Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूतेRBSE Class 9 Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Questions and Answersप्रश्न 1.
इस प्रकार प्रस्तुत व्यंग्य-निबन्ध से प्रेमचन्द के व्यक्तित्व को संघर्षशील, अपराजेय, मर्यादित, स्वाभिमानी, सादगीयुक्त एवं घिसी-पिटी परम्पराओं का विरोधी बताया गया है। प्रश्न 2. प्रश्न 3. (ख) तुम परदे का महत्त्व नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं। (ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो। प्रश्न 4. उक्त विचार बदलने का अन्य कारण यह भी व्यंजित हुआ है कि प्रेमचन्द का जीवन अर्थाभाव से ग्रस्त रहा। इस कारण उनके पास पोशाकों की भी कमी रही होगी और वे अलग-अलग पोशाकें नहीं पहन सके होंगे। एक महान साहित्यकार के जीवन में यह विडम्बना की बात थी। प्रश्न 5.
प्रश्न 6. रचना और अभिव्यक्ति - प्रश्न 7. वे संसद में किसी की माँग या समस्या को उठाने के लिए मोटी रकम चुपचाप डकार लेते हैं। जन-कल्याण के कार्यक्रमों के लिए आवण्टित धन को काले तरीकों से हजम कर जाते हैं। इस तरह वे अन्दर से काले, स्वार्थी एवं भ्रष्ट रहते हैं, जबकि बाहर से उजले, जनहितकारी एवं बेदाग खद्दरधारी बनते फिरते हैं। ऐसे नेताओं का चरित्र तो अन्दर से कुछ और बाहर से कुछ और रहता है। प्रश्न
8. भाषा-अध्ययन - प्रश्न 9. ठोकर मारना-चोट मारना, अपमानित करना। व्यक्तिगत सुख-भोग की लालसा को ठोकर मारने वाले ही महापुरुष बनते हैं। पहाड़ फोड़ना-बाधाएँ नष्ट करना। नदियों की तरह पहाड़ फोड़कर आगे बढ़ने वाले ही जीवन में प्रगति कर पाते हैं। हौसले पस्त होना-उत्साह कम होना। निरन्तर बढ़ती महंगाई को देखकर अब मध्यमवर्ग के हौसले पस्त हो रहे हैं। टीला खड़ा होना-बाधाएँ आना, रुकावट आना। वर्तमान में मानव सभ्यता के विकास में अनेक टीले खड़े हो रहे हैं। प्रश्न 10. पाठेतर सक्रियता - महात्मा गाँधी भी अपनी वेश-भूषा के प्रति एक अलग सोच रखते थे, इनके पीछे क्या कारण रहे होंगे? पता लगाइए। RBSE Class 9 Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न : निर्देश-निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर उनसे सम्बन्धित प्रश्नों के उत्तर दीजिए : 1. मैं चेहरे की तरफ देखता हूँ। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अंगुली बाहर दिख रही है? क्या तुम्हें इसका जरा भी एहसास नहीं है? जरा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अंगुली ढक सकती है? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है। फोटोग्राफर ने जब 'रेडी प्लीज' कहा होगा, तब परम्परा के अनुसार तुमने मुस्कान लाने की कोशिश की होगी, दर्द के गहरे कुएँ के तल में वहीं पड़ी मुस्कान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होंगे कि बीच में ही 'क्लिक' करके फोटोग्राफर ने 'बैंक यू' कह दिया होगा। विचित्र है यह अधूरी मुस्कान। इसमें मुसकान नहीं, उसमें उपहास है, व्यंग्य है। प्रश्न 1. लेखक
