मुंशी जी ने क्या बेचकर दरोगा जी का श्राद्ध किया? - munshee jee ne kya bechakar daroga jee ka shraaddh kiya?

 

मुंशी जी ने क्या बेचकर दरोगा जी का श्राद्ध किया? - munshee jee ne kya bechakar daroga jee ka shraaddh kiya?

पाठ के साथ 

प्रश्न 1. लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि कहानी लिखने योग्य प्रतिभा भी मुझमें नहीं है जबकि यह कहानी श्रेष्ठ कहानियों में एक है ? 

उत्तर - कहानीकार शिवपूजन साय ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि यह उनकी आरंभिक रचना थी । प्रारंभ में हर लेखक को यह सदेह बना रहता है कि उसकी रचना अच्छी होगी या नहीं । इसका मुख्य कारण यह है कि संपादन कार्य में व्यस्त रहने के कारण उन्हें स्वलेखन का बहुत कम समय मिलता था । साथ ही , लेखक ने स्वयं कहा भी है - 'मै कहानी लेखक नहीं है। कहानी लिखने योग्य प्रतिभा भी मुझमें नहीं है । कहानी लेखक को स्वभावत कला मर्मत होना चाहिए और मै साधारण कलाविद भी नहीं हूँ । किन्तु " कुशल कहानी लेखको का ' प्लॉट ' पा गया हूँ । " अत : इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक ने यह बताना चाहा है कि कथानक उपयुक्त होने पर कहानी अच्छी हो जाती है । 

प्रश्न 2.लेखक ने भगजोगनी नाम ही क्यों रखा ?

 उत्तर - लेखक ने लड़की का नाम भगजोगनी ' इसलिए रखा , क्योंकि एक तो वह देहाती लड़की थी , दूसरी बात यह है कि वह अतिसुन्दर थी तथा अपने बाप की एकमात्र संतान रह गई थी , जो परिवार में भगजोगनी की भांति टिमटिमा रही थी ।

 प्रश्न 3 , मुंशीजी के बड़े भाई क्या थे ? 

उत्तर - मुशीजी के बड़े भाई अंगरेजी जमाने में पुलिस - दारोगा थे ।

 प्रश्न 4. दारोगा जी की तरक्की रुकने की क्या वजह थी ?

 उत्तर - दारोगा जी की तरक्की रुकने की वजह उनकी घोड़ी थी । यद्यपि घोड़ी सात रुपये में खरीदी गई थी , परन्तु तुर्की घोड़ो का कान काटती थी । वह बारूद की पुड़िया थी । बड़े - बड़े अंगरेज अफसर उस पर दाँत गड़ाए हुए थे , मगर दारोगा जी ने बेचना स्वीकार नहीं किया । फलत काबिल , मेहनती , ईमानदार , दिलेर तथा मुस्तैद दारोगा होते हुए भी दारोगा के दारोगा ही रह गए , तरक्की नहीं हुई । 

प्रश्न 5. मुंशी जी अपने बड़े भाई से कैसे उसण हुए ? 

उत्तर - दारोगा जी अपनी सारी कमाई अपने जीवन काल में ही फूंक डाला था । उनके मरने के बाद मुंशी जी उनकी घोड़ी बेचकर धूमधाम से उनका वादादि कर्म करके अपने बड़े भाई दारोगा जी से उऋण हुए । 

प्रश्न 6. ' थानेदार की कमाई और फूस का तापना दोनों बराबर है ' लेखक ने ऐसा क्यों कहा है ? 

उत्तर - लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है कि दारोगा जी के मरते ही घी के दीए जलाने वाले मुंशीजी दाने - दाने के ए तरसने लगे । पैसे के अभाव में घोड़ी बेचकर उनका श्राद्ध किया गया । चुपड़ी तयाँ चबाने वाले दाँत अब मुट्ठी भर चने चबाकर दिन गुजारने लगे । अत : लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि भ्रष्ट तरीके से कमाई गई सम्पत्ति टिकाऊ नहीं होती । जिस प्रकार घास की आग क्षणिक होती है , उसी प्रकार थानेदार की कमाई क्षणिक होती है । यहाँ यह कहावत चरितार्थ होती है जो धन जैसे आता है वह धन वैसे ही चला जाता है । ' अर्थात् मेहनत से कमाई गई सम्पत्ति ही टिकाऊ होती है क्योंकि इसमें खून - पसीना एक करना पड़ता है जबकि पुलिस की कमाई मुफ्त की होती है , इसलिए टिकाऊ नहीं होती ।

 प्रश्न 7. ' मेरी लेखनी में इतना जोर नहीं ' - लेखक ऐसा क्यों कहता है ? 

