अमोनिया की गंध बाहर कितने समय तक रहती है? - amoniya kee gandh baahar kitane samay tak rahatee hai?

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अमोनिया की गंध बाहर कितने समय तक रहती है? - amoniya kee gandh baahar kitane samay tak rahatee hai?

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  • Jalandhar News Ammonia Gas Leak In The Ice Factory On Ladowali Road Spread To 30 Feet

लाडोवाली रोड पर शुक्रवार 11:45 पर बर्फ के कारखाने से अमोनिया गैस का रिसाव होने से अफरा-तफरी मच गई। जैसे ही गैस का रिसाव हुआ, दशमेश नगर में कारखाने के बैकगेट में से गैस का जबरदस्त गुबार निकला और ये करीब तीस फीट दूर तक फैला। तीखी गंध से आंखों में जलन होने लगी। मोहल्ले में सबसे पहले गैस के रिसाव की जानकारी कांग्रेस नेता राजकुमार को मिली, जिनका घर बिल्कुल पीछे है। धीरे-धीरे घरों के अंदर जब गैस पहुंची तो महिलाएं बाहर भागीं। सीसीटीवी फुटेज से पता चल कि जब गैस लीक हुई तो कारखाने के अंदर करीब 15 लोग थे।

उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले भी रात को गैस लीक हो गई थी। उधर, कारखाने के बाहर सीवरेज पाइप खोद रहे प्लंबरों ने बताया कि गैस रिसाव होने पर कारखाने के कर्मचारी भाग कर बाहर निकले तो उसके बाद उन्होंने भी दौड़ लगा दी। घटना के करीब दो घंटे बाद भी कारखाने के सामने गैस की तेज गंध का असर दिखा। लाडोवाली रोड से निकल रहे लोगों का जी मचलने लगा। कुछ महिलाओं को तो उल्टियां भी आ गईं। भीड़ बढ़ती देखकर कारखाने का गेट बंद कर दिया गया। दोपहर करीब डेढ़ बजे तक तक कारखाने की छत पर गैस स्टोरेज की सुरक्षा का प्रबंध चल रहा था।

लापरवाही घनी अाबादी के बीच कारखाना, पहले भी हो चुकी गैस लीक

गैस लीकेज के दौरान फैक्ट्री से दौड़कर निकलते हुए कर्मचारी।

मोहल्ला प्रधान बोले- कारखाना यहां से शिफ्ट हो
कांग्रेस के सर्किल प्रेसिडेंट और मोहल्ला प्रधान राजकुमार ने कहा कि कुछ साल पहले भी गैस रिसाव के बाद पाॅल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और जिला प्रशासन को लेटर लिखी गई थी कि कारखाना शिफ्ट करवाया जाए। पहले यहां सिर्फ बर्फ बनती थी लेकिन अब आलू भी स्टोर किया जाता है। आइसक्रीम के वाहनों से भी लोगों को परेशानी होती है। गैस रिसाव होने पर कारखाना मालिक का फर्ज था कि लोगों को दूर जाने के लिए कहे लेकिन किसी को बताया नहीं गया। सीसीटीवी फुटेज में देखा गैस का कितना बड़ा गुबार पैदा हुआ है।

बर्फ का उक्त कारखाना कभी अबादी से दूर था लेकिन डीसी कांप्लेक्स बनने और मार्केट विकसित होने के बाद घनी अबादी के बीच आ गया है। जब गैस लीक हुई तो डीसी कांप्लेक्स के अंदर पटवारखाने में लोगों को आंखों में चुभन महसूस हुई। यहां विशाल कुमार शोरू ने कहा- आंखों में जलन का कारण पता नहीं चल रहा था। कारखाने के सामने भीड़ देखी तो पता लगा कि गैस लीक हुई है। उधर, कारखाने के अगल-बगल में आटा और आयल मिल और मार्केट भी है। इसके पीछे करीब 1000 घरों वाला दशमेश नगर है, जिसकी कई गलियां महज 3 फीट चौड़ी हैं।