ने 'साहित्यिक पुरखे किसके लिए कहा है? 2. फोटो खिंचाते समय फोटोग्राफर ने प्रेमचन्द से मुसकराने के लिए कहा। तब उन्होंने उसके कथनानुसार मुसकराने की कोशिश की होगी और धीरे-धीरे चेहरे पर मुसकान ला रहे होंगे कि तभी फोटोग्राफर ने फोटो खींच लिया। इस तरह प्रेमचन्द के पूर्णतया न मुस्करा पाने से उनकी मुसकान अधूरी रह गई। 3. फोटो खिंचवाते समय प्रेमचन्द अपनी धोती को यदि थोड़ा-सा नीचे की ओर खींच लेते, अर्थात् सिद्धान्तों से समझौता कर लेते, तो अंगुली ढक सकती थी। नया जूता पहनकर भी वे अपने पैर की अंगुली ढक सकते थे। 4. इस गद्यांश से प्रेमचन्द की इस विशेषता का पता चलता है कि वे सरल और सहज स्वभाव वाले व्यक्ति थे। वे वास्तव में जैसे थे, वैसे ही दिखाना चाहते थे। वे अपनी वेश-भूषा एवं बाहरी पहनावे के प्रति बेपरवाह रहते थे क्योंकि वे गम्भीर स्वभाव के एवं विचारों में डूबे हुई से दिखाई देते थे। 2. यह कैसा आदमी है, जो खुद तो फटे जूते पहने फोटो खिंचा रहा है, पर किसी पर हँस भी रहा है। फोटो ही खिंचाना था, तो ठीक जूते पहन लेते या न खिंचाते। फोटो न खिंचाने से क्या बिगड़ता था। शायद पत्नी का आग्रह रहा हो और तुम 'अच्छा, चल भई' कहकर बैठ गये होंगे। मगर यह कितनी बड़ी 'ट्रेजडी' है कि आदमी के पास फोटो खिंचाने को भी जूता न हो। मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते, तुम्हारे क्लेश को अपने भीतर महसूस करके जैसे रो पड़ना चाहता हूँ, मगर तुम्हारी आँखों का यह तीखा दर्द-भरा व्यंग्य मुझे एकदम रोक देता है। प्रश्न 1. यदि प्रेमचन्द को फोटो का महत्त्व ज्ञात होता, तो वे क्या करते? 2. फोटो खिंचवाने का यह कारण बताया गया है कि प्रेमचन्द को न चाहते हुए भी पत्नी का आग्रह मानना पड़ा होगा। 3. फोटो को देखकर लेखक को महसूस होता है कि प्रेमचन्द किसी बड़े क्लेश से आक्रान्त थे, उनके हृदय में कोई दर्द भरा था। इस बात पर लेखक रोना चाहता था, परन्तु प्रेमचन्द की फोटो में उनकी आँखों में भरे हुए तीखे व्यंग्य को देखकर वह वैसा नहीं कर पाता है। 4. प्रेमचन्द जैसे महान साहित्यकार के पास आर्थिक दशाहीनता के कारण फोटो खिंचवाने के लिए एक जोड़ी अच्छे जूते नहीं थे और पत्नी के आग्रह पर फटे हुए जूते में ही फोटो खिंचवाने को विवश रहे। यह सबसे बड़ी ट्रेजडी थी, जिस ओर लेखक ने संकेत किया है। 3. तुम फोटो का महत्त्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे के कोट से वर दिखाई करते हैं और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो खिंचवाने के लिए बीवी तक माँग ली जाती है, तुम से जूते माँगते नहीं बने। तुम फोटो का महत्त्व नहीं जानते। लोग तो इन चुपड़कर फोटो खिंचवाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए। गन्दे से गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है। प्रश्न 1. 'तुम फोटो का महत्त्व नहीं समझते।' लेखक ने यह किसके लिए और क्यों कहा है? 2. लेखक ने बतलाया है कि लोग अपनी सुन्दर फोटो खिंचवाने के लिए उधार के जूते, उधार का कोट और यहाँ तक कि उधार की बीवी तक माँग लेते हैं। इसके साथ ही कई लोग इत्र लगाकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि फोटो भी महकती रहे। 3. प्रेमचंद अपने जीवन में सरल और सहज रहे। उन्होंने कभी भी दिखावटीपन का जीवन नहीं जिया। लेखक का यह कथन उनकी आडम्बरहीनता के गुण की ओर संकेत है। 4. इस कथन में निहित व्यंग्य यह है कि गंदे आदमी भी अपनी छवि दूसरे के सामने सुन्दर बना कर पेश करते हैं। वे अपनी हर प्रकार की गन्दगी छिपाने की हर संभव कोशिश करते हैं और इस प्रदर्शन से वे अपनी स्वच्छ छवि दूसरों के सामने बनाये रखने का प्रयास करते हैं। 4. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिले होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्यौछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडम्बना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ। तुम महान् कथाकार, उपन्यास सम्राट्, युग-प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है। प्रश्न 1. टोपी और जूते के मूल्य में क्या सम्बन्ध रहा है? 2. इसका आशय यह है कि वर्तमान भौतिकतावादी युग में धनवानों अर्थात् वैभव-सम्पन्न लोगों को सम्मान के योग्य माना जाता है। अब गुणवान लोगों को भी पैसे वालों के सामने मजबूरी में झुकना पड़ता है। 3. प्रस्तुत गद्यांश में टोपी और जूते के माध्यम से यह व्यंग्य किया गया है कि समाज में टोपी अर्थात् इज्जत एवं गुणों को अब उतना महत्त्व नहीं दिया जाता है। अब जूते अर्थात् आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न या ताकतवर को ही श्रेष्ठ माना जाता है। अतः गुणी को धनी से कमतर मानने पर व्यंग्य किया गया है। 4. हमारे देश में न तो साहित्यकारों को मान-सम्मान मिलता है और न धन। प्रेमचन्द जैसे महान साहित्यकार लेखन से अपनी आजीविका नहीं कमा पाए। यह बहुत बड़ी विडंबना है। 5. मुझे लगता है, तुम किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे हो। कोई चीज जो परत-दर-परत सदियों से जम गई है, उसे शायद तुमने ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया। कोई टीला जो रास्ते पर खड़ा हो गया था, उस पर तुमने अपना जूता आजमाया। तुम उसे बचाकर, उसके बगल से भी निकल सकते थे। टीलों से समझौता भी तो हो जाता है। सभी नदियाँ पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं, कोई रास्ता बदलकर, घूमकर भी तो चली जाती हैं.....तुम्हारी यह पाँव की अंगुली मुझे संकेत करती-सी लगती है, जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो। प्रश्न
1. लेखक के अनुसार प्रेमचन्द ने किस पर अपना जूता आजमाया? 2. सामाजिक जीवन में अनेक बाधक तत्त्व टीलों की तरह मार्ग रोक देते हैं। समझौतावादी लोग या स्वार्थी एवं कमजोर लोग उनसे समझौता कर लेते हैं, परन्तु सिद्धान्तवादी लोग बाधक तत्वों से समझौता नहीं करते, अपितु वे उन्हें ठोकर मारकर आगे बढ़ते हैं। समझौता करना तो अपनी कमजोरी व्यक्त करना जैसा है। 3. हमारे समाज में अनेक बुराइयों की परतें जमी हुई हैं, वे बुराइयाँ हमारे सामाजिक-जीवन के मार्ग में बाधाओं के टीले जैसे हैं। एक सामाजिक चेतना का साहित्यकार उन बुराइयों का विरोध करता है, उन्हें मिटाना भी चाहता है। इसी कारण प्रेमचन्द उन बुराइयों पर ठोकरें मारते रहे, जिससे उनके जूते फट गये। 4. इस गद्यांश में प्रेमचन्द के व्यक्तित्व की यह विशेषता बतायी गयी है कि वे न तो सुविधाभोगी थे और न समझौतावादी थे। वे तो सामाजिक जीवन में व्याप्त अनेक बुराइयों तथा कुरीतियों को मिटाना चाहते थे। बोधात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न