उत्तर - लेखक भगजोगनी की अपूर्व सुन्दरता तथा उसकी दर्दनाक गरीबी देखकर विचलित हो जाता है । उसका कलेजा कॉप जाता है । वह गरीबी के इस भयावने चित्र को इस प्रकार अंकित करना चाहता है कि पाठक के मानव - पटल को झकझोर सके । इसलिए भड़कीली भाषा में लिखना नहीं चाहता है , क्योंकि भाषा में गरीबी को ठीक - ठीक चित्रित करने की शक्ति नहीं होती , भले ही वह राजमहला को ऐश्वर्य - लीला और उसके विशाल वैभव के वर्णन करने में समर्थ हो । अतः लेखक का मानना है कि कहानी की सफलता जीवन के सम्यक चित्रण पर निर्भर करती है न कि भाषा के प्रवाह पर । इसीलिए लेखक ने कहा है कि मेरी लेखनी में इतना जोर नहीं , क्योंकि यह लेखक का आरंभिक प्रयास था । इसे लेखक की महानता भी कहा जा सकता है ।

 प्रश्न 8. भगजोगनी का सौन्दर्य क्यों नहीं खिल सका ? उत्तर - भगजोगनी का जन्म दारोगा जी के मरने के बाद हुआ था । दारोगाजी के मरते ही मुंशीजी की सारी अमीरी पुस गई थी । बटेरा के शोरबा सुड़कने वाले मुंशीजी मटर का सतू सरपोटने पर मजबूर हो गए थे । बेचारी भगजोगनी थी तो अति सुन्दर लेकिन दरिद्रता रूपी राक्षसी ने उस सुन्दरता - सुकुमारी का गला दबा दिया था । वह दाने दाने को तरसती थी , एक बित्ता कपड़े के लिए मुहताज थी । सिर में डालने के लिए नुल्लू भर सरसों का तेल कौन कहे , अलसी का तेल भी नदारत था । भरमेट भोजन के अभाव में शरीर हड्डियों का खंडहर बन गया था । इसी गरीबी एवं विवशता के कारण भगजोगनी का सौन्दर्य नहीं खिल सका ।

 प्रश्न 9. मुंशीजी गल - फाँसी लगाकर क्यों मरना चाहते थे ?

 उत्तर - घी के दीए जलानेवाले मुंशीजी दारोगा जी के मरते ही दाने - दाने के तरसने लगे । बेटी भगजोगनी भीख मांगकर अपने पेट की ज्वाला शांत करती थी तथा एकाथ फैका चना - चबेना पिता के लिए भी लेते आती थी , किंतु जब भीख नहीं मिलता था और शाम को उनके पास जाकर धीमी आवाज में कहती कि बाबूजी भूख लगी है । कुछ हो तो खाने को दो । अपनी इस दुर्दशा की कहानी लेखक को सुनाते हुए मुंशीजी कहते है कि उस वक्त जी चाहता है कि गल फाँसी लगाकर मर जाऊँ । अर्थात् अपनी अति दयनीय दशा के कारण मुंशीजी गले में फाँसी लगाकर मरना चाहते है । 

प्रश्न 10. भगजोगनी का दूसरा वर्तमान नवयुवक पति उसका ही सौतेला बेटा है - यह घटना समाज की किस वुराई की ओर संकेत करती है और क्यों ? 

प्रस्तुत  पंक्ति के माध्यम से कहानीकार ने समाज में नारी का स्थान निर्धारित करने के क्रम में तिलक - दहेज की निर्मम प्रथा तथा वृद्ध विवाह की विसंगतियों की ओर सकेत किया है , क्योकि तिलक दहेज की क्रूरता के कारण भगजोगनी जैसी अपूर्व सुन्दरी एक वृद्ध के गले में बाँध दी जाती है जो तरुणाई की सीदी पर पैर रखते - रखते विधवा हो जाती है और अपने सौतेले बेटे की पत्नी बनने को विवश हो जाती है । लेखक के कहने का उद्देश्य है कि सामाजिक विद्रुपता के कारण ही भगजोगनी को सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन करना पड़ा । क्योंकि यदि तिलक - दहेज वाधा नहीं बनते  और उसका विवाह किसी युवक के साथ होता तो वह ऐसा कदम कभी नहीं उठाती । अत दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्था ही नारी को नरक में पैर रखने के लिए प्रेरित करती है । नारी भी समाज का ही अंग है । उसमे भी सम्मान - असम्मान की परख होती है तथा स्वता एवं सुखपूर्ण जीवन व्यतीत करने की इच्छा होती है , परन्तु पुरुष वर्ग उसे परतत्रता की बेड़ी में जकड़ नारकीय जीवन व्यतीत करने को विवश कर देता है । नारी के प्रति . ऐसी कुप्रथा का अन्न होना आवश्यक है , ताकि दूसरी स्वी को भगजोगनी बनने पर विवश न होना पड़े ।