‘गैस खतरनाक नहीं, एसी-फ्रिज में होती है इस्तेमाल’
इस बारे फैक्ट्री के संचालक विवेक कुमार ने कहा कि एक वाल्व में खराबी आने से अमोनिया गैस लीक हो गई थी। गैस टैंक में तीन सेफ्टी वाल्व लगे होते हैं ताकि किसी एक में खराबी आए तो बाकी दो गैस को रोके रखें। शुक्रवार को एक वाल्व में खराबी आई थी। हालांकि गैस लीक जरूर हुई लेकिन इसमें बहुत बड़ा बचाव हुआ है। समय रहते गैस रिसाव पर काबू पा लिया गया। उन्होंने कहा कि यह गैस खतरनाक नहीं होती, घरों में एयर कंडीशनर और फ्रिज में यही गैस इस्तेमाल होती है।

आसपास रहने वाले लोगों को आंखों में हुई जलन, राहगीरों को आने लगी उल्टियां
अमोनिया की गंध आए तो गीला रुमाल बांधें... अमोनिया गैस ठंडक पैदा करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। ये कोल्ड स्टोरेज में जमा करके रखी जाती है। यह गैस हवा के रुख के साथ बहती है। अगर कहीं गैस लीकेज हो जाए तो चेहरे पर गीला रुमाल रखकर खुले एरिया में आ जाना चाहिए। जिस तरफ हवा का रुख है, उसके दूसरे तरफ खड़े होना चाहिए। ईएसआई अस्पताल के चेस्ट स्पेशलिस्ट डाॅ. नरेश बाठला ने कहा कि अगर सांस के रास्ते भारी मात्रा में अमोनिया गैस फेफड़ों में चली जाए तो इसका बुरा असर पड़ता है।

जैसी धारणा वैसे परिणाम। धारणा को परिणाम बनते देर नहीं लगती। इसीलिए रिश्ते बिगड़ते हैं, तो बिगड़ते ही चले जाते हैं। हम सारी शक्ति मन के बाहर लगाते हैं, जबकि धारणा तो मन के भीतर दुबकी है!

मन इतना शक्तिशाली है कि अगर हम ठीक से उसे न संभालें, समझें तो बहुत संभव है कि वह हमें ऐसे भंवर में उलझा दे, जिसकी हमने कल्पना भी न की हो। आज संवाद की शुरुआत एक छोटे से मनोवैज्ञानिक प्रयोग से करते हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग कर रहे थे। एक दिन वह एक बड़ी-सी बोतल जो अच्छी तरह से सील बंद थी, अपनी क्लास में लेकर पहुंचे। विद्यार्थियों से उन्होंने कहा, ‘इस बोतल में अमोनिया गैस है। मैं यह प्रयोग करना चाहता हूं कि कक्षा के अंतिम विद्यार्थी तक पहुंचने में यह कितना समय लेती है। जैसे ही मैं इसका ढक्कन खोलूंगा, आपको अपनी जगह बैठे-बैठे हाथ उठाना है। जैसे ही आपको इसकी गंध महसूस हो तुरंत हाथ उठा दीजिए। जैसे-जैसे पहले विद्यार्थी से अंतिम विद्यार्थी तक यह गंध पहुंचे वह हाथ उठाता चले।’

विद्यार्थी तैयार। सारी दुनिया से मन काटकर उन्होंने गंध महसूस करने में लगा दिया। मनोवैज्ञानिक ने बोतल से तेजी से ढक्कन उठाया और उतनी ही फुर्ती से अपनी नाक पर रूमाल रख ली। दो सेकंड में ही सबसे आगे बैठे विद्यार्थी ने हाथ उठा दिया, फिर उसी के अनुसार दूसरे, तीसरे और कुछ ही पलों में सबसे आखिरी में बैठे विद्यार्थी ने भी बता दिया कि अमोनिया गैस उस तक पहुंच रही है। पंद्रह-बीस सेकंड में पूरी कक्षा ने अमोनिया की गंध महसूस कर ली। कुछ विद्यार्थियों ने तो यहां तक बताया कि उनकी तबीयत ठीक नहीं होने के कारण वह ठीक से गंध महसूस नहीं कर पा रहे हैं।

