नीलकंठ सार वसंत भाग - 1 (Summary of Nilkanth Vasant)यह पाठ एक रेखाचित्र है जिसमें लेखिका ने अपने सभी पालतू पशुओं में से एक मोर जिसे उन्होंने नीलकंठ नाम दिया है उसका वर्णन किया है| उसके स्वभाव, व्यवहार और चेष्टाओं को विस्तार से बताया है| Show एक बार लेखिका अतिथि को स्टेशन पहुँचाकर लौट रही थी तो बड़े मियाँ चिड़ियावाले के यहाँ से मोर-मोरनी के दो बच्चे ले आईं। जब वे दोनों पक्षी लेकर घर पहुँची तो सबने कहा कि वे मोर की जगह तीतर ले आई है| दुकानदार ने उन्हें ठग लिया है। यह सुनकर लेखिका चिढ़कर दोनों पक्षियों को अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में ले गई। दोनों पक्षी उनके कमरे में आजादी से घूमते रहे। जब वे लेखिका से घुल-मिल गए तो वे लेखिका का ध्यान अपनी हरकतों से अपनी ओर खींचते। जब वे थोड़े बड़े हुए तो उसे अन्य पशु-पक्षियों के साथ जालीघर पहुँचा दिया गया। धीरे-धीरे दोनों बड़े होने लगे और सुंदर मोर-मोरनी में बदल गए। मोर के सिर की कलगी बड़ी और चमकीली हो गई थी। चोंच और तीखी हो गई थी। गर्दन लंबी
नीले-हरे रंग की थी। पंखों में चमक आने लगी थी। मोरनी का विकास मोर की तरह सौंदर्यमयी नहीं था परंतु वह मोर की उपयुक्त वसंत पर मेघों की सांवली छाया में अपने इंद्रधनुषी पंख फैलाकर नीलकंठ एक सहजात लय-ताल में नाचता रहता। लेखिका को नीलकंठ का नाचना बहुत अच्छा लगता। अनेक विदेशी महिलाओं ने उसकी मुद्राओं को अपने प्रति व्यक्त सम्मान समझकर उसे 'परफेक्ट जेंटलमैन' की उपाधि दे दी थी। नीलकंठ और राधा को वर्षा ऋतु बहुत अच्छी लगती थी। उन्हें बादलों के आने से पहले उनकी आहट सुनाई देने लगती थी। बादलों की गड़गड़ाहट, वर्षा की रिम-झिम, बिजली की चमक जितनी अधिक होती थी, नीलकंठ के नृत्य में उतनी ही तन्मयता और वेग बढ़ता जाता था। बरसात के समाप्त होने पर वह दाहिने |पंजे पर दाहिना पंख और बाएँ पर बायाँ पंख फैलाकर सुखाने लग जाता था। उन दोनों के प्रेम में एक दिन तीसरा भी आ गया। एक दिन लेखिका को बड़े मियाँ की दुकान से एक घायल मोरनी सात रुपये में मिली। पंजों की मरहमपट्टी करने पर एक महीने में वह ठीक हो गई और डगमगाती हुई चलने लगी तो उसे जाली घर में पहुँचा दिया गया उसके दोनों पैर खराब हो गए थे, जिसके कारण वह डगमगाती हुई चलती थी। उसका नाम 'कुब्जा' रखा गया था| नीलकंठ और राधा को वह जब भी साथ देखती, उन्हें मारने दौड़ती। उसने चोंच से मार-मारकर राधा की कलगी और पंख नोच डाले थे। नीलकंठ उससे दूर भागता, पर वह उसके साथ रहना चाहती। कुब्जा की किसी भी पक्षी से मित्रता नहीं थी। कुछ समय बाद राधा ने दो अंडे दिए। वह उन अंडों को अपने पंखों में छिपाए बैठी रहती थी। जैसे ही कुब्जा को राधा के अंडों के विषय में पता चला उसने अपनी चोंच के प्रहार से उसके अंडों को तोड़ दिया। नीलकंठ इससे बहुत दु:खी हो गया। लेखिका को आशा थी कि कुछ दिनों में सब | में मेल हो जाएगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ। तीन-चार माह के बाद अचानक एक दिन सुबह लेखिका ने नीलकंठ को मरा हुआ पाया। न उसे