 प्रश्न 12.आशय स्पष्ट करें : 

( क ) जो जीभ एक दिन बटेरो का शोरबा सुड़कती थी , अब वह सराह सराहकर मटर का सतू सरपोटने लगी । चुपड़ी चपातियाँ चबानेवाले दाँत अब चंद चने चबाकर गुजारने लगे । 

 व्याख्या-- प्रस्तुत पंक्तियाँ मह कहानीकार शिवपूजन सहाय द्वारा लिखित ' कहानी का प्लॉट ' शीर्षक कहानी से ली गई है । इसमें कहानीकार ने दारोगा जी के मरने के बाद मुंशीजी की आर्थिक दशा का मार्मिक वर्णन किया है । कहानीकार का कहना है कि जब दारोगा जी जीवित रहे और उनकी कमाई चलती रही , मुंशीजी मौज - मस्ती मनाते रहे । चुपड़ी चपातियाँ तथा बटेरों के शोरबा का स्वाद लेते रहे । भविष्य के लिए एक पैसा भी बचाकर नहीं रखा । इसका परिणाम यह हुआ कि दारोगाजी के मरते ही उनकी दशा अति दयनीय हो गई । चूल्हा - चक्की ठंढी हो गई । मटर का सन् एवं चने के सहारे दिन गुजारने पर मजबूर होना पड़ा । लेखक के कहने का आशय है कि दूसरों की कमाई पर जीने वालों की दशा ऐसी ही होती है , क्योंकि उसके अपने परिश्रम की कमाई नहीं होती। परिश्रम से प्राप्त पैसे के प्रति मोह होता है , जबकि मुफ्त में मिलने वाले पैसों के प्रति मोह नही होता है । मुंशीजी की ऐसी दशा देखकर लोग व्यंग्यात्मक लहजे में कहने लगे - ' थानेदारी की कमाई और फूस तापना भा बराबर है । ' लोग ऐसा इसलिए कहने लगे , क्योंकि दारोगा जी के जीवन - काल में जी का लोगों के साथ व्यवहार अच्छा नहीं था । -

( ख ) सचमुच अमीरी की कब पर पनपी हुई गरीबी बड़ा ही जहरीली होती है । 

 व्याख्या- प्रस्तुत पंक्ति शिवपूजन सहाय द्वारा रचित ' कहानी का प्लॉट ' शीर्षक कहानी से उद्धृत है । इसमे कहानीकार ने मुंशीजी की आर्थिक विपन्नता पर प्रकाश डाला है । कहानीकार का कहना है कि सुख के बाद दुःख का आना बड़ा ही कष्टप्रद महसूस होता है । जैसा कि मुंशीजी अनुभव करते है । बड़े भाई दारोगा जी के जीवनकाल में मुंशीजी ऐशो आराम के साथ जीवन व्यतीत करते थे , पाँचो ऊँगलियाँ घी में थी । शान शौकत थी । कोई खानेवाला नहीं था । चार - पाँच लड़के हुए भी तो सब के सब सुबह के चिराग हो गए , परन्तु जब दोनों टाँगे दरिद्रता के दलदल मे आ फँसी तो कोद में खाज की तरह एक लड़की पैदा हो गई । मुंशीजी एक ओर गरीबी की मार से व्यथित थे तो दूसरी ओर तिलक - दहेज के जमाने में लड़की की शादी के लिए चितित थे । कहानीकार के कहने का भाव है कि अमीरी में जीवन व्यतीत करने के बाद यदि गरीबी में जीना पड़ता है तो व्यक्ति का जीवन नारकीय हो जाता है । उसे यह गरीबी काँटी जैसा चुभती प्रतीत होती है । इसीलिए कहानीकार ने कहा है कि " अमीरी की कब पर पनपी हुई गरीबी बड़ी जहरीली होती है । (ग) दरिद्रता - राक्षसी ने सुन्दरता - सुकुमारी का गला टीप दिया था । 