प्रोफेसर चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठ गए। कुछ मिनट बाद बोतल को चारों ओर घुमाते हुए जोरदार ठहाका लगाया। उन्होंने कहा, इसमें कोई अमोनिया नहीं है। इस बोतल में कोई गैस नहीं है। अमोनिया की गंध आपके मन के भीतर है। जैसी धारणा वैसे परिणाम। धारणा को परिणाम बनते देर नहीं लगती। इसीलिए रिश्ते बिगड़ते हैं, तो बिगड़ते ही चले जाते हैं। हम सारी शक्ति मन के बाहर लगाते हैं, जबकि धारणा तो मन के भीतर दुबकी है!

मत सोचिए कि यह मनोवैज्ञानिक प्रयोग केवल किसी विश्वविद्यालय में घटते हैं। हमारा मन हर जगह एक जैसा ही है। असली बात तो यह है कि जीवन से बड़ी कोई दूसरी प्रयोगशाला नहीं। जीवन में तो ऐसे प्रयोग हर दिन ही करते रहते हैं। जिस तरह इस कक्षा में बिना गंध के भी विद्यार्थी गंध महसूस करने लगे, ठीक उसी तरह से हम जीवन में जिस दिशा में विचार करते जाते हैं, धारणाएं बनाते जाते हैं। उसके अनुकूल ही हमारे परिणाम आते हैं और हम उसी दिशा में आगे बढ़ते जाते हैं।

जीवन संवाद को ‘लॉकडाउन’ और उसके बाद पैदा हुए आर्थिक सामाजिक संकट के कारण जीवन में आ रहे प्रभावों के बारे में हर दिन इसी तरह के अनुभव मिल रहे हैं। बहुत से लोगों के संकट वास्तविक हैं, लेकिन लगभग उतने ही लोगों के संकट मनोवैज्ञानिक हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि जिनके संकट वास्तविक हैं, वह कहीं मजबूती से अपने सीने में संघर्ष का लोहा लेकर चल रहे हैं। उनकी इच्छाशक्ति मजबूत है। जीवन के प्रति आस्था गहरी है। लेकिन, जिस तक संकट नहीं आया। आने को है, लेकिन आया नहीं। उसका मन सबसे अधिक घबराहट में है।

इस दौरान मैं तीन तरह के लोगों से नियमित रूप से संवाद कर रहा हूं। पहले वे जिनका कोरोना-वायरस के कारण बहुत अधिक नुकसान हुआ, नौकरी चली गई। आर्थिक संकट घर में प्रवेश कर गया। दूसरे वे जो थोड़े-थोड़े प्रभावित हुए। नौकरी गई तो नहीं, लेकिन वेतन बहुत कम हो गया। तीसरे और सबसे अधिक वह, जिनको लग रहा है कि संकट गहराने को है। आया नहीं है, उसके आने की गंध आ रही है। उस गंध से बेचैनी महसूस हो रही है।

सबसे खतरनाक असली संकट नहीं है। जो आ गया है वह संकट भी नहीं है। सबसे अधिक संकटपूर्ण स्थिति मानसिक है। संकट आ गया, तो क्या करेंगे! आया नहीं, लेकिन सपनों में आ गया है। जो मन में आया है उसका भय उसके प्रकट होने से कहीं अधिक ज्यादा है। इसी कारण ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो निराशा, संकट आने की आहट के कारण अपना जीवन दांव पर लगा रहे हैं।

दीये तूफान से पहले मन निराश नहीं करते। उनका जीवन उजाले के प्रति समर्पित है। वह पहले हार नहीं मानते। कोरोना से लड़ाई दीये और तूफान जैसी है। निर्बल की लड़ाई बलवान से! सबसे जरूरी मन का साहस है। मन का साहस सबसे पहले। उसे संभालिए। (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र