कोई बीमारी हुई थी और न ही उसके शरीर पर चोट का कोई निशान था। लेखिका ने उसे अपनी शाल में लपेट कर संगम में प्रवाहित कर दिया। नीलकंठ के न रहने पर राधा कई दिन तक कोने में बैठी रह नीलकंठ का इंतज़ार करती रही। परंतु कुब्जा ने नीलकंठ के दिखाई न देने पर उसकी खोज आरंभ कर दी। एक दिन वह लेखिका की अल्सेशियन कुतिया कजली के सामने पड़ गई। कुब्जा ने उसे देखते ही चोंच से प्रहार कर दिया। कजली ने अपने स्वभाव के अनुरूप कुब्जा की गर्दन पर दो दाँत लगा दिए। कुब्जा का इलाज करवाया गया परंतु वह नहीं बची| राधा नीलकंठ की प्रतीक्षा कर रही है। बादलों को देखते ही वह अपनी केका ध्वनि से नीलकंठ को बुलाती है। कठिन शब्दों के अर्थ - • चिड़िमार - पक्षियों को पकड़ने वाला • बारहा - बार-बार • शावक - बच्चा • अनुसरण - पीछे-पीछे चलना • आविर्भूत - प्रकट • नवागंतुक - नया-नया आया हुआ • मार्जारी – मादा बिल्ली • सघन - बहुत घनी • बंकिम - टेढ़ा • नीलाभ - नीली आभा • ग्रीवा - गरदन • भंगिमा - मुद्रा • युति - चमक • उद्दीप्त होना - चमकना • श्याम - काली • मंथर - धीमी • चंचु-प्रहार - चोंच से चोट करना • आर्तक्रंदन - दर्द भरी आवाज़ में चीखना • व्यथा - पीड़ा • निश्चेष्ट - बेहोश होना • उष्णता - गर्मी • अधर - बीच में • कार्तिकेय - शिव का पुत्र • नित्य - प्रतिदिन • विस्मयाभिभूत - हैरानी भरा • पैनी - तेज़ • हौले-हौले - धीरे-धीरे • पुष्पित - फूलों से • मंजरियाँ - नई कोंपलें • स्तब्क - गुलदस्ता • सोपान - सीढ़ी • करुण-कथा - दुःख भरी कहानी • विरल - बहुत कम • पूँज - बाण की रस्सी • सारांश - निचोड़ • कुब्जा - कुबड़ी • दुकेली - जो अकेली न हो • मेघाच्छन्न - बादलों से ढका हुआ • केका - मोर की बोली • सुरम्य - मनोहर नीलकंठ पाठ से हमें क्या सीख मिलती है?नीलकंठ. पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें जीव-जंतुओं के साथ किसी भी प्रकार का अत्याचार नहीं करना चाहिए। हमें उनके प्रति प्रेमभाव ही रखना चाहिए। वे अपनापन पाकर कभी भी हमारे लिए अहितकारी नहीं हो सकते हैं।
नीलकंठ पाठ क्या है?नीलाभ ग्रीवा के कारण मोर का नाम रखा गया नीलकंठ और उसकी छाया के समान रहने के कारण मोरनी का नामकरण हुआ राधा। से किसी असामान्य घटना की सूचना सब ओर प्रसारित कर दी। माली पहुँचा, फिर हम सब पहुँचे। नीलकंठ जब साँप के दो खंड कर चुका, तब उस शिशु खरगोश के पास गया और रातभर उसे पंखों के नीचे रखे उष्णता देता रहा।
नीलकंठ किस प्रकार का पाठ है और क्यों?वीरता-नीलकंठ वीर प्राणी है। अकेले ही उसने साँप से खरगोश के बच्चे को बचाया और साँप के दो खंड (टुकड़े) करके अपनी वीरता का परिचय दिया। कुशल संरक्षक-खरगोश को मृत्यु के मुँह से बचाकर उसने सिद्ध कर दिया कि वह कुशल संरक्षक है। उसके संरक्षण में किसी प्राणी को कोई भय न था।
इस पाठ का नाम नीलकंठ क्यों रखा है?नीली गर्दन होने के कारण मोर का नाम नीलकंठ रखा गया और मोरनी सदा मोर की छाया के समान उसके साथ रहती इसलिए उसका नाम राधा रखा गया।
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