19. प्रेमचंद के फटे जूते Summary in Hindiलेखक परिचय - हिन्दी के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का जन्म सन् 1922 में मध्य प्रदेश में होशंगाबाद जिले के जमानी. गाँव में हुआ। प्रारम्भ में अध्यापन कार्य किया, फिर स्वतन्त्र लेखन करने लगे और 'वसुधा' नामक पत्रिका का सम्पादन किया। सन् 1995 में परसाईजी का निधन हो गया। इन्होंने कहानी, उपन्यास, निबन्ध लेखन के साथ व्यंग्य-लेखन में उल्लेखनीय कार्य किया। वस्तुतः उनके व्यंग्य-लेखन में भारतीय जीवन में व्याप्त अनेक बुराइयों का चुभता हुआ चित्रण हुआ है। पाठ-सार - हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित प्रस्तुत पाठ उपन्यास-सम्राट् एवं कथाकार मुंशी प्रेमचन्द को लक्ष्य कर लिखा गया व्यंग्य-लेख है। लेखक के सामने प्रेमचन्द का एक फोटो है, जिसमें उन्होंने धोती-कुरता और टोपी पहन रखी है। प्रेमचन्द के पैरों में बेतरतीब बँधे जूतों से पतरी निकल रही है और बायें पैर के जूते के छेद से एक अंगुली बाहर झाँक रही है। उस फोटो को देखकर लेखक सोचने लगा कि जो व्यक्ति फोटो में ऐसा दिखता है, वह अपने वास्तविक जीवन में कैसा होगा। फोटो में प्रेमचन्द की व्यंग्यपूर्ण हँसी देखकर लेखक सोचने लगा कि लोग फोटो खिंचवाने के लिए सब-कुछ माँग कर ले आते हैं, तो प्रेमचन्द को भी जूते किसी से माँग लेने चाहिए थे। उस फोटो में मुस्कान को लक्ष्य कर लेखक उसका आशय जानना चाहता है। वह पूछता है कि क्या होरी का गोदान हो गया? या पूस की रात में नील गाय हल्कू का खेत चर गई? क्या सुजान भगत का लड़का मर गया? लेखक यह अर्थ भी लता है कि माधो औरत के 'कफन' के चन्दे की शराब पी गया। लेखक फिर प्रश्न करता है कि प्रेमचन्द का जूता फट कैसे गया? क्या बनिए के तगादे से बचने के लिए रोज मील-दो मील का चक्कर काट कर घर आते थे? क्या बुराइयों को ठोकर मारते-मारते जूते फाड़ डाले? लेखक इस तरह प्रेमचन्द की कहानियों एवं उपन्यासों के पात्रों को लेकर सोचता है कि जिसे प्रेमचन्द घणित समझते थे, उस पर ठोकर मारने से जूता फट गया, क्योंकि वे जीवन में किसी से समझौता नहीं कर सके और घृणित समझे जाने वाले के प्रति हाथ की अंगुली से नहीं, अपितु फटे जूते से झांक रही अंगुली से ही मानो संकेत करते रहे। चेहरे की व्यंग्य-भरी मुस्कान भी यही व्यक्त कर रही है। कठिन-शब्दार्थ :
क प्रेमचंद सहज जीवन में विश्वास क्यों रखते थे सिद्ध कीजिए?प्रेमचंद सहज जीवन में विश्वास रखते थे यह इससे सिद्ध होता है कि वे अपनी जीवनी को अपने लेखन के माध्यम से उजागर करते थे। - मुंशी प्रेमचंद राष्ट्र कवि थे। उनका जीवन सादा व सरल था, उन्हें आडंबर या दिखावा बिल्कुल पसंद न था। - इतने महान लेखक होने के बावजूद उनमें रत्ती भर भी अहंकार नहीं था।
लेखक के सामने किसका चित्र है?➲ लेखक के सामने मुंशी प्रेमचंद का चित्र है और लेखक मुंशी प्रेमचंद के चित्र को देखकर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में विचार कर रहा है।
प्रेमचंद की विडंबना क्या है?प्रेमचंद की विडंबना यह थी कि वह एक महान साहित्यकार, कथाकार उपन्यास सम्राट, युग प्रवर्तक जाने क्या-क्या कहलाते थे, लेकिन एक फोटो खिंचवाने हेतु उनके पास पहनने के लिए ढंग के जूते नहीं थे, यह प्रेमचंद की सबसे बड़ी विडंबना थी। 'प्रेमचंद के फटे जूते' पाठ में लेखक परसाई जी ने प्रेमचंद की इसी विडंबना का वर्णन किया है।
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