व्याख्या प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी पाठ्यपुस्तक गोधूलि भाग 1 के 

ओजस्वी कहानीकार शिवपूजन सहाय द्वारा लिखित ' कहानी का प्लॉट ' से ली गई है । इसमें कहानीकार ने भगजोगनी की सुन्दरता के विषय में कहा है । कहानीकार के अनुसार भगजोगनी अति सुन्दर थी , किंतु गरीबी के कारण न तो तन ढकने को साबुत वस्त्र थे और न ही शारीरिक विकास समुचित ढंग से हो पाया था । उसके सिर के बाल तेल बिना बुरी तरह बिखरकर बड़े डरावने हो गए थे । उसकी बड़ी - बड़ी आँखों में एक अजीब ढंग की करुण - कातर चितवन थी । लेखक के कहने का आशय है कि भगजोगनी की सुन्दरता को दरिद्रता राक्षसी ने क्षीण कर दिया था । वह गरीबी की चक्की में पीस रही थी , दाने - दाने के लिए तरसती थी , एक वित्ता कपड़े के लिए मुहताज थी , भरपेट अन्न के लाले पड़े थे , शरीर कंकालवत् प्रतीत हो रहा था । भला उसका सौदर्य कैसे खिल सकता था । तात्पर्य यह कि निर्धनता ऐसी राक्षसी है जो सब कुछ नष्ट कर देती है । इसी कारण गरीबी को अभिशाप कहा गया है ।

 भाषा की बात 

      ( व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर )

प्रश्न 1. निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य - प्रयोग द्वारा अर्थ स्पष्ट करें :

 बारूद की पुड़िया होना , निबुआ नोन चटाना , घी के दिए जलाना , सुबह का चिराग होना , पाँचों उँगलियाँ घी में , कोढ़ में खाज होना , कलेजा कॉपना , बाट जोहना , दाँत दिखाना , छाती पर पत्थर रखना , टन बोल जाना , कलेजा टूक - टूक हो जाना । 

उत्तर :

 बारूद की पुड़िया होना -- कृष्ण को छोटा मत समझो , वह तो बारूष्ट की पुड़िया है ।

 निबुआ नोन चटाना -- गोपी यहाँ से कही जाने वाला नहीं है , इसे तो तुमने निबुआ नोन चटा दिये हो । 

घी के दीए जलाना-- दारोगाजी की कमाई पर मुशीजी घी के दीए जलाते थे । 

सुबह का चिराग होना --उसके सभी बच्चे सुबह के चिराग हो गए । 

पाँचों उँगलियाँ घी में - -जब से मोहन ने ठीकेदारी का काम लिया है उसकी पाँचा उँगलियाँ घी में है ।

 कोढ़ में खाज होना -- एक तो उसकी माँ मर गई , फिर कोढ़ में खाज की तरह पत्नी भी चल बसी । कलेजा कॉपना -- बेटा के आने में विलब होने के कारण माँ का कलेजा कॉपने लगा

बाट व जोहना -- माँ अपने पुत्र के आने का बाट जोह रही थी ।

छाती पर पत्थर रखना -- मुंशीजी छाती पर पत्थर रखकर बेटी को डोली पर 

कलेजा टूक - टूक टन बोल जाना - मोहन के सूदखोर पिताजी अभी - अभी टन बोल गए । 

प्रश्न 2. ' बुढ़ापे की लाठी ' और ' जितने मुंह उतनी बातें ' कहावतों का , 

 दाँत दिखाना - भिखारी भीख के लिए दाँत दिखा रहे थे। ।

व्यथा - कथा सुनकर वाक्य - प्रयोग द्वारा अर्थ स्पष्ट करें । 

बुढ़ापे की लाठी - किसी भी व्यक्ति के पुत्र उसके बुढ़ापे की लाठी होते है । जितने मुँह उतनी बातें आज हर विषय पर हर व्यक्ति के विचार में भिन्नता देखकर यह कहावत सटीक लगता है कि जितने मुंह उतनी बाते । 

प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के पर्याय लिखें : घोड़ा , चिड़िया , घर , फूल , तीर 

उत्तर : घोड़ा - अश्व 

चिड़िया - विहग 

घर -निकेतन 

फूल -पुष्प 

तीर - शर 

प्रश्न 4. भाषा और इमारत शब्दों के वचन बदलें । उत्तर - भाषा - भाषाएँ , भाषाओं । 

इमारत - इमारते , इमारतो ।