो न तो हमारे चेतन में होते हैं और ना ही अर्द्धचेतन में। ऐसे अनुभव अचेतन में होते हैं। अचेतन मन में रहने वाले विचार एवं इच्छाओं का स्वरूप कामुक, असामाजिक, अनैतिक तथा घृणित होता है। फ्रायड के अनुसार अचेतन अनुभूतियों और विचारों का प्रभाव हमारे व्यवहार पर चेतन तथा अर्द्धचेतन की अनुभूतियों एवं विचारों से अधिक होता है।

2. व्यक्तित्व की संरचना ( Structure of personality ) – फ्रायड के अनुसार मन के गत्यात्मक मॉडल से तात्पर्य उन साधनों से होता है जिनके द्वारा मूल प्रवृत्तियों से उत्पन्न मानसिक संघर्षों का समाधान होता है। ऐसे साधन या प्रतिनिधि तीन है –

  1. उपाहम्- उपाहम् व्यक्तित्व का जैविक तत्व है जिसमें उन प्रवृत्तियों की भरमार होती है जो जन्मजात होती है तथा असंगठित, कामुक, आक्रामकपूर्ण तथा नियम आदि को मानने वाली नहीं होती है। उपाहम् की प्रवृत्तियां ‘आनंद सिद्धांत’ द्वारा निर्धारित होती है।
  2. अहम्- मन के गत्यात्मक पहलू का दूसरा प्रमुख भाग अहम् है। अहम् का वह हिस्सा है जिसका संबंध वास्तविकता से होता है। तथा जो बचपन में उपाहम् की प्रवृत्तियों से ही जन्म लेता है। अहम् वास्तविकता सिद्धांत द्वारा नियंत्रित होता है।
  3. पराहम्- पराहम् को व्यक्तित्व की नैतिक शाखा माना गया है जो व्यक्ति को यह बतलाता है कौन से कार्य अनैतिक है। यह आदर्शवादी सिद्धांत द्वारा निर्देशित एवं नियंत्रित होता है। पराहम् विकसित होकर एक तरफ उपाहम् की कामुक, आक्रमक एवं अनैतिक प्रवृत्तियों पर रोक लगाता है तो दूसरी और अहम को वास्तविक एवं यथार्थ लक्ष्यों से हटाकर नैतिक लक्ष्यों की ओर ले जाता है।

3. व्यक्तित्व की गतिकी ( Personality dynamics ) – फ्रायड के अनुसार मानव जीव एक जटिल तंत्र है जिसमें शारीरिक ऊर्जा तथा मानसिक ऊर्जा दोनों ही होते हैं। इन दोनों तरह की ऊर्जाओं का स्पर्श बिंदु उपाहम् होता है। फ्रायड ने इन ऊर्जाओं से संबंधित कुछ ऐसे संप्रत्यय का विकास किया जिनसे व्यक्तित्व की गत्यात्मक पहलुओं जैसे मूल प्रवृत्ति, चिंता तथा मनो रचनाओं का वर्णन होता है-

मूल प्रवृत्ति –मूल प्रवृत्ति से फ्रायड का तात्पर्य वैसे जन्मजात शारीरिक उत्तेजन से है जिसके द्वारा व्यक्ति के सभी तरह के व्यवहार निर्धारित किए जाते हैं। फ्रायड ने मूल प्रवृत्तियों को दो भागों में बांटा है –

(i) जीवन मूल प्रवृत्ति
(ii)मृत्यु मूल प्रवृत्ति

जीवन मूल प्रवृति को इरोस तथा मृत्यु मूल प्रवृति को थैनाटोस भी कहा जाता है।

चिंता- फ्रायड के अनुसार चिंता एक ऐसी भावात्मक एवं दुखद अवस्था होती है जो अहम् को आलंबित खतरा से सतर्क करती है ताकि व्यक्ति वातावरण के साथ अनुकूलित ढंग से व्यवहार कर सके। यह तीन प्रकार की होती है-

(i) वास्तविक चिंता
(ii) तंत्रिकातापी चिंता
(iii) नैतिक चिंता

अहम् रक्षात्मक प्रक्रम- अहम् रक्षात्मक प्रक्रम अहम् को चिंताओं से बचाता है। रक्षात्मक प्रक्रमों का प्रयोग सभी व्यक्ति करते हैं परंतु इस का प्रयोग अधिक करने व्यक्ति के व्यवहार में बाधा एवं स्नायु विकृति का गुण विकसित हो जाता है। सभी रक्षात्मक प्रक्रम में कम से कम निम्नांकित दो गुण पाए जाते हैं –

(i) सभी रक्षात्मक प्रक्रम अचेतन स्तर पर कार्य करते हैं। अतः वे आत्म-भ्रामक होते हैं।

(ii) ऐसे रक्षात्मक प्रक्रम वास्तविकता के प्रत्यक्षण को विकृत कर देते हैं। फलस्वरूप व्यक्ति के लिए चिंता का स्वरूप कम धमकीपूर्ण हो जाता है।

व्यक्तित्व के तत्व क्या है?

व्यक्तित्व के निर्धारक तत्व अथवा सिद्धांत : व्यक्ति का बाह्य आचरण उसकी जन्मजात एवं अर्जित वृत्तियाँ, उसकी आदतें तथा स्थायी भाव, उसके आदर्श एवं जीवन के मूल्य, ये सब मिलकर एक ऐसे मुख्य स्थायी भाव अथवा आदर्श स्व को जन्म देते हैं, जो मानव के व्यक्तित्व का मुख्य आधार है

व्यक्तित्व के प्रमुख 5 गुण कौन कौन से हैं?

व्यक्तित्व के गुण(vyaktitva ke gun) या अच्छे व्यक्तित्व के गुण(acche vyaktitva ke gun):.
शारीरिक गुण.
मानसिक गुण.
सामाजिक गुण.
संवेगात्मक गुण.
चारित्रिक गुण.
आत्म चेतना.
सामाजिकता.
शारीरिक एवं मानसिक.

व्यक्तित्व विकास क्या है इसके तत्व बताइए?

व्यक्ति के आचरण -व्यवहार, शिक्षा, योग्यता, शालीनता, पहनावा, उदारता, त्याग, क्षमा, बोद्धिकता जैसे तत्वों को अपनाकर जो अपनी छवि को औरो से अलग प्रस्तुत करता है इसे ही व्यक्तित्व विकास कहा जाता है!

व्यक्तित्व के निर्धारक में कितने तत्व होते हैं?

व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्त्वों (कारकों) में मनोवैज्ञानिक कारक भी सम्मिलित किये गये हैं। इन कारकों में अभिप्रेरणा, चरित्र, बौद्धिक क्षमताएँ, रुचियाँ, अभिवृत्तियाँ आदि सम्मिलित हैं, जो कि व्यक्तित्व के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं