रमज़ान मास की सूचना मिलते ही मुसलमान भाई किसकी तैयारी में लग जाते हैं - ramazaan maas kee soochana milate hee musalamaan bhaee kisakee taiyaaree mein lag jaate hain

रमज़ान मास की सूचना मिलते ही मुसलमान भाई किसकी तैयारी में लग जाते हैं - ramazaan maas kee soochana milate hee musalamaan bhaee kisakee taiyaaree mein lag jaate hain

कुरान में बीबियाँ बदलने का आदेश

कुरान में लिखा है की-

    “अगर तुम्हारा इरादा एक बीबी को बदल कर उसकी जगह दूसरी बीबी करने का हो तो जो तुमने पहिली बीबी को बहुत सामान दे दिया हो तो भी उसमे से कुछ भी न लेना |

   क्या किसी को तौहमत लगा कर जाहिर बेजा बात करके अपना दिया हुआ वापिस लेते हो ?”

(कुरान सुरह निसा आयत २०)

तलाक देकर या बिना तलाक दिए मर्दों को इच्छानुसार आपस में अपनी बीबियाँ बदल लेने का अधिकार कुरान ने इस शर्त पर दिया है की इसे दिया हुआ माल वापिस न लिया जावे |

इस शर्त का पालन करने वाले दो दोस्त आपस में अपनी बीबियाँ ऐसे ही बदल सकते हैं जैसे लोग अपनी बकरी या गाय, भेंस आदि बदल लेते हैं |

हिन्दू समाज में पति-पत्नी का रिश्ता जीवन भर के लिए अटूट होता है, पर इस्लाम में मर्द जब चाहे तब अपनी पुरानी बीबी को अपनी पुराणी जूती की तरह नई नवेली बीबी से बदल सकता है |

इस्लाम में कोई बीबी नहीं जानती की उसका शौहर कब उसे किसी दूसरी नई बीबी से बदल लेवे | इसके लिए तलाक का आसान तरीका इस्लाम में चालु जो है |

मर्द सिर्फ तीन बार तलाक ! तलाक !! तलाक !!! औरत को बोल दे और तलाक जायज हो जाता है |

     देखिये:- कुरान में सूरते बकर रुकू २८ में आयत २२८ से २३७ तक तलाक का विधान मौजूद है | उस पर श्री अहमद बशीर साहब ऍम.ए. कामिल, तथा दवीर कामिल मौलवी अपने कुरान के भाष्य में पृष्ठ ५५ पर लिखते हैं की:-

तलाक का यह दस्तूर है की जब कोई मुसलमान मर्द अपनी औरत को तलाक देता है तो कम से कम दो आदमियों के सामने तलाक देता है, और एक महीनें के बाद दूसरी तलाक भी उसी तरह देता है |

    यहाँ तक तो मियाँ बीबी में सुलहनामाँ हो सकता है, परन्तु इसके एक महीने बाद तीसरी तलाक दी जाती है | इस तीसरी तलाक देने के बाद फिर मर्द उस औरत के पास नहीं जा सकता | यह औरत तीन महीना दस दिन बाद दुसरा निकाह गैर आदमी से कर सकती है |

     दुसरे पति के साथ निकाह हो जाने पर अगर दुसरा पति तलाक दे दे तो सिर्फ इस हालत में की वह दुसरे पति के साथ सम्भोग कर चुकी हो अर्थात हमबिस्तर हो चुकी हो, तो तभी अपने पूर्व पति के साथ फिर निकाह कर सकती है |

    परन्तु जब तक किसी दुसरे आदमी के साथ निकाह करके विषयभोग न कर ले (यानी हमबिस्तर न हो ले ) तब तक कदापि अपने पहले खाविन्द अर्थात पति के साथ निकाह नहीं कर सकती |

इस तलाक के विधान में हम केवल यह बात नहीं समझ सके की तीसरी तलाक के बाद औरत को गैर आदमी से निकाह व् सम्भोग कराने के बाद ही उसे तलाक देकर आने के बाद ही पूर्व पति स्वीकार करेगा, बिना गैर आदमी से सम्भोग कराये नहीं करेगा ?

दुसरा शौहर करके उससे कुकर्म कराने पर औरत में ऐसा कौन सा जायका बढ़ जाता है ? मौलवी लोग इसका खुलासा करें तथा इस अजीबोगरीब फिलासफी को ज़रा सबकी भलाई के लिए विस्तार से समझाए |

हमारी निगाह में तो इस रिवाज के मुताबिक़ औरत और भी ज्यादा बेशर्म बनेगी |

कुरान की इस आयत के समर्थन में बुखारी शरीफ में एक कथा दी है, जो हदीस न० ६९२ पृष्ठ ३३१ व् ३३२ पर लिखी है, देखिये-

हजरत आयशा फरमाती हैं की-

        “रफाअकुरती की औरत रसूलल्लाह सलालेहु वलैहिअसल्लम (मुहम्मद साहब) की खिदमत में हाजिर हुई और अर्ज किया की में रफाअ के पास (यानी उसके निकाह में) थी |

   उसने मुझे तीन तलाक दे दी उसके बाद मैंने अब्दुल रहमान बिन जबीर से निकाह कर लिया | परन्तु उसके पास (उसका लिंग) कपडे के फुन्दने की तरह है ! यानी उअसका ऐजातमासुल ढीला और नरम है |

    तब आपने फरमाया ! “क्या तू रफाअ के पास फिर जाना चाहती है ? नहीं ( तू नहीं जा सकती ) जब तक तू अब्दुल रहमान बिन जबीर का शहद न चख ले और वह तेरा शहद न चख ले” |

तिरमिजी शरीफ में भी सफा २२५ हदीस ९८१ में यही कथा दी है बस! फर्क सिर्फ इतना है की –

वहां शहद की जगह “जायका” न चख ले और तेरा शहद वह न चख ले  ये शब्द लिखे है |

आश्चर्य है इस्लाम में ऐसी शर्नाक बात को बीबी आयशा के मुहँ से कहलवाया गया है जिसे कोई भी औरत अपने मुहँ से कहना अथवा बताना पसन्द नहीं कर सकती |

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)


रमजान क्या है

माह ए रमजान क्या है। रमजान इस्लामिक साल का नवां महीना होता है। यह शाबान महीने के बाद आता है। इस्लाम में इस महीने से ज्यादा मुबारक दूसरा कोई महीना नहीं। इस्लामिक एहकामात के मुाताबिक रोजे अदायगी इसी महीने में रखी गई। रोजा इस्लाम के पांच फर्ज में से एक है। यह हर बालिग मुसलामान पर फर्ज है। इस माह में इबादत के नियम कड़े होते हैं। मान्यता है कि इस महीने में इबादत का सवाब भी आम दिनों की अपेक्षा 70 गुना बढ़ा दिया जाता है।


रमजान का अर्थ

रमजान का क्या मतलब है। रमजान का शाब्दिक अर्थ (Ramzan Meaning) शब्दकोश में पिघलने का होता है। कहा जाता है कि रमजान के महीने में जब इंसान इबादत कर दुआ करता है तो वह कबूल होती है और गुनाह पिघलकर अपना वजूद खत्म कर देते हैं। आदमी पाक साफ हो जाता है उसकी माफी हो जाती है। इसलिये इस महीने का नाम रमजान पड़ा। रमजान और रोजे में फर्क है।

रमजान का इतिहास

रमजान उपवास और प्रार्थना के साथ आत्मनिरीक्षण करने का महीना है। इस महने में न इबादतों का काफी महत्व है और यह गुनाहों की माफी का महीना कहा जाता है। यह इस्लाम के पांच स्तंभ, शहादा (कलमा), नमाज, रोजा, जकात और हज में से एक है। इसका जिक्र कुरआन में आया है। कहा जाता है कि इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक सन दो हिजरी में अल्लाह के हुक्म से मुसलमानों पर रोजे फर्ज किये गए थे। इसी महीने में कुरआन नाजिल (प्रकट) हुआ था। कहा जाता है कि रमजान के आखिरी हिस्से में 21, 23, 25, 27 और 29 में से कोई एक रात लैलतुल कद्र होती है। इसी दिन कुरआन को नाजिल किया गया था।

रोजा क्या है

रमजान पूरे महीने को कहते हैं जबकि इस महीने में रोजाना पालन किये जाने वाले व्रत को रोजा कहते हैं। इस्लाममें रोजा एक फर्ज इबादत है। हर सेहतमंद (बालिग) मुसलमान के लिये यह अनिवार्य है। चूंकि इस्लामिक महीने चांद के आधार पर तय होते हैं इसलिये एककाध रोजे कम ज्यादा हो सकते हैं।

रमज़ान मास की सूचना मिलते ही मुसलमान भाई किसकी तैयारी में लग जाते हैं - ramazaan maas kee soochana milate hee musalamaan bhaee kisakee taiyaaree mein lag jaate hain

मुसलमानों के लिये खास है रमजान का महीना IMAGE CREDIT:

तरावीह क्या है

तरावीह भी रमजान की इबादत का एक हिस्सा है। तरावीह वो नमाज होती है जो सिर्फ रमजान में ही अदा की जाती है। यह 20 रकअत की होती है। लम्बी नमाज होने के नाते ही 4 रकअत के बाद थोड़ा लमहा बैठकर राहत का होता है। इसे तरवीहा कहते हैं। तरवीहा का बहुवचन होता है 'तरावीह'। तरावीह का अर्थ होता है लम्बी नमाज।


सहरी क्या है

रोजा सहर के वक्त फज्र से शुरू होकर शाम को सूर्योदय के बाद मगरिब की अजान तक होता है। सहर का अर्थ होता है सुबह। उस वक्त हम रोजे की नीयत कर मामूली रूप से रस्म अदायगी के तौर पर कुछ खाते हैं। यही सहरी खा लेना है। सहरी का वक्त फज्र क नमाज का वक्त शुरू होने तक होता है।


इफ्तारी क्या है

इफ्तार का अर्थ शब्दकोश के मुताबिक किसी बंदिश को खोलना है। रमजान के रोजों में दिन भर खाने-पीने की बंदिशें होती हैं। शाम को मगरिक की अजान होते ही ये बंदिश खत्म हो जाती है। इसलिये इसे इफ्तारी कहा जाता है। खजूर से इफ्तार करने को अफजल (प्राथमिकता) माना जाता है।

रमज़ान मास की सूचना मिलते ही मुसलमान भाई किसकी तैयारी में लग जाते हैं - ramazaan maas kee soochana milate hee musalamaan bhaee kisakee taiyaaree mein lag jaate hain

मुफ्ती हाारून रशीद नक्शबंदी, इमाम उस्मानिया मस्जिद, वाराणसी IMAGE CREDIT:

रमजान में सवाब (पुण्य)

रमजान का महीना मुसलमानों के लिये सबसे ज्यादा सवाब का महीना होता है। दूसरे दिनों में जो नेक अमल (सद्कर्म) किये जाते हैं उसके मुकाबले में रमजान में नेकियों का सवाब 70 गुना बढ़ा दिया जाता है। फर्ज इबादतों (फर्ज नमाज) का सवाब 70 गुना बढ़ जाता है तो सुन्नत और नफ्ल इबादतों का सवाब फर्ज के बराबर कर दिया जाता है।

रोजा राने से छूट किसे

बीमार को या फिर जिसकी बीमारी बढ़ने का डर हो उसे रोजे रखने से छूट मिलती है। इसके अलावा गर्भवती महिला, बच्चे को दूध पिलाने वाली मां और बहुत अधिक वृद्घ को इससे छूट रहती है।


इस्लामिक महीनों के नाम

मुहर्रम, सफ़र, रबी-उल-अव्वल, रबी उल-सानी / रबी उल-आख़िर, जमादिल-अव्वल, जमादी-उल-आख़िर, रजब, शाबान, रमज़ान, शव्वाल, ज़िल्काद, ज़िल्हिज्ज

(मुफ्ती हाारून रशीद नक्शबंदी, इमाम उस्मानिया मस्जिद, वाराणसी)